HUMARI ADHURI KAHAANI PART 1

HUMARI ADHURI KAHAANI PART 1
अक्सर वादे टूट जाते हैं, लेकिन कुछ वादे ऐसे होते हैं जिनके लिए इंसान सब कुछ लुटा देता है। वीर सिंह राजपूत अपनी जबान और वादों का पक्का था। अक्सर पुरानी यादों के गलियारों में खोकर खुद को पाने की कोशिश करने वाला वीर आज अपने कमरे की हल्की रोशनी में खिड़की के पास खड़ा अपनी किस्मत को कोस रहा था। बाहर हल्की बारिश हो रही थी। बारिश की बूंदें खिड़की के शीशों से टकरा रही थीं। वीर की आंखों में दर्द था। “काश पापा मेरे साथ होते…” वीर ने खुद से बुदबुदाया। उसने सामने टेबल पर रखी अपने पिता लेफ्टिनेंट अजय सिंह राजपूत की तस्वीर को देखा। वो तस्वीर सिर्फ एक याद नहीं थी, बल्कि एक ऐसा अक्स था जो उसे हर रोज याद दिलाता था कि उसके पिता ने इस देश के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया था। उन्होंने वो सब किया जो एक सच्चे सिपाही और देशभक्त को करना चाहिए, लेकिन कुछ ऐसी जिम्मेदारियां नहीं निभा पाए जो एक पिता और पति के तौर पर उनसे उम्मीद थी। अगर वो जिम्मेदारियां पूरी हुई होतीं तो आज वीर और उसके परिवार की तस्वीर कुछ और होती। वीर की आंखों में वही दर्द था जो शायद उसके पिता ने अपनी आखिरी सांसों में महसूस किया होगा। क्या जब लेफ्टिनेंट अजय सिंह राजपूत को अगवा किया गया होगा, तो उनके मन में एक फौजी का गर्व था? शायद हां। लेकिन कहीं न कहीं एक पिता की चिंता भी छुपी हुई थी। शायद उस वक्त उनके मन में सवाल उठा होगा: “क्या मेरा बेटा मुझे आखिरी बार ‘पापा’ कह पाएगा? क्या मैं उसकी उंगली पकड़कर उसे स्कूल ले जा पाऊंगा? क्या मेरी पत्नी मेरे बिना जी पाएगी?” जब उनकी वर्दी खून से लाल हुई होगी, तब उनकी आंखों में देश के लिए जान देने का गर्व था। लेकिन उस गर्व के पीछे एक अनकहा दर्द भी छुपा था। देने का गर्व था। लेकिन उस गर्व के पीछे एक अनकहा दर्द भी छुपा हुआ था। शायद जब दुश्मनों की गोलियां उनके सीने को चीर रही होंगी, तब उनके भीतर एक अनदेखा संघर्ष चल रहा होगा। एक तरफ देशभक्ति थी, और दूसरी तरफ अधूरी इच्छाएं। वो सोच रहे होंगे: “मैं जानता था कि एक दिन ये होगा। लेकिन मेरे बच्चे?” जंग के मैदान में गिरते हुए उन्होंने आखिरी बार आसमान की ओर देखा होगा। उनकी प्रार्थना शायद यही रही होगी: “भगवान, मेरे परिवार को ताकत देना। मेरा बेटा वीर मजबूत बने।” पर मन के किसी कोने में एक अनकहा सवाल भी उठा होगा: “क्या मेरा बलिदान उनके आंसुओं से बड़ा है?” उनकी आखिरी सांसों में देश के लिए प्यार था, लेकिन एक पिता की पुकार भी छुपी हुई थी। एक अधूरी बात, जो शायद कोई नहीं सुन पाया। वीर जब अपने पिता की तस्वीर को देखता है, तो उसे हर रोज वही दर्द महसूस होता है जो उसके पिता ने अपनी आखिरी सांस में महसूस किया होगा। वो दर्द सिर्फ गोली लगने का नहीं था। वो दर्द अधूरे रिश्तों का था। वो दर्द उन सपनों का था जो एक पिता ने अपने बेटे के लिए देखे थे। वीर तस्वीर को देखते हुए सोचता है: “क्या बिना बताए गायब हो जाना, किसी रंजिश या देशद्रोही हमले की वजह से अगवा हो जाना, और फिर शहीद हो जाना इतना आसान है? क्या पापा को उस वक्त मुझसे मिलने की चाह नहीं हुई होगी? क्या उनकी आंखों में मेरी मुस्कान याद नहीं आई होगी?” वीर की आवाज में जो दर्द है, वो हर रोज चीखती-बिलखती हुई एक याद है। जिसमें वही शब्द गूंजते हैं। काश पापा मेरे साथ होते। काश मुझे पता लग पाता कि मेरी मां के माथे का सिंदूर हमेशा कायम रहेगा या नहीं। वीर महसूस करता है कि शायद उसके पिता लेफ्टिनेंट अजय सिंह राजपूत आज भी उसके साथ हैं।उसके आसपास हैं। जो उसे कहते ।मेरे साथ जो भी हुआ। लेकिन मेरी कहानी अभी खत्म नहीं हुई है ।मैं हर रोज,हर वक्त ,हर लम्हा तुम्हारे साथ हूं वीर ।तुम्हारे फ़ैसलों में, तुम्हारी ताकत में ,हर उस पल में जब तुम अपने लिए अपनी मां के लिए कुछ करोगे। वीर की आंखों में आंसू थे ।लेकिन साथ ही एक वादा भी। उस वादे में उसके पिता के अधूरे सपनों को पूरा करने की कसक थी। वह जानता था कि उसके पिता सिर्फ एक तस्वीर नहीं बल्कि एक प्रेरणा बन चुके हैं। अपनी आवाज में एक कसक लिए हुए वीर गुदगुदाया: पापा शायद आपने अपनी जिंदगी देश को दे दी। या फिर कुछ अनहोनी घट गई थी आपके साथ।जो भी हुआ... लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया! किसी ने भी सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की। और आज मुझे इसी देश में अपनी मां के इलाज और दो वक्त की रोटी के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। यह कहते-कहते वीर की आंखों में आंसू छलक उठे।उसने जल्दी से अपने आंसू पूछे क्योंकि उसे अपनी मां के सामने कमजोर नहीं दिखाना था। तभी पीछे से एक कोमल आवाज आई। अपनी मां को आते देख वीर अपने आप को संतुलन करता है। "बेटे अभी तक तुमने खाना नहीं खाया ? निर्जला देवी ने बड़े प्यार से पूछा। उनके चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी। वीर हड़बड़ाकर कहा।"खा लूंगा मां ,आप सो जाओ। लेकिन मां.. बेटे की आंखों में छुपा दर्द भाप चुकी थी ।वो उसके पास आई और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा। "बेटा, सब कुछ ठीक हो जाएगा। भगवान पर भरोसा रख। और मेरी चिंता मत किया कर। तू सब सम्भाल लेगा, मैं जानती हूं।" , वीर ने मां का हाथ थामते हुए मुस्कुराने की कोशिश की। " मां सब ठीक हो जाएगा। आप चिंता ना किया करो आप अपनी सेहत का ध्यान दो बस ,मैं हूं ना, रही बात मेरी नौकरी की कहीं ना कहीं मिल ही जाएगी, अरे आपके बेटे ने MBA किया है मां , हां थोड़ा वक्त लग रहा है अब अच्छी नौकरी पाने के लिए वक्त तो लगता है। अब आप जाओ और चैन से सो जाओ ठीक है। बेटे की मुस्कुराहट और उसका आत्मविश्वास देखकर निर्जला देवी , थोड़ी देर बिना कुछ बोले ठहर गई। वीर की आंखों में अब आंसू नहीं थे। उसकी आंखों में अपने पिता का अक्स था । एक ऐसा अक्स जो उसे हर मुश्किल घड़ी में याद दिलाता था कि वह अजय सिंह राजपूत का बेटा है। और ऐसे बाप का बेटा कभी हार नहीं मानता।कभी झुकता नहीं। कभी टूटता नहीं।और कभी रुकता नहीं। इसी तसल्ली के साथ बेटे के सर पर हाथ फेर कर जाते-जाते निर्जला देवी "बेटा खाना खा लेना, और आराम से सो जाओ गुड नाइट। वीर मजाकिया अंदाज में कहता है ।"ठीक है Boss! जैसी आपकी आज्ञा ।गुड नाइट। मां मुस्कुराई। "बड़ा हो गया मेरा बेटा..पर इतना बड़ा नहीं हुआ की मां से अपने मन की बातें और एहसास छुपा सके। उन्होंने कहा और कमरे से बाहर चली गई। जाते-जाते उनकी नजर आंगन में टगी अपने पति के तस्वीर पर पड़ती है उनके कदम अपने आप रुक जाते हैं। वे ठिठक गई ।तस्वीर के करीब जाकर तस्वीर से बात करती है, वीर बिल्कुल आप पे गया है। आपसे ज्यादा मेरा ख्याल रखता है। लेकिन अब ज्यादा दिन नहीं। मैं जल्द आपकी जिम्मेदारियों से उसे मुक्त कर दूंगी, डॉक्टर ने कह दिया मेरी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं । कैंसर लास्ट स्टेज पर है, वीर को नहीं पता। मैं डॉक्टर से रिक्वेस्ट की है कि वीर को ना बताएं । उसकी तड़प उसका रोना ! नहीं देख सकती। अपने बेटे को कैसे समझाऊं कि तेरी मां चंद दिनों की मेहमान है। पता नहीं भगवान कब तक इम्तिहान लेगा। कहते हुए उनकी आंसुओं से भरी नजर आंगन में रखें मंदिर पर पड़ी । उन्होंने एक गहरी सांस ली और अपने कमरे की ओर चल पड़ी। खिड़की के पर्दे को सही करके वीर अपने बिस्तर पर जाकर बैठ जाता है पास में रखे तकिये को उठाकर अपने गोद में रख लेता है और अपना सर दीवार से टिका देता है। जैसे रातों की नींद से उसका रिश्ता टूट चुका हो।अपने पिता की कही बातें उनके विचार उनका प्यार और मां की हेल्थ को सोचते हुए न जाने कब आंख लग गई। सुबह के 7:30 बजे दरवाजे की घंटी बजी। निर्जला देवी दरवाजा खोला तो सामने राहुल खड़ा था जो वीर का सबसे जिगरी दोस्त था। कैसी है मेरी आंटी मेरी ? दुनिया की सबसे स्वीट आंटी। राहुल ने चहकते हुए कहा । निर्जला देवी मुस्कुराई।"तू बता बेटा आज सुबह-सुबह? "हां थोड़ा काम है आंटी ।वीर कहां है ? "वह तो अभी सोया हुआ है। "ठीक है मैं देख लेता हूं। राहुल पास में ही टेबल पर रखा नमकीन का डिब्बा उठाया और खाते हुए वीर के कमरे में पहुंचा "ओए वीर"उसने चिल्लाया "अबे तू उठ गया आंटी तो कह रही तो तू सोया है । वीर हंसते हुए"नहीं यार उठे हुए काफी देर हो गई!आज मेरा 3-3 इंटरव्यू है उसी की तैयारी कर रहा था। चल अच्छा हुआ तू आ गया ।मैं तुझे ही कॉल करने वाला था" राहुल, नमकीन का डब्बा रखते हुए कहा"क्यों क्या हुआ? भाई..मम्मी को 2:00 बजे हॉस्पिटल लेकर जाना है।डॉक्टर ने कुछ जांच लिखी है। और दवाइयां भी खत्म हो गई तो एक काम करना तू चले जाना ठीक है। तभी निर्जला देवी आवाज लगती हैं "आ जाओ बच्चों नाश्ता तैयार है" नाश्ते के टेबल पर बैठते हुए राहुल ने पूछा।"आंटी हम ४ बजे नहीं जा सकते हॉस्पिटल? निर्जला देवी ने जवाब दिया नहीं बेटा "नहीं बेटा 4 बजे तो डॉक्टर निकल जाता है 2:00 बजे का टाइम दिया उसने क्यों क्या हुआ? राहुल झिझकते हुए कहा " आंटी बड़ी मुश्किल से नौकरी मिली है! आज मेरा पहला दिन है। यह सुनकर वीर का चेहरा खिल उठा "सच में ?" "हां यार"राहुल का चेहरा थोड़ी देर के लिए बुझ गया! फिर भी धीरे से बोला" तुझे तो पता है यार। मामी हर वक्त ताने मारती है मुझे। जैसे मैं उनके लिए बोझ हूं। वीर उसके साथ हमदर्दी करते हुए उसके कंधे पर हाथ रखकर कहता है"मैं समझ सकता हूं मेरे भाई मैं भी कई बार मामी के ताने अपने कानों से सुने हैं।अब उन्हें हम कैसे समझाएं की नौकरीया सड़को पर नहीं मिलती। वीर के इस अपनेपन से राहुल का गला रूध जाता है ।और वह अपने भावनाओं को संतुलन करते हुए बोलता है। " तुझे तो पता है ना।मां-बाप को तो मैंने कभी देखा ही नहीं। अब मामा- मामी हीं ने पाला पोसा है ।तो सुनना तो पड़ेगा ना ।कल तो इतना सुनाया- इतना सुनाया निवाला तक मुंह में नहीं गया।मैं भूखा सोया हू कल" इतना सुनते ही निर्जला देवी राहुल को प्यार से डांटा। "अरे पागल, तुझे भूखा रहने की क्या जरूरत थी।तू यहां आ जाता ।मैं तुझे खाना खिलाती अपने हाथों। जब भी कुछ ऐसी बात हो तो कॉल करके आज आया कर।मैं भी तो तेरी मां हूं। राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा" आंटी आपके खिलाए हुए खाने से तो चलती है मेरी गाड़ी। हां लेकिन अगली बार मामी ने ऐसा किया तो पक्का आपको फोन करके आ जाऊंगा ओके। वीर भी खुश हो जाता है।" हां ये हुई ना बात "फिर थोड़ा दुखी होकर कहता है। "यार तेरे साथ जो भी प्रॉब्लम होती तू मुझे क्यों नहीं बताता।चल जो हुआ सो हुआ आइंदा ध्यान रखना। फिर थोड़ा उत्साहित होकर वीर, राहुल को समझता है"देख अब नौकरी मिल गई है ना तो सब ठीक हो जाएगा। अब देखना तेरी मामी भी तुझ पर प्यार भर भर कर नौछावर करेंगी। तभी राहुल ने घड़ी देखी। "अरे यार 8:00 बज गए। ये बता वीर ।आंटी और डॉक्टर का कैसे करेंगे। निर्जला देवी टेबल से प्लेट उठाती हुई राहुल से कहती है। "तू एक काम कर वीर के लिए जो लंच पैक किया था वो टिफिन लेजा अपने साथ। रही बात डॉक्टर के पास जाने की तो कोई बात नहीं मैं अकेले जा सकती हूं अभी भी ताकत है मुझमे। राहुल हंसते हुए वीर का टिफिन उठाकर वीर को चढ़ाते हुए बोलता है। वीर का टिफिन तो मेरा हो गया आंटी ।अब इसकी प्रॉपर्टी पर निगाह है मेरी।हा हा हा हा हा..... उसकी बातें सुनकर वीर भी टहाके मार के हंसता है। तभी राहुल दीवार पर टंगी घड़ी को देखते हुए" चल तेरी प्रॉपर्टी अपने नाम मै बाद में करूंगा। अभी मैं चलता हूं नहीं तो लेट हो जाऊंगा। चल बाय और हां बेस्ट ऑफ लक फॉर योर इंटरव्यू।बाय आंटी। ब्रेड का टुकड़ा मुंह में डालते हुए मोबाइल उठाकर राहुल तेजी से बाहर निकल जाता हैं। उसके जाते-जाते हंसते हुए निर्जला देवी बोलती हैं "हां बाय बेटा खुश रहो ।ध्यान रखना अपना ।पागल है ये लड़का। राहुल के जाने के बाद वीर धीरे-धीरे अपने कागज लैपटॉप समेटते हुए एक गहरी सांस लेते हुए अपनी मां निर्जला देवी की ओर देखा जो किचन में बर्तनों को समेट कर रख रही थी। वीर ने कहा" मां मुझे समझ नहीं आता कि तुम खुद क्यों हॉस्पिटल जा रही हो। हम कल भी तो जा सकते हैं। कल मैं खुद आपको लेकर हॉस्पिटल जाऊंगा। निर्जला देवी किचन के दरवाजे से बाहर निकलते हुए जवाब दिया"अरे हां मेरे पिताजी ।मैं कोई बच्ची नहीं हूं।मां हूं तेरी रास्ते याद है मुझे। मुझे इतना जल्दी बुढ़िया मत बनाओ ।मैं कर लूंगी सब। फिर प्यार से उसकी तरफ देखते हुए बोली"तुम्हारा ध्यान भटकेगा अगर मेरे साथ रहोगे।वैसे भी आज तुम्हारे तीन इंटरव्यू है ।यह मौका बार-बार नहीं मिलता इसलिए अपने करियर पर फोकस करो। वीर थोड़ा असमंजस में था उसने धीमी आवाज में कहा। "फिर भी, मां..आपकी तबीयत नहीं ठीक है! मुझे चिंता हो रही है! निर्जला देवी उसकी बात काटते हुए कहा'मैं बिल्कुल ठीक हूं! एकदम तंदुरुस्त। तुम जाओ।मन और दिमाग फ्रेश करके हंसी-खुशी भगवान का नाम लेकर इंटरव्यू देने जाओ । मेरी फिक्र छोड़ो। थोड़ी देर की खामोशी के बाद निर्जला देवी ने पूछा"वैसे बेटा, तुम्हें कब निकलना है! वीर ने घड़ी पर नजर डालते हुए जवाब दिया"यहां से साढ़े नौ बजे निकल जाऊंगा। आज तीन इंटरव्यू है ।तो मुझे शाम तक लौटने में देर हो जाएगी ।आप आराम से जाना ठीक है बेटा बेस्ट ऑफ लक। भगवान तुम्हें कामयाबी दे। वीर मुस्कुराया और बोला"थैंक्यू दुनिया की सबसे प्यारी मां। फिर अपने पर्स में से कुछ रुपए निकाले और उनकी और बढ़ते हुए कहा । ये सात हजार रुपए रख लो मां ।डॉक्टर और दवाई के लिए। मैं इंटरव्यू के लिए तैयारी कर लूं और मुझे अभी कपड़े भी प्रेस करना है। चेयर से उठकर जाते-जाते "मां स्त्री कहां रखी है? वही टेबल पर जहां तुम्हारी बुक रखी है" इतना कह कर निर्जला देवी अपने हाथ में वीर के थमाये हुए पैसे को गौर से देखा।फिर वहां से उठकर अपने कमरे की ओर चली गई। वीर की चिंता कम नहीं हुई ।उसने स्त्री की हुई शर्ट पैंट पहनते हुए अपने कमरे में शीशे के सामने बाल ठीक करते हुए जोर देकर कहा "फिर भी मां..तुम फोन तो अपने पास रखोगी ना? कोई भी दिक्कत होगी तो फौरन मुझे कॉल करना मैं तुरंत पहुंच जाऊंगा। हां बेटा... चिंता मत कर ! वीर अपने कमरे से बाहर निकलते हुए गहरी सांस लेते हुए कहा है"ठीक है..लेकिन ध्यान रखना और रिक्शा से ही जाना। पैदल मत जाना धूप बहुत है। जवाब में निर्जला देवी मुस्कुराते हुए सर हिलती हैं और कहती हैं" अरे हां दादा जी...कर लूंगी रिक्शा !लेट हो जाएगा।अब तुम जाओ। आल द बेस्ट। अपनी मां का पैर छूकर वीर मुस्कुराता हुआ इंटरव्यू के लिए निकल जाता है। उसके जाने के करीब 2 घंटे बाद। निर्जला देवी घर का दरवाजा बंद करके सीढीओ से उतरते हुए कॉलोनी के बाहर आती हैं। दोपहर का वक्त था सूरज देवता पूरी ताकत के साथ अपनी गर्मी से धरती को तंग कर रखा था निर्जला देवी अपनी फाइल को धूप से बचने के लिए अपने सर पर रखकर अस्पताल के लिए निकल पड़ती है सड़क पर चलते हुए निर्जला देवी को सिर हल्का-हल्का घूमता सा महसूस होता है। लेकिन वह खुद को संभालने की कोशिश में सड़क के एक तरफ बने बस स्टॉप के बेंच पर जाकर बैठने की कोशिश करती है। बस स्टॉप के पास पहुंचते ही उन्हें जोर का चक्कर आता है वह लड़खड़ा कर गिर पड़ती है। सड़क पर कुछ लोग उनकी तरफ भागे।लेकिन तभी एक सफेद चमचमाती हुई कार जोर से ब्रेक लगाकर रुकी आपके लिए कुछ सवाल: 1. क्या वीर को उसकी मेहनत का फल मिलेगा? क्या उसे एक अच्छी नौकरी मिल पाएगी? 2. क्या उसकी मां निर्जला देवी अपने दर्द को छुपा पाएंगी या एक दिन वीर को सबकुछ पता चल जाएगा? 3. और सबसे बड़ा सवाल – वो सफेद कार जिसमें ब्रेक लगे – उसमें कौन था? क्या कोई उम्मीद की किरण उस कार के साथ आई है या कोई नया तूफान?