AAKASH KI OR
‘‘दीपा, तुम्हारी भाभी अभी तक तैयार नहीं हुई?" चाय लेकर कमरे में आयी दीपा से, सुजीत ने ऊँचे स्वर में पूछा. "तैयार हो रहीं हैं" दीपा ने कुछ व्यंगात्मक स्वर में कहा.
"ओफ्फ़ोह, मैंने इसीलिए दोपहर में ही फ़ोन कर दिया था, साहब के यहाँ सब कुछ ठीक वक़्त पर शुरू हो जाता है."
दीपा ने चाय बनाकर प्याला सुजीत के हाथो में दिया और शिकायत के स्वर में बोली ‘‘अब क्या किया जाये, भैया? भाभी तो अपने समय से ही तैयार होंगी न?"
दीपा के इन शब्दों ने सुजीत के क्रोध की आग मे घी का काम किया.
"दीपा, कहीं मनु अपना टुनटुना लेकर तो नहीं बॅठ गयीं?" 'टुन टुना' याने मनु का सितार, सुजीत उसके सितार के लिए, यही शब्द प्रयोग करता था. सुजीत चाय ख़त्म भी नहीं कर पाया था कि मनु चाय लेकर बाहर आ गयी, सुजीत ने एक आलोचना पूर्ण दृष्टि उस पर डाली, और झल्लाकर बोला, "यह क्या हुलिया बनाया है, बनारसी साड़ी इतने सारे गहने; रहोगी पूरी गंवार ही चाहे जितनी ऊँची सोसायटी में पहुँच जाओ."
रास्ते भर सुजीत मनु के गंवार पन पर भाषण देता रहा,
"कहने को एम. ए. पास हो लेकिन जरा भी सलीका नहीं है, जरा मैडम को देखो बातचीत उठना, बैठना, तैयार होना, सब कुछ शानदार है.' मनु के लिए अब यह कोई नयी बात नहीं रह गयी थी, सुजीत हर समय मैडम की तारीफें करता और उसे गंवार साबित करता रहता था.
अपनी शादी की पार्टी में मनु का पहला परिचय हुआ था. इन अंग्रेज़ी लहजे में हिन्दी बोलनेवाली मैडम से.
‘‘मनु इनसे मिलो यह मेरे बॉस मि. अमर की वाइफ़ मल्लिकाजी हैं सुजीत मनु को उनके निकट ले जाकर बोला था. मनु ने शिष्टता से हाथ जोड़ दिये. शिफॉन की साड़ी और बित्ता मर का ब्लाउज़ पहने मल्लिकाजी
मनु की ओर देखकर हल्के से मुस्कराई थी; कुछ इस तरह जैसे मुस्करा कर वो मनु ओर सब लोगों पर एहसान कर रहीं हों. वो बार बार अपनी साड़ी संभाल रही थीं, और पूरे वक़्त सावधान थीं कि कहीं उनका मेकअप न खराब हो जाये.
‘‘अरे मैडम, आपने कोई कोल्डड्रिंक नहीं लिया?'' बेयरे के हाथों में पकड़ी हुई ट्रे में से उठाकर एक गिलास सुजीत ने अदब से उनके हाथों में थमाया था. उस समय मनु ने उनपर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वो अपनी नयी नयी शादी और नये घर के उल्लास में पूरी तरह डूबी हुई थी.
जब एम. ए. करते ही मनु की शादी सुजीत से तय हो गयी तो मनु के मन में खुशी की एक लहर सी दौड़ गयी थी. मध्यवर्गीय परिवार की बेटी को खाता कमाता अफ़सर पति मिल रहा था. मनु के पिता वीरेन्द्र त्रिपाठी का ठिकाना नहीं था वो स्वंय एक सरकारी दफ़्तर में कर्मठ ईमानदार बड़े बाबू ही तो थे. छोटी सी तनख्वाह में तीन बच्चों को उन्होंने ऊँची शिक्षा दिलायी थी. मनु उसका छोटा भाई अनुज तथा वीरेन्द्रजी के चचेरे भाई की बेटी वसुन्धरा, जिसने बचपन में ही अपने मां-बाप को खो दिया था, और जो इसी घर में पली बढ़ी थी, अनाथ वसुन्धरा को कभी यह महसूस ही नहीं हेने दिया गया था कि वो इस घर की बड़ी बेटी नहीं है.
गांव में खेती बारी भी थी, जिसे मनु के दादाजी संभालते थे. दादा- दादी अक़्सर ही शहर आते और साथ लाते बोरो में भर भर कर अनाज, सब्जी घी. शहद, और भी न जाने क्या क्या... घर में कभी किसी चीज़ का अभाव नहीं रहता था. सबसे बढ़कर था इस घर में आपसी प्रेम सद्भाव, ऊँची शिक्षा ऊँचे संस्कार.
मनु की शादी से पन्द्रह दिन पहले ही वसुन्धरा दीदी अपनी ससुराल से आ गयीं थीं. उनकी शादी को भी तो साल भर ही हुआ था. वो पूरे उत्साह से ब्याह के कामो में जुट गयीं थी, यह जानकर कि सुजीत के घर में उसकी छोटी बहन दीपा और एक विधवा बुआ के अतिरिक्त कोई नहीं है, वो कुछ चिन्तित हुई थीं.
वसुन्धरा दीदी स्वयं जहाँ बहू बनकर गयीं थीं, वहाँ बड़ा सा संयुक्त परिवार था, सास, ससुर एक ननद, दो देवर, जेठ जेठानी, उनके बच्चे, घर में रौनक ही रौनक थी,
इसीसे वो सोचतीं थीं कि हमेशा भरे पुरे घर में रही मनु को वहाँ कैसा लगेगा? लेकिन मनु ने सोच लिया था, उस छोटे से परिवार में वो इतना प्यार दुलार बिखेरेगी कि उसका संसार हर समय खुशियों से भरा रहेगा, उसने यही किया भी था, बुआजी को सास जैसा आदर सम्मान दिया, दीपा को छोटी बहन ही समझा, और सुजीत वो तो उसका सर्वस्व था, उसकी हर सुख सुविधा का ध्यान रखना मनु का पहला कर्तव्य था, जिसे निभने मे वो कोई कमी नहीं होने देना चाहती थी.
लेकिन सुजीत को तो उसमे कमी ही कमी नज़र आती, वो अपने को भरसक बदलने का प्रयास करती लेकिन व्यर्थ.... सुजीत को पसन्द नहीं था, इसीलिए उसने सितार बजाना भी लगभग छोड़ दिया था. मि.. अमर के यहाँ पार्टी समय से ही शुरू हो गयी थी, और सुजीत भी समय से ही पहुँच गया था. वहाँ पहुँचते ही उसकी सारी झुंझलाहट ग़ायब हो गयी और वो किसी आज्ञाकारी सेवक की ही तरह मल्लिकाजी के आगे पीछे घूमने लगा.
‘‘क्या पार्टी दी है मैडम आपने, क्या सजावट है,
आपका जबाब नहीं, और आपकी साड़ी क्या डिज़ाइन है, और लगता है जैसे ख़ास तौर पर आपके ही लिए बनाया गया है... वाह क्या बात है"
एक कोने में सिमट कर खड़ी हुई मनु पर सुजीत की नज़र कभी भुले से पड़ जाती, तो वो उपेक्षा से यूँ आंखे फेर लेता, जैसे यह पत्नी नाम की चीज़ जो उसे औपचारिकता वश यहाँ लानी पड़ी है, अपने गंवार पन से उसकी प्रतिष्ठा मे धब्बा लगा रही है.
मि. अमर ने कई बार आकर मनु से कुछ खा पी लेने का आग्रह किया, वहाँ उपस्थित लोगों से उसका परिचय भी कराया, मनु को थोड़ी सी राहत मिली...
जैसे तैसे पार्टी ख़त्म हुई और वो लोग, घर के लिए रवाना हुए; रास्ते भर सुजीत ने कोई बात नहीं की, आज मनु ने भी मौन तोड़ने का कोई प्रयास नहीं किया. अपने डेढ़ साल के विवाहित जीवन में आयी हुई कड़वाहट से अब मनु को लगने लगा था कि इस आदमी से गठबन्धन होते समय उसने विवाहित जीवन के जो सपने देखे थे, वो शायद कभी पूरे नहीं होंगे.
मनु के मन का सारा उत्साह समाप्त हो गया था, वो एक मशीनी ढंग से घर के काम निपटाती, कहीं बाहर जाने की मजबूरी होती तो एक कठपुतली की तरह तैयार होकर सुजीत के साथ गाड़ी में जा बैठती, अपने गंवार पन पर दिये जाने वाले ताने सुनती, उन पर ध्यान न देने की पूरी कोशिश करती, पर मैडम के साथ बार बार तुलना किये जाने पर वो तिलमिला उठती.
और उस दिन तो हद हो गयी, जब दफ़्तर से लौटकर सुजीत उसे ज़िद करके मैडम के यहाँ ले गया उसके मायके से आये हुए आम जो मैडम के यहाँ पहुँचाने थे.
मि.अमर घर पर नहीं थे, आमों की टोकरी मैडम के सामने रख सुजीत खीसें निकालकर बोला... " मैडम, यह आम मेरी ससुराल से आये हैं, सबसे पहले आपके लिए ही लेकर आया हूँ....
‘‘थॅक्यू’’ अपने पैरों के नाखूनो पर नेल पॉलिश लगाती हुई मैडम ने बड़ी नज़ाकत से जवाब दिया.
बड़ी देर तक सुजीत उनके कॅक्टस और कुत्तों के बारे में बात करता रहा... वो भी नाप तौलकर जवाब देती रहीं,
अचानक सुजीत, बोल उठा " मैडम मैं दफ़्तर से आते ही सीधा यहाँ आ
गया, चाय भी नहीं पी, अब जब चाय की तलब लगी तो याद आया..'
‘“सॉरी सुजीत, आज घर में कोई नौकर नहीं है, नहीं तो जरुर चाय पिला देती तुम्हें....
मनु मानो आसमान से गिर पड़ी, यह आदमी, जिस औरत की खुशामद में जमीन आसमान एक किये रहता है, उसके घर में मांगने पर भी चाय नहीं मिली इसे. लेकिन अधिक आश्चर्य मनु को तब हुआ, जब गाड़ी मे बैठते ही सुजीत ने बोलना शुरू कर दिया. "देखा मैडम कितनी फ्रँक हैं, एक तुम हो, घर में कोई भी आये बस पीछे पड़ जाती हो, 'यह खा लीजिये' 'वो पीं लीजिये. और मैडम को देखो, इसे कहते है पर्सनॅलिटी'
वसुन्धरा दीदी का फ़ोन आया कि उनके रिश्ते के देवर अर्जुन का इस शहर में ट्रांसफ़र हा गया हैं, जब मनु वहाँ है तो चिन्ता की कोई बात ही नहीं है
मनु ने पूरी तरह वसुन्धरा दीदी को आश्वस्त किया वो पूरा ध्यान रखेगी अर्जुन का.
अर्जुन के बारे में मनु वसुन्धरा दीदी से बहुत कुछ सुन चुकी थी, 'वो बहुत अच्छा लड़का है मनु, कहने को तेरे जीजाजी के रिश्ते का भाई है, मगर सगो से बढ़कर मान देता है उन्हें; और मुझे तो भाभी, भाभी कहते थकता नहीं है, घर में रौनक आ जाती है उसके आने से. अर्जुन के आने से मनु के यहाँ भी रौनक आ गयी थी,
इसी बिल्डिंग में ऊपर वाला फ्लॅट उसे मिल गया, किसी प्राइवेट कम्पनी में ऊँची नौकरी थी उसकी, कम्पनी की तरफ़ से सारी सुविधाये मिलीं थीं उसे, एक नौकर भी रख लिया था उसने, लेकिन नौकर ठीक से खाना बना नहीं पाता था, इसीसे मनु अक्सर उसे अपने यहाँ खाने पर बुला लेती, या उसका खाना ऊपर ही भेज देती थी, कभी कुछ विशेष बनाती तो,
बड़े उन्मुक्त स्वभाव का हंसमुख इंसान या 'अर्जुन' अकेला था, इसीसे अक़्सर आकर मनु के यहाँ बॅठ जाता था, कभी साहित्य की बातें करता कभी संगीत की.
मनु को बड़ा अजीब लगता जब किसी भी बात को घुमाफिरा कर सुजीत मल्लिका मैडम पर ले आता, और उनका इस क़दर गुणगान करता कि अर्जुन बोर होने लगता. मनु को लगता कि अर्जुन न जाने क्या सोचता होगा सुजीत के बारे में.
अर्जुन ने सुजीत के बारे में तो पता नहीं क्या सोचा लेकिन वो मनु के लिए ज़रुर चिन्तित हो गया. वो जानता था. वसुन्धरा भाभी की कितनी प्यारी बहन है मनु; और वो मन ही मन कितनी दुखी है यह भी अर्जुन अच्छी तरह जान चुका था
अर्जुन के सामने ही सुजीत बात बात पर मल्लिका मैडम से मनु की तुलना कर उसे अपमानित करता रहता था. मनु के घर एक पार्टी में मल्लिका मैडम के दर्शन भी हो गये थे अर्जुन को.
इस ओछी दम्मी औरत के साथ, सभ्य और सुसंस्कृत गरिमा मयी मनु की तुलना... ओफ़ अर्जुन का जी चाहता सुजीत का कॉलर पकड़कर दो थप्पड़ लगाये उसको.
अर्जुन पुरी कोशिश करता कि किसी तरह मनु के दुखों का बोझ हल्का हो जाये.
“तुम्हारा सितार पड़ापडा धूल खा रहा है, इसे बजाती क्यों नही हो?” एक दिन अनायास ही वो मनु से पूछ बॅठा, मनु ने कोई उत्तर नहीं दिया लेकिन उसके उदास चेहरे और आंसू भरी आंखों ने सब कुछ कह दिया. फिर अचानक एक दिन अर्जुन ने आकर मनु से कहा कि उसे एक कार्यक्रम मे सितार बजाना है...
''मैं... नहीं अर्जुन मैंने तो महिनो से इसे हाथ भी नहीं लगाया है... मैं कैसे कार्यक्रम में बजा पाऊँगी?"
"मनु कार्यक्रम में अभी पूरा एक महिना बाक़ी है तुम प्रॅक्टिस शुरू करो, मैंने एक तबले वाले से बात भी कर ली है, जो तुम्हारे साथ संगत करेगा."
"लेकिन अर्जुन...'
"लेकिन, वेकिन कुछ नहीं....' कहता हुआ अर्जुन सितार उठाकर . अपने फ्लॅट में ले गया, वो जानता था यहाँ पर मनु किसी हालत में प्रॅक्टिस नहीं कर पायेगी.
दोपहर को मनु अर्जुन के फ़्लेट पर जाकर प्रॅक्टिस करने लगी, सुजीत उस वक्त घर में नहीं होता था. सितार के तार दोबारा छेड़ने से मनु के जीवन का खोया हुआ उत्साह वापस लौट आया था. वो पूरे मनोयोग से कार्यक्रम की तैयारी में जुट गयी
तबले पर संगत करने वाला किशोर भी पूरी मेहनत कर रहा था. अपनी साधना में डूबी हुई मनु. यह बिल्कुल नहीं जान पार रही थी कि उसके पीछे दीपा और बुआजी में क्या खुसर खुसर होती है; तभी तो वो चौंक पड़ी जब उस दिन बुआजी ने कहा...
"यह तुम रोज़ ऊपर वाले फ़्लॅट में क्या करने जाती हो बहू?"
"सितार की प्रॅक्टिस करने”
"सितार की प्रॅक्टिस यहाँ भी तो हो सकती है भाभी, या ऊपर वाले फ्लॅट में कुछ ख़ास प्रेरणा मिलती है? दीपा ने ताना देते हुए कहा. क्षण भर मनु ने उन लोगों की ओर देखा फिर बिना कोई उत्तर दिये, ऊपर चली गयी, कैसे घटिया ख्याल हैं, इन लोगों के.
कार्यक्रअम में कुल चार दिन बाक़ी थे मनु पूरे जोश से प्रॅक्टिस करने में लगी थी, अचानक फ़ोन की घंटी बजी, अर्जुन का ही फ़ोन होगा, वही अक्सर पूछ लेता है, 'प्रॅक्टिस कैसी चल रही है?
फ़ोन उठाने पर मनु चौंक गयी, उधर से आने वाली आवाज़ सुजीत की थी.
"घर पर फ़ोन किया तो मालूम हुआ तुम यहा बेठी टुनटुना बजा रही हो.... ऐसा है शाम को बॉस, मैडम के साथ खाने पर आ रहे हैं, बढ़िया इन्तज़ाम होना चाहिये खाने का..
"अच्छा... कह कर मनु ने फ़ोन रख दिया.
नीचे जा कर मनु ने खाना बनाना शुरू किया, दो तीन सब्ज़िया, रायता और पूड़ी बना लेगी मीठा बाहर से मंगवा लिया जायेगा. सुजीत के आने तक आधे से अधिक काम हो चुका था, लेकिन उसने आते ही बिगड़ना शुरू कर दिया.
"ओफ़, अभी तक कुछ नहीं हुआ है, जानती हो वो लोग समय के कितने पाबन्द हैं, और यह पूड़ी बना रही हो मालूम नहीं है कि मैडम को..."
'आपकी मैडम की पसन्द की जानकारी मुझको नहीं है, आप उनकी पसन्द का खाना किसी होटल से मंगवा लीजिये" मनु ने तटस्थ स्वर में कहा और गैस पर चढ़ी हुई सब्ज़ी चलाने लगी.
मनु के इस उत्तर से सुजीत आपे से बाहर हो गया. "हां हां मंगवा लूँगा, क्या समझती हो तुम?"
गुस्से से पैर पटकता हुआ सुजीत कपड़े बदलने के लिए अन्दर चला गया, आखिर मैडम, के आने से पहले सज धज कर तैयार होना भी तो ज़रुरी था. मनु जानती थी अपने काम में तरक्की पाने के लिए अक्सर अयोग्य व्यक्ति बॉस की बीवियों की खुशामद करते हैं, लेकिन सुजीत के साथ ऐसा नहीं था, मनु समझ चुकी थी वो इस औरत के आकर्षण में पागल हो रहा था.. मि. अमर और मल्लिका ठीक समय पर पहुँच गये,
सुजीत उनका स्वागत करने को भागा हुआ बाहर आया, फिर वो और दीपा पूरे समय उनकी ख़ातिर में लगे रहें, मनु औपचारिकता वश बाहर आयी, मि. अमर ने खाने की तारीफ़ की तो वो चाह कर भी मुस्करा नहीं सकी.
"मेरे मेहमानो के सामने ऐसी मातमी सुरत और बिखरे हुए बाल लेकर आना ज़रूरी था?" उनके जाते ही सुजीत मनु पर बरसा.
"आपने ही बार बार कहा, मैं तो बाहर आना ही नहीं चाहती थी..."
"क्यों, तुम्हें मालूम नहीं था उनके सामने आना पड़ेगा ज़रा ढंग से नहीं रह सकतीं थी, हद है उजडुपने की मैडम क्या सोचती होंगी...?"
सुजीत गुस्से से बोला.
"मुझे उनके कुछ भी सोचने की परवाह नहीं है....."
‘‘तुम्हें आजकल किसकी परवाह हैं खूब समझ रहा हूँ."
सुजीत के व्यंगात्मक लहजे से मनु तिलमिला गयी.
"मुझे आपके कुछ भी समझने से कोई फ़र्क नहीं पडता...
“क्या कहा...?"सुजीत का एक भरपूर थप्पड़ मनु के मुँह पर पड़ा...
‘‘मेरे सोचने से फ़र्क क्यों पड़ेगा? ससुरी यार के घर में बैठ कर दिन दिन भर टुनटुना बजाती है..." सुजीत ने उस पर लात घूसों और गालियो की बौछार कर दी...
"बस..." अचानक अर्जुन ने आकर सुजीत का हाथ पकड़ लिया"
खबरदार जो इसके ऊपर हाथ उठाया तो..."
"तुम कौन हो...? इसके यार या फिर इसके..."
'अपनी गन्दी ज़बान से इस आदमी के लिए कोई घटिया बात मत निकालना वरना.." मनु चीखी.
"वरना क्या कर लेगी बेहया बदज़ात औरत..."
मनु ने पास रखा पेपर वेट उठा कर अपने सर में मारने की कोशिश
की तो अर्जुन ने उसका हाथ थाम लिया. "नहीं मनु नहीं... "
अर्जुन का सहारा मिलते ही मनु फूट फूट कर रोने लगी.
"मैं बहुत सह चुकी अब मुझसे बरदास्त नहीं होता; मुझे यहाँ से चलो अर्जुन, मुझे इस मैडम के चपरासी से नफ़रत हो गयी है...!
अर्जुन का हाथ थाम मनु तेज़ी से बाहर आ गयी, और गेट की तरफ़ बढ़ने लगी तो अर्जुन बोला "उधर कहाँ जा रही हो?"L
"देखूँगकी शायद कोई टॅक्सी मिल जाये....
"मनु जिसका हाथ थाम कर उस नर्क से बाहर आने का साहस जुटा सकीं उस पर इतना भी भरोसा नहीं है...? चलो ऊपर... अपने फ्लॅट में, अपने घर में..."
"अर्जुन..."
अर्जुन मज़बूती से मनु का हाथ पकड़ आगे बढ़ने लगा. मनु को लग रहा था जैसे वो सारे बन्धन तोड़ कर आकाश में उड़ रही है.
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