HUMARI ADHURI KAHAANI LAST PART

संध्या फिर वीर के करीब जाकर उससे पूछती है।
फिर किस रिश्ते से तुम यहां खड़े हो और यह सब क्यों कर रहे हो। इतनी मेहरबानी क्यों? कौन हो तुम?
वीर खुद को मजबूत करके अपनी सारी भावनाओं को दबाकर।संध्या को जवाब देता है।
तुम्हारा एहसान उतर रहा हूं मैं। मेरी मां मेरा जीवन है और तुमने मेरी मां का ख्याल रखा इसलिए रहम खा रहा हूं दया आती है तुम पर।
वीर की मिर्च जैसी बातों ने संध्या को दुख के एक ऐसे सागर में डुबो दिया। जिसका कोई किनारा ही नहीं था।
वीर मुंह फेर कर खड़ा था।संध्या उसे कुछ पल देखती है।और एक झटके में तेज कदमों से वहां से चली जाती है।
थोड़ी दूर पर खड़ा राहुल। " यह कौन सा तरीका था तेरा।इस तरह कोई बात करता किसी से। और भी कई तरीके होते हैं समझाने के लिए। सच तो कह रही है संध्या ।और मैं भी जानता हूं तेरी मन में संध्या ही है।बेपनाह मोहब्बत करता है तू।
वीर राहुल की तरफ मुडता है। उसकी आंखें भीगी हुई है।
"यार राहुल उसने कहा कि वो मेरे बगैर नहीं जी सकती।मुझे नहीं भूल सकती।
वह मुझे भूल जाए मैंने उसे उसकी वजह दे दी है। इसलिए मेरे शब्दों में कड़वाहट थी।
वीर की हालत देख राहुल उसे गले लगा लेता है।
" हिम्मत रख मेरे भाई। तु अभी घर जा। तेरा फोन बंद था । मां का कॉल आया था मेरे पास ।तुझे बुला रही है। उनकी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी।
"ठीक है"वीर चला जाता है!
राहुल मन ही मन खुद से बातें करने लगता है।
क्या कहूं तुझे वीर।समझ नहीं आ रहा। क्या नाम दूं। शायद गुनाहों का देवता "
दया से लिपटी हुई हंसी लेकर राहुल छत से नीचे चला जाता है।
शाम हो चुकी थी सारी सहेलियां घर जा चुकी थी संध्या अपने कमरे में अकेले खिड़की के पास खड़ी डूबते सूरज को देख रही थी।
सूरज तो डूब गया लेकिन उसे वापस भी आना था। और आया भी।एक नई सुबह लेकर।
मेहमानों का आगमन हो चुका था। पंडित जी सबका स्वागत कर रहे थे। राहुल दहेज का सामान एक तरफ रखवा रहा था। हलवाई मिठाइयों में व्यस्त था रसोईया खाने में। टेंट के मजदूरों ने टेबल लगा रखी। चारपाईयों पर गद्दे बीछ चुके थे। इंतजार था बारातियों का।
संध्या आधे अधूरे दुल्हन की लिबास में अपने बेड पर खुली आंखों से सोई हुई। सहेलियां गिफ्ट पैक कर रही है। एक ने संध्या से बड़े मजाकिया भाव में कहा। अभी सोना है तो एक-दो घंटे सो जाओ। कल तो पूरी रात जीजा की जगा के रखेंगे।
संध्या उठकर बैठते हुए उसी सहेली से कहती है" जरा राहुल को बुलाओगे क्या"
राहुल संध्या के कमरे में दाखिल होता है ।संध्या बेड से उठकर खड़े होते हुए राहुल से सवाल करती है।" राहुल वीर को तुमसे बेहतर कोई नहीं जानता। सच-सच बताना ।उसकी क्या मजबूरी है।जो मुझे आंसुओं में डूबो डूबो कर मार रहा है मेरी भावनाओं को दरकिनार कर रहा है।
राहुल क्या जवाब दे। उसे वीर ने कसम दे रखी थी की संध्या को पता ना चले ।संध्या गिड़गिड़ाने लगी ।ऐसी हालत देखकर पहली बार राहुल की आंखें भी सबर खो बैठी ।वह भी रो पड़ा।
उसे समझाओ प्लीज ।संध्या चिखती हुई विनती करती है। राहुल के पैरों में गिर जाती है। "बहुत प्यार करती हूं उससे! उसका प्रेम मेरे लिए किसी गंगाजल से काम नहीं है। उसको बोलो कि इस गंगा जल को दूषित न करें।
सारी सहेलियां एक साइड में खड़ी एक दूसरे को देख रही है। उन्हें अब जाकर पता चला की संध्या इतना उदास क्यों थी।
पीछे खड़े पंडित जी सारी बातें सुन रहे थे। उन्हें देख राहुल और संध्या नजर झुका के खड़े हो
गए।
देर कर दी बेटा तुमने ।अगर इस पंडित को जरा भी पता होता कि तुम वीर से प्रेम करती हो तो शायद आज इस चौखट पर बारात ना आती ।अब तो हम उस मोड पर खड़े हैं ।जहां से हम मूड भी नहीं सकते ।रही बात वीर की अब समझ आया कि उसकी खामोशियों का कारण तुम थी। क्या कलेजा है उसका। तुम्हारे पिता की आखिरी इच्छा के लिए उसने अपना प्रेम त्याग कर दिया।
पंडित जी की बातों से संध्या हड़बड़ा उठी ।उसके पांव अपने आप कांपने लगे ।पंडित जी बीता हुआ छण विस्तार से बताते हैं कि कैसे वीर को जमुना प्रसाद जी ने आखिरी इच्छा जताई थी। वीर बस वही निभा रहा है। यह सब सुन संध्या का पूरा शरीर कांपने लगा।
बोलते बोलते पंडित जी की भी आंखें नम हो गई।अपनी नाम आंखों को संभालते हुए पंडित जी ने एक ऐसी बात कही।
"बेटा वीर अभी-अभी अपनी मां की चिता को आग लगाकर आ रहा है!
यह सुनकर संध्या का सर चकरा जाता है। वह जमीन पर गिरकर बेहोश हो जाती है। उसकी सहेली निमिषा पानी छिड़क कर।उसे होश में लाती है ।पंडित जी संध्या के पास जाकर उसके सर पर हाथ रखकर कहते हैं।
"सोचो तुमसे कई गुना घाव के साथ वीर जी रहा है ।और उसी घाव के साथ तुम्हारी डोली को कंधा भी देगा ।शायद भगवान ने उसे सहनशक्ति उपहार में दिया होगा।
तैयार हो जाओ ।बारात आने वाली है।खुश रहो और आगे का सोचो।चलो राहुल"
पंडित जी और राहुल कमरे से बाहर निकल जाते हैं।
संध्या बेसुध हो चुकी थी एकदम गुड़िया की तरह ।निशा संध्या को सीने से लगा के भारी मन से कहती है" तूने मुझे भी नहीं बताया। मैं तो तेरी बेस्ट फ्रेंड थी ना।.....शायद यही नसीब है तेरा ।चल तैयार हो जा।
पूनम अपने भाई को दूल्हे के लिबास में देखकर मुस्कुरा रही है और उसकी आंखें भी नम है। आसमान की तरफ देखकर कहती है" मम्मी पापा काश आज आप हमारे साथ होते। देखो ना आपका राजा बेटा और मेरा भाई किसी महाराजा से काम नहीं लग रहा है।
घोड़े पर बैठा रोहित मुस्कुरा रहा है ।लोग नाच रहे हैं । बैंड बाजा वाले अपने ही धुन में है। पूनम रोहित की आरती उतार के उसे बड़े ही नटखट अंदाज में हुक्म देती है"भाभी को बड़े शान से लेकर आना। मैं स्वागत में कोई भी कमी नहीं छोडूगी ।अभी से तैयारी शुरू कर देती हूं।
खुशी खुशी धूमधाम से बारात आगे बढ़ती है और आकर सीधा संध्या के दरवाजे पर रूकती है।
सज धज कर संध्या खिड़की पर खड़ी है ।उसकी नज़रें सिर्फ वीर को ढूंढ रही है।लेकिन वीर कहीं नहीं दिखा।
पंडित जी बारातियों का स्वागत कर रहे हैं।राहुल साथ-साथ उनकी मदद कर रहा है।
जैसे ही बारातियों का एक समूह दूसरी तरफ जाता है। अचानक संध्या को वीर दिखाई देता है। जो एक साइड में एक कोने में कुर्सी पर बैठा हुआ। दोनों हाथों को अपने मुंह पर रख कर ।बस सबको देख रहा। उसकी आंखें बिल्कुल लाल थी।
संध्या वही खिड़की पर फफक कर रोने लगी। सहेलियों ने उसे चुप कराया और खिड़की से हटाकर दूसरी तरफ ले आई। निशा ने उसे समझाया"क्यों अपने आप को तकलीफ दे रही है ।अब कुछ बदलने वाला नहीं है। अगर कुछ बदलेगा तो वो तू है।आज से तेरी नई जिंदगी की शुरुआत है।तेरी मांग भरी जाएगी ।तेरे साथ फेरे होंगे। तेरा ससुराल होगा। अपने आंसुओं पर रहम कर। अभी मंडप में बैठना है।
सजे हुए मंडप में संध्या की मांग भरी जाती है।उसके साथ फेरे होते हैं।वह किसी की हो चुकी थी । विदाई का वक्त आया पंडित जी का पैर छूकर संध्या फूलों से सजी हुई एक कार में जाकर बैठ गई।
यह जो पल था।सबकी आंखें नम थी।सारी सहेलियां संध्या का आंसू पोछ रही थी। और बीच-बीच में वीर को ढूंढ रही थी। लोगों ने कार को चारों ओर से घेर रखा था।और सबसे पीछे खड़ा था वीर। उसमें इतनी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह संध्या का सामना करें।अचानक उसे पंडित जी की आवाज सुनाई दी।" बेटा थोड़ी देर के लिए पत्थर बन जा।और आखरी बार जाकर मिले ले। हमने कई बार देखा उसकी आंखें तुझे ढूंढ रही थी।
पंडित जी वीर को लेकर आते हैं
कार के पास वीर को देखकर संध्या। गौर से कुछ सेकंड देखती है। उसका दिल तो कर रहा था कि कार से उतर कर वीर से लिपटकर खूब रोए। लेकिन अब वह किसी और की हो चुकी थी। उसका दूल्हा उसके बगल में बैठा था। बेजान सा असहाय वीर कुछ नहीं बोल पाता। जैसे उसकी आवाज को किसी ने कैद कर लिया हो।
ड्राइवर ने कार को आगे बढ़ाई और धीरे-धीरे वीर की आंखों से ओझल हो गई। वीर वहां से सीधा संध्या के कमरे में जाता है। अपने दबे हुए आंसुओं को दहाड़े मार कर बहाता है ।दीवारों को देखता है ।संध्या के पड़ी चीजों को देखता है । संध्या की लगी तस्वीरों को देखता है ।चिखता है। चिल्लाता है। तभी राहुल वहां आकर उसे संभालता है।उसे कमरे से बाहर लेकर जाता है।
पंडित जी वीर को सांत्वना देते हुए "तुमने अपना फर्ज निभाया है बेटे ।एक बाप की इच्छा पूरी की है ।हम तुम्हारा दर्द समझ सकते है।देखो प्रेम का दूसरा नाम त्याग है ।ये समझना की वो तुम्हारी राधा थी ।भगवान कृष्ण की तरह तुम्हें भी नहीं मिली।
बेटा हो सके तो किसी शहर की तरफ रुख़ कर लो ।यहां रहोगे तो घर काटने को दौड़ेगा। अकेलापन किसी मौत से काम नहीं होता ।आदमी रोज मारता है।.....चलो हम चलते हैं राहुल,वीर का ख्याल रखना।इतना कहकर पंडित जी वीर के सर पर हाथ फेर कर चले जाते हैं।
बाहर गार्डन के बेंच पर चुपचाप वीर और राहुल बैठे हैं।..राहुल खामोशियों को तोड़ते हुए" गुरु जी का कहना सही है ।हमें शहर की तरफ जाना चाहिए ।मैं भी अपने मामा मामी से तंग आ चुका हूं ।और अब तू भी अकेला है। मैं कल ही बात करता हूं ।मेरठ में मेरे मौसी का लड़का है ऑटो चलाता है। चल हम भी एक नयी जिंदगी को जन्म देते हैं । और खुशियां ढूंढने की कोशिश करते हैं
❓ तीन सवाल — Part 7 से
1. क्या सच में किसी की आखिरी इच्छा, दो ज़िंदगियों की खुशी से ज़्यादा जरूरी होती है?
(क्या जमुना प्रसाद की आखिरी ख्वाहिश ने संध्या और वीर का भविष्य छीन लिया?)
2. क्या वीर का प्रेम त्याग उसे महान बनाता है या एक कायर, जो अपने प्यार के लिए नहीं लड़ सका?
3. अगर संध्या अब रोहित की हो चुकी है, तो क्या उसके दिल का वीर के लिए धड़कना अब पाप है?
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