PAARO PART 3

पारो (भाग 3): एक मासूम की टूटी उम्मीदें
पारो बड़ी उम्मीद भरी नजरों से उसे देखने लगती है।
ज्ञानचंद अपना शातिर दिमाग इस्तेमाल करते हुए बोलता है,
“लेकिन मैंने मना कर दिया। वो जो साहब अंदर बैठे हैं, उन्होंने कहा है कि अगर तुम उनके साथ सो जाओ, तो आज ही वीजा दे देंगे।”
यह सुनकर पारो घबरा जाती है। उसके पांव कांपने लगते हैं। जिसे देखकर ज्ञानचंद तुरंत बोलता है,
“मैंने तो साफ मना कर दिया। अब तुम्हारी मर्जी है।”
पारो रोने लगती है। अपने आंसुओं को छुपाते हुए दुपट्टे से पोछने लगती है।
ज्ञानचंद दूसरी तरकीब लगाते हुए बोलता है,
“चलो चलते हैं। कल अपने घर वापस चले जाना। मेरे पास और कोई रास्ता नहीं है। अभी मेरे पास भी पैसा नहीं है। मुझे माफ करना, मैं तुम्हें विदेश नहीं भेज पाया।”
पारो की आंखें भीगी होती हैं। सोचने लगती है, ‘मैं क्या करूं?’ थोड़ी देर चुप रहने के बाद ज्ञानचंद से कहती है,
“साहब, हमारी उम्र अभी 16 साल है। हमें यह सब का अनुभव नहीं है। यह सब क्या होता है, हमें अभी ठीक से पता भी नहीं है।”
ज्ञानचंद अपने छल-कपट से पारो को कन्वेंस करने की कोशिश करता है। वह कहता है,
“पुरानी कहावत है पारो, कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है। बड़ा आदमी बनने के लिए बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। रही बात अनुभव की, पहले के जमाने में लड़कियों का विवाह 12 से 15 साल में हो जाता था। मेरी खुद की मम्मी की शादी 14 साल में हुई थी। जब उनकी उम्र 17 की हुई, तब मैं पैदा हुआ था।
सब अनुभव हो जाता है। सब कुछ इस दुनिया में पहली बार ही होता है। देखो, एक दिन तुम्हारी भी शादी होगी। तब भी तुम्हें संबंध बनाने होंगे। अरे आजकल की लड़कियों के तो शादी से पहले ही बॉयफ्रेंड होते हैं। आज के जमाने में ये सब कोई नई बात नहीं है। मैं तुमसे यह नहीं कह रहा हूं कि उनकी बात मान लो, लेकिन हां… एक बात ध्यान से सुनो… तुम्हारी एक ‘हां’ तुम्हारे घर की गरीबी, टूटा हुआ घर, बीमार मां और छोटे भाई का भविष्य बदल सकती है।
क्या तुम चाहती हो कि वह भी पढ़ाई न कर पाए? सोचो, तुम्हारी एक ‘हां’ तुम्हारा जीवन बदल सकती है। नहीं तो कल तुम्हें बस में बैठा दूंगा। तुम अपने घर चली जाना। देखो, तुम्हारे लिए मैंने भी पैसे खर्च किए हैं — पूरे पांच हजार! वह कैसे लौटाओगी?”
नादान, नासमझ पारो पूरी तरह फंस चुकी होती है। मजबूरन वह सारे दर्द अंदर ही अंदर घुटकर सह लेती है। ऐसी चीख, ऐसी पीड़ा सहते वक्त वह बेसुध हो जाती है। अपने सलवार पर खून के कुछ छींटे लिए, लंगड़ाते हुए बाहर निकलती है।
यह देख, बाहर बैठा ज्ञानचंद नकली दया का भाव दिखाते हुए उसके करीब जाता है और कहता है,
“तुम बहादुर लड़की हो। तुम अपने परिवार के लिए कुछ भी कर सकती हो। चलो घर चलते हैं।”
ज्ञानचंद उसे लेकर अपने फ्लैट पर चला जाता है। दर्द को साथ लिए पारो उसके साथ घर चली जाती है। जाते ही वह सोफे पर सो जाती है।
ज्ञानचंद उसे चादर ओढ़ाते हुए बोलता है,
“देखो, अब तुम विदेश जा सकती हो! बस कुछ ही दिनों में। 2-3 दिन तुम्हें यहां और रुकना पड़ेगा। कल पुलिस वाला तुम्हारा पासपोर्ट लेकर आएगा। तुम्हारा होना बहुत जरूरी है।”
पारो धीरे से ‘हां’ में सिर हिला देती है। उसे नींद का आभास होता है। उसकी आंखें अपने आप बंद हो जाती हैं।
ज्ञानचंद सीधा अपने कमरे में जाकर अपनी कामयाबी को सेलिब्रेट करता है। पास में रखी शराब की बोतल उठा कर एक सांस में आधी खाली कर देता है।
अगली सुबह दरवाजे की घंटी बजती है। पारो दरवाजा खोलती है तो सामने पुलिस की वर्दी में एक आदमी खड़ा होता है, जो उसे ऊपर नीचे निहार रहा होता है।
पुलिस वाला पूछता है,
“आप ही पारो हैं?”
पारो कहती है,
“जी।”
पुलिस वाला उसे नकली पासपोर्ट दिखाते हुए पूछता है,
“यह रहा आपका पासपोर्ट। और कौन है तुम्हारे घर में?”
तभी किचन से निकलकर ज्ञानचंद आता है। वह पुलिस वाले को नमस्ते कर अंदर बुलाता है और सोफे पर बैठने को कहता है।
पुलिस वाला ज्ञानचंद से दो हजार की मांग करता है।
ज्ञानचंद बताता है,
“क्या आप दो दिन और रुक सकते हैं? मैं आपको दो हजार नहीं, ढाई हजार दूंगा। अभी मेरा अकाउंट ब्लॉक है, साहब।”
पारो सब कुछ चुपचाप सुन रही होती है।
पुलिस वाला पारो के हाथ से पासपोर्ट छीनकर गालियां देता है और ज्ञानचंद से कहता है,
“साले, जब औकात नहीं थी तो पासपोर्ट क्यों बनवाया! पैसे नहीं हैं तो इसे विदेश कैसे भेजोगे!”
फिर वह धमकाता है कि वह पासपोर्ट वापस लेकर जा रहा है।
ज्ञानचंद नौटंकी करते हुए गिड़गिड़ाता है,
“सर, कोई तो रास्ता होगा?”
पुलिस वाला कुछ सेकंड चुप रहने के बाद पारो को ऊपर से नीचे देखता है और कहता है,
“रास्ता तो है। आप एक मिनट इधर आइए।”
दोनों साइड में जाकर कुछ बातचीत करते हैं। पारो उन्हें ध्यान से देखती रहती है। कुछ देर बाद ज्ञानचंद शर्मिंदगी भरे अंदाज में पारो के पास आता है और कहता है,
“पारो, इसकी भी नियत खराब हो गई। अब तुम ही बताओ, बिना पासपोर्ट के कैसे विदेश जाओगी?”
फिर वही मजबूरी। पारो अपना जिस्म सौंप देती है। वही दर्द, वही तड़प, वही आंसू।
अपनी हवस मिटाकर पुलिस वाला पासपोर्ट पारो के हाथ में पकड़ाता है और मुस्कुराते हुए चला जाता है।
पारो अपने कपड़े ठीक करते हुए रुहासे मन से ज्ञानचंद से कहती है,
“का दुनिया है साहब! किसी में दया नहीं। हम तो इसकी बिटिया की उम्र की हूं न!”
इतना कहकर पारो वॉशरूम चली जाती है।
अंतिम पंक्तियाँ:
नादान, असहाय पारो… फँस चुकी होती है।
वो भीतर ही भीतर चीखती है और फिर… खामोश हो जाती है !
पाठकों के लिए प्रश्न:
1. क्या पारो के जीवन में कोई ऐसा मोड़ आएगा जहाँ उसे न्याय मिलेगा?
2. क्या ज्ञानचंद और पुलिस वाले को उनके कर्मों की सजा मिलेगी?
3. पारो की यह कहानी समाज को क्या संदेश देती है?
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