TALAAK PART 1

TALAAK PART 1
आज के समय में, "तलाक" जैसा गंभीर शब्द भी एक सामान्य चर्चा का विषय बन गया है। यह शब्द सुनते ही जो पहले सिहरन और डर का अनुभव होता था, वह अब लगभग समाप्त हो गया है। समाज में रिश्तों की बदलती प्राथमिकताएं और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के प्रति बढ़ती जागरूकता ने इस स्थिति को जन्म दिया है। आमतौर पर लड़कियों की शादी की उम्र 21 से 25 साल और लड़के की उम्र 25 से 28 साल मानी जाती है लेकिन आज कल उम्र यह बढ़ती जा रही है ! इसका कारण सिर्फ शिक्षा और आत्मनिर्भरता की ओर ध्यान केंद्रित करना नहीं है, बल्कि यह भी है कि महिलाएं अब अपने जीवन के निर्णय लेने में अधिक सक्षम और स्वतंत्र हो गई हैं। जहां यह एक सकारात्मक बदलाव है, वहीं कुछ मामलों में यह देरी समाज और परिवार के दृष्टिकोण से चुनौतीपूर्ण हो सकती है। हालांकि, यह बात समझना जरूरी है कि हर महिला एक जैसी नहीं होती। जहां कुछ महिलाएं आत्मनिर्भरता और करियर को प्राथमिकता देती हैं, वहीं कई महिलाएं शिक्षा, करियर और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच एक अद्भुत संतुलन स्थापित करती हैं। ये महिलाएं न केवल अपने जीवन को संतुलित करती हैं, बल्कि समाज और परिवार के लिए प्रेरणा का स्रोत बनती हैं। इस लेख का उद्देश्य किसी विशेष महिला वर्ग को दोष देना या उनकी प्राथमिकताओं को गलत ठहराना नहीं है। बल्कि, यह समझाने की कोशिश है कि मातृत्व और पारिवारिक जीवन का महत्व केवल अनुभव के माध्यम से ही समझा जा सकता है। यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि मां बनने का सुखद अनुभव हर महिला के लिए अनिवार्य नहीं है, लेकिन जिन महिलाओं ने इसे अपनाया है, उनके लिए यह एक अनमोल एहसास है। क्या समाज की परंपराओं और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच एक संतुलन बनाना संभव है? और क्या एक महिला, जो आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही है, मातृत्व और पारिवारिक जीवन के महत्व को समझ पाती है? यह कहानी उन अनुभवों और विचारों को उजागर करेगी जो समाज के वर्तमान स्वरूप को परिभाषित करते हैं। प्रेम कि इतनी गहराई हो कि पति-पत्नी का संबंध बूढापे के लाठी तक जाए। लेकिन आजकल दोनों के बीच अक्सर तनाव और संघर्ष बना रहता है क्योंकि वह किसी और ही सफर में होते हैं रिश्ते में नहीं तभी उन्हें संतोष नहीं मिलता। पति-पत्नी का यह संघर्ष कभी रुकता ही नहीं। कभी-कभी दोनों सोचते हैं कि शायद दूसरा साथी सही होता तो यह सब ठीक हो जाता, लेकिन यह सिर्फ भ्रम है। दुनिया भर के जोड़ों का यही अनुभव है कि किसी नए साथी से भी थोड़ी राहत मिलती है, लेकिन आखिरकार हालात वही रहते है। आज तलाक की बढ़ती संख्या इसका सबूत है। नये रिश्ते बनने के बाद यह अनुभव होने लगता है कि नया साथी कुछ समय बाद पुराने जैसा ही महसूस होने लगता है। असल में समस्या व्यक्ति में नहीं बल्कि इस सफर में है। जब तक पति-पत्नी अपने संबंध को एक नई गहराई तक नहीं पहुँचाते यह लड़ाई चलती रहती है। मेरी भी कहानी कुछ ऐसी ही है मैं राधिका। आज मेरी उम्र 42 साल है। जब मैं जवानी के दहलीज पर थी मेरे सपने भी आसमान पर थे। जब हमारा शरीर जवान होता है एक नया आकार लेता है। फिर संभोग की चाहत मन को गुदगुदाने लगती है। संभोग का एहसास मुझे भी होने लगा था।लेकिन हर बार मै अपने मन को मना लेती थी और शीशे के सामने खड़े होकर खुद पर इतराती थी क्योंकि मैं थी बहुत ख़ूबसूरत। और मुझे अपनी खूबसूरती पर नाज था। मेरी सहेलियां तो मुझे घमंडी तक कहती थी।22 साल की थी मै।मेरे घर वाले मुझ पर शादी का दबाव डालते थे। और मैं साफ मना कर देती थी। मुझे तो बहुत पढ़ाई करनी थी नौकरी करनी थी आत्मनिर्भर बनना था। वक्त के हवाओं में बहते- बहते मैं 28 साल की हो गई। घर वाले भी थक हारकर शादी के लिए पूछना बंद कर दिया था। मैं बस आजाद पंछी की तरह आसमान छूने का सपना देख रही थी। मैं भूल गई थी की खुली आंखों से सपने नहीं देखते। नौकरियां ऐसे ही नहीं मिल जाती है। इस भागम भाग दुनिया में इतना कंपटीशन है शायद मैं समझ नहीं पाई। मैं भी ऑफिस दर ऑफिस भटकने लगी। कहीं पर सैलरी कम थी तो कहीं पर गंदी नजर। मैं थक हार कर घर आती थी और सरकारी नौकरी के लिए फॉर्म भर देती थी। कई एग्जाम भी दिए मैंने लेकिन हर जगह रिश्वत। लेखपाल के लिए करीब करीब मेरा सिलेक्शन हो चुका था। लेकिन सिलेक्टर को देने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे। मैंने साफ मना कर दिया सर मेरे पास पैसे नहीं है। उसने मुझे ऊपर नीचे देखा और बोला खूबसूरत लड़की कभी गरीब नहीं हो सकती। उसके नजरों का भाव में समझ चुकी थी। मैं सीधा उस ऑफिस से निकली मेरे आंखों में आंसू थे और मैं सीधा घर आई। धीरे-धीरे उम्मीद टूटने लगी और मैं ना जाने कब 30 साल की हो गई मुझे पता भी नहीं चला। मुझ में चिड़चिड़ापन आ गया मैं छोटी-छोटी बातों पर सबसे लड़ जाती थी यहां तक की अपनी मां से भी। मैं अपने घर वालों के लिए बोझ बन चुकी थी। आईना भी देखकर हंसने लगा कि देख अपने आप को क्या थी तू क्या हो गई। मैंने शादी का फैसला किया और अपनी मां को बताया। रिश्ते बहुत आने लगे लेकिन सब के सब 40 साल के। मेरे मना करने पर मां गुस्सा हो जाती थी। "अपनी उम्र देख अब क्या इस उम्र में तुझे कुंवारे लड़के मिलेंगे" मां का कहना भी सही था मैं मान गई और एक 36 साल के महेश नाम के आदमी से मेरी शादी हुई। जीवन की नई कहानी शुरू हुई। सुहाग सेज पर बैठी ।मैं यही सोच रही थी कहीं मैं अपने सपनों से हार तो नहीं गई ।और आज ऐसे इंसान को खुद को सौंपने जा रही हूं ।जिसे मैं ढंग से जानती भी नहीं ! हर लड़की का सपना होता है उसकी शादी होगी। कोई राजकुमार उसे लेकर जाएगा। उसके पति का प्यार।उसका एहसास उसके बाहों की गरमाहट ।जिसे सोचकर लड़कियां तकीये के सहारे रात गुजार देती है ।लेकिन मेरे एहसास ।पति के प्रति सपने न जाने कहां खो गए ।सोचते सोचते ना जाने कब नींद आ गई। मुझे पता भी नहीं चला। सुबह आंख खुली तो देखा दूध से भरा गिलास ऐसे ही टेबल पर पड़ा था। महेश कपड़े पहनते हुए दिखे । मैंने धीरे से कहा" आपने मुझे जगाया क्यों नहीं" महेश ने मुस्कुरा कर जवाब दिया"कोई बात नहीं पूरी जिंदगी पड़ी है!मैं तो कभी भी हक जता दूंगा ।रही बात कल रात की ।मैं समझ सकता हूं । तुम थकी हुई थी तुम्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था। नाश्ता तैयार है कर लेना ।मुझे देरी हो रही ।और हां तुम्हारी मां का फोन आया था तो तुम्हारी पूछ रही थी ।बहुत कुछ बताया तुम्हारे बारे में ।तुम चाहो तो जॉब कर सकती हो। इतना कह कर महेश चले गए। महेश की बातें मुझे अच्छी लगी। थोड़ी तसल्ली मिली की चलो इंसान अच्छा है। महेश जौनपुर से था उसका पूरा परिवार जौनपुर में ही रहता था। दिल्ली के बसंत विहार में 8000 रुपये के मकान में रहने वाले महेश को 26000 रुपये की सैलरी मिली थी अपनी सेल्स की नौकरी से। जीवन अपने अनुसार धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था और मेरा दिन भी, उसका इंतजार करते वक्त, पहले मैंने घर की साफ सफाई की। और फिर अपने बेडरूम में रखी ड्रेसिंग टेबल के नए नवेले शीशे में खुद को काफी देर तक निहारते हुए मैं बड़े सलिक से तैयार होकर महेश के इंतजार मे अनगिनत बार सामने की दीवार पर लगी घड़ी को देखा शायद आज सजी हुई सेज को उसका हक मिलेगा। महेश के आते ही मैंने उनको पानी का गिलास थमाया। पानी पीते पीते उन्होंने मेरी तारीफ कर डाली। "बहुत खूबसूरत हो तुम इस खूबसूरती को हमेशा संभाल कर रखना" मेरे मन में एक हलचल सी हुई।पानी का गिलास उठाकर मै किचन में चली गई। रात हुई और मैंने अपना पत्नी धर्म निभाया। शुरू के तीन-चार महीने ऐसे ही कट गए ।लेकिन बेचैनियों ने मेरा साथ नहीं छोड़ा। धीरे-धीरे सब कुछ बदलने लगा।अनगिनत सपने अपने उलझनों से मैं लड़ने लगी। मेरे अन्दर की उर्जा ख़त्म होने लगी। मुझे लगने लगा कि मैं शारीरिक संबंधों से रुचि खो रही हूं। कुछ महीने मैंने नजरअंदाज किया। लेकिन वक्त के साथ समस्या बढ़ गई और मैं संभोग से बहाने बनाने लगी। मेरे इस रवैया से महेश भी चुप रहने लगे। एक दिन वह शराब पीकर आए और मुझसे जबरदस्ती करने लगे।मैंने उन्हें धक्का दे दिया तो गिर पड़े। जो हमारे रिश्ते की मिठास थी वह कड़वाहट में बदलने लगी। रोज झगड़े मे रात गुजर जाती थी। लड़ाई आगे ना बढ़े ।अपने मन को बिना शामिल किए कभी-कभी महेश की डिमांड पूरी कर देती थी ।महेश की कामवासना की उम्मीद अपनी जगह सही थी। लेकिन मैं अपनी ही दुनिया थी। मुझे उस किराए के मकान में दम घुटने लगा। मन मार के पैसे खर्च करना ।रोज बाजार से सब्जियां लेकर आना ।हाउसवाइफ की तरह अपने पति की सेवा करना। यह सब मेरे लिए बहुत मुश्किल था। एक दिन मेरे फोन की रिंग बजी मैंने फोन उठाया उधर से आवाज आई।"मेरी राधिका जी से बात हो रही है" "जी बोलिए मैं राधिका ही बोल रही हूं" "आपको याद होगा आपने हमारी कंपनी में अपना रिज्यूम भेजा था आप कल इंटरव्यू के लिए आ सकती" मैं तो थक चुकी थी इंटरव्यू से लेकिन फिर भी उम्मीद थी मैंने हां बोल दिया। वक्त ने करवट बदली और मुझे नौकरी मिल गई कंपनी की जनरल मैनेजर। आज तो जैसे मुझे दुनिया ही मिल गई। सैलरी थी डेढ़ लाख। मैं खुशी-खुशी घर आई और महेश को बताया। महेश खुश तो हुआ।लेकिन मेरे प्रति उसकी नाराजगी भी दिख रही थी। मैंने भी परवाह नहीं की।मैं तो आसमान में उड़ रही थी। अगले दिन मै ऑफिस पहुंची मेरा भव्य स्वागत हुआ। मैं रोज ऑफिस जाने लगी।मैं अपने काम में इतना खो गई कि मैं भूल गई कि मेरा पति भी है।नए-नए लोग से मिलना नए-नए लोग से दोस्ती बड़े-बड़े लोगों में उठना बैठना ।मेरी एक अलग ही सोसाइटी बन गई। लोग पूछते थे तुम्हारा पति क्या करता है तो मैं झूठ बोलती थी कि वह विदेश में रहते हैं। मेरा रंग रूप भाव स्वभाव व्यवहार सब बदल गए। मैं अपने ऑफिस की सबसे चहेती सबसे मेहनती एंप्लॉय बन गई। और मुझे एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में लंदन जाने का मौका दिया गया मुझे टीम का हेड बनाया गया। मेरी सैलरी भी डबल हो गई। मैं घर आई तो देखा महेश कमरे में बैठा हुआ है। आज कई दिनों के बाद मैंने उसे ढंग से देखा। वह अपने किस्मत पर उदास था और मै बेपरवाह थी। मैं सीधा आईने के सामने गई। और खुद को देखकर अपने आप पर नाज कर रही थी ।अचानक मेरे सर में दर्द उठा और मुझे चक्कर आया मैं गिरते गिरते बची। क्योंकि महेश ने मुझे थाम लिया था। अचानक मुझे उल्टी हुई तो महेश ने डॉक्टर को बुलाया। चेकअप करने के बाद डॉक्टर मुस्करा उठा। महेश से बोला मुबारक हो आप बाप बनने वाले हैं। महेश की आंखें चमक उठी। तुरंत डॉक्टर को उसकी फीस दी। डॉक्टर चला गया। मैं अपने पेट को निहार रही थी ।मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मैं मां बनने जा रही हूं ।खुश तो थी मैं ।लेकिन न जाने क्यों वह खुशी नहीं थी जो एक मां बनने का एहसास होता है। मुझे तो बस लंदन दिखाई दे रहा था। मेरे कानों में कामयाबी का शोर सुनाई दे रहा था। मैंने लंदन वाली बात महेश को बताई। महेश राजी नहीं हुआ। इस बात पर हमारी बहुत लड़ाई हुई और इस लड़ाई में मैं जीत गई । और महेश हार कर निराश होकर कमरे से बाहर चला गया । अगली सुबह में ऑफिस गई बॉस को बताया कि मैं प्रेग्नेंट हूं। बॉस ने खुशी तो जाहिर की लेकिन उन्होंने कहा"3 महीने बाद तुम्हें लंदन निकालना है और इस हालत में तुम लंदन नहीं जा सकती! अभी तुम अपना ख्याल रखो हम किसी और को इस ट्रिप के लिए अपॉइंटमेंट कर लेते हैं! मैं उदास हो गई।मुझे एक जोर का धक्का लगा।बेचैनियों ने मुझे चारों तरफ से घेर लिया ।मेरे समझ में नहीं आ रहा था मैं क्या कहूं क्या जवाब दूं। घर पर आकर मैंने रात भर सोचा और मैंने यह फैसला किया कि मैं बच्चा गिरा दूंगी। मैं थोड़ी सी हिम्मत करके अपना फैसला महेश को बताया।यह सुनते ही महेश आग बबूला हो गया। बातों - बातों मे झगड़ा इस हद तक बढ़ गया की, महेश ने मुझ पर हाथ उठा दीया मैं सन्न रह गई। पहली बार महेश ने मुझ पर हाथ उठाया था। उसकी इस हरकत पे मुझे ये लगा की अगर ये महेश की ज़िद है तो मैं भी जिद पर अड़ गई कि मैं लंदन जाकर रहूंगी, मन हुआ तो बच्चा तो फिर कभी भी कर लेंगे। मैंने महेश को बहुत कुछ सुनाया यहां तक कि मैंने उसकी औकात की भी बात कर दी।उसकी सैलरी, उसकी स्टेटस की बात कर दी। मैं अपना आपा खो बैठी।और तलाक की बात कर डाली। महेश रो उठा।फिर भी मुझे तरस नहीं आया। मैंने अपना बैग उठाया और वहां से सीधा अपने फ्रेंड के पास चली गई। बिना किसी को बताएं डॉक्टर के पास गई और डॉक्टर को खरीद लिया।और मैंने अपना बच्चा गिरा दिया। थोड़ा दुख तो हुआ लेकिन इस दुख से ज्यादा खुशी मुझे लंदन जाने की थी। महेश और मेरा तलाक हो गया। महेश नहीं चाहता था ।लेकिन मेरी जिद के आगे वह हार गया। वह वक्त भी आया। वह समय भी अपने आप में कुछ अलग सा था जब मैं अपनी जिंदगी की पहली इंटरनेशनल फ्लाइट में बैठ कर लंदन जा रही थी, उस दिन ऐसा लग रहा था जैसे हर नजर रह रह कर मुझ पर ही टिकी जा रही थी, हां तो मैं उस दिन कुछ खास लग रही थी या फिर ये मेरी गलत फहमी थी, लेकिन उन भावनाओं को शब्दों में बयान,शायद कर ही ना पाऊ कभी भी, ऐसा लगा कि ये एक हसीन सपना है जो एक महीने बाद खतम हो जाएगा, ये सोच कर थोड़ी उदासी भी रह रह कर महसूस हो रही थी, क्योंकि ये लंदन ट्रिप 30 दिनों का एक प्रोजेक्ट असाइनमेंट था, फिर ये सोचकर मैंने जी तोड़ मेहनत की, कि कितने काम लोग होते हैं जो मेरी तरह इस सपनों के शहर मे रहने का मौका पाते हैं, मैंने हरपल को एन्जॉय करना शुरू किया, जिसका नतिजा ये हुआ कि बॉस ने खुश होकर मुझे मेरे काम को देखकर लंदन वाली ऑफिस में ही शिफ्ट कर दिया। और धीरे-धीरे मुझे सब कुछ मिल गया जो मैंने सोचा था। मेरी मां को मेरे बारे में पता चला तो वह बहुत नाराज हुई। कई साल गुजर गए लेकिन उन्होंने मुझसे बात नहीं करी। एक दिन अचानक मुझे फोन आया कि आपकी मां नहीं रही। मां के अंतिम दर्शन के लिए मुझे भारत आना पड़ा।मैं पूरे 7 साल बाद इंडिया आई।... क्या आप जानना चाहते हैं? Vote करें ⬇️ 1. 🤰 क्या राधिका को अपने बच्चे को गिराने का पछतावा हुआ? क्या उसे कभी मां बनने की चाहत फिर से हुई? 2. 💔 क्या महेश ने दोबारा शादी कर ली? या आज भी वह राधिका को याद करता है? 3. 🌍 लंदन में राधिका की ज़िंदगी कैसी रही? क्या उसे वहां वो सब कुछ मिला जिसकी उसने चाहत की थी? 4. 🧳 मां के निधन के बाद क्या राधिका वापस इंडिया में बसने का सोचती है? क्या उसका guilt उसे वापस खींच लाएगा? 5. 🧠 क्या राधिका अब भी अपने फैसले को सही मानती है? या वक़्त के साथ उसकी सोच बदल चुकी है? 6. 🧘‍♀️ क्या राधिका को कभी सच्चा प्यार दोबारा मिला? या वो अकेलेपन से जूझती रही? 7. 👩👧👦 क्या कहानी में आगे चलकर राधिका किसी अनाथ बच्चे को अपनाने की सोचती है? क्या वो मां बन पाएगी? 👇 Zyada se zyada like करें और बताएं — कौन सा सवाल आपको सबसे ज्यादा झकझोरता है? हम "Talaq" पार्ट 2 उसी सवाल के जवाब से शुरू करेंगे।