MUJHSE BADHKAR

ड्राइंग रूम में सुनीता अपनी विशेष अतिथियों के साथ बैठी, हाल ही में हुए राजनीतिक परिवर्तन के विषय में बात कर रही थी. उसी समय रंजीता लाइब्रेरी से लौटकर आयी; सुनीता ने अतिथियों से उसका परिचय कराया “मेरी छोटी बेटी रंजीता"
सबको नमस्कार कर रंजीता अन्दर जाने ही वाली थी, तभी रेशमी सलवार सूट पहने... हाथों में चाय की ट्रे उठाये सोनिया अन्दर आयी, पता नहीं कैसे उसका पांव किसी चीज़ से टकराया और ट्रे हाथ से गिर गयी.
"ओह मम्मी..." सोनिया चीख़ी, सुनीता जल्दी से दौड़कर उसके पास पहुँची "अरे अरे कहीं चोट तो नहीं आयी बेटे?"
सोनिया को कोई चोट नहीं आयी थी, सिर्फ़ कपड़ों पर चाय गिर गयी थी, थोड़ी सी उसके हाथ पर भी छिटक गयीथी. क़ीमती टी सेट चकना चूर हो गया था, नौकरानी गंगा आकर टूटे हुए टुकड़े बटोरने लगी, सुनीता उस पर भी बिगड़ी "इतनी भारी ट्रे लेकर बच्ची आयी, तुम क्या कर रहीं थीं गंगा...?
चाय फिर आ गयी, उन लागों की बातचीत फिर शुरू हो गयी. लेकिन रंजीता लगातर कुछ सोच रही थी, पिछले महीने की एक घटना बार बार उसके मस्तिष्क में सजीव हो रही थी. उस दिन रंजीता ड्राइंग रूम में रखे बडे से फूलदान में फूल सजा रही थी, कि अचानक वो फूलदान नीचे गिर गया. टुकड़े बटोरते हुए रंजीता की अंगुली में शीशा चुभ गया, सुनीता वहाँ आयी और बोली "अरे यह क्या किया रंजीता इतना क़ीमती फूलदान तोड़ दिया, सोनिया कितने चाव से प्रदर्शनी से लायी थी'
रंजीता की अंगुली से बहते हुए ख़ून की ओर सुनीता का ज़रा भी ध्यान नहीं था, वो तो बस बड़बड़ाये जा रही थी. पापा ने आकर रंजीता की अंगुली पर दवा लगायी, सोनिया ने सुनीता को समझाया "मम्मी आप इतना परेशान क्यों हो रहीं है कोई उसने जानकर थोड़ा ही तोड़ दिया है."
सोनिया ने रंजीता को खुश करने की बहुत कोशिश की, लेकिन रंजीता के मन का दुख केवल एक घटना का तो नहीं था. बचपन से लेकर आजतक न जाने कितनी बार मम्मी का यह पक्षपात रंजीता को आघात दे चुका था. दीदी को न कभी उसने डाट खाते हुए देखा था, न कभी किसी चीज़ के लिए मम्मी ने उनसे ना कहा था... मुंह से बात निकली नहीं कि दीदी की इच्छा पूरी करने को मम्मी ज़मीन आसमान एक कर देतीं थीं.
दीदी के जन्मदिन की तैयारी एक हफ्ते पहले से ही शुरू हो जाती... शानदार पार्टी, दीदी की बढ़िया ड्रेस... मेहमानों के लिए मंहगे रिटर्न गिफ्टस्. यूँ तो रंजीता का जन्मदिन भी धूम धाम से मनता था. पापा और दीदी बहुत कुछ करते थे, लेकिन मम्मी के मन में वो उत्साह नहीं होता जो दीदी के जन्मदिन पर होता था.
रंजीता का बचपन इन्हीं कुंठाओ में बीता था... अब तो वो बड़ी हो गयी थी. मम्मी के व्यवहार पर अब वो रोती नहीं थी, लेकिन मन ही मन टूट जांती थी. उसकी अंतरंग सहेली अनुराधा उसके मन की बात समझती भी थी लेकिन वो कर क्या सकती थी...?
वैसे रंजीता को किसी चीज़ की कमी नहीं थी, बड़ा सा घर, अच्छा कॉलेज, बढ़िया कपड़े, ढेर सा जेब खर्च, बेहद प्यार करने वाले पापा, दीदी पर मम्मी के प्यार का लहराता हुआ सागर सिर्फ़ दीदी के लिए ही था.
रंजीता के मन की गहराइयों में जो दुख की परतें जम रहीं थी वो अनजाने में ही विद्रोह का रूप लेने लगीं थीं."
दीदी मम्मी की इकलौती बेटी हैं.
अनुराधा उसे समझाने की कोशिश करती...
"नहीं रंजीता ऐसा नहीं है, तू छोटी मोटी बातों पर ध्यान मत दिया कर
"छोटी मोटी बातें? बचपन से लेकर आजतक इतनी बातें, इतनी घटनाएं. मेरे दिमाग़ में छपी हुई हैं कि उनका बोझ उठाया नहीं जाता मुझसे."
सोनिया की शादी तय हो गयी थी... विदेश में बसे हुए डॉक्टर अविनाश के साथ; सुनीता ने ही खोजा था अपनी बेटी के लिए इतना अच्छा घर और वर अब वो शादी की तैयारियों में जुटी हुई थी. रंजीता की परीक्षा सर पर थी, और घर में शादी की भव्य तैयारी चल रही थी; जयपुर से लंहगे मंगाये गये थे. बनारस और मद्रास से साड़ियां, अच्छे से अच्छे डिज़ाइन के गहने गढ़वाये जा रहे थे. कोइ कमी न रह जाये...
रंजीता पढ़ायी करने के लिए अनुराधा के यहाँ चली जाती थी, बार बार वो अनुराधा से कहती रहती "घर में उनकी बेटीकी शादी की तैयारी चल रही है न, मैं वहाँ अपनी परीक्षा की तैयारी कैसे कर सकूँगी.”
एक दिन पढ़ायी के बीच में ही सोनिया का फ़ोन आया "रंजू. कहाँ है तू, शादी में तुझे किसी मौके पर क्या पहनना है ख़ुद भी तो पसन्द कर ले." "दीदी में पढ़ रही हूँ, तुम ही पसन्द कर लो." रंजीता ने ठण्डे स्वर में उत्तर दिया.
‘‘तेरी दीदी तो तेरा बहुत ध्यान रखती हैं रंजू” रंजीता ने कुछ कहा नहीं....
सोनिया की शादी की हर रस्म धूम धाम से हुई.... अनुराधा भी हर अवसर पर उपस्थित रही. रंजीता भी सारी रस्में निभा रही थी, दीदी को मंडप तक लेजा रही थी, जीजा के जूते चुरा रही थी लेकिन उसके व्यवहार में कोई उल्लास नहीं था.
डॉक्टर अविनाश ने इस बात पर ध्यान दिया, और अपने एक अंतरंग मित्र से कहा भी
This girl is behaving like a Robot, somethings wrong somewhere (यह लड़की किसी रोबोट की तरह व्यवहार कर रही है, कुछ न कुछ बात है.) लेकिन किसी से कुछ पूछकर उसके निजी जीवन में दखल देना डॉक्टर अविनाश को उचित नहीं लगा... सोनिया विदेश चली गयी थी, सुनीता लगभग रोज़ ही फ़ोन पर उससे बात करती और बार बार कहती कि उसके बिना घर कितना सूना हो गया है... रंजीता सब कुछ सुनती रहती.
इस बार छुट्टी में रंजीता की सभी सहेलियों ने एक साथ बाहर घूमने जाने का प्रोग्राम बना लिया, रंजीता को भी अवश्य चलना है, अनुराधा और सभी का विशेष आग्रह था, पूरे पन्द्रह दिन तक ख़ूब मौज मस्ती... टेन्शन से दूर.... पापा रंजीता से रोज़ फोन पर बात करते, कभी कभी मम्मी भी करती और कहतीं "ख़ूब घूमो ख़ूब एन्जॉय करो.
रंजीता अनुराधा से कहती "अनु मेरे बिना घर सूना नहीं हुआ है."
"रंजू ऐसी बातें सोचकर अपना मन मत ख़राबकर हम लोग यहाँ घूमने फिरने और अपना मन हल्का करने आये हैं...
लेकिन रंजीता का मन कहाँ हल्का हो सकता था. समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा, सोनिया एक बेटी की मां बन गयी... रंजीता की भी शादी तय हो गयी, एक बड़े उद्योगपति के अकेले बेटे प्रताप के साथ.
सोनिया शादी से एक महीने पहले ही पहुँच रही थी. वो पहली बार अपनी बेटी के साथ आ रही थी. सुनीता अपनी नातिन के स्वागत की तैयारी में बाकी सब कुछ भूल चुकी थी. बच्ची की सुविधा के लिए पूरे घर की सजावट बदल दी गयी, घुटनो के बल चलने वाली बच्ची के लिए घर का सबसे बड़ा कमरा सजाया गया.
सारे कमरे में क़ालीन; कोई भी ऐंसी चीज़ नहीं जिसके टूटने फूटने का डर हो. आज घर मे पेस्ट कंट्रोल होना था, इसीसे सबको दिनभर पड़ोस के घर में जाकर रहना था
अचानक अनुराधा आ गयी जानकर कि सब पड़ोस में हैं वो रंजीता से मिलने वहीं पर चली गयी. आने से पहले फोन कर लेती अनु तो मैं तुझे बता देती, बेकार इतनी दूर परेशान हुई.
"नहीं रंजू. परेशानी कैसी...? शादी का घर है, तैयारियां तो होती ही हैं."
"शादी का घर....?रंजीता के चेहरे पर एक फीकी हंसी उभर आयी. "अनु सारी तैयारियां तो इसलिए हैं क्योंकि उनकी नातिन पहली बार यहाँ आ रही है." अनुराधा की समझ में नहीं आ रहा था क्या कहे, उसने जल्दी से बात बदली... 'रंजू, सुना है, हमारे होने वाले जीजू बड़े हॅन्डसम हैं, हमें तो बहुत जल्दी है उनसे मिलने की."
रंजीता के मुख पर हल्की सी प्रसन्नता उभरी, अनुराधा को संतोष हुआ. सोनिया रंजीता और प्रताप के लिए ढेर सारे उपहार लेकर आयी थी... आते ही शादी की तैयारियों में जुट गयी.... उसकी प्यारी सी बेटी 'गुजंन' रंजीता को बहुत अच्छी लगी... 'गुजंन' की किलकारियां सारे घर में गूंजने लगी, घर में रौनक आ गयी थी, उसे गोद में उठाकर रंजीता के चेहरे पर भी प्रसन्नता झलकने लगती...
शादी की शापिंग के लिए सुनीता रंजीता और सोनिया के साथ जाती थी.... सोनिया बड़े उत्साह से रंजीता के लिए गहने कपड़े पसन्द कर रही थी. लेकिन जो साड़ी, जो कंगन या झुमके सोनिया को बेहद पसन्द आते वो सुनीता तुरन्त उसके लिए ख़रीद लेती सोनिया मना भी करती "नहीं मम्मी यह मैंने रंजू के लिए पसन्द किया है."
"तो क्या हुआ, इसे तू रख ले रंजू के लिए कुछ और ले लेते हैं." रंजीता का जी चाहता चीख़ कर कह दे. 'मेरे लिए कुछ भी लेने की ज़रुरत नहीं है, पर वो कुछ बोल नहीं पाती.
रंजीता बिदा होकर ससुराल आ गयी यहाँ उसे एक नयी ज़िन्दगी मिली, जिसमें ढेर सारी खुशियां थीं, पति का प्यार, सास ससुर का लाढ़ दुलार, रंजीता के स्वागत में घर में आये दिन कोई न कोई आयोजन होता रहता. इतने ढ़ेर सारे प्यार के सागर में डूबते उतराते एक वर्ष का समय कैसे बीत गया पता ही चला.
रंजीता मां बनने वाली थी... उसके ससुर उसके लिए एक नया बंगला बनवा रहे थे.
सुनीता भी रंजीता के लिए बेहत उत्साहित थी. लेकिन रंजीता का ठण्डा व्यवहार सुनीता के उत्साह को बिल्कुल ख़त्म कर देता, उसके दिये हुए उपहार रंजीता खोलकर देखती तक नहीं.
एक दिन सुनीता रंजीता के लिए फल और अन्य बहुत सा खाने पीने का सामान लेकर पहुँची. "आजकल तुझे अपना ध्यान रखना चाहिये रंजू देख यह सेब अनार मैं सबसे बढ़िया वाले छांट कर लायी हूँ, अभी खा इनको मेरे सामने नहीं तो तू....'
‘"थँक्यू; लेकिन आप क्यों यह सब तकलीफ़ करती है....? यहाँ पर मेरा बहुत ध्यान रखा जाता है और भगवान की दया से यहाँ किसी चीज़ की कमी नहीं है.
रंजीता के स्वर से सुनीता चौंक गयी....
"रंजू मैं तेरी मां हूँ.... ठीक है तेरा ध्यान रखने वाले सब हैं, पर मुझे तो तेरी चिन्ता होगी ही आख़िर मेरी बेटी हैं
"क्या...? मै आपकी बेटी हूँ ऐसा कबसे सोचने लगीं हैं आप...?"
"रंजू... तुझे हो क्या गया है.... ऐसी बात सुनकर कितना दु:ख होगा मुझे यह सोचा है तूने...? कोई बेटी ऐसे बात करती है अपनी मां से....
"यह बात आपकी बेटी नहीं... मैं कर रही हूँ, आपकी इकलौती बेटी तो बहुत दूर है आपसे...?"
"मेरी इकलौती बेटी...?
"और क्या...दीदी आपकी एक ही एक बेटी हैं, इस सच्चाई को बचपन से सह रही हूँ मैं..." सुनीता मानो आसमान से गिर पड़ी रंजीता ने बचपन से लेकर अपनी शादी तक की अनेक घटनाएं गिना दी.
‘‘रंजू शायद अनजाने में तेरे साथ बहुत बड़ा अन्याय हो गया है... लेकिन आज में तुझे एक सच्चाई बताती हूँ जिसे सुनकर शायद तू मुझे माफ़ कर दे."
रंजीता कुछ बोली नहीं... उसने बचपन से लेकर अपनी शादी की जो घटनाएं सुनीता के समक्ष दोहरायीं थीं वो फिर से उसे दुःख पहुँचा रहीं थीं जबकि वो तो सब कुछ भूलना चाहती थी: सुनीता आंखों में आंसू भर कर बोलती जा रही थी..' रंजू मेरी एक बहन थी अनीता तेरी बड़ी मॉसी, बहुत प्यार था हम दोनो में, हम अपने मन की हर बात एक दूसरे को बताते थे.. उस समय तेरी मॉसी की शादी को तीन साल हो गये थे. एक बच्ची की मां बन गयी थी वो... और मैं अपने एक साथी संजय से प्रेम कर रही थी...
मुझे विश्वास था मेरी शादी उसके ही साथ हो जायेगी क्योंकि घर में सभी बहुत खुले विचारों वाले थे अचानक एक दुर्घटना में मेरी बहन के न रहने की ख़बर आयी हमारा परिवार अनीता के दुःख से उबर भी नहीं पाया था कि मुझे संजय के विवाह की सूचना मिली... उसके माता पिता ने उसका विवाह अपनी पसन्द की लड़की से कर दिया था..." बोलते बोलते सुनीता रुक गयी उसकी आंखो में आंसू आ गये थे, रंजीता ध्यान से सुन रही थी
"और... फिर रंजू मेरे लिए चारों और अन्धकार छा गया. मैं मां बनने वाली थी... एक दिन जीजा हमारे घर आये तो मेरी उजड़ी सूरत देखकर चिन्तित हो उठे.... उनके बहुत पूछने पर मैंने सब सच बता दिया...." जीजा ने मेरी और मेरे परिवार की इज़्ज़त बचाने के लिए मुझसे शादी कर ली.... सोनिया को मां मिल गयी और तुझे बाप..... फिर मैंने वही किया जो मुझे करना चाहिये था. और जीजा ने भी मेरे लिए तेरे लिए कभी कोई कसर नहीं उठा रखी....
मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ बेटी और सोनिया को भी.... लेकिन तू मेरा अपना एक हिस्सा हैं और मुझे हमेशा यही लगा कि मेरी बहन की अमानत यानी सोनिया मेरे लिए मुझसे बढ़कर है.... लेकिन तू यह बात कैसे समझ पायेगी,
यह तो सोचा ही नहीं मैंने और अनजाने में तुझे दुःख पहुँचाती रही, मुझे माफ़ कर दे बेटी...." सुनीता फूट फूट कर रो रही थी रंजीता भी अपने को रोक नहीं पा रहीं थी." चुप होजाओ मम्मी मां कभी बच्चों से माफ़ी नहीं मांगती... माफ़ी देती है..... और तुम भी माफ़ी दे दो अपनी इस नासमझ बेटी को."
रंजीता अपनी माँ के गले लग गयी....
"रंजू एक बात का ध्यान रखना..."
"बोलो न मम्मी"
"सोनिया को कुछ भी पता नहीं है और मैं नहीं चाहती उसे कभी सच मालूम पड़े..."
"दीदी को यह सच कभी पता नहीं चलेगा, यह वायदा है एक बेटी का अपनी मां से.” रंजीता मां की ओर आदर और प्यार से देखती हुई बोली.
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