PAARO PART 2

ज्ञानचंद, पारो को दुबई जाने की बात करता है —
“सिलाई के लिए दुबई में दस लड़कियों की जरूरत है।
आप चिंता मत करिए, सारा खर्चा मैं दूंगा। जब आपकी बेटी कमाने लगेगी, तो मुझे लौटा देना।”
पहले तो मोहन माझी मना करते हैं, लेकिन ज्ञानचंद उन्हें मना लेता है —
“यकीन कीजिए, आपकी गरीबी दूर हो जाएगी। इसकी जिम्मेदारी मैं लेता हूं। आपकी बेटी को कुछ नहीं होगा।
आजकल लड़कियां बहुत आगे हैं — देश-विदेश हर जगह। अब लड़कियां लड़कों से कम नहीं हैं।
मैं बस आप लोगों से पूछ रहा हूं। आप लोगों का भला चाह रहा था।
मुझे आपकी गरीबी देखी नहीं जा रही।
अब पारो तुम ही बताओ — तुम पढ़ नहीं पाई।
क्या तुम चाहोगी कि तुम्हारा छोटा भाई भी ना पढ़े?
सोचो — तुम्हारी मां का बढ़िया अस्पताल में इलाज हो जाएगा।
तुम्हारे बाबूजी को मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी।”
मोहन माझी थोड़ा असमंजस में थे।
वो कभी अपनी बीवी को देख रहे थे, तो कभी अपनी बेटी पारो को।
फिर ज्ञानचंद की तरफ देखते हुए बोले —
“साहब, विश्वास तो है आप पर… लेकिन… लेकिन मैं पारो को इतना दूर कैसे भेज दूं?
गांव वाले क्या कहेंगे? समाज क्या कहेगा?
पूरे गांव में कोई भी लड़की आज तक शहर नहीं गई।”
यह सुनकर ज्ञानचंद के दिल में चिढ़न सी हो गई, लेकिन वह जाहिर नहीं कर पाया।
फिर उसने अपना शातिर दिमाग लगाया और मोहन माझी को समझाने लगा —
“आप लोगों की इसी सोच के कारण आप लोग अभी भी इस स्थिति में हैं।
आपकी बीवी के दवा के पैसे नहीं हैं — कोई समाज आया आपको देने के लिए?
आपके बेटे के पास साइकिल नहीं है — स्कूल दूर है — कोई आया देने के लिए?
आपके पास खाने के पैसे नहीं होते — आप मजदूरी करने जाते हैं — कोई समाज आया मदद करने?
कोई बात नहीं, लगता है आप लोगों को मुझ पर विश्वास नहीं है।
मैं तो बस आप लोगों के बारे में अच्छा सोच रहा था।”
मोहन माझी ने हाथ जोड़कर कहा —
“नहीं साहब, ऐसी बात नहीं है! बस डर लग रहा है… बेटी है ना… बाप को डर तो लगेगा।
आप पर विश्वास है हमें। आप हमें आज भर का समय दे दीजिए। हम आपस में बात करके सोचकर बताएंगे।”
ज्ञानचंद ने थोड़ा नजरअंदाज वाले भाव में बोला —
“ठीक है, देख लीजिए आप लोग। वैसे 10 लड़कियां तैयार हैं जाने के लिए।
मैंने जब पारो को देखा तो मुझे लगा कि ये लड़की इतनी होशियार है, इतनी अच्छी रंगोली बनाती है, दीवारें सजाती है… इसके हाथों में जादू है।
ये बहुत जल्दी सिलाई सीख सकती थी।
ठीक है, मैं चलता हूं। कल इसी रास्ते से फिर गुजरूंगा — आप लोग बता देना मुझे।”
इतना बोलकर ज्ञानचंद अपना बैग और कैमरा उठाता है,और एक नज़र पारो की तरफ देखकर वहां से चला जाता है। ज्ञानचंद के जाने के बाद, मोहन माझी उसी टूटी खाट पर बैठकर सोचने लगे। सामने उनकी बीवी सुभागी देवी, पारो और राजू खड़े हैं।
“मुझे लगता है साहब नाराज होकर गए।
मैं कैसे हां कर दूं? पारो अभी बच्ची है।
तुम्हारी क्या राय है, पारो की अम्मा?”
सुभागी देवी, पारो की तरफ देखते हुए बोलीं —“देखो, डर तो मुझे भी लग रहा है… और साहब पर विश्वास भी है। उन्होंने सही भी कहा कि समाज हमें खाने को नहीं देता।
हमारी परेशानियों में कोई हमारे साथ नहीं होता। उनकी बातों में सच्चाई तो है।
कौन किसी के लिए इतना सोचता है?
उन्होंने हमारी स्थिति, हमारी गरीबी के बारे में सोचा — इससे बड़ी बात क्या हो सकती है।
हमें लगता है, एक बार हमें पारो से भी पूछ लेना चाहिए — क्या वह हमें छोड़कर जा सकती है?
क्या जैसे हमें साहब पर विश्वास है, वैसे ही पारो को भी है?”
मोहन माझी ने अपनी बेटी से राय जानी।
पारो, अपने घर की परेशानियों को देखकर राजी हो जाती है।
उसे अपनी मां का दर्द देखा नहीं जाता — जब वह ठीक से चल नहीं पाती।
अपने पिता को कड़ी धूप में काम करते देख उसका दिल तड़प जाता था।
अपने छोटे भाई के लिए साइकिल दिलाना — ताकि वह स्कूल जा सके — यही उसकी चाह थी।
इसीलिए पारो ने दुबई जाने के लिए हामी भर दी।
यह खबर ज्ञानचंद के लिए किसी ख़ज़ाने से कम नहीं थी।
भोले-भाले मोहन माझी, ज्ञानचंद पर विश्वास करके पारो को उसके साथ शहर भेज देते हैं।
पासपोर्ट बनवाने के बहाने ज्ञानचंद पारो को शहर के एक ऑफिस में लेकर जाता है,
और वहां के एक बंदे को कुछ पैसे देता है —
“ये पारो है… और इनका पासपोर्ट दो दिन में बन जाना चाहिए, किसी भी हालत में।”
यह सब देखकर पारो को लगता है कि उसकी जिंदगी में कोई फरिश्ता आया है।
भोली-भाली पारो, ऑफिस से निकलकर ज्ञानचंद के फ्लैट पर आती है।
टूटी-फूटी झोपड़ी में रहने वाली पारो के लिए वह फ्लैट किसी महल से कम नहीं था।
उसे लगा जैसे ज्ञानचंद उसके लिए भगवान बनकर आया हो।पहली बार पारो सोफे पर बैठी थी — पूरे फ्लैट को निहार रही थी — और ज्ञानचंद उसे ताड़ रहा था।
थोड़ी देर बाद, हिचकिचाते हुए ज्ञानचंद पारो से पूछता है —
“एक बात पूछूं, पारो? सच-सच बताना! जब तक तुम सच नहीं बताओगी, तुम विदेश नहीं जा पाओगी।” पारो कुछ पल सोचने के बाद बोली —“पूछिए ना साहब! हम कभी झूठ नहीं बोलते।
हमारे बाबूजी कहते हैं — जो झूठ बोलता है, उसे भगवान बहुत बड़ी सजा देते हैं।”
ज्ञानचंद थोड़े ठहराव के बाद बड़ी ही उत्सुकता से पूछता है —“कभी किसी लड़के से तुम्हारी दोस्ती हुई है?” पारो हां में सिर हिलाते हुए नटखट अंदाज में बोली —
“हां साहब। हमारे गांव का एक लड़का है — नंदू। वही हमारा सबसे अच्छा दोस्त है। हम दोनों साथ में चूहे पकड़ने जाते थे, खेतों में।” सुनकर ज्ञानचंद के सांसों में हड़बड़ाहट सी होने लगी।
उसे लगा कहीं उसकी उम्मीदों पर पानी तो नहीं फिर गया।
उसने फिर पूछा “कभी उस तरह की दोस्ती हुई है? जैसे… मतलब… संबंध बनाया किसी से?” इतना सुनते ही पारो डर जाती है। वह हड़बड़ा कर कहती है “ये क्या बोल रहे हो साहब! हम ऐसी-वैसी लड़की नहीं हैं!” ज्ञानचंद तुरंत सफाई देता है “अरे नहीं, तुम मुझे ग़लत मत समझो।
दुबई जाने से पहले चेकअप होता है — जांच पड़ताल होती है पूरे शरीर की।
अगर तुमने कभी किसी लड़के के साथ कुछ गलत किया है — संबंध बनाया है — तो तुम दुबई नहीं जा पाओगी।”
पारो अपने अंदर के डर को थोड़ा शांत करते हुए बोली “हम इन सब चीजों से दूर रहते हैं साहब। हमारी अम्मा ने हमें सब समझाया है।अभी हमारी उमर ही क्या है! आप चिंता मत कीजिए — हम जांच में पास हो जाएंगे।” ज्ञानचंद ने सुकून की सांस ली। उसकी ये चाल सफल हो गई थी।
“तुम बहुत अच्छी लड़की हो। कल हमें फिर से ऑफिस जाना है तुम्हारे वीजा के लिए।”
इतना बोलकर ज्ञानचंद किसी का नंबर डायल करते हुए एक कमरे में चला जाता है। पारो वही टेबल से बोतल उठाकर पानी पीती है और सोफे पर सो जाती है |अगली सुबह ज्ञानचंद फिर पारो को ऑफिस लेकर जाता है। पारो एक तरफ बैठी होती है और ज्ञानचंद दो आदमियों से ऑफिस में बैठकर बात कर रहा होता है। पारो शीशे में से देख रही होती है। पहली बार ऐसे माहौल में आना उसके लिए नया होता है। वह थोड़ी-थोड़ी घबरा भी रही होती है। थोड़ी देर बाद ज्ञानचंद अपनी नकली उदासी लिए पारो के बगल में आकर बैठता है।
पारो कुछ क्षण उसे नोटिस करती है फिर पूछती है,
“का हुआ साहब?” ज्ञानचंद अपनी छल-कपट वाली उदासी लिए बोलता है,
“लगता है तुम्हारी किस्मत ही खराब है पारो।”
पारो के चेहरे के भाव बदल जाते हैं। वह एकटक ज्ञानचंद को देखने लगती है।
ज्ञानचंद अपनी बात जारी रखता है,
“पारो, वीजा बड़ी मुश्किल से मिला है। वो लोग पैसे अभी मांग रहे हैं। तुम्हें पता है, तुम्हें कल ही बताया था ना, मेरा बैंक खाता ब्लॉक हो चुका है। मतलब, बैंक से 7 दिन तक पैसा नहीं निकल सकता। अगर आज पैसा नहीं देंगे तो तुम विदेश नहीं जा पाओगी। मैंने बहुत मनाया उनको, लेकिन वो मान नहीं रहे।”
यह सुनते ही पारो मायूस हो जाती है। थोड़ी देर चुप रहने के बाद पूछती है,
“साहब, का कवनो रास्ता नहीं है?”
ज्ञानचंद पारो की आंखों को पढ़ते हुए बोलता है, “एक रास्ता है।”
• पारो के साथ क्या खेल खेला जा रहा है?
• ज्ञानचंद का असली मकसद क्या है?
• कौन है वो लड़की जो पारो को इशारा करती है?
• क्या पारो सही समय पर खतरे को भांप पाएगी?
• पारो इस जाल से कैसे निकलेगी — समझदारी से या किसी नए मोड़ से?
• क्या पारो अकेली है, या कहीं से उसे कोई गुप्त मदद मिलने वाली है?
• अगर पारो फँस गई तो उसकी किस्मत में क्या लिखा है?
• इस डील के पीछे और कितने बड़े राज छुपे हैं?
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