HUMARI ADHURI KAHAANI PART 4

वीर थोड़ा कंफ्यूज होते हुए संध्या की तरफ देखा। जिस पर संध्या मुस्कुराते हुए बोली" तुमसे कुछ मांग नहीं रही मैं। एक ऑफर है।
हमारे स्कूल के बच्चों को एक समझदार, ईमानदार और ख्याल करने वाले एक टीचर की जरूरत है। पापा चाहते हैं कि कोई ऐसा इंसान हो जो बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ उनकी जिंदगी भी संवार सके ।और मैं चाहती हूं कि वो इंसान तुम बनो।
वीर चुपचाप उसे देखता रहा।
"मैं? उसके शब्दों में झिझक थी।
संध्या ने आत्मविश्वास से सिर हिलाया "हां, तुम... मैंने देखा है कि तुम्हारे अंदर वो क्षमता है। तुम्हारे पास धैर्य है, समझ है ,और सबसे जरूरी बात तुम्हारे दिल में इंसानियत है।तुम उन्हें सिर्फ पढ़ाओगे नहीं, बल्कि उनकी जिंदगी को एक नई दिशा भी दोगे।
वीर ने कुछ नहीं कहा लेकिन उसके मन में उथल-पुथल मची हुई थी। उसने मन ही मन सोचा। "क्या मैं एक कर पाऊंगा?
संध्या ने उसके मन को पढ़ते हुए कहा"देखो.. यह सिर्फ मेरे लिए नहीं है।यह उन बच्चों के भविष्य के लिए है ।और मैं जानती हूं ।तुम ये कर सकते हो।
वीर ने एक गहरी सांस ली और मुस्कुरा दिया।जिससे संध्या की आंखों में चमक आ गई। उसने हंसते हुए कहा "ठीक है.. सोमवार की सुबह ठीक दस बजे मेरे घर आना।मैं लोकेशन भेज दूंगी। यह कहकर संध्या गाड़ी में बैठी। गाड़ी स्टार्ट की। और साइड मिरर से वीर को देखते हुए चली गई।
वीर तब तक वहीं खड़ा देखता रहा ।जब तक गाड़ी आंखों से ओझल नहीं हो गई।
घर पहुंच के संध्या ने वीर को मैसेज किया। रिच्ड होम सेफ्ली।
इसी शाम संध्या चाय का कप लेकर बैठक में अपने पिता के पास गई ।जमुना प्रसाद गहरी सोच में डूबे हुए थे। जैसे किसी पुरानी याद में खो गए हो। संध्या ने धीरे से उनके सामने बैठते हुए कहा,
"पापा.. मुझे आपसे एक जरूरी बात करनी है!
जमुना प्रसाद जी ने चौंक कर उसकी ओर देखा उनकी आंखों में हल्की चिंता थी।
"क्या हुआ, संध्या? सब ठीक तो है बेटा?
संध्या ने गहरी सांस ली और धीमे स्वर में कहा" पापा..मैं वीर के बारे में बात करना चाहती हूं।'
जमुना प्रसाद ने कप रख दिया। और ध्यान से उसकी ओर देखा" वीर.. कौन वीर?
पापा एक लड़का है जो बहुत ही समझदार और सुलझा हुआ इंसान है ।मैंने उसकी मां से भी मुलाकात की।वो लोग बहुत मुश्किल हालात से गुजर रहे हैं।
जमुना प्रसाद ने गंभीरता से कहा"कैसी मुश्किल हालात? ज़रा विस्तार से बताओ।"
संध्या चाय का कप टेबल पर रखकर फिर अपनी बात शुरू की।"पापा वीर के पिता लेफ्टिनेंट अजय सिंह राजपूत.. वो सेना में थे। एक सच्चे देशभक्त ।लेकिन उनकी कहानी अधूरी है ।उन्हें शहीद नहीं कहा जा सकता। क्योंकि उनकी मौत का कोई प्रमाण नहीं मिला। वो लपता हो गए। छुट्टी पर घर आए थे और इस दौरान अचानक गायब हो गए ।ना उनकी कोई खबर मिली। ना कोई सुराग ।आज तक वीर की मां उस दर्द को झेल रही है।उनके दिल में एक उम्मीद जिंदा है कि शायद अजय सिंह कभी लौट आए।"
जमुना प्रसाद की भौंहें सिकुड़ गई।"तो क्या सेना ने कोई जांच नहीं की?
"की थी पापा ।लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। कोई नहीं जानता कि उनके साथ क्या हुआ। उनका परिवार इस अनिश्चितता के साथ जी रहा है। कि शायद एक दिन वह वापस घर आ जाए ।वीर अपनी मां का इकलौता सहारा है ।बहुत मेहनती है लेकिन हालात उसके साथ नहीं है।
जमुना प्रसाद ने कुछ पलों तक खामोशी से सोचा। फिर बोले,
"तो वीर ?वो आजकल क्या करता है?"
संध्या ने सर झुका कर कहा,
"पढ़ाई पूरी की है ।एमबीए किया है। बहुत मेहनती है लेकिन हर इंटरव्यू में रिजेक्ट हो रहा है ।वह किसी से अपनी तकलीफ नहीं कहता ।अपनी मां के सामने हमेशा मुस्कुराता है ।लेकिन मैंने उसकी आंखों में वह दर्द देखा है। वो अपने पिता की यादों से लड़ रहा है ।और अपनी मां की जिंदगी को बेहतर बनाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है।
जमुना प्रसाद गहरी सोच में पड़ गए !"क्यों बार-बार रिजेक्ट हो रहा है ।अगर वह इतना काबिल है तो नौकरी क्यों नहीं मिल रही उसे?"
संध्या ने गंभीरता से कहा,"पता नहीं पापा। शायद किस्मत उसके साथ नहीं है ।या फिर लोग उसके हालात को समझ नहीं पाते। पर मैं समझ गई कि वो अपने पिता की तरह ही ईमानदार और सच्चा इंसान है। उसे सिर्फ एक मौके की जरूरत है।
जमुना प्रसाद ने गहरी सांस ली, "तो तुम चाहती हो कि हम उसकी मदद करें?"
संध्या ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा ।"हां पापा..हमें उसकी मदद करनी चाहिए। उसके पिता ने देश के लिए जो कुर्बानी दी है। उसका सम्मान करना हमारा फर्ज है। वीर अपने परिवार को संभालने की पूरी कोशिश कर रहा है ।हमें उसे एक मौका देना चाहिए।"
जमुना प्रसाद ने कुछ देर तक खामोशी से सोचा और फिर बोले।" तो तुम्हारा क्या सुझाव है? वीर क्या कर सकता है?'
संध्या के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई।"हमारे स्कूल में वीर को एक शिक्षक की नौकरी दे सकते हैं।वो बहुत अच्छा शिक्षक साबित होगा ।और उसे भी एक नई शुरुआत मिल जाएगी।"
जमुना प्रसाद ने सिर हिलाते हुए," ठीक है कल उसे बुला लो। मैं उससे बात करूंगा।
संध्या की आंखों में राहत की चमक आ गई" धन्यवाद पापा... मुझे पता था आप मान जाएंगे।"
जमुना प्रसाद हल्के से मुस्कुराए" मुझे अपने बेटी पर पूरा भरोसा है। अगर तुम कहती हो कि वीर इस मौके के काबिल है तो मैं भी मान लेता हूं।
संध्या ने अपने पिता के हाथों को थामते हुए कहा"हां पापा। और हां स्कूल के वो बच्चे जो मुफ्त या बहुत कम फीस में पढ़ते हैं ।उन्हें ऐसा ही कोई टीचर चाहिए ।ऐसे बच्चों को सिर्फ पढ़ाई नहीं जिंदगी की सही दिशा दिखाने वाले इंसान की भी जरूरत होती है ।और वीर उनकी जिंदगी में वो उम्मीद बन सकता है।और उनकी बात,उनके हालत समझ सकता है ।और वैसे भी हमें भी तो एक अच्छे अध्यापक की तलाश थी।
जमुना प्रसाद ने गहरी नजर से अपनी बेटी को देखा फिर हल्के से मुस्कुराए"तो तुम कह रही हो कि ये मुलाकात पहले ही तय हो चुकी?"
संध्या ने सिर झुका कर हल्की सी हंसी में कहा "हां पापा.. मैं वीर को ये जिम्मेदारी उसी दिन ऑफर कर दी थी।"
जमुना प्रसाद ने मुस्कुराया और उसके सिर पर हाथ रखा" ठीक है कल ही उसे बुला लो।
संध्या के चेहरे पर राहत नजर आई "मुझे पता था आप मान जाएंगे ।बस पापा उससे ऐसे बात कीजिएगा कि जैसे वह पहले ही स्कूल का हिस्सा है ।उसे लगे कि उसकी काबिलियत पर हमें भरोसा है।
जमुना प्रसाद ने हल्के से सिर हिलाया और हंसते हुए कहा" ठीक है... वैसे भी ,लगता है कि इस स्कूल को अब वाकई किसी वीर की जरूरत है।
संध्या ने हंसते हुए शाही अंदाज में जवाब दिया" मेरी नजर कभी धोखा नहीं खाती पिता श्री। आप देखिएगा वीर कितना अच्छा काम करेगा।
जमुना प्रसाद ने भी उसी अन्दाज़ में जवाब दिया " ओके... राजकुमारी जी। जैसी आपकी आज्ञा। जाओ अब आप विश्राम करें। हमें भी नींद का आभास हो रहा है।
"ओके पिता श्री, सुभ रात्रि।"
सन्ध्या, अपने ख्यालों में वीर को लिए । मुस्कुराते हुए अपने कमरे में चली जाती है। और अपने कमरे की खिड़की में से छन से आ रही चांद की रोशनी ।और दूर कहीं टिमटिमाते तारों को बहुत सुकून भरी नजरों से देख रही थी। उसके चेहरे पर एक मुस्कान तैर रही थी। ठंडी हवाएं खिड़की से टकराकर संध्या के बालों को छेड़ रही थी।
उधर वीर अपनी छत के ऊपर गद्दे पर लेटा हुआ था । क्योंकि उस रात मौसम बड़ा सुहाना था। हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी। आसमान पर तारे टिमटिमा रहे थे । संध्या की तरह वीर की भी आंखें उन तारों को ही देख रही थी । वह कहीं खोया हुआ सा लग रहा था। उसका मन बेचैन था ।जैसे कोई सवाल उसके अंदर बार-बार कह रहा हो। जिसका जवाब उसके पास नहीं था।
मैं ऐसा क्यों महसूस कर रहा हूं। वीर ने खुद से पूछा। उसके दिमाग में संध्या का चेहरा बार-बार घूम रहा था ।उसकी मुस्कान, उसकी बातें और उसका वो लम्हा ,जब उसने उसकी मां का हाथ थाम कर प्यार से कहा था।..आप भी तो मेरी मां जैसी हैं।
वीर ने करवट बदली लेकिन बेचैनी कम नहीं हुई ।उसने आसमान की तरफ देखा मानो कोई जवाब ढूंढ रहा हो।
"जिसने मेरी मां का ख्याल रखा। मै उसके बारे में ऐसा कैसे सोच सकता हूं । नहीं,ये गलत है।मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए।
उसने खुद को समझाने की कोशिश की। लेकिन दिल कहां सुनने वाला था ।हर बार उसकी आंखों के सामने संध्या का चेहरा आ जाता। और वह बार-बार सोचने लग जाता। उसकी आवाज में कितनी मिठास थी। उसने गाड़ी में बैठते वक़्त कहा था मैं फिर आऊंगी टाइम निकाल कर । कितना अपनापन था उसके शब्दों में ।जब उसने कहा था क्लासेस जॉइन कर लो प्लीज।
वीर ने एक गहरी सांस ली और अपने माथे पर हाथ रख।
"नहीं ,यह सब गलत है ।उसने मेरी मां की मदद की इसलिए मैं उसका एहसानमंद हूं। हां ये फीलिंग और कुछ नहीं बस यही है। उसने खुद को यकीन दिलाने की कोशिश की ।लेकिन दिल कहीं और भाग रहा था ।तारे चमकते रहे और वीर सोचते सोचते कब सो गया ।उसे पता ही नहीं चला।
अगली सुबह संध्या अपने बालकनी पर बैठी थी उसके हाथ में कॉफी का कप था। जिसकी भाप हवा में घुल रही थी। सामने अख़बार खुला पड़ा था ।लेकिन उसका ध्यान अखबार पर कहां था। वह दूर कहीं शून्य में देख रही थी। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी।
संध्या का घर खूबसूरत था। एक बड़ा सा आंगन जिसमें ढेर सारे पौधे लगे थे ।छोटी-छोटी बास की कुर्सियां बालकनी में रखी थी। जिन पर हाथ से बने हुए कुशन थे ।दीवारों पर मिट्टी के रंग की पेंटिंग लगी थी।और खिड़कियों से ताजी हवा अंदर आ रही थी। उसके घर में एक पुरानी घड़ी थी जो हर घंटे टिक टिक के साथ समय बताती थी।
वह वहीं बैठी वीर के बारे में सोच रही थी ।वीर कितना क्यूट है। उसने मन ही मन कहा ।
उसकी आंखों में वो लम्हा बार-बार घूम रहा था ।जब वीर ने उसकी ओर देखा था ।वो झिझकते हुए। आंखों में हल्की शर्म लिए खड़ा था ।
संध्या ने कॉफी का एक घूंट लिया और खुद से बातें करने लगी।
" कितने सीधे और कितने अच्छे लोग हैं ।जब से इन लोगों से मिली हूं । मुझे रह-रह के यही लग रहा है कि कैसे भी मैं वीर के लिए कुछ अच्छे से अच्छा कर सकूं ।एक अलग सी संतुष्टि। एक अलग सी खुशी मिली है मुझे। वीर कितना मासूम है। उसकी बातों में सच्चाई है।उसकी आंखों में ईमानदारी है।ऐसे लड़के आजकल कहां मिलते हैं।
उसे वह पल फिर याद आ गया जब वीर ने कहा था _मेरी मां मेरी जिंदगी है ।मेरा सब कुछ!
इस सोच के साथ संध्या की मुस्कान और गहरी हो गई ।जो इंसान अपनी मां को इतना प्यार करता हो ।उसे हर रिश्ते का मोल बड़ी गहराई से पता होगा। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं दिन में ही ख्वाब क्यों सजाने लगी हूं। इतनी बेचैनी क्यों है ?
काश वीर जान पता कि मैं ये क्लासेस से सिर्फ उसकी मदद नहीं करना चाहती ।बल्कि शायद मैं उसकी जिंदगी का हिस्सा बनना चाहती हूं ।उसे थोड़ा और जानना चाहती हूं। और....मैं...मैं पागल हूं ...कितना कुछ सोचे जा रहे हूं यार...संध्या रुक जा जरा.. कहां भाग जा रही है..कहीं यह लव एट फर्स्ट साइट तो नहीं.. इन्हीं ख्यालों में खोए हुए उसने सामने लगी तुलसी के पौधे को पानी दिया ।और हल्की धूप में अपनी हथेलियों को सेकने लगी। हवा में फूलों की हल्की खुशबू थी। और सड़क पर कुछ बच्चे खेलते हुए हंस रहे थे। संध्या ने उन बच्चों को देखा और मुस्कुराई। लेकिन उसके कानों में अभी वीर की आवाज गूंज रही थी ।उसने गहरी सांस ली और अपने दिल पर हाथ रखा।
"क्या यह प्यार है ?उसने खुद से पूछा ।फिर हल्के से मुस्कुरा दी। और वह जानती थी कि यह प्यार ही है ।संध्या और वीर के बीच जो भी घटित हुआ ।वह धीरे-धीरे एक खूबसूरत कहानी का रूप ले रहा था।
आज वीर आने वाला था समय की रफ्तार संध्या के लिए महीनो सी लग रही थी। कभी घड़ी में वक्त देखती ।तो कभी आसमान की तरफ तो कभी उन रास्तों पर जिन रास्तों से वीर आएगा। इन्हीं ख्यालों के लम्हों में घड़ी की सुई उस वक्त पर आ गई जिस वक्त का संध्या को इंतजार था।
वीर को गेट से अंदर आते देखा तो उसके होठों पर एक हल्की मुस्कान आ गई ।वीर हाथ में वही पुराना बेग लिए सावधानी से साइकिल खड़ा कर रहा था ।जब वह आंगन में पहुंचा तो जमुना प्रसाद ने दरवाजे पर खड़े होकर मुस्कुराते हुए कहा "आओ बेटा"बैठो।
वीर ने उनके पैर छुए "धन्यवाद सर आपने मुझ पर इतना भरोसा किया ।मैं अपनी पूरी कोशिश करूंगा।
जमुना प्रसाद ने उसके कंधे पर हाथ रखा"कोशिश नहीं बेटा। विश्वास के साथ काम करना ।ये बच्चे तुम्हें अपना आदर्श मानेंगे। उन्हें सिर्फ पढ़ाई ही नहीं जिंदगी का रास्ता भी दिखाना है।
वीर के चेहरे पर एक अजीब सी गंभीरता आ गई "जी सर यही मेरी भी कोशिश होगी?"
आज संध्या कुछ अलग ही लग रही थी जैसे उसकी जिंदगी की पहली दिवाली हो। संध्या को देखते ही वीर अपनी आंखों को कंट्रोल करता है "नहीं...नहीं वीर कंट्रोल।
संध्या तो मन ही मन इतनी खुश थी जैसे उसे कोई दुनिया मिल गई हो ।जैसे उसका कोई सपना पूरा हो गया हो। जैसे उसे सब कुछ मिल गया जो वो चाहती थी!
पहले दिन से ही वीर ने स्कूल में अलग प्रभाव डालना शुरू कर दिया ।वह सिर्फ क्लास रूम में नहीं पड़ता था ।बल्कि बच्चों के साथ खेलता भी था ।मैदान में बैठकर उनसे उनकी परेशानियां पूछता ।जिन बच्चों को पढ़ाई में दिक्कत होती उन्हें अलग से समझाता ।धीरे-धीरे उन बच्चों के दिलों में वीर के लिए खास जगह बनने लगी। और जमुना प्रसाद की नजरों में वीर की इज्जत और बढ़ गई। वीर का स्वभाव ।उसका व्यक्तित्व उसका रहन-सहन। उसके बात करने का तरीका। उसकी पर्सनालिटी। उन्हें खुशी हुई। कि संध्या ने सही अध्यापक चुना है।
कुछ हफ्ते बीत गए। स्कूल में वीर की लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी। बच्चे उसे घेर लेते। क्लास में अब पहले से ज़्यादा अनुशासन था। एक दिन जमुना प्रसाद और सन्ध्या गार्डन में टहलते हुए स्कूल के कैंपस में पहुंचे। उन्होंने देखा कि वीर बच्चों को एक कहानी सुना रहा है। कहानी युद्ध की थी, लेकिन वीर ने उसे इस तरह सुनाया कि बच्चे रोमांचित हो गए।
कहानी खत्म होने पर जमुना प्रसाद ने ताली बजाई। बच्चे चौंक गए। वीर ने मुड़कर देखा, तो जमुना प्रसाद को देखकर मुस्कुराया।
“अरे वाह! ये तो कमाल है। तुम तो बच्चों को कहानियों से पढ़ा रहे हो।”
वीर ने सिर झुकाकर कहा, “सर, मैंने महसूस किया कि बच्चे किताबों से ज़्यादा कहानियों से सीखते हैं। इसलिए मैंने ये तरीका अपनाया।”
जमुना प्रसाद ने गर्व से उसकी पीठ थपथपाई। “तुमने तो मेरी उम्मीद से भी ज़्यादा अच्छा किया है। मुझे तुम पर गर्व है, वीर।”
वीर की आंखों में एक चमक आ गई। “धन्यवाद, सर। ये सब आपकी वजह से संभव हुआ।”
जमुना प्रसाद हंसते हुए बोले, “नहीं। ये तुम्हारी मेहनत है। बस इसी तरह आगे बढ़ते रहो।” इतना कहकर वो चले गए।
संध्या वहीं रुक गई। वीर का बच्चों के प्रति समर्पण उसका प्यार । उसकी मेहनत देखकर संध्या खड़ी-खड़ी मुस्कुरा रही थी।उसकी नजर बार-बार वीर पर जाती। वह देख रही थी कि कैसे वह बच्चों के साथ खुलकर हंसता, उन्हें सीखने के नए तरीके बताता। उसकी सहजता और समझदारी ने संध्या को प्रभावित कर दिया था।
1. क्या वीर अब खुद को सिर्फ एक अध्यापक मानता है या संध्या की जिंदगी का हिस्सा बनने की चाह दिल में पलने लगी है?
2. क्या संध्या अपने पापा से वीर के लिए जो कदम उठवा रही है, वो सिर्फ मानवता है या उसके दिल में पनपते प्रेम की शुरुआत?
3. क्या जमुना प्रसाद को अब समझ आने लगा है कि वीर उनकी बेटी की जिंदगी में सिर्फ एक शिक्षक नहीं, शायद बहुत कुछ है?
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