HUMARI ADHURI KAHAANI PART 3

संध्या अपने घर के चौखट पर दस्तक देती है तभी उसको कॉल आता है कॉल वीर का था ।
"हेलो...
"हेलो , संध्या जी" वीर की आवाज में विनम्रता और कृतज्ञता झलक रही थी।
"जी.. बोल रही हूं।
"जी मैं वीर हूं निर्जला देवी का बेटा"
संध्या की आवाज में तुरंत अपनापन आ गया" ओह...कैसी है आपकी मां अब?
"आपकी वजह से ठीक है। मैं बस आपको शुक्रिया कहना चाहता था ।आपने जो किया है वह शायद मैं कभी नहीं भूलूंगा। अगर आप नहीं होती तो आज... पता नहीं क्या होता।
संध्या ने हल्की हंसी के साथ कहा"आपको शुक्रिया कहने की जरूरत नहीं है मैंने सिर्फ अपना फर्ज निभाया।
वीर ने गहरी सांस ली "फिर भी मैं आपका एहसान कभी नहीं भूलूंगा ।अगर कभी भी आपको मेरी जरूरत हो तो मैं हमेशा तैयार रहूंगा।
संध्या ने नम्रता से कहा"ऐसा मत कहिए। मैं बस यही चाहती हूं कि आंटी अपना ख्याल रखें। और
आप भी ध्यान रखें कि वह अकेले बाहर न जाए।
वीर की आंखों में हल्की नमी आ गई उसने मुस्कुराते हुए कहा"जी... अब ऐसा कभी नहीं होगा। आपको ढेर सारा थैंक यू थैंक यू थैंक यू........
"आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं वीर ! प्लीज यह मेरा फर्ज था और आप तो बहुत नसीब वाले हैं कि आपको ऐसी मां मिली है और आंटी को आप जैसा बेटा,
वीर राहत की सांस लेते हुए एक मुस्कुराहट के साथ "जी थैंक यू।कोई काम हो तो बताइएगा जरूर। इसी बहाने आपको मिलकर आपका धन्यवाद कर पाऊंगा।
"मौका मिला तो जरूर मिलेंगे। संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा।
फोन रखने के बाद वीर ने अपनी मां की तरफ देखा। मां..दुनिया में अभी भी अच्छे लोग हैं।
निर्जला देवी ने सिर हिलाया और प्यार भरी मुस्कान के साथ कहा" बस भगवान से यही दुआ है कि तुझे भी हमेशा ऐसे लोग मिलते रहे।
वीर ने उनके हाथ को प्यार से थाम लिया और कहा "आप अपना ख्याल रखिए आप मेरी दुनिया है!"
उधर संध्या मुस्कुराते हुए अपने घर के आंगन में दाखिल होते हुए मस्ती भरे लहजे में अवाज लगाती है"सबको सूचित किया जाता है की संध्या महारानी आ चुकी है।
जमुना प्रसाद जी और पंडित जी प्रेम के भाव में हंसने लगते हैं।
"अरे तुम आ गई बेटा हम दोनों कब से तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं। आज तो तुमने शाम कर दी।
संध्या ने उत्तर देते हुए कहा"बस पापा कुछ नेक काम कर रही थी उसमें थोड़ी देरी हो गई।
जमुना प्रसाद जी उत्साहित भरे शब्दों में कहा"ठीक है,आज एक और नेक काम कर दो, आज तुम रिश्ते के लिए मना नहीं करोगी। इतना बढ़िया रिश्ता लेकर आए हैं पंडित जी। भाई मेरा तो मन खुश हो गया अब तुम्हारे ऊपर है।.. हां या ना"
संध्या थकावट भारी आवाज में कहती है "ठीक है पापा देखते हैं"
पंडित जी संध्या को सुना कर कहते हैं,"देखो भाई जमुना प्रसाद, अब इससे बढ़िया रिश्ता तो मैं नहीं ला पाऊंगा, लड़के का रियल स्टेट का बिजनेस है। बड़े-बड़े टेंडर लेता है सुखी परिवार है अच्छी कद काठी सुंदर है ,अच्छा कमाता है और छोटा परिवार भी है, बस एक बहन है वो भी इंस्पेक्टर है सोचो आपकी बिटिया कितना खुश रहेगी।
संध्या हल्का-हल्का मुस्कुरा रही है जमुना दास अपनी बेटी के चेहरे का भाव देखकर "भाई मुझे तो रिश्ता सही लगा अब संध्या के ऊपर है' हम जोर जबरदस्ती तो नहीं कर सकते, बेटी की हां होगी तो हमारी भी हां होगी क्यों बेटी?
ठीक है पापा मुझे थोड़ा वक्त दो मैं सोच कर बता दूंगी अभी मैं बहुत थक गई हूं मुझे आराम करना है"। इतना कह कर संध्या अपने कमरे में चली जाती है।
उस रात वीर अपने कमरे में न होकर अपनी मां के कमरे में ही अपना रिज्यूम, अपनी फाइलें और बाकी डाक्यूमेंट्स लेकर बैठा कुछ नई कंपनी में अप्लाई कर रहा था कि तभी वह देखता है। उसकी मां का फोन बजता है। और फिर उसकी नजर निर्जला देवी पर पड़ती है जो सो गई थी ।तब तक और जल्दी से फोन को साइलेंट मोड पर करके फोन उठाते हुए दूसरे कमरे में चला जाता है ।कहीं मां डिस्टर्ब ना हो जाए।
वीर: "हैलो....
संध्या:।"हैलो.. आंटी कैसी है?
वीर: "आराम कर रही है नींद में है"
संध्या: "ठीक है उन्हें आराम करने दो डिस्टर्ब मत करना। बस ख्याल रखना उनका।
वीर: "थैंक यू फॉर एवरीथिंग ।
संध्या: "फिर थैंक यू प्लीज ।यह शब्द मत कहिए। और हां आंटी को बोल देना मैं कल मिलने आ रही हूं !
वीर: जी बोल दूंगा"
संध्या: ओके,बाय बाय।
अगली सुबह....
सूरज की हल्की रोशनी वाली किरणें खिड़कियों से झांक रही थी । वीर सुबह के 5:30 बजे उठ गया था।
वह अपनी मां के पैर छूकर सीधा किचन में गया और पूरा घर साफ किया। फिर उसने मां और संध्या के लिए स्पेशल खाना बनाया। 11:00 बजे के करीब।
दरवाजे पर हल्की सी दस्तक हुई।वीर ने दरवाजा खोला। सामने संध्या खड़ी थी।
वह ठहर सा गया ।उसकी धड़कनें तेज हो गई और मन ही मन। "इतना भी खूबसूरत कोई हो सकता है क्या ,कौन है ये,कोई परी, अप्सरा?!
क्या मैं अंदर आ सकती हूं"
वीर का ध्यान टूटता है अचानक से हड़बड़ा कर कहता है
जी मोस्ट वेलकम"
संध्या ने मुस्कुराते हुए कदम रखें।
आप बैठो ।मैं मां को बुलाता हूं वीर ने कहा।
संध्या वीर को बस देख रही होती है कितना हैंडसम है यार ,जितना हैंडसम तस्वीर में है उससे कहीं ज्यादा आकर्षक तो सामने से दिखता है।
तभी निर्जला देवी संध्या को देखकर खुश होते हुए "मेरी बच्ची को कभी किसी की नजर ना लगे।
वीर और संध्या दोनों एक दूसरे को देखा। नजर मिली,फिर झुक गई, एक अजीब सी शर्माहट दोनों के चेहरे पर आ गई।
वीर संध्या की मेहमान नवाजी में कोई भी कसर नहीं छोड़ रहा था। जल्द ही तीनों डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाने लगे। खाते-खाते संध्या ने पूछा
"कल का आपका दिन कैसा रहा नौकरी मिली ,बात बनी कही?
वीर थोड़ा अनकंफरटेबल होते हुए। उसने प्लेट में रखी रोटी की तरफ देखते हुए कहा।
"अभी तो इंटरव्यू दिया है बोला है लोगों ने, कॉल करेंगे ..अब देखो कॉल आता है या नहीं ।हर बार तो यही होता है मेरे साथ।
संध्या ने बड़े भरोसे से कहा"
"आंटी जब तक नौकरी नहीं मिलती तब तक वीर को ट्यूशन पढ़ा लेना चाहिए बच्चों को।
मेरे पापा सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल थे ।अभी एक महीना पहले रिटायर्ड हुए हैं। अगर वीर चाहे तो मैं पापा से बात कर सकती हूं। बच्चे बहुत हैं। तुरंत काम शुरू हो जाएगा।
निर्जला देवी वीर की तरफ देखते हुए "बेटा अब यह वीर ही बता सकता है"
वीर ने कोई जवाब नहीं दिया।
संध्या एक नजर वीर को देखा और कहा"कोई बात नहीं, जल्दी नहीं है। आप लोग सोच लिजिए ।फिर मुझे कॉल कर देना मैं पापा से बात कर लूंगी।
थोड़ी देर बाद संध्या प्लेट रखते हुए बोली"आंटी खाना तो बड़ा लाजवाब बना है ।काश ऐसा खाना रोज मिलता। आपके हाथों में तो जादू है आंटी।
निर्जला देवी मुस्कुराई "ये मेरे हाथों का कमाल नहीं है। ये सब वीर ने बनाया है पता है आज 5:30 बजे से उठा हुआ है।
संध्या ने चौंकते हुए वीर की तरफ देखा। और कुछ देर चुपचाप उसे देखती रही। फिर मुस्कुरा कर बोली " कमाल है । नसीब वाली होगी ओ लड़की। जिसको तुम मिलोगे ।उसके तो मजे ही मजे हैं।
वीर शरमा जाता है उसने झेंपते हुए अपनी मां की तरफ देखा और फिर नज़रे झुका ली।
निर्जला देवी ने प्यार से वीर की तरफ देखा"वीर बचपन से ही ऐसा है। बहुत ही शरमिला है। लेकिन ऐसा कोई काम नहीं। जो जो इसे ना आता हो ।बस किस्मत ही साथ नहीं दे रही।
संध्या हाथ जोड़ते हुए कहा" आंटी बस दुआ कीजिए कि किस्मत भी जल्द साथ दे।
निर्जला देवी ने मुस्कुरा कर कहा
"और खाना खाने में शर्माना मत।
आजकल की लड़कियां लो कैलोरीज.. नो फैट वगैरा के चक्कर में खाती नहीं है। तुम इन चक्करों में ना पढ़ो ।ये लो और खाओ।
"नहीं आंटी.. मैं उन पापा की पारियों में से तो बिल्कुल नहीं। उसकी बात सुनकर वीर को हंसी आ जाती है । पर वह अपनी हंसी दबा लेता है ।जिसे चुपके से संध्या नोटिस करते हुए निर्जला देवी से बोलती है।"आंटी पेट फूल गया मेरा और कितना खाऊंगी । बहुत दिनों के बाद इतना स्वादिष्ट खाना खाया । थैंक यू आंटी ।थैंक यू वीर।
निर्जला देवी ने मुस्कुरा कर कहा "अरे बेटा जब तुम्हारी इच्छा करें तब आ जाना ।और जी भर के खाना। अच्छा अब तुम दोनों बातें करो ।मैं गरमा गरम चाय बना कर लाती हूं।
वीर मना करता है लेकिन निर्जला देवी नहीं मानती"अरे बेटा तू सुबह से काम कर रहा है। थक गया होगा। चिंता मत कर अब मैं बिल्कुल ठीक हूं।
निर्जला देवी किचन में चली जाती है।
वीर और संध्या एक दूसरे को देखकर फिर नज़रें इधर-उधर घूमाने लगते हैं। उनके समझ में नहीं आता क्या बात करें। वीर टेबल पर पड़े प्लेट और बचे हुए खानों को समेटने लगता है।
संध्या की नजर एक पल के लिए वीर की तरफ गई ।और उसने नोटिस किया कि उसकी आंखों में ईमानदारी थी ।वह उसे कुछ वैसा लगा ।जैसा उसके पापा अक्सर जिक्र किया करते थे" बेटा अगर कोई सही टीचर मिल जाए, तो यह बच्चे कुछ बन सकते हैं।" उन्होंने एक दिन चाय पीते हुए संध्या से कहा था। जिसपे संध्या ने उन्हें पूछा था। इतने इंटरव्यूज तो लिए हैं आपने। क्या आपको कोई भी ठीक नहीं लगा ।उसपे जमुना प्रसाद जी का कहना था। आजकल के लड़कों को देखता हूं ।तो लगता है उनमें धैर्य ही नहीं है ।ये किसी के लिए कुछ करके खुश नहीं होते ।सबसे पहले खुद को अहमियत पर रखते हैं ।
और आज वीर को देखके संध्या को ऐसा लगा जैसे उसके पिताजी की तलाश पूरी हो गई। भीड़ से बिल्कुल अलग था वीर ।और सबसे बड़ी बात। वो अपनी मां के लिए कुछ भी कर सकता था ।तो संध्या को लगा की जमुना प्रसाद जी की जो चिंता थी वह अब खत्म हो गई। इन्हीं ख्यालों में संध्या कहीं खो सी गई थी। तभी किचन से निर्जला देवी आवाज लगती हैं"बेटा चीनी कितनी लोगी?
संध्या ख्यालों से एक झटके में बाहर आ जाती है।"जी आन्टी... एक चम्मच।
फिर उसने वीर को देखा। वीर टेबल पर रखी सारी प्लेट समेट कर किचन में चला गया। फिर उसने दीवार पर टंगी भगवान श्री राम की फोटो देखी और मुस्कुरा उठी।और मन ही मन बोली" भगवान, वीर को अपनी छांवो में रखना। वह हमेशा हंसता रहे और अपनी मां का ख्याल रखें।
तभी वीर प्लेट में चाय का प्याला लेकर " जी आपकी चाय।
निर्जला देवी भी किचन से बाहर निकलते हुए"अच्छा उस दिन तुम बता रही थी। पंडित जी तुम्हारे लिए कोई रिश्ता लेकर आये थे। लड़का पसंद आया तुम्हें?
संध्या ने हल्के से सिर हिलाया" जी...आंटी ...हां वो.. मैंने पापा को बोल दिया है की सोच कर बताऊंगी। अभी शादी के मूड में नहीं हूं। जब तक कोई मन को न छुए,तब तक कैसे किसी को अपनाया जा सकता है।
निर्जला देवी बड़े गुमान से बोली" सही बात है। तुम एक रानी बेटी हो , तुम्हें तो कोई राजा ही मिलना चाहिए।
संध्या हंस पड़ी "हां ये तो हैं ,लेकिन जब भी वो राजा मिलेगा। सबसे पहले आपसे मिलवाऊंगी। अब मैं लेट हो रही हूं अगर पांच मिनट और रुकी,तो पापा का कॉल आ जाएगा ।मैं फिर आऊंगी टाइम निकाल कर।
ठीक है बेटा,ध्यान से जाना और पहुंच के फोन करना।
ठीक है मैं निकलती हूं अपना ख्याल रखना आंटी ।
संध्या ने विदा ली।वीर चुपचाप कोने में खड़ा था। उसकी नज़रें संध्या पर थी। संध्या ने जाते-जाते वीर को देखा। इतने में निर्जला देवी ने वीर से"
वीर.. बेटा संध्या को बाहर तक छोड़ दो"
गाड़ी तक वीर संध्या को छोड़ने जाता हैं । संध्या गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए। वीर की तरफ देखा।" तो अब मैं चलूं?
वीर ने सिर हिलाया"जी...जी थैंक्स फॉर कमिंग
संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा"फिर थैंक यू ? अब तो मैं हमेशा आऊंगी। क्या हर बार थैंक यू बोलोगे मुझे,
वीर ने आंखों में आंखें डालते हुए आत्मविश्वास से कहा"मेरी मां मेरी जिंदगी है। आपने उनके के लिए इतना कीमती वक्त निकाला।उनका ख्याल रखा। मैं कैसे ना थैंक यू बोलूं ? मैं जीवन भर आपका आभारी रहूंगा।
संध्या, वीर के करीब आते हुए कहा"अगर ऐसा है...तो मेरी एक बात मान लो ।
वीर थोड़ा कंफ्यूज होते हुए संध्या की तरफ देखा। जिस पर संध्या मुस्कुराते हुए बोली" तुमसे कुछ मांग नहीं रही मैं। एक ऑफर है।
1. क्या वीर अब भी खुद को संध्या के लायक नहीं समझता है?
2. क्या संध्या के दिल में वीर के लिए कोई खास जगह बन चुकी है?
3. क्या जमुना प्रसाद संध्या की चुप्पी को समझ पाएंगे या शादी का दबाव बढ़ेगा?
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