HUMARI ADHURI KAHAANI PART 5

HUMARI ADHURI KAHAANI PART 5
क्लासरूम में वीर के पढ़ाने का तरीका बिल्कुल अनूठा था। किताबों के पाठ कब व्यवहारिक ज्ञान में बदल जाते, बच्चों को पता भी नहीं चलता। धीरे-धीरे सभी बच्चे वीर के इस तरीके को पसंद करने लगे। उनके लिए यह टीचर सिर्फ पढ़ाने वाला नहीं था, बल्कि ऐसा इंसान था जो उन्हें समझता था। जीवन की यात्रा। मां बाप का महत्व। गुरु की अहमियत। बड़ों का आदर मान सम्मान। दुखों से कैसे लड़ना है। यह सब तभी संभव है जब आप शिक्षा प्राप्त करोगे। शिक्षा ही धन है दौलत है। संध्या ने महसूस किया कि वीर न सिर्फ पढ़ रहा था। बल्कि बच्चों को खुद पर विश्वास करना सीख रहा था।वीर की आवाज़ में एक अपनापन था, एक आकर्षण, जिसे वह नज़रअंदाज़ नहीं कर पा रही थी। संध्या ने घड़ी देखा तो स्कूल के छुट्टी का वक्त हो चुका था"चलो बच्चों अब कल मिलते हैं आज बस इतना ही।" बच्चे अपने-अपने घर चले जाते हैं। पता है आज मैं क्यों आई हूं? संध्या ने कहा। वीर ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया! "आपका ही स्कूल है आपको यहां आने के लिए किसी वजह की जरूरत थोड़ी ना है। संध्या ने सिर हिलाया । वीर को चोर नजरों से देखते हुए मुस्कुरा कर कहा"पहले नहीं थी ।शायद अब वजह ही वजह है।" वीर कुछ बोल पाता इसके पहले ही संध्या उसकी बात काटते हुए" आज मैं तुम्हें लाइब्रेरी दिखाती हूं। बहुत दिन हो गए लाइब्रेरी में गए। दोनों स्कूल की लाइब्रेरी में फाइलों के बीच बैठे थे।"यह देखिए "संध्या ने एक पुरानी तस्वीर दिखाते हुए कहा"हमारा पहला बैच।बहुत कम बच्चे आते थे उसे वक्त"! वीर ने तस्वीर गौर से देखी"आपके इस सफर की शुरुआत कैसी हुई?" संध्या कुछ देर चुप रही फिर हल्के से मुस्कुराई"पापा का सपना था कि हर बच्चा पढ़ सके। चाहे उसका बैकग्राउंड कुछ भी हो।बस मैंने वही सपना आगे बढ़ाया । वीर ने धीरे से पूछा"और आपका खुद का सपना?" संध्या ने उसकी ओर देखा कुछ पल के लिए कमरे में सिर्फ पुरानी घड़ी की टिक टिक सुनाई दी फिर उसने कहा"मेरा सपना... शायद अब पूरा हो रहा है । कोई है.. जिसके लिए नींद से रिश्ता टूटने लगा है मेरा। बच्चों की जिंदगी बदलने वाला! मुझे भी बदल रहा है।" वीर ने संध्या के आंखों में देखा। तो उसने खुद को पाया! वहां एक सच्चाई थी ।एक अनकहा जुड़ाव। पहली बार किसी लड़की के इतने करीब था वो। उसके चेहरे पर उसकी सांसों में एक अजीब सी हलचल थी। वह उसे देखता रहा। शर्माती हुई संध्या उस पल कुछ नहीं कह सकी ।उसका चेहरा हल्का गुलाबी होने लगा । उसने सिर पर दुपट्टा डाला।लेकिन जब भी वीर की नजर उसे पर पड़ती। वह नजर चुरा लेती। दोनों कुछ देर चुप रहे। वीर कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन फिर रुक गया। संध्या ने खामोशी थोड़ी और धीरे से कहा"हमारे स्कूल को ऐसे ही टीचर की जरूरत थी। " वीर ने हल्के से सिर सर झुकाया"और मुझे यहां आकर जो मिला है। उसकी जरूरत मुझे थी।" संध्या की आंखों में हल्की चमक आ गई ।दोनों धीरे से उठे ।और लाइब्रेरी से बाहर निकल गए। उनके कदम धीमे थे ।जैसे कि वक्त को थाम लेना चाहते हो। दोनों के बीच एक अनकही समझदारी विकसित हो चुकी थी। इस मुलाकात के बाद दोनों अपने-अपने घरों में सोने से पहले एक ही ख्याल में डूबे थे। एक ऐसा रिश्ता जो धीरे-धीरे अपनी जगह बना रहा था ।बिना कुछ कहे। बिना किसी वादे के। बस अपने आप। एक दिन स्कूल खत्म करके वीर संध्या के घर आया जमुना प्रसाद जी के कुछ फाइलें देनी थी। जमुना प्रसाद फाइलें देखने के बाद"बेटा मुझे खुशी है कि तुम हमारे साथ हो। वीर सर झुका कर कहा"सर मैं तो बस अपनी जिम्मेदारियां निभा रहा हूं।यह सब संध्या जी का सपना है, मैं उसे पूरा करने की कोशिश कर रहा हूं। जमुना प्रसाद ने संध्या की ओर देखा"बेटा तुम्हारा चुनाव बिल्कुल सही था वीर पर हमें गर्व है।" संध्या का चेहरा खिल उठा अंदर ही अंदर उसे खुशी थी कि उसके पिता को वीर पर भरोसा हो रहा है। वीर ने जमुना प्रसाद से इजाजत मांगी " सर मौसम खराब लग रहा है।लगता है बारिश होगी। मुझे अब निकालना चाहिए मां अकेली होगी। "ठीक है बेटा जाओ ख्याल रखना" वीर ने फाइलों को बेग में रखा । एक नजर संध्या की तरफ देखा। दोनों के नजरों की टकराव में अपनेपन का भाव था। वीर बैग उठाया और आगे बढ़ गया। गेट तक पहुंचते ही तेज बारिश शुरू हो गई ।वीर बाहर जाने ही वाला था की बारिश इतनी तेज हो गई कि उसे रुकना पड़ा। "बेटा जब तक बारिश नहीं रुक जाती । यही रुक जाओ।" इतना कहकर जमुना प्रसाद जी अपने कमरे में चले गए। संध्या ने बड़े ही मीठे स्वर में पूछा"चाय पियेंगे? अरे इसमें पूछना क्या है आप बैठो मैं बना कर लाती हूं। थोड़ी देर बाद दो कप चाय के साथ संध्या हाजिर हुई। दोनों बरामदे में बैठ गए ।बारिश की बूंदों की आवाज और हवाओं की सरसराहट ने माहौल को और गहरा बना दिया। संध्या ने अचानक कहा"कभी-कभी इंसान को अपना दर्द अकेले नहीं सहना चाहिए। अपनों को भी शेयर करना चाहिए। मुझे पता है आप अपनी मां के लिए परेशान रहते हैं। लेकिन अब आप चिंता ना करो। हम दोनों मिलकर उनका ख्याल रखेंगे। वीर चुप हो गया ।उसके मन में संध्या के लिए इज्जत और बढ़ गई। उसके चेहरे पर मासूमियत आ गई।वह थोड़ा भावुक हो गया संध्या ने उसे इस तरह देखा। वह उसकी मासूमियत में खो गई थी। दोनों के बीच बिना कुछ कहे एक अनकही भावना जाग चुकी थी। बारिश थम चुकी थी। चाय का कप खाली हो चुका था।वीर को ख्याल आया कि अब घर निकालना चाहिए ।उसने संध्या से इजाजत मांगी। संध्या ने मुस्कुराकर सर हिला दिया और मन ही मन सोचने लगी"क्या कह सकती हूं।अगर आपकी मां घर पर अकेली ना होती तो शायद तुम्हें रोक लेती। वीर कुछ पल संध्या को देखने के बाद एक गहरी सांस लेते हुए बैग उठाकर वहां से चला जाता है। संध्या उसे पीछे से एक टक देखती रही।जब तक वीर गेट से ओझल नहीं हुआ। अगले कुछ दिनों तक स्कूल का माहौल सामान्य रहा। मगर वीर और संध्या के बीच की खामोशी अब बदल चुकी थी। जमुना प्रसाद को यह सब सामान्य लग रहा था। उन्हें लगता था कि वीर एक अच्छा शिक्षक है। लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि उनकी बेटी का दिल उसी लड़के के लिए धड़कने लगा है। अगली सुबह मंद मंद मुस्कुराती संध्या अपने रूम से निकलकर अपने पापा को गुड मॉर्निंग विश करने के लिए जैसे ही सीढ़ियां उतरती हैं। उसने देखा कि कोई गंभीर बात चल रही थी। संध्या सीढ़ियों से नीचे उतरी और ड्राइंग रूम में पहुंची। सामने सोफे पर पंडित हरिसुख मिश्रा बैठे थे—गहरे भूरे कुर्ते में, माथे पर हल्का तिलक, और आंखों पर मोटा चश्मा। वे बड़े इत्मीनान से चाय की चुस्कियां ले रहे थे। उनके ठीक बगल में जमुना प्रसाद बैठे थे, पूरी तरह उनकी बातों में डूबे हुए। कमरे में हल्की अगरबत्ती की खुशबू फैली हुई थी। संध्या ने पास आकर धीरे से अपने पिता के बगल में बैठते हुए कहा, “गुड मॉर्निंग पापा। और पंडित जी का पैर छूकर प्रणाम किया।पंडित जी नमस्ते।” हरिसुख मिश्रा ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। “अरे बिटिया, कैसी हो? तुम्हारे पिताजी जी अभी तुम्हारी ही तारीफ कर रहे थे। संध्या ने हल्की मुस्कान दी, लेकिन उसकी आंखों में सवाल थे। वह जानती थी कि इस मुलाकात का कोई खास मकसद है। पंडित जी ने चाय का कप रखते हुए कहा, “जमुना भाई, जैसा मैंने आपको व्याख्या देकर समझाया था कि इस बार हरिद्वार में एक बड़ा अनुष्ठान हो रहा है, कई वर्षों में कभी-कभी ही होता है ऐसा।मौका बार-बार नहीं आता। आपको तो साथ चलना ही चाहिए। ये आपके परिवार के लिए बहुत शुभ होगा। खासकर आपकी बेटी के भविष्य के लिए।” संध्या ने ध्यान से देखा। जमुना प्रसाद के चेहरे पर गंभीरता उभर आई थी। वह जानती थी कि उनके पिता ऐसी बातों को हल्के में नहीं लेते। “हरिसुख भाई, आप सही कह रहे हैं। मुझे काफी समय से किसी धार्मिक यात्रा पर जाने का मन भी था।” जमुना प्रसाद ने सहमति में सिर हिलाया। यह सुनते ही संध्या का चेहरा थोड़ा गंभीर हो गया। उसके मन में हलचल होने लगी। “पापा…” उसने धीमी आवाज में कहा। “क्या ये ज़रूरी है?” जमुना प्रसाद ने चौंककर बेटी की ओर देखा। संध्या ने अपनी बात जारी रखी। “हमें ऐसी पूजा-पाठ की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं तो रोज मंदिर जाती हूं ।पूजा पाठ करती हूं ।घर में भी तो मंदिर है ना। आप पूरे विधि विधान से पूजा तो करते हैं। हमारी ज़िंदगी में सब ठीक चल रहा है। क्या हमें वाकई इस सबकी जरूरत है?” जमुना प्रसाद ने हल्की मुस्कान के साथ उसकी चिंता को टालने की कोशिश की। “बेटा, ये सिर्फ पूजा नहीं है। ये हमारे पूर्वजों का आशीर्वाद लेने का मौका है। मुझे लगता है, ये करना सही रहेगा।” लेकिन संध्या ने अपनी बात नहीं छोड़ी। “आपकी सेहत को आराम की ज़रूरत है। ऐसे सफर पर जाने की कोई ज़रूरत नहीं है। प्लीज मत जाइए।” तभी वीर कमरे में दाखिल हुआ। उसके कदम धीमे थे, लेकिन उसने महसूस किया कि माहौल तनावपूर्ण है। वह बिना कुछ कहे एक कोने में खड़ा हो गया। जमुना प्रसाद ने वीर की ओर देखा और उसे बातचीत में शामिल किया। “आओ बेटा। हरिसुख भाई के साथ हरिद्वार जाने का प्लान बना रहा हूं। मुझे लगता है, अब समय आ गया है कि मैं भी कुछ पुण्य कमा लूं।” वीर ने एक पल सोचा। उसने माहौल को भांप लिया था। धीरे से, संजीदगी से कहा, “सर… अगर संध्या जी को अच्छा नहीं लग रहा, तो शायद आपको रुक जाना चाहिए। उन्हें आपकी सेहत की चिंता है।कभी और भी जा सकते हैं।” जमुना प्रसाद ने हल्की हंसी के साथ वीर की बात को भी टाल दिया। “बेटा, कभी-कभी बच्चों की चिंता सही नहीं होती। मैं ठीक हूं। ये यात्रा मेरे लिए ज़रूरी है।” वीर ने चुपचाप सिर झुका लिया। वह जानता था कि जमुना प्रसाद का मन बन चुका है। लेकिन संध्या के चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी। अगली सुबह, जब पंडित हरिसुख मिश्रा और जमुना प्रसाद हरिद्वार के लिए निकले, संध्या के मन में एक अजीब सी बेचैनी थी। उसने खुद को यह सोचकर शांत करने की कोशिश की कि सब ठीक रहेगा। लेकिन उसका दिल यह मानने को तैयार नहीं था। संध्या अपने उदास शब्दों से वीर से कहा। “तुमने उन्हें क्यों नहीं रोका?” वीर ने कुछ पल की खामोशी के बाद कहा, “संध्या, तुम्हारे पापा समझदार इंसान हैं। हमें उन पर भरोसा करना चाहिए। सब ठीक रहेगा।” लेकिन संध्या के दिल में एक अनजाना डर गहराता जा रहा था। अगले दिन सुबह की पहली किरण के साथ ही फोन की घंटी बजी। संध्या ने घबराकर फोन उठाया। दूसरी तरफ से आवाज आई — “संध्या… तुम्हारे पापा की बस खाई में गिर गई है। हालत नाजुक है। तुरंत अस्पताल आ जाओ।” संध्या के हाथ से फोन गिरते-गिरते बचा। उसका पूरा शरीर कांपने लगा। उसने तुरंत वीर को फोन किया। “वीर… पापा की बस का एक्सीडेंट हो गया है। जल्दी पहुंचो ” वीर बिना एक पल की देरी किए। किसी बाइक वाले से लिफ्ट लेकर संध्या से पहले अस्पताल पहुंच जाता है। अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टर ने कहा, “उनकी हालत बहुत नाजुक है। हमारे पास ज़्यादा वक्त नहीं है।” वीर ने जमुना प्रसाद को देखा, तो वे अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए थे। उनकी सांसें धीमी हो रही थीं। जमुना प्रसाद की हालत गंभीर थी। अस्पताल के उस छोटे से कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था। मशीनों की धीमी आवाजें बस उनकी धीमी सांसों की गिनती कर रही थीं। वीर एक तरफ जाकर खड़ा हो जाता है। — चुप, गहरी सोच में डूबा। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि हालात उसे इस मोड़ पर ला खड़ा करेंगे। जमुना प्रसाद ने धीरे से अपनी आंखें खोलीं। उनकी नजर वीर पर पड़ी। उन्होंने हल्के से इशारा किया कि वह पास आए। वीर तुरंत तेज कदमों से उठकर उनके बिस्तर के करीब पहुंचा। जमुना प्रसाद ने वीर का हाथ अपने कमजोर हाथों से थामा। उनकी उंगलियों की पकड़ ढीली थी, मगर शब्दों में एक अजीब सी ताकत थी। “बेटा…” उनकी आवाज धीमी थी, मगर हर शब्द ठहर कर निकल रहा था। वीर ने उनकी ओर झुकते हुए कहा, “जी, सर?” जमुना प्रसाद ने चारों तरफ देखते हुए पूछा"संध्या कहां है? वीर ने रुहासे मन से कहा"अभी बात हुई है मेरी ।आ रही है। पार्किंग में है। कुछ पल की खामोशी रही। फिर उन्होंने वही बात कही, जिसने वीर को अंदर से हिला दिया। 1. क्या संध्या और वीर के बीच उभरता रिश्ता सिर्फ भावनाओं पर आधारित है, या उनके बीच एक गहरी समझ और जीवन मूल्य भी साझा होते हैं? 2. क्या जमुना प्रसाद का वीर को आखिरी समय में संध्या की जिम्मेदारी सौंपना उनके रिश्ते को वैधता देता है, या संध्या की राय भी उतनी ही ज़रूरी होनी चाहिए थी? 3. क्या वीर, जो अब तक केवल एक शिक्षक की भूमिका में था, संध्या के जीवन साथी और उसके पिता के भरोसे के पात्र के रूप में खुद को साबित कर पाएगा?