AUKAAT

AUKAAT
टिफिन कॅरियर में खाना भर दरवाजे को ताला लगा रामेश्वरी घर से निकल पड़ी। आज धूप नही थी। वो पैदल जा सकती थी, फिर शिखा की दुकान थी भी कौन सी दूर। रामेश्वरी अपनी बेटी शिखा के ब्युटी पार्लर को दुकान ही कहती थी, अक्सर ही वो दोपहर में शिखा के लिए खाना लेकर वहाँ पहुँच जाती। शुरु शुरु में शिखा ने बहुत मना किया’ मां मत परेशान हुआ करो मैं यही से कुछ मंगा कर खा लिया करुगी’ लेकिन वो नहीं मानी फिर शिखा ने भी कुछ कहना बन्द कर दिया उसने सोचा इसी बहाने मां घर से बाहर निकलती है, कुछ मन बहल जाता है, वरना सारा दिन घर में अकेली बैठ कर क्या करें...? बेटी की इस एअर कंडीशन दुकान की ठंडक उनकी आत्मा को बाहरी ठन्डक पहुँचाती थी। जिद करके बेटी ने अगर यह दुकान न खोली होती तो उनका मकान बचना मुश्किल हो जाता। कहने को उनके दो दो होनहार बेटे इसी शहर में पूरी शान शौकत से रह रहे थे, एक नामी डॉक्टर दूसरा बडा इंजिनिअर पर मां बहन का ध्यान रखना उनके लिए व्यर्थ समय नष्ट करना था। दोनो ही अपनी आधुनिक पत्नियों की भृकुटियों में उठ बैठ रहे थे। पति की लम्बी बीमारी और लडको की गैर जिम्मेदारी ने रामेश्वरी को तोड कर रख दिया, फिर पति के न रहने से वो बिल्कुल ही असहाय हो गयी। शिखा उस समय पढ़ रही थी। एक एक कर रामेश्वरी के गहने बिकने लगे थे। तभी शिखा ने न जाने किस तरह यह Beauty Parlour खोल लिया कितनी दौड़ भाग की थी उनकी अठराह साल की बेटी ने आय का यह साधन जुटाने को। अब तो आपनी मेहनत और सुझ बूझ से शिखा ने खूब तरक्की कर ली है। Parlour में आधुनिक साधन जुटा लिये थे। शहर की प्रतिष्ठित महिलायें शिखा के Parlour में ही आती थी। बड़े घरों की शादियों में दुल्हन को सजाने का काम शिखा के Parlour की लडकियां ही करती थी। रामेश्वरी थोडी ही दूरी पर थी कि उन्होंने देखा एक भव्य गाडी आकर Parlour के सोमने रुकी ड्राइवर की बगल में बैठे हुए अर्दली ने जल्दी से उतर कर पीछे का दरवाजा खोला, और एक सुन्दर प्रभावशाली महिला शालीनता से पार्लर की और बढी । पास पहुँच कर रामेश्वरी ने क्षण भर रुक कर उस चमचमाती हुई Car की तरफ देखा, फिर माथे का पसीना पोछ टिफिन कॅरियर थामे हुए पार्लर के अन्दर जा पहुँची। रामेश्वरी चुपचाप एक और बैठ गयी और शिखा गौरव मयी महिला की साजसज्जा में व्यस्त हो गयी। शिखा अत्यधकि नम्रता मे उस महिला से बाते कर रही थी और वो धीरे धीरे मुस्करा रही थी। न जाने क्यो रामेश्वरी को उस महिला का चेहरा कुछ पहचाना हुआ लग रहा था। वो ध्यान से उसकी और देखने लगी। कही देखा है उन्होने उसको पहले लेकिन कहाँ...? रामेश्वरी बार बार अपने मस्तिष्क पर जोर डालने लगीं। हाँ रामेश्वरी को याद आया, यह तो बिन्दु थी... उनकी नाउन कमली की बेटी । क्या गजब की फुर्ती थी कमली के हाथो में रामेश्वरी की समुराल का भरा पुरा संयुक्त परिवार था। आये दिन कोई न कोई उत्सव आयोजन होता ही रहता था। कमली घर भर की औरतो के हाथ पाव में उबटन लगाती, सेरो दाल और मसाले पीसती, रामेश्वरी की सास को तो कमली से मालिश करवाये बिना चैन ही नही पड़ता था। समय गुजरता रहा रामेश्वरी की सास परलोक सिघार गयी; घर की कर्ता घर्ता रामेश्वरी बन गयी; तब तक उनके दो बेटे भी हो चुके थे कमली भी चार बच्चों की मां बन चुकी थी। उस समय रामेश्वरी के घर के अनेक काम कमली ही निबटाती थी। रामेश्वरी की मालिश भी करती थी। कमली की सबसे छोटी सन्तान बिन्दु रामेश्वरी के बड़े से घर के चिकने फर्श पर घुटनो के बल चलती हुई यहाँ से वहाँ घूमती रहती और कमली चकर घिन्नी सी घर के कामो में लगी रहती अक्सर ही अंगूठा चूसती हुई बिन्दु फर्श पर ही लुढक कर सो जाती। कमली के और बच्चे तो पढलिख नही सके बिन्दु जब थोडी बडी हुई तो कमली ने उसे स्कूल भेजना आरम्भ कर दिया। जब शिखा का जन्म हुआ बिन्दु सातवी कक्षा में पढ रही थी; अब वो अंगूठा नहीं चूसती थी सलवार कमीज पहन दो चोटिया रिबन से बांधती थी। सलीके से उठती बैठती थी, और बडी सावधानी से नन्ही शिखा को गोद में उठाकर बगीचे में घुमाती थी। समय अपनी गति से आगे बढ रहा था । उस वर्ष रामेश्वरी के सबसे छोटे देवर सुरेश का ब्याह था। सारे रिश्तेदार इकठ्ठे थे घर में हर समय चहल पहल रहती थी। कमली को तो दम भरने की फुर्सत नहीं थी। बिन्दु कॉलेज जाने लगी थी पर कॉलेज से आते ही रामेश्वरी के यहाँ आ जाती और घर के कामों में अपनी मां का हाथ बटाने लगती। ब्याह में आयी अपनी हम उम्र लडकियों के साथ भी वो खूब हिल मिल गयी थी। तभी तो नयी बहू की मुहं दिखायी वाले दिन जब घर की सब बहू बेटियां साथ खाना खाने बैठी तो रामेश्वरी की भतीजी ने बिन्दु को भी बिठा लिया। उस समय रामेश्वरी बाहर कुछ लेन देन निबटा रही थी। अन्दर आकर जब उन्होने बेटियों के बराबर बैठ कर खाना खाती हुई बिन्दु को देखा तो बुरी तरह भडक गयी और सारे रिश्तेदारो के सामने ही उनका ऊँचा स्वर पूरे घर में गूँजने लगा। अरे इस नाउन की बेटी की इतनी हिम्मत कि हमारी बहू बेटियों के साथ बैठी भोजन कर रही है। चार अक्षर पढ लिये तो अपनी औकात भूल गयी। बुआ इसे मैं ने ही.... रामेश्वरी की भतीजी ने कुछ कहना चाहा, लेकिन रामेश्वरी तो पूरी तरह आपे से बाहर हो गयी थी। रेश्मी कपडे पहनने से क्या औकात बदल गयी इसकी....? अरे पैर की जूती पैरो में ही अच्छी लगती है। सर पर नहीं । अपमानित बिन्दु खाना छोडकर उठ गयी रामेश्वरी बडबडाती रही और वो आंसू भरी आंखे लिए बाहर निकल गयी। कमली बेमन से सारे काम निपटा रही थी। बार बार आंचल से आंसू पोछ रही थी ब्याह का नेग भी नहीं लिया उसने । "अपनी औकात भूल गयी ससुरी...." रामेश्वरी शाम तक बिन्दु को गालियां देती रही। और आज वही बिन्दु किसी राजरानी सी कुर्सी पर सर टिकाये बैठी है और रामेश्वरी की लाडली उसके सर में मनोयोग से शॅम्पू कर रही है। ‘" अरे मां तुम इतनी देर से यहीं बैठी हो..." बिन्दु के बालो को ड्रायर से सुखाती हुई शिखा का ध्यान रामेश्वरी की ओर गया। बिन्दु ने भी उन्हें देखा, और ध्यान से देखती हुई पहचानने की कोशिश करने लगी। मांजी आप यहाँ ....? नम्रता से हाथ जोड़ कर बिन्दु उठकर खडी हो गयी। रामेश्वरी चाह कर भी कुछ नही बोल सकी, शिखा आश्चर्य से कभी अपनी मां और कभी बिन्दु की ओर देख रही थी। मां तुम इन्हें जानती हो...? इस शहर की डी.एम. है बहुत मदद की है इन्होंने मेरी... हर हफ्ते यहाँ आती है। बिन्दु ने घडी देखी...’’ अरे साढ़े तीन बज गये, मेरी एक जरुरी मिटिंग है, चलती हूँ शिखा' चलते समय बिन्दु ने सौ सौ रुपये के दस नोट शिखा के हाथ पर रखे, और अपनी शालीन चाल से बाहर निकल गयी। खाना खाती हुई शिखा बार बार बिन्दु का गुणगान कर रही थी, रामेश्वरी अतीत में डूबी हुई थी। किसी आयोजन में घर भर की औरतो का तेल उबटन करने के बदले में रामेश्वरी बडे एहसान से दस रुपये का नोट कमली के हाथ पर धरती थी... आज उस कमली की बेटी अपने बाल धुलवाने के हजार रुपये कितनी सरलता से उनकी बेटी के हाथ पर रख कर चली गयी है... रामेश्वरी को लग रहा था। जैसे उनके मुह पर थप्पड मारा हो किसीने। क्या सोच रही हो मां...? कुछ नहीं वो बस यूँ ही....? जानती हो मां मैं जो फॅक्टरी लगा रही हूँ....." हां जानती हॅू तू यह Make-up का सामान जो अपनी दुकान में इस्तेमाल करती है। इसे बनाने की फॅक्टरी लगा रही है। उस फॅक्टरी के लिए बैँक से पैसा वगैरह यह मॅडम ही दिलवा रही है। जगह भी मॅडम ने ही.... मॅडम बेटी के शब्द रामेश्वरी के मन पर हथोडे सी चोट कर रहे थे, पैर की जूती कह कर जिसका घोर अपमान किया था उन्होने आज उनकी बेटी कितने सम्मान से उसे मैडम 'मैडम' कहे जा रही थी। रात आधी से अधिक बीत चुकी थी पर रामेश्वरी की आंखो में नींद का नाम नहीं था। शिखा अपनी फॅक्टरी के लिए कितनी उत्साहित है लेकिन वो उसे कैसे बता दे कि अब फॅक्टरी कभी नहीं लग पायेगी। बिन्दु जान गयी है कि शिखा उनकी बेटी है, अब तो वो भरपूर बदला लेगी अपने अपमान का..... वो नित्य ही भयभीत रहती कि घर लौटने पर शिखा न जाने क्या खबर सुनायें... रामेश्वरी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब शिखा फॅक्टरी के उद्घाटन के कार्ड हाथों में लिए चहकती हुई घर में आयी। फॅक्टरी का उद्घाटन बिन्दु के हाथों ही होना था । शिखा मां के लिए बढ़िया साड़ी लेकर आयी..." उद्घाटन वाले दिन यही साडी पहनना मां" शिखा के अत्यधिक आग्रह पर रामेश्वरी को नयी साडी पहन कर वहाँ आना ही पड़ा। बहुत बडे बडे लोगो की भीड थी वहाँ पर रामेश्वरी के दोनो बेटे भी आये थे, नकचढी बहुएं भी सजधज कर रामेश्वरी का हाथ बटाने पहुँच चुकी थी आज कितना प्यार उडेल रही थी ननद पर यह सब हुआ था बिन्दु के कारण... सब बिन्दु की प्रतीक्षा कर रहे थे। उसकी गाड़ी आकर रुकी तो अनेक हाथ दरवाजा खोलने को आगे बढ आये.... हल्के रंग की रेशमी साड़ी में कितनी सुन्दर लग रही थी बिन्दु । शिखा के कंधे पर हाथ धर बिन्दु आगे बढने लगी। फोटो ग्राफर दनादन फोटो खींच रहे थे। शिखा की भाभियां बार बार अधिक नजदीक आने की कोशिश कर रहीं थी। रामेश्वरी को देख बिन्दु रुकी झुककर प्रणाम किया। अनगिनत तस्वीरे खिंच गयी । बिन्दु ने दीप जलाये, तालियां गूँजी भाषण हुए। खाने का समय भी आ गया। रामेश्वरी की बहुएं बिन्दु के आगे पीछे घूमती हुई कुछ न कुछ खा लेने का आग्रह कर रहीं थी। रामेश्वरी बेटी की लायी हुई पांच हजार रुपये की रेशमी साडी पहनकर एक कोने में सिमटी हुई खडी थी। आज उनके अपने ही शब्द उनकी आत्मा पर कोडे बरसा रहे थे। रेशमी कपडे पहनने से क्या औकात बदल जाती है। आज उनकी क्या औकात है ? यह साड़ी जो उनकी बेटी ने उन्हे दी है। यह भी तो बिन्दु की दया का ही परिणाम है। आज बिन्दु की महानता ने उन्हें उनकी औकात समझा दी थी। जिसका अपमान करने में उन्होंने कोई कसर नहीं उठा रखी थी। जिसके ऊपर उनका ओद्दा मन सन्देह कर रहा था। उसने उनकी बेटी को फॅक्टरी की स्वामिनी बना दिया था। रामेश्वरी की अपनी ही आत्मा बार बार उन्हे धिक्कार रही थी, कमली का उदास चेहरा उनके मस्तिष्क में सजीव हो रहा था, बेटी के अपमान से तिलमिलायी हुई, अपना नेग छोडकर जाती हुई कमली. रामेश्वरी को लग रहा था, कही दूर बैठी हुई कमली हंस रही है, और कह रही थी देखलो एक दिन मेरी जो बेटी तुम्हारी बहू बेटियों के बीच खाना खाने को बैठने पर बुरी तरह अपमानित हुई थी, आज उसके पीछे तुम्हारी बहू बेटी प्लेटे लिये घूम रही है जिसे तुमने खाने की थाली पर से उठा दिया था। आज उसीका दिया खा रही हो, लेकिन घबराओ नहीं वो तुम्हे खाने की थाली से नहीं उठायेगी मेरी बेटी है वो.... अरे मांजी आपने तो कुछ खाया ही नहीं" रामेश्वरी की बहू ने उनकी प्लेट की ओर देखकर कहा रामेश्वरी का जी चाहा चीखकर कहे "मेरी औकात नही है। यहाँ पर खाना खाना खाने की"