BATASO

रात के बारह बज रहे थे और थकी हारी बतासो नींद में ऊघती हुई बैठी तारों मे मोती पिरो रही थी सुबह तक पचास मालाये तैयार न हुई तो मालकिन धज्जियाँ उडा देगी ।
क्या करे बतासो ? उसके कामों का तो कभी अंत ही नहीं होता, उस पर भी घर में कोई खुश नहीं, न मालिक न मालकिन न बच्चे क्या जिन्दगी है बतासो की जबसे उसने होश संभाला है अपने मालिक हरीराम और उनकी पत्नी की घुडकियाँ खा रही है, मार भी खायी है, बच्चे कुछ बडे हुए तो वह भी लपरने लगे है। सुबह से शाम तक बस काम ही काम, न कभी अच्छा खाना न कपडा न आराम !
अब यह मालाये गूंथने का काम भी उसके ऊपर लाद दिया गया, वो जानती है मालिक इन्हें दुकान में सजाकर ग्राहकों से मनमाना दाम वसूल करते है लेकिन इन्हें बनाने के लिए किसी को क्यों रखे। जब एक बिना पैसे की नौकरानी घर में मौजूद है।बतासो को आज तक इस घर से कभी कोई पैसा नही मिला। उसने सुनाहै कि उसके माता-पिता भी उस घर में ऐसे ही काम करते थे, और वो भी यहां खटते खटते बच्ची से जवान हो गयी है।
जब वह छोटी थी तो जानती ही नहीं थी कि रामघाट के पिछवाडे बने हुए हरीराम के इस घर के बाहर भी कोई दुनिया है। कुछ बडी हुई तो कभी दुकान पर कोई सामान पहुँचाने जाने लगी। वहाँ आने वाले तीर्थयात्री हरीराम की दुकान से कुछ न कुछ खरीदते। यह सबसे बडी दुकान जो थी। दूर-दूर से आने वाले यात्री, इस चित्रकूट धाम में यहाँ वहाँ घूमते थे। मन्दिरो में दर्शन करते थे दुकानों से सामान खरीदते थे।
यह सब बतासो के लिए कौतूहल का विषय था। क्यों की उसने तो रामघाट से लेकर जानकी कुण्ड तक की ही दुनिया देखी थी। कुछ साधू-संत और अपने ही जैसे बेसहारा लोगों की दुनिया । दिन रात्र इधर-उधर घूमते हुए बन्दर देखे थे जिनकी स्थिती उसके जैसे इंसानो से कही अच्छी थी, जिन्हें न हरीराम का डर था। न ददुआजी का।
ददुआजी तो राजा थे यहाँ के, उन्हीं की छत्रछाया में तो हरीराम जैसे अनेक लोग मनमाने ढंग से गरीबों का शोषण करते थे | अपनी पीठ पर पडने वाली ठोकर से बतासो तिलमिला गयी।
“सो रही है हरामखोर, मैंने कहा नहीं था पूरी पच्चास माला तैयार करके ही सोना ।
हडबडा कर बतासो उठ गयी, आँख उठाकर देखा तो मालिक अंगारे जैसी आंखे लिए उसे घूरता हुआ वहाँ खड़ा था। हरीराम लगातार बतासो की ओर घूर रहा था उसकी आँखो में अब क्रोध नहीं पाशबिकता उभर रहीं थी, बतासो सहम गयी और अपना आँचल ठीक करने लगी।
हरीराम फुर्ती से उस पर झपटा बतासो अपने को बचाने का असफल प्रयास करने लगी। खैर हुई कि उसी समय मालकिन के कमरे का दरवाजा खुलने की आवाज आयी और हरीराम वहाँ से भाग गया। नहीं तो.... सोच सोच कर बतासो की आत्मा तक काँप उठती। अगले दिन जब बतासो कपड़े धोने के लिए घाट गयी तो उसने अपनी सहेली फूलमती को डरते डरते सब कुछ बता दिया।
फूलमती, बतासो की हम उम्र थी उसकी ही तरह अनपढ़ और मजदूरी
करती थी। अन्तर बस इतना था कि फूलमती किसीकी बॅधुआ नही थी जहाँ काम मिलता करती और अपनी झोपडी मे आकर सो जाती। उसने बतासो से अधिक दुनियां देख ली थी इसीसे उसमें बुद्धि भी अधिक थी।
उसने बतासो की बात ध्यान से सुनी और चिन्तित स्वर में बोली “कल तो तू बच गयी बतासो पर एक बार जब उस जालिम की नजर तुझ पर पड़ गयी है तो वो तुझे छोड़ेगा नहीं।"
“मैं क्या करूँ फूलो कुछ समझ में नही आ रहा है।"
“मेरी भी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाये।"
“फूलो क्या यह नहीं हो सकता कि मै तेरे साथ रहने लगूँ, मैं भी तेरे साथ मजूरी कर लिया करूंगी।
तू बहुत भोली है बतासो, यह काम क्या इतना असान है। मेरी झोपड़ी तो क्या वो तुम्हे कहीं से भी खोज निकालेगा।
“खोज निकालेगा ?
और क्या तेरी जैसी जवान और सुन्दर मुफ्त की नौकरानी वो कभी हाथ से जाने देगा
“बता फूलो मैं क्या करूँ ऐसी जिन्दगी से तो मौत अच्छी है।" बतासो फूट-फूट कर रोने लगी।
अचानक फूलमती के मस्तिषक में एक विचार कोँध गया " तू ठीक कह रही है बतासो ऐसी जिन्दगी से तो मौत भली, इस मुसीबत से तू मर कर ही उबर सकती है, तुम्हे मरना होगा बतासो”
फूलमती ने बतासो को अच्छी तरह अपनी योजना समझा दी बतासो अपने कपडे किनारे रखकर तेजी से पानी में कूद गयी। कुछ देर बाद फूलमती ने जोर जोर से चिल्लाना आरम्भ कर दिया।
“हाय राम बतासो डूब गयी। बतासो पानी में डूब गयी हाय राम… बात हरीराम तक पहुची, दिखाने के लिए उसने और उसकी पत्नी ने दुख भी प्रकट किया वैसे दुख तो उन्हें था पर बतासो के मरने का नहीं बल्कि
इस बात का कि ऐसी मुफ्त की नौकरानी अब कहाँ मिलेगी ? बस में बैठी हुई बतासो ने चैन की सास ली वह काफी दूर निकल आयी थी, हरीराम और ददुआजी के आतंक की हदो से बाहर फूलमती ने सचमुच ही बड़ी अक्लमंदी की योजना बनायी थी। बस का ड्राइवर जग्गू फूलमती की जान पहचान का था इसलिए कोई डर भी नहीं था।
जग्गू ने ही फिर उसे बम्बई की गाड़ी में बिठाया वहाँ रहने वाले अपने चाचा का पता भी दिया। बतासो को अधिक भटकना नहीं पडा जग्गू के चाचा का घर स्टेशन के पास ही था घर क्या था एक छोटी सी झोपड़ी थीं उसमे चाचा चाची और उनकी दो बेटिया रहती थीं चाची घरो में काम करती थी और चाचा मूँगफली का ठेला लगाते थे लड़कियां छोटी ही थीं, तेरह साल की रत्ना और पन्द्रह की लक्ष्मी.
शुरु शुरु में बतासो को बड़ा अजीब लगता था। नया शहर अनजाने लोग और हर चीज की तंगी, रहने की जगह की तंगी पानी की परेशानी । लेकिन कुछ भी हो यहाँ वो गुलामी की जिन्दगी तो नहीं थी, अनजाने लोगो ने अपनापन तो दिया था । बतासो को शीघ्र ही काम मिल गया मेहनती तो वो थी ही; उसका मालायें गूंथने का हुनर यहाँ बहुत काम आ गया वो शीघ्र ही वेणियाँ बनाना भी सीख गयी। पहले एक फूलो की दुकान में नौकरी की फिर वेणियाँ बना डलिया में डाल स्वयं ही समुद्र तटो पर बेचने लगी। मोतियो की रंग बिरंगी मालाये भी बनाती जो यहाँ अच्छे दामो पर बिकती रत्ना और लक्ष्मी भी बतासो के साथ माला बनाना सीख गयी थी।
इस महानगर में आकर बतासो भी बहुत कुछ सीख गयी थी। अब वो पहले जैसी गंवार और डरपोक लड़की नहीं रही थी, उसने रहने के लिए अलग घर भी ले लिया था। लेकिन चाचा चाची और रत्ना लक्ष्मी से वो दूर नहीं हुई थीं। आखिर उनके ही सहारे तो वो इस शहर में बस सकी थी बतासो अब खुश रहती थी, खूब मेहनत करती खूब कमाती, उसमे एक अनोखा आत्मविश्वास भी आ गया था।
लेकिन एक बात थी जो रह रह कर उसे कचोटती थी, उसे उस धरती के लिए जीते जी मर जाना पड़ा था, जहा उसने जन्म लिया, वो चाहकर भी वहाँ नहीं जा सकती, न रामघाट को देख सकती थी न फूलमती को।
बतासो ने अपनी एक दुकान भी खोल ली, रंग बिरंगी मालायो से लेकर कांच की चूड़िया तक उसकी दुकान में बिकने लगी। धीरे धीरे स्त्रियो के श्रृंगार की सारी सामग्री उसकी दुकान में मिलने लगी।
रत्ना, लक्ष्मी और बतासो बारी बारी से दुकान में बैठती, आमदनी दिन पर दिन बढ़ने लगी, बतासो ने आग्रह कर के चाची का घरो में काम करना भी छुड़वा दिया था । जग्गू कभी कभी वहाँ आता था और उसीसे फूलमती का समाचार भी मिल जाता था ।
फूलमती ने शादी कर और वो एक बच्चे की मां भी बन गयी थी। बतासो की बहुत इच्छा होती एक बार वहाँ जाने की फूलमती के बच्चे को देखने की, लेकिन वो क्या करती, वहाँ वालों के लिए तो वो मर चुकी थी।
आज सुबह से बारिश की झड़ी लगी हुई थी, बम्बई की बरसात यूँ भी एक बार शुरु हो जाये तो रुकने का नाम नही लेती । दुकान में बतासो अकेली ही थी आज ग्राहक भी इक्का-दुक्का ही आ रहे थे। अचानक दुकान के सामने एक टॅक्सी आकर रुकी
और दो बदमाश से दिखायी पड़ने वाले आदमी उसमें से उतरे । बतासो ने देखा एक आदमी टॅक्सी के दरवाजे पर ही खड़ा हो गया और दुसरा दुकान की और बढ़ने लगा।
वो आदमी सामान देख रहा था और बतासो बाहर खड़ी हुई टॅक्सी की तरफ देख रही थी। अन्दर एक लड़की डरी हुई सी बैठी थी। दूर से भी बतासो को उसका चेहरा कुछ पहचाना हुआ सा लग रहा था, उसे कुछ सन्देह भी हो रहा था। यह लडकी टॅक्सी में ही क्यों बैठी है ? सामान खरीदने खुद अन्दर क्यों नही आयी ?
“आप लोग इतनी बारिश में आये है कुछ चाय वाय मंगवाऊ ? बतासो ने व्यवहार कुशलता दिखायी । “चाय यहाँ मिल जायेगी ? वो आदमी इधर उधर देखता हुआ बोला। “जरुर मिल जायेगी कह कर बतासो ने पास की दुकान के नौकर को बुलाकर चाय लाने का आदेश दे दिया।"
“अपने दोस्त को भी अन्दर बुला लीजिए साहब, वो टॅक्सी के बाहर पास खडे भीग रहे है।" बतासो ने गौर किया वो आदमी कुछ सोच में पड़ गया
फिर बोला "नहीं वो वहीं ठीक है "
अब तो, बतासो को विश्वास आ गया जरुर कुछ गड़बड़ है। चाय आयी तो टॅक्सी में बैठी लडकी के लिए बतासो स्वयं ही चाय लेकर पहुँची। पास से उसे देखते ही बतासो चौंक पड़ी, यह तो हरीराम की बेटी मीता थी। बारह वर्ष की थी जब बतासो ने उसे देखा था, अब तो जवान हो गयी है,सात वर्षों का लम्बा समय भी तो गुजर गया है।
मीता की आखो में आंसू और चेहरे पर घबराहट देख कर बतासो को पूरा विश्वास हो गया कि यह अवश्य किसी मुसीबत में फंसी हुई है।
मीता ने बतासो को नही पहचाना था, एक तो वो घबराई हुई बहुत थी दूसरे वहाँ तो सब यही जानते थे कि बतासो मर चुकी है। बतासो दुकान में वापस आ गयी उसकी समझ में नहीं आ रहा था । क्या करे अचानक एक विचार तेजी से उसके मस्तिष्क में कौंधा।
“साहब जरा यह पेटियां उठवा कर ऊपर रखवा देंगे। बतासो ने उस आदमी से कहा। लेकिन अकेले पेटियां नहीं उठ सकती थीं। “साहब बाहर से आपके साथी को भी बुला लूँ? यह पेटियां ऊपर रखना बहुत जरुरी है, दुाकन में पानी भर गया तो सारा सामान खराब हो जायेगा"
उस आदमी के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही बतासो ने बाहर खड़े व्यक्ति को अन्दर बुला लिया। ज्योंही वह लोग पेटियां उठाने में व्यस्त हुए, बतासो ने बाहर जाकर शटर गिरा कर ताला बन्द कर दिया।
बतासो की हिम्मत और सूझबूझ की मदद से दोनो बदमाश पकड़ लिये गये आस पास के लोगो की मदद से शीघ्र ही उसने पुलिस बुलवा ली।
मीता को वह अपने घर ले गयी। मीता ने अब उसे पहचान लिया था, रो रो कर उसने सारी आप बीती सुना दी। ददुआजी का बेटा बिशन उसे उठवाकर बम्बई ले आया था, यहाँ 15 दिन अपने साथ होटल में रखा, खूब मनमानी की, फिर इन बदमाशों के हवाले कर दिया, जो उसे बेचने वाले थे। तुम न मिल जाती तो न जाने मेरा क्या होता?" मीता बार बार रोते हुए कह रही थी।
उन दोनो बदमाशों के बयान पर बिशन भी पकड़ लिया गया। हरीराम और उसकी पत्नी भी वहाँ आ गये थे, दोनो ही बतासो से आंख मिलाने का साहस नहीं कर पा रहे थे। बतासो हवालात में जाकर बिशन से मिली और कहा कि यदि तुम मीता से शादी करने को तैयार हो जाओ तो तुम्हे बचाने की कोशिश की जा सकती है।
बिशन तो इस समय कुछ भी करने को तैयार था। बिशन और मीता का विवाह हो गया।
जिस बेटी को अब जीवन में कभी भी देख पाने की उम्मीद छूट गयी थी। उसीको दुल्हन बनी देखा। हरीराम की खुशी का ठिकाना नहीं रहा उसने बतासो के पैर पकड़ लिए।
“बहन तेरे कारण ही मेरी बेटी का उद्धार हुआ है। और मैंने तेरा सर्वनाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, मुझे क्षमा कर दे।”
"उठो भैय्या गलती किससे नहीं होती, लेकिन अब इस बात का ध्यान रखना कि वहाँ हर बहू बेटी की इज्जत सुरक्षित रहे, और किसीको जीते जी मरना न पडे।”
कहते हुऐ बतासो की आंखो से आंसू बहने लगे।
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