MAHANAYAK

शालिनी ने घड़ी देखी, साढे बारह बज रहे थें अभी आधा रास्ता भी पार नहीं हुआ था।
"हम लोग एक बजे तक बच्चों के स्कूल पहुंच जायेंगे ना?"
शालिनी ने कुछ अधीर स्वर में अपने ड्राइवर भुवन से पूछा.
"पहुंच जायेंगे मैडम, इसीलिए तो मैं इस रोड से लाया हूं यहां ट्रैफिक कम
होता है.......
"ट्रैफिक तो अब किसी भी रोड पर कम नहीं होता......"
पास बैठी शालिनी की सहेली रीना बोली..... | रीना का बेटा चिंटू भी उसी स्कूल में पढता था जिसमें शालिनी के दोनों बच्चे अनूषा और माधव थे......" शालिनी और रीना बचपन की सहेलियां थी। साथ पढी थी और समय के साथ दोस्ती बढती ही गयी थी। शालिनी के पति अमर कुमार एक मशहूर फिल्म अभिनेता थें और रीना के पति बिशन कपूर एक बडे व्यापारी। दोनों का जीवन अति व्यस्त था। अमर कुमार की व्यस्तता तो बहुत ही अधिक थी। पिछले सात सालों में उनकी इतनी फिल्में जुबली हिट हुई थी कि शालिनी को अब गिनती भी याद नहीं थी। इतनी अधिक सफलता की कल्पना तो ना शालिनी ने की थी ना अमर कुमार ने। शालिनी को गर्व था अपने पति पर। हर जगह अमर कुमार के नाम की धूम मची रहती थी। बच्चों को भी कम गर्व नहीं था अपने पापा पर। पापा की वजह से वो स्कूल में वी.आई.पी. थें।
आज अनूषा और माधव ने चिंटू और अपने क्लास के अन्य साथियों के साथ पापा की नयी गाडी में घूमने का प्रोग्राम बनाया था, स्कूल में जल्दी छुट्टी भी होने वाली थी। बच्चों में बहुत उत्साह था पापा की नयी गाड़ी के लिए। सबसे बढ़िया गाड़ी जो अभी तक सिर्फ उनके पापा के पास थी। कितने उत्साह से दोनों आज के दिन का इंतजार कर रहे थे, जब उनके स्कूल में जल्दी छुट्टी होने वाली थी।
गाड़ी सिगनल पर रुकी । शालिनी परेशान होने लगी। अब और देर होगी। उसने फिर घड़ी देखी तभी अचानक शालिनी का मोबाईल बजा।
" हैलो.......
शालिनी धीरे से बोली ।
मैडम बहुत गडबड हो गयी है, आप कहां हैं ?
उधर से आने वाला स्वर अमर के सेक्रेटरी वसु का था।
" क्या हुआ वसु ? हम स्कूल के रास्ते में हैं।"
मैडम दया जी अभी तक नहीं आये है, यहां इतना बड़ा सैट लगा हुआ
है प्लीज आप.....?
" हां बोलो वसु, करना क्या है ?"
आप वो नयी गाड़ी जल्दी से दया जी के यहां पहुंचा दीजिये, जब तक वो गाड़ी नहीं पहुंचेगी दया जी नहीं आयेंगे और आप तो जानती हैं, जब तक दया जी नहीं आयेंगे …
शूटिंग नहीं होगी.....'यही ना शालिनी ने गुस्से से कहा ।
जी मैडम, आप जल्दी से भुवन को उनके यहां भेज दीजिये। आपके लिए दूसरी गाड़ी पहुंच जायेंगी.....
शालिनी ने फोन बंद किया ही था कि फोन फिर बजा, इस बार अमर ने फोन किया था....'
' हां बोलिये...."
शालिनी ने अपने गुस्से को भरसक रोकते हुऐ कहा
' शालिनी प्लीज, वो नयी गाड़ी फॉरन......
"दया जी के यहां भेज दूं.....?
"हां, प्लीज, जल्दी.....'
शालिनी ने तेजी से फोन बंद किया ।
"भुवन गाड़ी रोको.....
भुवन हैरान था, अभी-अभी तो ग्रीन सिगनल हुआ था, फिर भी उसने गाड़ी
एक किनारे लगा दी, शालिनी तेजी से नीचे उतर गयी, पीछे-पीछे रीना भी उतर
गयी।
भुवन, जल्दी से दया जी के घर उनको लेने जाओ.....
' लेकिन मैडम आप.....?
हम टैक्सी से चले जायेंगे......
शालिनी और रीना टैक्सी में चली जा रही थीं। शालिनी का परेशान चेहरा
देख कर रीना भी परेशान हो रही थी ।
इतना परेशान मत हो शालिनी ...... यह सब तो......"
I am sick of this Daya ji......'
'मैं दया जी से तंग आ गयी हूं....
(शालिनी रुंआसे स्वर में बोली।)
रीना क्या कहती ? वो शालिनी से कितना कुछ तो सुनती रहती थी, इन
दया जी के बारे में... अमर के गुरु हैं वो, उनके सैट पर आये बिना अमर शूटिंग नहीं करता। उनके नखरे उठाते-उठाते निर्माता परेशान हो जाते हैं, मंहगी से मंहगी दारु बढ़िया से बढ़िया होटल से खाना और क्या कुछ नहीं.... । आउटडोर पर तो उनकी फर्माइशें और भी बढ़ जाती हैं, उन्हें वही फल और सब्जियां चाहिये होती हैं जिनका मौसम नहीं होता। आधी-आधी रात को प्रोडक्शन के आदमी को उनकी मनपसन्द सिगरेट के लिए दौड़ना पडता है।
कॉलेज के ज़माने में अमर नाटको में काम करता था। जिनके निर्देशक यह दया जी हुआ करते थें। उनकी योग्यता में कोई संदेह नहीं था, बहुत सफल निर्देशक थे वो। अपने काम में बहुत मेहनत करते थें। हर कलाकर पर विशेष ध्यान देते थें.... । उनसे प्रशंसा के दो शब्द सुनने के लिए अमर जमीन आसमान एक कर देता था।
अमर को फिल्मों का बेहद शौक था इसीलिए तो जब उसने एक फिल्मी पत्रिका में टेलेन्ट कॉन्टेस्ट' के बार में पढा तो जल्दी से फार्म भरकर भेज दिया.. फिर जब वहां से बुलावा आ गया तो अमर की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, लेकिन वहां ‘‘स्क्रीन टेस्ट' होगा, बड़े-बड़े लोगों के सामने डायलॉग बोलने पडेंगे, वो कॉलेज का नाटक नहीं है कि हंसते खेलते ट्राफी जीती जा सके।
दया जी ने अमर को कई दिनों तक अभ्यास कराया, हिम्मत बंधायी... अपने उपर भरोसा रखो अमर तुम बहुत अच्छे कलाकार हो...
अमर चुन लिया गया। उसे फिल्म मिल गयी। शूटिंग पर दया जी साथ रहे.... ।
अमर की फिल्म हिट हो गयी। धड़ाधड़ नयी फिल्में मिलने लगी। दया जी हर जगह साथ होते, उनके बिना अमर काम नहीं कर पाता था।
अमर स्टार बन गया। नाम और पैसा सभी कुछ बरसने लगा। दया जी के घर की हालत बदलने लगी। उनकी तीनों बेटियां अच्छे स्कूल में जाने लगी। बढिया फ्लैट, नौकर चाकर सभी कुछ....। उनकी पत्नी मालती खुश रहने लगी.... क्योंकि उसने अभी तक अच्छे दिन देखे ही नही थे। दया जी कभी कोई नौकरी नहीं कर पाये थे और दारु पीना भी कम नहीं करते थे।
अमर की शादी हुई। शादी की पार्टी में पहली बार शालिनी ने दया जी को देखा। नाटे-मोटे शराब के गिलास पर गिलास खाली करते हुए उस व्यक्ति को शालिनी आश्चर्य से देख रही थी। अमर ने शालिनी का परिचय करवाया... |
यह मेरे गुरुजी हैं.....
अमर के इशारे पर शालिनी ने झुक कर उनके पांव छूये...... ।
पार्टी भर शालिनी देखती रही। बहुत से लोग दया जी के आगे पीछे घूम रहे हैं और वो अकड़-अकड़ कर सबसे बातें कर रहे हैं। जैसे जैसे अमर की सफलता बढती गयी, दया जी की यह अकड भी बढती रही।
शालिनी के मन में उनके लिए कभी कोई श्रद्धा पैदा नहीं हुई लेकिन अमर की वजह से वो हमेशा चुपचाप उन्हें सहती रही। सारे निर्माता निर्देशक भी अमर की वजह से ही चुप रहते... अमर उनके बिना शॉट नहीं दे सकता.... उनका सेट पर होना जरुरी है.... वो हर निर्देशक को काम सिखाने लगते.... निर्माता को छोटी-छोटी बातों पर डाटने- फटकारने लगते, फिर भी कोई कुछ नहीं कहता... अमर की वजह से
मम्मी और आंटी को टैक्सी से उतरता देख, बच्चों के मुंह उतर गये थें। रीना ने बात संभाली।
"वो बात यह है कि रास्ते में गाड़ी खराब हो गयी... अभी आती ही होगी... तब तक सब लोग आइसक्रीम खाओ... ।”
दूसरी गाड़ी जल्दी ही आ गयी.... लेकिन यह तो पापा की नयी गाड़ी नहीं अनूषा और माधव का मुंह उतर गया.... उनके चेहरे देखकर शालिनी को धक्का जैसा लग रहा था। बच्चों के घूमने का कार्यक्रम एक औपचारिकता की तरह निभाया गया। रीना ही उन्हें बहलाती रही। शालिनी का उखड़ा हुआ मूड देखकर अमर परेशान हो गया।
' वो क्या है ना शालिनी .... दया जी की ज़िद थी उन्हें लेने वही गाडी जाये। बेचारे कुमार का लाखों का नुकसान हो रहा था..... मैं क्या करूं ? "
" लेकिन दया जी को हमेशा आपकी नयी गाड़ी ही क्यों चाहिये होती है?"
शालिनी अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सकी।
" उनका ईगो (अहम्) संतुष्ट होता है, तुम तो जानती हो उन्हें ?
" हां..... मैं उन्हें अच्छी तरह जानती हूं ईगो के सिवा और है क्या उनके पास......
अमर कुछ नहीं कह सका, घर का वातावरण कई दिन तक तनावपूर्ण रहा। शालिनी को अब अमर की चिंता होने लगी थी। क्यों अमर दया जी पर इतना निर्भर करता है ? क्यों काम नहीं कर सकता उनके बिना......? सफलता के इस शिखर पर पहुंचकर भी आत्मविश्वास क्यों नहीं आ पाया अमर में ?
इस तरह कितने दिन चलेगा ?... कहीं ऐसा ना हो कि अमर को काम मिलना बंद हो जाये, फिर क्या होगा ? अमर समझता क्यों नहीं? देसाई साहब एक बहुत बडी फिल्म बना रहे थें। अमर उनकी अनेक हिट फिल्मों का हीरो ही नहीं बल्कि.... बहुत अच्छा दोस्त भी था। जाहिर है। मुख्य भूमिका इस बार भी उसको ही निभानी थी। देसाई साहब की यह फिल्म एक साथ कई भाषाओं में बन रही थी, और इसमें कई विदेशी कलाकार भी काम कर रहे थे ।
आज बहुत ही भव्य सैट लगा था। प्रेस वाले, मीडिया वाले सब ही आने वाले थें। अमर चाहता था। कि शालिनी भी सैट पर आये। वैसे शालिनी अमर के सैट पर बहुत कम जाती थी और कुछ सालों से तो उसने जाना बिल्कुल ही छोड़ दिया था। वो लोगों के साथ दया जी का व्यवहार सहन नहीं कर पाती थी । लेकिन इस बार अमर और देसाई साहब के बार-बार आग्रह करने पर शालिनी को जाना पड़ा। सारी तैयारी हो चुकी थी.... । विदेशी कलाकारों सहित सारे कलाकार तैयार थे। सैट तैयार था.... लेकिन शूटिंग शुरु नहीं हो पा रही थी। दया जी अभी तक नहीं पहुंचे थें। कई बार फोन किया गया था.... गाड़ी भेज दी गयी थी.... लेकिन वो नहीं आये थे। इस फिल्म के मुहूर्त वाले दिन से ही वो काफी नाराज़ थें, क्योंकी इस बार देसाई साहब ने मुहूर्त उनसे नहीं बल्कि एक नामी विदेशी कलाकार से करवाया था।
जब बहुत देर हो गयी तो अमर ने खुद फोन लगया..... मालती ने ही फोन उठाया..... ।
क्या बताउं अमर भैया, मैं तो समझा-समझा कर थक गयी, यह सुबह से ही बैठ कर पी रहे हैं और देसाई साहब को गालियां दे रहे है, इतनी पी चुके हैं कि खड़े तक नहीं हो पा रहे हैं....'
शालिनी की मन:स्थिती बहुत खराब हो रही थी। क्या सोच रहे होंगे सब लोग अमर के लिए.... यह इतना बडा नायक.... इतना असमर्थ इतना असहाय है।
आखिर शूटिंग शुरु हुई । अमर ने दया जी के बिना ही काम किया ।
कमाल कर दिया तुमने...?"
देसाई साहब ने अमर को गले लगा लिया। विदेशी कलाकर अमर के अभिनव से बेहद प्रभावित हो गये थे......
मेक-अप रूम में बैठी हुई शालिनी अमर की ओर प्रशंसा से देख रही थी।
आप उनके बिना काम कर सकते हैं... क्यों सहते हैं उनके इतने नखरे, आप उनके मोहताज नहीं है..... आप उनके बिना भी....।"
' जानता हूं शालिनी मैं उनके बिना काम कर सकता हूं.... ।
तो फिर हमेशा क्यों नही करते..... ?
शालिनी .... वो आदमी... जिदगी में कुछ नही कर पाया, मेरी स्टारडम को जी रहा है वो, यह उससे छिन गयी तो वो टूट जायेगा, फिर क्या होगा उसका ?.... क्या होगा उसके परिवार का....? बोलो....?"
शालिनी अवाक सी अमर को देख रही थी, ना जाने कब वहां आकर खडे हो गये देसाई साहब, धीरे से बोलें।
यह बात हम सब लोग समझते है भाभीजी....।"
शालिनी को लग रहा था वो सचमुच एक महानायक की पत्नी है।
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