VISHKANYA NAAGLOK PART 1

VISHKANYA NAAGLOK PART 1
बहुत समय पहले, नागलोक और भुलोक के बीच मित्रता और सौहार्द्र था। दोनों लोकों के लोग एक-दूसरे के प्रति सम्मान और सहयोग की भावना रखते थे। नागलोक के महाराज सर्पवासुकी जिन्होंने अपने कुशल नेतृत्व से नागलोक की सीमाओं को सदैव सुरक्षित रखा था। उनके यश, बाल और पराक्रम की ख्याति इस रूप से फैली थी की दुश्मन हमला करने से पहले ही अपनी हार मान लेते थे। पर महाराज सर्पवासुकी अब बूढ़े हो चले थे, और धीरे-धीरे उनकी शक्तियाँ क्षीण होती जा रही थीं। कुछ वर्ष पहले हुए एक युद्ध में उन्होंने अपने सबसे नज़दीकी और विश्वसनीय सेनापति को खो दिया था। यह आकस्मिक हमला भुलोक ने किया था, जिसका उद्देश्य किसी की समझ में नहीं आया। भुलोकवासियों को उनसे क्या समस्या हो सकती है, यह भी समझ से परे था। अनंतसर्प, जो सेनापति कालमनी का इकलौता पुत्र था, बदले की आग में जल रहा था। उसके अनुसार महाराज सर्पवासुकी के कारण उसके पिता की जान गई थी और अब उसे सिंहासन चाहिए था। इस राह में मात्र एक कांटा थी महाराज की पुत्री विशाखा, जो अद्वितीय रूप की स्वामिनी थी। आज विशाखा अपने पगाल लोक में प्रशिक्षण के 15 साल पूरे करके नागलोक वापस लौट रही थी। अगले तीन दिनों में वह 18 वर्ष की होने जा रही थी। इसी कारण महाराज सर्पवासुकी बहुत खुश दिख रहे थे और इस हर्षोल्लास के कारण एक पर्व की तरह मनाया जा रहा था। राजकुमारी विशाखा का जन्मदिन, जिसमें भुलोक को छोड़कर बाकी सभी राज्यों को आमंत्रित किया गया था। नागलोक में आज एक विशालकाय स्टेडियम में विशेष आयोजन था, जहाँ नागलोक के विभिन्न क्षेत्रों से आए हुए सभी प्रमुख मेहमान और नागरिक उपस्थित थे। यह आयोजन राजकुमारी विशाखा के व्यस्क होने के उपलक्ष्य में था, जहाँ वह पहली बार सार्वजनिक रूप से अपने अद्वितीय रण कौशल और युद्ध कला का प्रदर्शन करने वाली थी। पहली प्रतियोगिता में, राजकुमारी विशाखा को जंगली जानवरों से निहत्था लड़ना था। उसने अपने केवल हाथों और पैरों का प्रयोग करते हुए एक शक्तिशाली बाघ और दो भेड़ियों को परास्त किया। उसकी चालें इतनी तेज और सटीक थीं कि दर्शकों ने दाँतों तले उँगलियाँ दबा लीं। उसकी फुर्ती और ताकत ने सभी को हैरान कर दिया। इसके बाद भाला फेंक प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। विशाखा ने अपने लक्ष्य को भाले से इस तरह भेदा कि वह सीधा जाकर निशाने के केंद्र में धंस गया। उसकी दृष्टि और सटीकता को देख, वहां मौजूद सभी लोग उसकी प्रशंसा करने लगे। यह न केवल उसकी शारीरिक शक्ति का बल्कि उसकी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता का भी परिचायक था। मल्ल युद्ध में, विशाखा ने तीन प्रतिद्वंद्वियों के साथ एक-एक करके मुकाबला किया। उसकी तकनीक और रणनीति इतनी प्रभावशाली थी कि उसने हर एक को कुछ ही मिनटों में परास्त कर दिया। हर बार जब वह किसी को पटकती, दर्शकों का उत्साह और बढ़ जाता। उसकी दृढ़ता और साहस ने स्पष्ट कर दिया कि वह न केवल एक राजकुमारी बल्कि एक योग्य योद्धा भी है। अंतिम प्रतियोगिता में, विशाखा ने घुड़सवारी में अपने कौशल का प्रदर्शन किया। उसे केवल एक ढाल के साथ 15 योद्धाओं से आत्मरक्षा करनी थी। उसने घोड़े की पीठ पर सवार होकर अद्वितीय कलाबाजियाँ दिखाईं और ढाल का कुशलता से प्रयोग करते हुए सभी हमलों से बचाव किया। उसकी चालें इतनी त्वरित और सटीक थीं कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए। यह अद्वितीय प्रदर्शन देखकर महाराज सर्पवासुकी को अत्यंत गौरवान्वित महसूस हुआ। उन्हें अपनी पुत्री पर गर्व था, जिसने एक ही दिन में पूरे राज्य को अपना प्रशंसक बना लिया था। विशाखा की बहादुरी, आत्मविश्वास, और रण कौशल ने न केवल नागलोक के लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई, बल्कि यह भी सिद्ध कर दिया कि वह एक सच्ची योद्धा और योग्य उत्तराधिकारी है। इस बीच, नागलोक के राजा सर्पवासुकी अपनी बेटी विशाखा के स्वागत के लिए तैयारियाँ कर रहे थे, अनजान कि भाम्बरी का षड्यंत्र दोनों लोकों के बीच अविश्वास और दुश्मनी को और गहरा कर रहा था। उधर राजकुमारी विशाखा का तलवारबाजी का कौशल देखने का समय आ गया था। फलस्वरूप राजकुमारी विशाखा ने जनता की ओर मुख करके अभिवादन स्वीकार किया और कहा, "नागलोक की यह प्राचीन परंपरा है कि राजकुमार या राजकुमारी अपने युद्ध कौशल और तलवारबाजी का प्रदर्शन जनसमूह के समक्ष करते हैं। इसके बाद, यदि किसी को यह लगता है कि वह मुझे चुनौती दे सकता है, तो वह सामने आ सकता है और चुनौती स्वीकार की जाएगी।" उनके यह कहते ही पूरे मैदान में सन्नाटा छा गया, क्योंकि कोई भी दर्शक राजकुमारी विशाखा को चुनौती देने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। राजकुमारी विशाखा की बात सुनकर महाराज सर्पवासुकी का हृदय गर्व से भर उठा। उन्हें इस बात की अत्यंत खुशी थी कि नागलोक में कोई भी योद्धा ऐसा नहीं है जो उनकी पुत्री को चुनौती दे सके। उनकी आँखों में संतोष और गर्व झलक रहा था। जैसे ही उन्होंने विशाखा की ओर देखा, अचानक उनका चेहरा बदल गया। वे हतप्रभ रह गए जब दैत्यों का राजा भाम्बरी उठ खड़ा हुआ और ऊँचे स्वर में बोला, "राजकुमारी विशाखा, यदि आप बुरा न मानें तो मैं आपकी यह चुनौती स्वीकार करता हूँ।" भाम्बरी के भारी-भरकम ढाँचे और विशालकाय शरीर और उसके युद्ध कौशल से सभी परिचित थे। उसकी चुनौती ने सभा में उपस्थित सभी लोगों को स्तब्ध कर दिया। कुछ लोग भय के कारण सिर झुका कर खड़े हो गए, जबकि अन्य उसकी हिम्मत और धृष्टता पर आश्चर्यचकित थे। सभा में कानाफूसी होने लगी कि यह प्रतियोगिता केवल नागलोक के योद्धाओं के लिए है, बाहरी लोगों के लिए नहीं। ऐसे में भाम्बरी की चुनौती ने सभी को चिंता में डाल दिया कि क्या यह चुनौती स्वीकार की जाएगी या नहीं। सभा में गहन सन्नाटा छा गया, और सभी की निगाहें महाराज सर्पवासुकी और राजकुमारी विशाखा पर टिक गईं। महाराज सर्पवासुकी ने सभा में गहरी चुप्पी को तोड़ते हुए कहा, "यह प्रतिस्पर्धा नागलोक के योद्धाओं के लिए ही है, लेकिन यदि दैत्यराज भाम्बरी इसे चुनौती देना चाहते हैं, तो हमें इस पर विचार करना होगा।" उन्होंने राजगुरु की ओर देखा, जिन्होंने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा, "हमारी परंपरा का आदर करते हुए, यदि कोई बाहरी योद्धा हमारी राजकुमारी को चुनौती देता है, तो यह राजकुमारी पर निर्भर करता है कि वह इस चुनौती को स्वीकार करती हैं या नहीं।" विशाखा ने शांति और आत्मविश्वास से कहा, "दैत्यराज भाम्बरी, मैं आपकी चुनौती को स्वीकार करती हूँ। यह मुकाबला केवल एक शक्ति प्रदर्शन नहीं होगा, बल्कि यह हमारे दोनों लोकों के बीच की पुरानी दुश्मनी को समाप्त करने का एक अवसर भी हो सकता है।" उनकी यह घोषणा सुनकर सभा में उपस्थित सभी लोग रोमांचित हो गए। भाम्बरी ने अपनी तलवार उठाई और अपनी विशालकाय मुद्रा में खड़े होकर विशाखा की ओर देखा। विशाखा ने भी अपनी तलवार निकाली और दोनों योद्धा एक दूसरे की ओर बढ़े। जैसे ही उन्होंने अपने कदम उठाए, चारों ओर शांति और सन्नाटा छा गया। दोनों योद्धाओं के बीच का यह संघर्ष न केवल उनके व्यक्तिगत कौशल का, बल्कि दोनों लोकों के बीच की पुरानी दुश्मनी के अंत का प्रतीक भी बन सकता था। विशाखा ने अपनी तलवार उठाई और एक जोरदार चीख के साथ भाम्बरी की ओर दौड़ी। भाम्बरी ने अपनी भारी तलवार से आक्रमण किया, लेकिन विशाखा ने अपनी फुर्ती और चपलता का प्रदर्शन करते हुए उसे आसानी से चकमा दे दिया। दोनों योद्धाओं के बीच तलवारों की टकराहट और चीख-पुकार से पूरा मैदान गूँज उठा। विशाखा ने अपनी बुद्धिमत्ता और रणनीति का उपयोग करते हुए भाम्बरी के भारी आक्रमणों का सामना किया और उन्हें काबू में किया। भाम्बरी की तलवार का एक जोरदार वार विशाखा के ढाल पर पड़ा, जिससे उसका संतुलन थोड़ा बिगड़ गया, लेकिन उसने जल्दी ही खुद को संभाल लिया। उसने अपनी तलवार से एक तीखा आक्रमण किया, जो भाम्बरी की ढाल को भेदते हुए उसके कंधे पर लग गया। भाम्बरी के चेहरे पर दर्द और क्रोध के भाव उभर आए, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने एक और जोरदार आक्रमण किया, जिसे विशाखा ने कुशलता से टाल दिया। यह युद्ध न केवल ताकत का, बल्कि बुद्धिमत्ता और कौशल का भी था। विशाखा ने अपनी चालों और तकनीकों से भाम्बरी को धीरे-धीरे थका दिया। उसकी चपलता और सटीकता ने भाम्बरी को चौंका दिया। यह मुकाबला नागलोक और दैत्यलोक के बीच केवल एक शक्ति परीक्षण नहीं था, बल्कि दोनों लोकों की प्रतिष्ठा का भी प्रश्न था। सभा में उपस्थित हर व्यक्ति की साँसे थमी हुई थीं, और सबकी निगाहें उस मैदान पर जमी थीं जहाँ दो महान योद्धा अपनी-अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए आमने-सामने दो हाथ कर रहे थे अपनी रक्त रंजीत तलवारें हाथों में मेरे लिए जब युद्ध के बीच राजकुमारी विशाखा और राक्षस राज भाम्बरी के बीच तनाव चल रहा था, तब भाम्बरी ने अचानक मौका पाकर विशाखा के पास गया और बोला, "यदि आप हमसे विवाह कर लें, तो हम आपके प्राणों को बचा लेंगे। अन्यथा, तुम्हें हमारी शक्ति का अंदाजा नहीं है। हम बहुत शक्तिशाली हैं और कई योद्धाओं को परास्त कर चुके हैं। ना जाने कितने हाय अजेय योद्धाओं का सर कटके उनका रक्त पिया है उनके नरमुंड से हमने, तो तुम्हारी भलाई इसी में है की विजय या पराजय जो चाहो वो स्वीकार कर लेते हैं हम और तुम्हें अपने साथ अपनी विवाहिता बनाकर दैत्यलोक ले चलते हैं! इसे सुनकर विशाखा का क्रोध भड़क उठा। उसने अपनी पूरी शक्ति एकट्ठी की और भाम्बरी को उठा कर ज़मीन पर पटक दिया। विशाखा ने उसके ऊपर चढ़कर उसकी छाती पर बैठते हुए उसका गला काटने के लिए अपने हाथों को आगे बढ़ाया। इसी बीच महाराज सर्प वासुकी ने हस्तक्षेप करते हुए विशाखा को रोक लिया। सभा में मौजूद लोग भाम्बरी की इस स्थिति पर हंसने लगे जिस्से अपमानित होके भाम्बरी वहां से जा रहा था, तभी सेनापति अनंतसर्प उसके पास आया और उसे शांत करने की कोशिश की। अनंतसर्प ने सोचा कि यह एक अच्छा अवसर है, अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए सर्पवासुकी के खिलाफ भाम्बरी के रूप में एक मारक हथियार हाथ लग गया है । उसने कुछ सेवकों को बुलाकर भाम्बरी के घावों पर मरहम लगाने का आदेश दिया। दीर्घा में बैठे लोग अब भी भाम्बरी को उसकी खोखली ताकत के लिए चिढ़ा रहे थे। "देखो, इस महान योद्धा की हकीकत क्या है," कोई कह रहा था। "इसकी ताकत तो केवल दिखावा है," बाकी सब उसकी युद्ध क्षमाता पर टिप्पणियाँ करने लगे। "देखो, कैसा महान योद्धा है, जो एक स्त्री से हार मान रहा है," एक ने कहा। "इसकी शक्ति तो केवल बातों में ही है," दूसरे ने व्यंग्य किया। भाम्बरी का चेहरा क्रोध और अपमान से लाल हो गया। उसने सभा की ओर क्रोधित होकर देखा और चिल्लाते हुए कहा, "तुम सभी ने हमारी शक्ति का अपमान किया है। नागलोक वासियों अब तुम हमारे कोप का सामना करने के लिए तैयार हो जाओ। इसका परिणाम तुम सभी को जल्दी भुगतना पड़ेगा।" इसके बाद भाम्बरी ने वहां से प्रस्थान किया। उसकी धमकियों ने सभा में सन्नाटा फैला दिया, और सभी को इस बात का एहसास हुआ कि आने वाले समय में नागलोक को एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। महाराज सर्प वासुकी और राजकुमारी विशाखा ने एक दूसरे की ओर देखा, और उन्होंने इस संकट का सामना करने के लिए रणनीति बनानी शुरू की। उसकी इस धमकी को हल्के में न लेने की बात कहते हुए चिंतित होकर सभा समाप्ति के बाद राजा सर्प वासुकि ने राजकुमारी विशाखा को अपने निजी कक्ष में बुलवाया। उनका चेहरा चिंता से भरा हुआ था। उन्होंने विशाखा से कहा, "बेटी, भाम्बरी की धमकियों को हमें हल्के में नहीं लेना चाहिए। मुझे कुछ अनहोनी के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। तुम्हारे शक्ति प्रदर्शन ने हमें यह विश्वास दिलाया है कि नागलोक सही हाथों में है। लेकिन अब समय आ गया है कि तुम सबसे कीमती और सबसे शक्तिशाली धरोहर, उस नागमणि को हासिल करने ka ! महाराज सर्पवासुकी ने विशाखा को नागमणि के महत्व और उसकी सुरक्षा के बारे में समझाया। उन्होंने कहा, "यह नागमणि हमारी कुल देवी द्वारा भुलोक और पाताल लोक के बीच गर्भगृह में रखी गई है। इसे हासिल करने के लिए शारीरिक बल और मानसिक शुद्धता दोनों की आवश्यकता है। केवल रॉयल ब्लड में जन्मी एक अविवाहित स्त्री ही इस कठिन तपस्या को करके नागमणि को प्राप्त कर सकती है। सदियों से लाखों नाग इसकी रक्षा कर रहे हैं। परंतु ध्यान रहे, एक छोटी सी गलती भी जानलेवा साबित हो सकती है।" महाराज सर्पवासुकी ने एक प्राचीन मानचित्र निकाला और उसे विशाखा के सुपुर्द करते हुए कहा, "यहां का नक्शा मैं तुम्हारे सुपुर्द कर रहा हूँ। इसे अपने प्राणों से भी अधिक सुरक्षित रखना। इस मानचित्र में गर्भगृह तक पहुँचने का मार्ग और वहाँ के खतरों के बारे में जानकारी है। इस यात्रा में तुम्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन मुझे विश्वास है कि तुम इस चुनौती को सफलतापूर्वक पार कर लोगी।" विशाखा ने नक्शा लिया और अपने पिता के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया। उन्होंने उसे सफलता की शुभकामनाएँ दीं और कहा, "याद रखना, यह केवल तुम्हारी परीक्षा नहीं है, बल्कि हमारे पूरे राज्य की प्रतिष्ठा और सुरक्षा का प्रश्न है। नागमणि की शक्ति से ही हम भाम्बरी और उसके जैसे अन्य शत्रुओं से सुरक्षित रह सकते हैं।" विशाखा ने यात्रा की तैयारी शुरू कर दी। उसने अपने प्रशिक्षकों से विशेष युद्ध कौशल सीखा और मानसिक शक्ति में वृद्धि के लिए ध्यान और योग का अभ्यास किया। उसके साथ कुछ विश्वस्त योद्धाओं को भी भेजा गया, जो मार्गदर्शन और सुरक्षा के लिए तैयार थे। इस यात्रा में विशाखा को विभिन्न प्राचीन और रहस्यमयी स्थानों से होकर गुजरना था। जंगल, पर्वत, गुफाएँ और पाताल लोक के रहस्यमयी गलियारों को पार करना था। हर स्थान पर उसे नई चुनौतियों और खतरों का सामना करना था। लेकिन हिम्मत, धैर्य और साहस से ओटप्रोट विशाखा ने बार नहीं मानी और अपने लक्ष्य को पाने के लिए लगतार आगे बढ़ती रही... अंततः विशाखा और उसकी टुकडी गर्भगृह के पास पहुँच गए। वहाँ की सुरक्षा अत्यधिक कड़ी थी। लाखों नागों ने उस पवित्र स्थान की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। गर्भगृह में एक दिव्य ऊर्जा का प्रवाह था। जैसे ही विशाखा और उसकी टीम गर्भगृह की ओर बढ़ी, कई भयानक चुनौतियां उनका इंतज़ार कर रही थी