CHHOTI SHUBHI KI LAMBI KAHANI

CHHOTI SHUBHI KI LAMBI KAHANI
शुभी के चेहरे पर दर्द का अहसास और कष्ट के भाव थे। उसके जबड़े भिंचे हुए थे और उसे काफी तकलीफ हो रही थी। माथे से पसीना लगातार टपक रहा था और वह बार-बार अपनी कमजोर होती हाथों की पकड़ को देख रही थी, जिससे किसी भी पल वह रॉड उसे छूट सकती थी, जिस पर वह लटकी हुई थी। जैसे ही लगने लगा कि अब उसकी पकड़ छूट जाएगी, शुभी की माँ कुछ ढूंढते हुए उस स्टोर रूम में दाखिल हुईं। जैसे ही माँ ने शुभी को इस हालत में देखा, उनके होश उड़ गए। शुभी के हाथ की पकड़ छूटने लगी और वह नीचे गिरते-गिरते संभल रही थी कि माँ ने उसे थाम लिया। माँ की नजर शुभी के हाथों पर पड़ी, जो जबरदस्त दर्द को छिपाने की कोशिश कर रही थी। शुभी अपनी हथेलियाँ छिपाए खड़ी थी। माँ ने जब गौर से उसकी हथेलियों को देखा तो उन्हें दिखा कि शुभी की हथेलियाँ सुरख लाल हो चुकी थीं, और उनमें छाले और चिल्हड़ लगे हुए थे। माँ चिल्लाईं, "पागल हो गई है क्या? ये क्या बदहवासी है... दिमाग फिर गया है तुम्हारा?" शुभी ने आंसुओं से भरी आँखों और कांपती आवाज़ में जवाब दिया, "माँ, मुझे समझ में नहीं आता मैं क्या करूँ। स्कूल में सब मुझे हमेशा चिढ़ाते रहते हैं। कोई मेरे सर पर थपली मारता है तो कोई मुझे 'बटली' बुलाता है। कोई 'बोनी' कहता है, तो कोई 'लिलिपुट' और 'गट्टू'। मेरी पूरी ज़िन्दगी मज़ाक बनकर रह गई है। क्लास में सबसे आगे बैठती हूँ तो भी परेशान करते हैं। जब मुझे कुछ याद नहीं रहता और टीचर पूछती हैं, तो सब मुझे ही देखते हैं और हंसते हैं।" शुभी के स्कूल में रोज़ाना एक नए जुमले का चयन होता था - कोई उसका मज़ाक उड़ाता, कोई उसकी लम्बाई पे ताने मारता, और ये उसके आत्मविश्वास को कमज़ोर कर देता था। उसकी मदद करने की जगह, उसके साथी उसे और भी अकेले महसूस करवाते थे। जिस वजह से उसके मार्क्स और उसके सेमेस्टर का प्रदर्शन ख़राब पे ख़राब होती जा रही थी, ये स्कूल नहीं बाल्की एक डर का घर बीएसएन गया था उसके लिए.... जहां उसके छोटे छोटे सपने दबे पड़े थेमाँ ने शुभी को और करीब खींचते हुए कहा, "लेकिन बेटा, ये सब इतना बड़ा कदम उठाने की वजह तो नहीं हो सकती।" शुभी की आवाज़ भर्राने लगी, "माँ, मैं नहीं जानती कि क्या करूं। मुझे हर दिन शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है। अब मुझसे ये सहा नहीं जाता। अब या तो मेरी हाइट बढ़ेगी, तभी मैं किसी को भी अपना मुँह दिखाऊंगी। नहीं तो इसी स्टोर में रहूंगी और तब तक रहूंगी जब तक मेरी हाइट नहीं बढ़ती।" शुभी की आवाज़ अब पूरी तरह से टूट चुकी थी और वह माँ से लिपटकर रोने लगी। माँ ने शुभी को सीने से लगाते हुए उसकी पीठ थपथपाई और कहा, "सब ठीक हो जाएगा, बेटा। हमें सब मिलकर इसका हल निकालेंगे। तुम अकेली नहीं हो।" माँ ने शुभी को हौसला देते हुए उसके आंसू पोंछे और मन ही मन सोचने लगी कि कैसे अपनी बेटी को इस दर्द और संघर्ष से बाहर निकाले। Part 2 : इसी उधेड़बुना से दो चार होते हुए शुभी की मां को याद आया की जब वह छोटी थी, तो उन्हें अपनी दादी से कुछ ज्ञान मिला था, जैसे कि व्यायाम, योग और स्वस्थ जीवनशैली के बारे में। उन्होंने पुरानी बातों को याद किया और अपनी बेटी को उन उपायों के बारे में सिखाया जो कद बढ़ाने में मदद कर सकते थे। मां ने तारा को विभिन्न व्यायाम और योगासन भी सिखाए, जैसे कि ताड़ासन, भुजंगासन, पादहस्तासन, और सूर्य नमस्कार। वे तारा को खासकर लंबाई बढ़ाने के उपाय बताती थीं। मां ने तारा को सिर्फ व्यायाम के साथ ही नहीं, बल्कि स्वस्थ आहार और ध्यान के महत्व को भी सिखाया। वह उसे प्रतिदिन केले, अंडे, दूध, और हरी सब्जियों का सेवन कराती थी। मां ने उसे मनोबल भी दिया और उसके ख्वाबों को साकार करने के लिए प्रेरित किया। मां ने तारा को विभिन्न व्यायाम और योगासन भी सिखाए, जैसे कि ताड़ासन, भुजंगासन, पादहस्तासन, और सूर्य नमस्कार। वो तारा को खासकर लंबाई बढ़ाने के उपाय बताती थीं। इसके अलावा, मां ने तारा को सुबह जल्दी उठने और दौड़ने के लिए प्रेरित किया, और अंत में खुद भी उसके साथ दौड़ने लगीं। साथ ही, उन्होंने योग्यता अर्जित करने के लिए विभिन्न स्वास्थ्य पेशेवरों की किताबें पढ़ीं, यूट्यूब पर वीडियो देखे, और कुछ स्वास्थ्य पेशेवरों से सलाह ली मां ने धीरे-धीरे समय के साथ खुद को शिक्षित करते हुए खाने में पोषक तत्वों की इम्पोर्टेंस बताई वक्त बीत गया और शुभी की ऊंचाई अब थोड़ी सी बढ़ गई थी और उसकी ग्रेजुएशन भी पूरी होने को थी... ### शुभी का इंटरव्यू और आदित्य से मुलाकात स्नातक की पढ़ाई खत्म होते-होते शुभी ने अपनी डायरी पूरी तरह से भर दी थी, लेकिन कभी उसे खोल कर दोबारा पढ़ा नहीं। एक दिन उसे एक प्रतिष्ठित कंपनी से नौकरी के लिए इंटरव्यू का फोन आया। शुभी उलझन में थी, उसके मन में हजारों सवाल थे। "क्या मुझे वहां जाना चाहिए?" वह खुद से ही बड़बड़ाने लगी। माँ ने उसे उत्साहित करते हुए कहा, "हां, ज़रूर जाओ। कुछ नया सीखने को मिलेगा।" "लेकिन माँ, अगर उन्होंने मेरे कद का मजाक बनाया तो?" माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, "तब तुम छोटी बच्ची थी। बचपन में सब ऐसे ही होते हैं और वैसे भी अब तुम पहले से ज्यादा लंबी लग रही हो।" "सच में माँ?" शुभी ने खुश होकर माँ को गले लगाते हुए कहा। "ठीक है, फिर बताओ कि कल क्या पहन कर जाऊं?" शुभी ने पूछा। माँ ने एक नीले सूट की तरफ इशारा करते हुए कहा, "यह ज्यादा अच्छा लगेगा।" अगले दिन सुबह-सुबह शुभी जल्दी उठी और इंटरव्यू के लिए तैयार होने लगी। उसने नीला सूट पहना और अपने आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए ऊँची एड़ी वाले सैंडल पहनने का फैसला किया। माँ ने उसे विदा करते हुए कहा, "बेटा, 'LET’SXPRES ड्रीम इंटरव्यू' नाम की किताब जरूर ले लेना, यह तुम्हारे पहले इंटरव्यू में मदद करेगी।" माँ ने उसे दही और चीनी खिलाकर आशीर्वाद दिया और विदा किया। शुभी ऑटो रिक्शा लेने के लिए सड़क पर आई। उसने एक ऑटो रुकवाया और अपने गंतव्य का नाम बताया। ऑटो में बैठते ही उसने अपने दस्तावेजों की जांच करने लगी ताकि कुछ छूट न जाए। जैसे ही ऑटो चलने लगा, शुभी ने देखा कि रास्ते में एक बुक स्टोर था जहाँ । अचानक उसे ध्यान आया कि माँ ने उसे वो बुक खरीदने को कहा था। ये बुक स्टोर ऑफिस के पास ही था तो फोन पर बात करते हुए अपने फोन को स्पीकर पर रखते हुए उसने ऑटो वाले को UPI से भुगतान किया और बुक स्टोर की तरफ रवाना हो गई। बुक स्टोर में पहुँचते ही उसने LET’SXPRES ड्रीम इंटरव्यू' किताब की खोज शुरू कर दी। किताब ढूंढ़ते हुए उसकी नजर एक लड़के पर पड़ी जिसका नाम ऋषि था जो उसी किताब को देख रहा था। उसने धीरे से पास जाकर पूछा, "क्या ये किताब यहाँ उपलब्ध है?" ऋषि ने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ, ये रही। लगता है, आप भी इस किताब की फैन हैं।" शुभी ने हल्के से मुस्कराते हुए जवाब दिया, "नहीं वो तो बस मा ने कहा तो...अचानक उसे एहसास हुआ कि वो इस अजनबी से बात क्यों कर रही है? और वो चुप हो गई ।" उसने किताब हाथ में ली और काउंटर की तरफ बढ़ी। जिसपे ऋषि ने कहा? क्या बोला मम्मी ने? शुभी का जवाब था अजनबियों से ज्यादा बात नहीं करनी चाहिए.... ऋषि: क्या तब भी नहीं जब वो अजनबी आपका वॉलेट लौटा रहा हो? जिसपे अपनी मुस्कुराहट को बहस हुए शुभी उसके हाथ से अपना वॉलेट लगभाग छीनते हुए काउंटर पर पहुंचती है और अपना बटुआ निकाल कर जल्दी से पैसे देकर बुक स्टोर से बाहर निकल जाति है और धीरे-धीरे ऋषि की आंखों से ओजल हो जाती है...ऋषि अपना सारा हिलता है और सामने आकर उसी ऑटो में बैठते हुए पूछता है भैया सफ़र चलोगे? उधर ऑफिस पहुँचते ही शुभी को एहसास हुआ कि उसके दस्तावेज, मार्कशीट और सारे जरूरी कागजात शायद ऑटो में ही छूट गए हैं। उसके दिल की धड़कन तेज हो गई और वह घबराने लगी। वह ऑफिस के प्रतीक्षालय में बैठी थी और उसका नाम पुकारा जाने वाला था। वह बहुत ही तनाव में थी, समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे। ### आदित्य की एंट्री उधर, आदित्य ने भी उसी ऑटो को रोका और उसमें बैठ गया। ऑटो में बैठते ही उसने देखा कि पिछली सवारी के कुछ दस्तावेज सीट पर पड़े थे। उसने ध्यान से देखा तो समझ गया कि ये किसी इंटरव्यू के कागजात हैं। उसने ऑटो वाले से पूछा, "ये दस्तावेज किसके हैं?" ऑटो वाले ने जवाब दिया, कौन से कागज़ात ओह ये वाले ये शायद उस लड़की के थे जो अभी बुक स्टोर के पास उतरी थी।" आदित्य ने तुरंत दस्तावेज अपने पास रख लिए और बुक स्टोर की तरफ देखने लगा। वह सोचने लगा कि लड़की के लिए ये कितने महत्वपूर्ण होंगे। ऑफिस पहुँचते ही आदित्य ने रिसेप्शन पर जाकर पूछा, "क्या यहाँ शुभी नाम की कोई लड़की इंटरव्यू के लिए आई है?" रिसेप्शनिस्ट ने हाँ में सिर हिलाया और शुभी को बुलाने के लिए इंटरकॉम किया। शुभी का नाम पुकारा जाने वाला था और उसका तनाव बढ़ता जा रहा था। तभी रिसेप्शनिस्ट ने आकर कहा, "आपके लिए कोई व्यक्ति दस्तावेज लेकर आया है।" शुभी ने राहत की सांस ली और जल्दी से रिसेप्शन पर पहुंची। उसने देखा, वही लड़का था जिसे उसने बुक स्टोर में देखा था। "आपके दस्तावेज ऑटो में रह गए थे," आदित्य ने मुस्कुराते हुए कहा। शुभी ने दस्तावेज लेते हुए कहा, "धन्यवाद, आप नहीं जानते आपने मेरी कितनी बड़ी मदद की है।" "कोई बात नहीं, शुभकामनाएँ आपके इंटरव्यू के लिए," आदित्य ने कहा और विदा लिया। शुभी ने आत्मविश्वास के साथ इंटरव्यू के लिए कदम बढ़ाए और मन में सोचा, "आज का दिन अच्छा होगा।" तभी अंदर से आवाज आई, "मिस शुभी कौन हैं यहां?" शुभी ने जवाब दिया, "जी, मैं।" "आपको अंदर बुलाया है," मैनेजर ने कहा। अंदर पहुंचते ही जो देखा, तो शुभी अपनी हंसी रोक नहीं पा रही थी। जैसे-तैसे उसने खुद को संभाला और कुर्सी पर बैठ गई। बॉस शुभी से भी कम हाइट का एक नौजवान लड़का था। "तुम शायद किसी बात पर हंस रही थीं, शायद मेरी हाइट पर," बॉस ने कहा। "नहीं-नहीं, वो तो मैं बस कुछ याद आ गया था," शुभी ने बात को घुमाते हुए कहा। "असुविधाजनक महसूस करने की कोई आवश्यकता नहीं है, यहां इंसान को उनकी हाइट या रंग-रूप देखकर नहीं बल्कि उनकी काबिलियत देखकर रखा जाता है। मेरा नाम समीर है और ये मेरे पापा का कारोबार है, जिसे मैं पिछले ३ साल से संभाल रहा हूं। मैं सबको एक दोस्त की तरह देखता हूं, किसी बॉस की तरह हुकुम चलाना मेरे बस में नहीं है," समीर ने कहा। शुभी मन ही मन बहुत ज्यादा खुशी महसूस कर रही थी। समीर ने शुभी के दस्तावेजों को देखा और ज्यादा सवाल ना करते हुए उसे अगले हफ्ते से काम पर आने को कहा। "धन्यवाद सर," शुभी ने खुश होकर कहा। "मैंने कहा मेरा नाम समीर है और यहां कोई सर नहीं है," समीर ने कहा। शुभी बाहर जाने लगी तभी समीर ने उसे रोकते हुए कहा, "यह लंबा होने के लिए इन हाई हील्स की जरूरत नहीं है, जैसी हो वैसी रहो।" शुभी ने पहली बार अपने कद के बारे में आत्म-संतोष महसूस किया। उसने समझा कि असली आत्मविश्वास हमारे अंदर से आता है, न कि हमारी ऊंचाई या शारीरिक बनावट से। शुभी ने खुशी-खुशी अपना नया काम शुरू किया और अपनी नई उड़ान के लिए तैयार हो गई। कहानी का सुखद अंत हुआ ऐसा ही लगता है सुनके...पर क्या आपको नहीं लगता कि आदित्य और समीर की भी अपनी कोई कहानी होगी जिसे आप जान ना चाहेंगे...इनका शुभी की जिंदगी में आना सिर्फ एक इत्तेफ़ाक़ है या ऊपर बैठा हुआ सबसे बड़ा लेखक किसी अलग कहानी की तरफ संकेत दे रहा है...टिप्पणियाँ मुझे बताइयेगा कि क्या आप उससे आगे कुछ जान ना सुन ना या समझना चाहेंगे...अगर हां तो बताएं....क्या और कब?