MUQADMA

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नीरजा को अस्पताल में भर्ती हुए एक सप्ताह हो गया था. फिल्म जगत की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री और गायिका के कमरे में मिजाज़ पुर्सी के लिए आने वालों को तांतालगा ही रहता था. निर्माता, निर्देशक और साथी कलाकारो के अलावा उसके प्रशंसको की भी भीड़ लगी रहती थी वहाँ जिस तरह नीरजा की फिल्मे बॉक्स आफिस पर हिट होतीं थीं, उसी तरह उसके गाये हुए गीत भी. यदि उसके प्रशंसको से पूछा जाता कि उसका अभिनय उनकी आत्मा की गहराइयो को अधिक छू लेता हॅ. या उसके गीत उन्हे अधिक झकझोर जाते हैं तो उनके लिए निर्णय लेना कठिन हो जाता. और इस सबसे ऊपर थी, नीरजा की सहृदयता, उसका नम्र और शिष्ट व्यवहार, कभी किसी शूटिंग के सेट पर वो देर से नहीं पहुँची, आउट- डोर शूटिंग पर जाकर कभी निर्माताओं से विशेष सुविधाओं की मांग नहीं की… अस्पताल में उसे देखने आने वाले केवल रस्म अदा नहीं करते थे, बल्कि दिल से उसे चाहते थे उसके साथ हुए अत्याचार पर दुखी थे. आज उसके टांके काट दिये जायेंगे "बहुत जल्दी आपके ज़ख्म भर जायेंगे नीरजाजी फिर आप बिल्कुल ठीक हो जायेंगी" डॉक्टर ने कहा. शरीर पर लगी हुई चोटे तो समय के साथ भर जाती है पर उसकी आत्मा पर लगे हुए घावो को कौन सा समय भर सकता हैं? अस्पताल के उस कमरे में नीरजा अपने शुभ चिन्तको से घिरी हुई बैठी थी. "आप शंकर पर मुक़दमा कर दीजिये हम सब आपके साथ हैं." नीरजा के पति शंकर पर मुक़दमा कर दिया गया था. शहर की जानी मानी वकील अनीता महाजन जो नीरजा की प्रशंसक भी थीं, उसका केस लड़ रहीं थीं. शंकरने नीरजा के साथ केवल विश्वासघात ही नहीं किया था. बल्कि जानलेवा हमला भी किया था. पांच साल पहले नीरजा का शंकर से विवाह हुआ था; उस समय नीरजा फ़िल्म जगत की ऊँचाइयों पर चढ़ रही थी पर उसके माता पिता को उसके विवाह की अत्यधिक चिन्ता थी. नीरजा के पिता को शंकर हर तरह अपनी बेटी के योग्य लगा- पढ़ा लिखा अच्छी नौकरी करने वाला ओर उसे नीरजा के फ़िल्मों में अभिनय करने पर भी कोई आपत्ति नहीं थी. शंकर की नौकरी चण्डीगढ़ में थी, किन्तु आज के युग में दूरियां क्या होती हैं, विवाह के बाद भी नीरजा मुंबई में रह कर काम करती रह सकती थी। एक दिन शहनाई के मधुर स्वर और पंडित के मंत्रोच्चारण के साथ, अग्नि की साक्षी में वो विवाह सूत्र में बंध गये. फ़िल्मो में तो अनके बार दुल्हन बन चुकी थी नीरजा; किन्तु आज सचमुच की दुल्हन बन कर वो जितना सुंदर लग रही थी इतनी पहले वो कभी नहीं लगी. नीरजा यह नया जीवन पाकर बहुत खुश थी और शंकर की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था. नीरजा केवल चार दिनो तक ही ससुराल में रही क्योंकि उसकी शूटिंग थी. और उसे मुंबई पहुँचना था. उसकी सास सविताजी ऐसी बहू पाकर निहाल थीं दोनो ननदें दमयन्ती और शिखा भी हर समय भाभी के आगे पीछे घूमती रहतीं दमयन्ती की शादी हो चुकी थी और शिखा बी. ए. में पढ़ रही थी. शंकर हर पन्द्रह बीस दिन पर मुंबई पहुँच जाता, जुहू बीच, मॅरीन ड्राइव, खंडाला, महाबलेश्वर और न जाने कहों कहाँ, नीरजा और शंकर एक दूसरे का हाथ थामे हुए घूमते रहते. एक के बाद एक नीरजा की फ़िल्मे हिट हो रहीं थीं, उसके गीत धूम मचा रहे थे वो सफ़लता की सीढियों पर आगे ही आगे बढ़ती जा रही थी शंकर के घर में समृद्धि बढ़ रही थी अपने परिवार का दायित्व शंकर पर ही था. किन्तु अभी तक इतनी सुख सुविधाये नहीं जुटा पाया था वो अपने परिवार के लिए. शिखा की शादी इतनी भव्य हुई कि सारे इष्ट, मित्र सम्बधी देखते ही रह गये. "यह सब मेरी बहू के कारण ही हो सका है' सविताजी बार बार सबसे केहतीं. नीरजा जब अपनी सास के पांव छूने को झुकती तो वो उसे अनेकानेक आशीष देतीं. "भगवान तुझे बहुत तरक्की दे, सदा खुश रहे तू." शंकर को अब अपनी बड़ी नौकरी बहुत छोटी लगने लगी थी, क्यों न वो अपना कोई बिजनेस शुरू कर ले. अपनी नौकरी छोड़कर शंकर मुंबई आ गया. नीरजा बहुत खुश हुई. "अच्छा किया नौकरी छोड़ दी. अपना ही कोई काम शुरू कर लीजिये हम साथ रहेंगे मेरे लिए इससे बड़ी खुशी क्या होंगी." पैसो की कमी तो नहीं थी लेकिन शंकर के पास अनुभव की कमी अवश्य थी वो जो भी काम करता उसमे नुकसान ही होता... उस पर शंकर के शौक बढ़ते ही जा रहे थे... मंहगी से मंहगी सिगरेट और शराबपीना रेस खेलन... नीरजा की कमाई वो पानी की तरह बहा रहा था... सविताजी को बेटे का यह व्यवहार अच्छा नही लग रहा था.. पर वो क्या कर सकती थीं. बीस वर्ष हो गये उनके पति के स्वर्गवास को, इतने वर्षों से वो अपने इस बेटे की ही तो आश्रित रहीं हैं. अचानक सविताजी को दिल का दौरा पड़ा और वो यह संसार छोड़कर चली गयीं. नीरजा के दुख का ठिकाना नहीं था... पर होनी को कौन टाल सकता है.. एक न एक दिन सबको ही जाना पड़ता है. अब नीरजा के साथ शंकर का व्यवहार बदलने लगा था. वो बात बात पर उसके ऊपर नाराज़ होता बात बात पर ताना देता "हीरोईन कभी अच्छी पत्नी बन सकती है?" अब तो वो नीरजा पर हाथ भी उठाने लगा था और उस दिन तो हद हो गयी जब नीरजा ने उसे एक जूनियर आर्टिस्ट के साथ अशोभनीय व्यवहार करते हुए पकड़ लिया. उस दिन शूटिंग जल्दी खत्म हो गयी और नीरजा जल्दी घर वापस आ गयी, उसने देखा एक जूनियर आर्टिस्ट उसकी बढ़िया सी साड़ी पहन कर निर्लज्जता से पलंग पर लेटी है, और शंकर उससे रोमान्स कर रहा है. उसे देख शंकर उठकर खड़ा हो गया. "तुम इतनी जल्दी कैसे आ गयीं?" नीरजा कुछ बोली नहीं... "तुम मेरी जासूसी कर रही हो? शर्म आनी चाहिये तुम्हें "शर्म तो आपको आनी चाहिये ऐसी हरक़त करते हुए" शंकर आपे से बाहर हो गया और नीरजा को पीटने लगा, उसे खींचता हुआ सीढ़ियों के पास तक ले गया और उसे सीढ़ियों से नीचे धकेल दिया...अपनी ही कमाई के घर से नीरजा इस तरह बाहर कर दी गयी थी. अस्पताल से लौटकर वापस जाने के लिये अब नीरजा के पास कोई घर नहीं था क्योंकि शादी के बाद सब कुछ तो शंकर को दे चुकी थी अपनी कमाई भी उसको ही थमा देती थीं. निर्माता विनोद देसाई ने अस्पताल में ही नीरजा को अपनी अगली फिल्म के लिये साइन कियां और एक फ्लैट दे दिया.. नये फ्लॅट में आते ही नीरजा के पास नये अनुबन्धों का ढेर लग गया... अनीता महाजन ने नीरजा की ओर से केस दाखिल कर दिया था. मुक़दमे की हर पेशी पर अनीता अपने बुद्धिमत्ता पूर्ण तर्को से शंकर के लगाये हुए सभी झूठे आरोपों को काट कर रख देती थी सारे झूठे गवाह पांच मिनट के प्रश्नोत्तर में ही भाग खडे होते. नीरजा के माता-पिता जो बेटी के विवाह के बाद बद्रीनाथ में जाकर सन्यासी जीवन व्यतीत करने लगे थे. बेटी की विपदा सुनकर वापस आ गये.. नीरजा के पिता पंडित रमाशंकर अपनी पत्नी अलकनन्दा से बोले थे "इस समय नीरजा को हमारी जरुरत है. हमें उसके पास होना चाहिये." नीरजा की हर फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर हिट होने लगी थी... उसके गीतों के रिकार्ड-बॉक्स ऑफ़िस की चरम सीमा पर पहुँच रहे थे, कोई भी निर्माता अब उसके बिना फ़िल्म आरम्भ्म ही नहीं करना चाहता था... केवल भारतीय फ़िल्म जगत के ही नहीं विदेशी निर्माता भी उसे लेकर फ़िल्मे बना रहे थे. उसके सभी साथियों और प्रशंसको को मुक़दमा के फ़ैसले का इन्तज़ार था. आखिर वो दिन भी आ गया. नीरजा मुक़दमा जीत गयी थी सारे डॅमेजेज़, तलाक सभी कुछ मिल गया था नीरजा को. "मुबारक हो" "मुबारक हो" "बधाई हो नीरजा जी’ बधाइयों का तातां लग गया था. इस शानदार जीत की ख़बर हर आख़बार में आ गयी थी. न्यूज चॅनल्स् पर बार बार दिखायी जा रही थी. नीरजा के अनेक साथी घर पर सेलिब्रेट करने को इकठ्ठे हो गये थे. शानदार पार्टी होना आवश्यक है. अनीता महाजन फूलो का गुलदस्ता लेकर आयी. वो बहुत खुश थीं. मीडिया वाले उन्हे बधाई दे रहे थे और अनेक प्रश्न भी पूछ रहे थे. "अब क्या करेगा शंकर, हाइकोर्ट में अपील करेगा.' "वो वहाँ भी हारेगा" अनीता महाजन आत्मविश्वास से बोली. सब लोग खा पी रहे थे, आपस में बातचीत कर रहे थे "हां सच है, अनीता महाजन के सामने कौन सा वकील टिक सकता है? शंकर हाइकोर्ट में भी हार जायेगा” अभिनेत्री विशाखा बोली. "अरे हाइकोर्ट में अपील करने के लिए पैसा कहाँ हैं उसके पास सब कुछ तो उड़ा चुका है वो रेस और अपनी ऐय्याशी में." निर्देशक अरविन्द ऊँची आवाज़ में बोले... पार्टी ख़त्म हो गयी. सब चले गये. नीरजा अपने कमरे में अकेली थी बिताये हुए अनेक क्षण उसकी आंखो के सामने सजीव हो रहे अपने विवाह का दृश्य उसके मस्तिष्क में उभर रहा था. सुबह होते ही नीरजा ने निर्माता विनोद देसाई की पत्नी कांताजी को फोन लगाया. "मैं आपसे मिलना चाहती हूँ कांताजी." "क्या बात है नीरजा तुम इतनी परेशान क्यों लग रही हो? तुम्हें तो बहुत खुश होना चाहिये " "कांताजी मुझे आपसे बहुत जरुरी काम है. आप जल्दी यहाँ आ जाइये प्लीज. " "ठीक है मैं आती हूँ तुम परेशान मत हो." कांताजी देख रहीं थीं नीरजा का उदास चेहरा, उन्हें आश्चर्य हो रहा था. इसे तो जीत की खुशी में चहकना चाहिये इस समय. आखिर बात क्या हैं? ‘‘बताओ तो नीरजा बात क्या है, मैं जो कुछ कर सकूँगी अवश्य करुँगी तुम्हारे लिये.” नीरजा ने रुपयों से भरा हुआ एक ब्रीफ़केस कांताजी की ओर बढ़ाया. "कांताजी यह पैसे आप शंकर के पास पहुँचा दीजिये और उससे कहिये हाइकोर्ट में अपील कर दे" "क्या कह रही हो नीरजा... मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा हैं" "कांताजी यह "मुक़दमा' शंकर के साथ जुड़ी हुई आख़िरी कड़ी है, यह भी टूट गयी तो मैं जी नहीं सकूँगी; न कोई काम कर सकूँगी न गा सकूँगी.' नीरजा बिलख बिलख कर रो रही थी.. और कांताजी देख रही थीं अपने पति से ऐसा प्रेम करने वाली अपने देश की एक नारी को....