INTERVAL : a man torn between duty and desire

INTERVAL : a man torn between duty and desire
अमर को आज भी दफ्तर में आया हुआ देखकर सभी को आश्चर्य हुआ; कल ही तो विवाह हुआ है इनका.... और आज शाम को भव्य भोज (Grand- reception) भी है सब दफ्तर के लोग वहाँ जाने के लिए आज जल्दी ही घर लॉटना चाहते थे। काम के प्रति अमर कि निष्ठा से सभी परिचित है, पर अपने परिवार के प्रति भी तो बहुत निष्ठावान है वो माना कि बडे बडे नये Project है पर विवाह भी तो नया है । और वो भी प्रेम विवाह, जिसे माता पिता ने बडी धूम धाम मे विधिवत सम्पन कर दिया है। और क्यों न कर देते अमर के पिता राजीव मिश्र और वसुधा के पिता वीरेन्द्र शर्मा आपम में गहरे मित्र हैं, और उनकी पत्नियां शोभा मिश्र और अनुपमा शर्मा भी अंतरंग सहेलियां है; मित्रता सम्बन्ध में बदल गयी इस बात की दोनो परिवारो में अपार प्रसन्नता है। अमर और वसुधा बचपन मे ही साथ साथ खेले और बड़े हुए है। कब वो प्रेम बंधन में बंध गये उन्हे पता भी नहीं चलने पाया किन्तु माता-पिता ने उनके प्रेम का पता चलते ही उन्हें विवाह बंधन में बांध दिया। दोनो ही अपने अपने परिवार की एक मात्र संतान थे। इसी में दोनो परिवारो ने इस विवाह को एक अति-भव्य आयोजन बना दिया था। और आज तो हर सम्बधी परिचित, हरकर्मचारी परिवार इनके यहाँ आमंत्रित था। अनेक आमंत्रित परिवार सुबह से ही उनके यहाँ पहुँचने की तैयारी में जुटे थे, पर जिसके लिए यह सारा आयोजन था। वो आज भी फाइलों में डूबा हुआ था। राजीव मिश्र ने बेटे बहू को हनीमून पर भेजने की पूरी व्यवस्था कर दी थी हर काम से दूर कुछ दिन दोनो बहुत अच्छा समय बितायें। लेकिन अमर हनीमून पर जाने को तैयार नहीं हुआ नही पापा इतना सारा काम छोड़ कर मैं अभी कैसे जा सकता हूँ। “अरे काम संभालने के लिए मैं हूँ दफ्तर के इतने लोग है।" “वो ठीक है पापा पर यह नये Project की जिम्मेदारी आपने मुझे दी है।" अमर किसी भी हालत में इस समय कहीं भी जाने को तैयार नही था। वसुधा भी अमर से सहमत थी। धीरे से उसने अपनी सास से कह दिया “मां, हनीमून पर तो इसलिए जाते है, जिसमे पति-पत्नी एक दूसरे को समझ ले; और हम तो बचपन से ही एक दूसरे को जानते समझते है। रही बात घूमने की, तो वो हम कभी भी चले जायेंगे।" शोभनाजी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ वो जानती थी, वसुधा अन्य आधुनिक लडकियों जैसी नही है; सचमुच इससे अच्छी बहू उन्हे मिल ही नहीं सकती थी। पढ़ी लिखी तो है नृत्य संगीत में भी प्रवीण है। अनेक विदेशी भाषायें जानती है। किन्तु पूरी तरह भारतीय संस्कारो वाली है। अमर अपने नये Projects के कामों में पूरे उत्साह से लगा हुआ था। वसुधा का सहयोग काम करने की शक्ति को और भी बढाता था। उनकी Construction Company देश के कई शहरों में Town-ship बना रही थी। मॅनेजर मित्तल बडे उत्साह मे अमर के कमरे में आये " देखो अमर भूमि पूजन होते ही हमारे Flats की booking शुरू हो गयी है। कितने लोगो की Applications है। अमर ध्यान से सारी Files देख रहा था । मॅनेजर मित्तल आश्चर्य में आ गये जब उन्होंने देखा कि अमर ने शहर के अनेक बडे बडे लोगों की Application मंजूर नहीं की है “यह तुम क्या कर रहे हो अमर ? इस तरह कैसे Business होगा ?' “मित्तल साहब मैं सब सोच समझकर ही काम कर रहा हूँ. मित्तल साहब की समझ में कुछ नहीं आ रहा था, आती लक्ष्मी को ठुकराना कहाँ की समझदारी है। वर्षो से वो यहाँ काम कर रहे है। कोई नौसिखिये तो नहीं है। उन्हे अमर के पिता से बात करनी पडेगी । पुराने मॅनेजर की बात सुनकर राजीव मिश्रा को विश्वास ही नही हुआ “आप यह क्या कह रहे है मित्तल साहब ? अमर ऐसा क्यों करेगा ?" “यही तो मै सोच रहा हूँ, अमर ऐसा क्यों कर रहा है ?" राजीव मिश्र को अमर से बात करना आवश्यक लगा। उन्होंने उसे बुलाकर समझाना चाहा। “अपने देखा नहीं पापा यह मि. पटेल एक साथ सात फ्लॅट लेना चाहते है और यह मि. अग्रवाल करम चन्दानी और कितने ही ऐसे लोग सात-आठ या उसमे भी ज्यादा फ्लॅट खरीदना चाहते है। इन लोगो के पास इस शहर में बड़े बड़े घर है। दूसरे शहरो में भी है। इन्हें रहने के लिए घर नहीं चाहिये पापा मुनाफा कमाने को प्रापर्टी चाहिये।" “हमें इससे क्या अमर ? हमें Booking amount दे रहे है; और समय पर पूरा पैसा दे देंगे मॅनेजर बोले । “हां बेटे हमे उनकी Property मे क्या मतलब है, हमें तो अपना Business देखना है। हमारा तो करोड़ों का फायदा हो रहा है न....” राजीव बोले “पापा आपने इतनी मेहनत से यह Construction Company बनायी है; निर्माण करने के लिए ही न...? “हां अमर और हम वही तो कर रहे है; हमारा काम Construction करना है ।” “जी पापा हमारा काम Construction करना है तो मैं यह destruction कैसे के होने दूँ। मि. पटेल और मि. अग्रवाल जैसे लोग मकान जैसी आवश्यक वस्तु दाम इतने बढा देते है कि वो आम आदमी की पहुच से बाहर हो जाये; अगर किसानो से सारी फसल एक ही आदमी खरीद ले और उसे मन चाहे भाव में लोगो को दे तो क्या होगा...? पापा.... उसके लिए किसीको इजाजत नहीं मिलती बेटे" इसके लिए भी नहीं मिलनी चाहिये पापा... और यह हमें ही सोचना है राजीव मिश्र को लगा बेटा ठीक कह रह है, हमें देश के लिए निर्माण कार्य करना है। निजी लाभ के लिए कोई विध्वंस नहीं। जो बात उनके बेटे ने सोची है। यह तो उन्हे सोचनी चाहिये थी आज से वर्षों पहले... "मित्तल साहब, अमर ठीक कह रहा है, अब से हमारी Company सिर्फ उन्हीं लोगो को फ्लॅट बेचेगी जिन्हे रहने के लिए घर चाहिये" “लेकिन इसमें कितना नुकसान होगा" “नहीं मित्तल साहब नुकसान तो हम आज तक करते आये है, सेकडो हजारो लोगो का......पर अब ऐसा नहीं होगा...' वसुधा को गर्व हो रहा था। अपने पति पर, सच कितनी भाग्यवान है वो इतना अच्छा परिवार, पति जो नित्य ही कर्तव्य और निष्ठा के नये आयाम स्थापित करता था वो निष्ठावान था परिवार के प्रति समाज और देश के प्रति...६ वर्ष का समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला वसुधा दो प्यारे बच्चों की मां बन गयी... वैशाली और मनोज “चलो इस बार नये वर्ष पर कहीं घूमने चलेंगे।” अमर ने दफ्तर से लौटकर चाय पीते हुए कहा, वसुधा को आश्चर्य हुआ और प्रसन्नता भी.... “मैने काम की ऐसी व्यवस्था कर दी है कि आठ-दस दिन के लिए हम बाहर चल सकते है।" वसुधा चाहती थी कि मां और पापा भी साथ चले पर वो लोग तैयार नही हुए यहाँ कौन संभालेगा” वैशाली और मनोज को पहली बार पापा के साथ इतना समय बिताने का अवतर मिला था उनके उत्साह का ठिकाना नहीं था; सुन्दर सुन्दर जगहें देखते खाते पीते घूमते सुबह से कब रात हो जाती पता ही न चलता.... वापस लॉटने का दिन भी आ गया... वसुधा ने सबके लिए ढ़ेरो उपहार खरीद लिए थे... हर जगह की विशेष वस्तुएं लेना भी नहीं भूली थी... और अमर ने परिवार के साथ बिताये जाने वालेहर क्षण को कॅमरे में कैद कर लिया था।. सब हंसी खुशी घर की ओर लौट रहे थे। इस जगह काफी ढलान थी। ड्राइवर बहुत सावधानी से गाडी चला रहा था। अचानक एक गाय सामने आगयी घबराकर ड्राइवर ने ब्रेक लगाया... पर फिर भी गाय से टकरा कर गाडी ढलान पर फिसलती हुई उलट गयी... आगे पीछे मे आते हुए सारे वाहन रुक गये। उन लोगो को अस्पताल पहुचाया गया। वसुधा, बच्चे, ड्राइवर सभी घायल हो गये थे; किन्तु सबसे गंभीर चोटे लगी थी अमर को....उसके सर में सबसे अधिक चोट लगी थी। एक माह बीत गया था। पर अमर को होश नहीं आ रहा था। सारा परिवार चिन्तित था, बड़े से बड़े डॉक्टरों के प्रयास असफल हो रहे थे, अमर को ऐसी गंभीर चोट आयी थी जिसका उपचार संभव नहीं था। राजीव मिश्र और वीरेंद्र शर्मा देश के नामी डॉक्टरो से सम्पर्क कर रहे थे.. अमर को ठिक होना ही है चाहे कुछ भी करना पडे.... वरिष्ठ सर्जन डॉक्टर गौतम ने अमर की जांच की सारी रिपोर्टस देखी और बोले “इन्हें बहुत ही गंभीर चोट आयी है... इसका कोई भी इलाज नहीं है।" “ऐसे मत कहिये डॉक्टर साहेब, आप तो इतने बड़े डॉक्टर है कोई तो उपाय होगा" राजीव मिश्र बोले “मैं क्या कहूँ मि. मिश्रा..." I “क्या कोई उम्मीद नहीं...? वीरेन्द्र शर्मा दुखी स्वर में बोले । डॉक्टर गौतम कुछ सोचने लगे फिर बोले "एक छोटी उम्मीद है।” “जल्दी बताइये डॉक्टर साहब...." राजीव और वीरेन्द्र एक साथ बोले... “France के एक डॉक्टर ऐसी Injury (चोट) के लिए Research (रिसर्च) कर रहे है। यदि उनकी रिसर्च पूरी हो जाये, तो इनका इलाज संभव हैं। आशा की यह छोटी सी किरण भी उन लोगों के लिये किसी सूर्य के समान ही थी तुरन्तु ही France सम्पर्क किया गया। डॉक्टर रिचर्ड ने पूरी बात सुनी सहयोग का आश्वासन दिया। वो पूरी कोशिश करेंगे। अमर को Ventilator पर रखा हुआ था। उसकी और अधिक देखभाल आरम्भ हो गयी। वसुधा और पूरा परिवार रोज आता बाहर से अमर को देखता। वसुधा घंटो बैठी रहती... समय बीत रहा था हफ्ते, महीने, साल, वसुधा रोज अमर की पसन्द के फूल लेकर आती और बैठी रहती... बच्चे बडे हो रहे थे, संसार के सारे काम चल रहे थे किन्तु वसुधा का ध्यान कहीं नहीं था। वो अमर के कमरे के बाहर बैठी हुई शीशे में से अमर को देखती रहती... कभी शोभना आकर बहू को समझाती, कभी अनुपमा आकर बेटी का ध्यान बंटाने की चेष्टा करती, किन्तु उसका ध्यान कहीं और था ही नहीं... बाईस वर्ष का लम्बा समय बीत गया, वैशाली और मनोज जवान हो गये। वसुधा के बालो में सफेदी आ गयी किन्तु वो उसी तरह हाथों में फूल लिये अमर के होश में आने की प्रतीक्षा कर रही थी। एक दिन समाचार मिला कि इस Injury (चोट) का इलाज निकल आया है, रिसर्च पूरी हुई है। किन्तु Doctor Richard नहीं रहे, उनकी बेटी Samantha ने यह काम पूरा किया है। Samantha को बुलाया गया..और वो शीघ्र ही आ गयी...लम्बा समय बीत गया है, इलाज में समय लगेगा... और काम भी बहुत कठिन है, पर Samantha प्रयास करेगी... सचमुच ही Samantha ने कोई कसर नहीं उठा रखी। दिन रात एक कर दिया।अमर को होश आने लगा था। लेकिन अभी बहुत सावधानी की आवश्यकता थी अमर के मस्तिष्क पर कोई जोर नहीं पडना चाहिये। अनजाने में Samantha अमर की ओर आकृष्ट हो रही थी। और शायद अमर भी उसे पसन्द करने लगा था। अचानक एक दिन अमर ने पूछा "वसुधा कहाँ है ?" वसुधा को अमर के सामने कैसे लाया जा सकता था, क्योंकी वसुधा के ऊपर से बाइस वर्ष का समय गुजर चुका था। और अमर अभी तक बाईस वर्ष पहले का ही अमर था जो इस मानसिक स्थिति में नही था कि उसे सच बता दिया जाये; उससे कैसे कहा जा सकता था कि इतने वर्षो से वो एक निर्जीव वस्तु सा ही पलंग पर लेटा हुआ था। अमर की स्थिती में सुधार हो रहा था, और साथ ही Samantha का उसके प्रति आकर्षण भी बढ रहा था; अमर को भी वो अच्छी लगने लगी थी। अमर ठीक हो गया था, वसुधा की बाईस वर्षों की तपस्या का फल मिल गया था, किन्तु इस विचित्र स्थिती की तो किसीने कल्पना भी नहीं की थी... अमर पूरी तरह ठीक हो गया था, वो घर आ गया था, अपने परिवार के बीच किन्तु अब उसके और उसके सारे परिवार के बीच समय की लम्बी दूरी बन चुकी थी उसके और वसुधा के बीच बाईस वर्षों का अंतराल आ गया था। परिवार से बहुत प्रेम था अमर को और वसुधा के लिए अत्याधिक प्रेम और आदर भी, किन्तु वो सहज सामान्य नहीं हो पा रहा था... Samantha भी उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गयी थी। उसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है वो। Samantha भी धर्म संकट में थी, वो अमर से अत्यधिक प्रेम करने लगी थी, किन्तु वो वसुधा के दुख का कारण भी तो नहीं बन सकती थी, वसुधा जो बाईस वर्षो तक इस कमरे के बाहर बैठ कर अपने पति के होश में आने की प्रतीक्षा करती रही है। नहीं Samantha ने निश्चय कर लिया था। वो वापस जायेगी.. वो वापस जाने की तैयारी कर रही थी। अचानक वसुधा को कमरे में आया हुआ देख कर चौक गई..... आप यहाँ ?” “क्यों मैं तुमसे मिलने नहीं आ सकती ?" 'क्यों नहीं.. बल्कि मैं तो खुद आपसे मिलने आने वाली थी, जाने से पहले सबसे मिलकर जाना चाहती थी " जानेसे पहले ? कहाँ जा रही हो तुम ?” वापस अपने देश...” हम सबको छोडकर...? अमर को छोड़कर....? Samantha कुछ बोल नहीं सकी... तुम कहीं नही जाओगी... मैं जानती हूँ तुम अमर से प्रेम करती हो और वो भी तुमसे उतना ही प्रेम करते हैं। पर वो आपके पति है। उनके ऊपर केवल आपका अधिकार है...आप उनकी जीवन संगिनी है......" तुमने उन्हे नया जीवन दिया है Samantha उनके ऊपर तुम्हारा अधिकार मुझसे कहीं अधिक है, मैं तुम्हें कही नहीं जाने दूँगी...' वुसधा ने बार बार आग्रह कर Samantha को रोक लिया था। अमर को आश्चर्य हो रहा था, वसुधा के प्रति उसका आदर भाव और भी बढ़ गया था। शोभनाजी और अनुपमा दोनो ही वसुधा के निर्णय पर आश्चर्य चकित थीं...शोभनाजी ने उसे समझाना चाहा "यह तुम क्या कर ही हो वसुधा ? अपने पति को एक परायी स्त्री को सौपना चाहती हो ? उस पति को जिसके वापस आने की बाईस वर्षों से प्रतीक्षा कर ही थीं। "मां, हमारे देश की स्त्रियां तो अपने उस पति की प्रतीक्षा में भी सारा जीवन बिता देती हैं। जिसके बारे में वो जानती है कि कभी वापस नहीं आयेगा... फिर अमर तो जीते जागते मेरे सामने हैं; मैं उन्हें हर तरह से प्रसन्न देखना चाहती हॅू मां..." वसुधा की बात का किसीके पास कोई उत्तर नहीं था, विरोध करने का साहस भी नहीं था; Samantha उस परिवार का हिस्सा बन गयी। वसुधा ने अपने हाथों से अत्यधिक आदर से देखती हुई Samantha का श्रृंगार किया... वसुधा की ओर Samantha सोच रही थी... धन्य है भारत की नारी... जो कुछ वसुधा ने किया, कर रही है, ऐसा भारत में ही हो सकता है...