KHUSHBOO

आरती और वसु दोनो ही अपने इस नये घर में आकर बेहद खुश थे. तीन बेडरूम हॉल, बड़ा सा किचन, बाल्कनी, जिसमें खड़े होकर समुद्र तट का पूरा दृश्य साफ़ नज़र आता था; पूरी तरह प्रदूषण रहित वातावरण, भले और शालीन पड़ोसी, और सबसे बड़ी बात यह थी किं वसु की फॅक्टरी यहाँ से काफ़ी नज़दीक थी. कार से केवल पन्द्रह मिनट का रास्ता था; सभी तरह से तो सुविधाजनक था यह नया घर.
रोज़ की तरह आज भी वसु ठीक नौ बजे फॅक्टरी चले गये; बाल्कनी में खड़ी हुई आरती समुद्र में तैरती हुई नाव देख रही थी, तभी दरवाज़े पर घंटी बजी. आरती ने दरवाज़ा खोला तो सामने आठ नौ साल की एक प्यारी सी बच्ची हाथों में गुलाब के फूलों का गुलदस्ता लेकर खड़ी हुई थी.
'गुड मार्निंग; मैं ख़ुशबू इसी बिल्डिंग में रहती हूँ, यह फूल आपके लिए हैं."
आरती ने प्रशंसा भरीनज़रों से उसे देखा और फूल हाथो में लेकर बोली "थँक्यू ख़ुशबू अन्दर आओ."
ख़ुशबू आरती के पीछे पीछे अन्दर आयी और सामने रखे हुए सोफ़े पर बैठ गयी; आरती ने फल और मिठाई की प्लेटें उसके सामने रख दीं..
"खाओ ख़ुशबू."
ख़ुशबू एक सेब उठाकर धीरे धीरे खाने लगी; आरती प्यार से उस भोली भाली बच्ची की तरफ़ देखने लगी.
ख़ुशबू ने बोलना शुरू किया.. ''मैं थर्ड क्लास में पढ़ती हूँ, मेरी मम्मी डॉक्टर हैं, मेरे पापा इंजीनीयर हैं, मुझे हॉर्स रायडिंग (घोड़े की सवारी) का बहुत शौक है. मैं सारे खेल खेलती हूँ, लेकिन मुझे घर घर खेलना बहुत अच्छा लगता है...."
‘‘मेरे पास घर घर खेल के दो सैट है एक मेरे पापा ने मुझे दिया है, एक मेरी मम्मी ने दिया है, मेरेपास एक प्यारी सी गुड़िया भी है.” पन्द्रह मिनट में ही उसने अपना पूरा परिचय आरती को दे दिया, आरती उसकी बातें सुनती हुई, धीरे धीरे मुस्कारती रही, और बार बार खुशबू से कुछ न खुछ खा लेने का आग्रह करती रही. शाम को वसु के लौटने पर, आरती ने उसे ख़ुशबू के बारे में बताया...
वसु बेहद ख़ुश हुआ..” अरे वाह, उस प्यारी बच्ची से मै भी मिलना चाहूँगा.' वसु को अधिक इन्तज़ार नहीं करना पड़ा, जल्दी ही एक दिन ख़ुशबू अपनी गुड़िया और घर घर खेल का सैट लेकर आ पहुँची. "
ख़ुशबू का मन रखने के लिए आरती कभी कोई छोटी सी चीज़ लाने के लिए कह भी देती थी. वसु अक्सर ही ख़ुशबू के लिए ढेर सी टॉफ़ी चॉकलेट लेकर आते...
"थँक्यू मामाजी..." ख़ुशबू प्यार मे कहती.
वसु ने एक दिन हंसकर पूछ लिया."खुशबू आरती तुम्हारी बुआ है, और में तुम्हारा मामा, यह कैसे?"
"क्योंकि मुझे आपको मामाजी कहना अच्छा लगता है, और बुआ जी को बुआ जी."
खुशबू ने भोलेपन से कहा, उसे दुनियाके रिश्तों का ज्ञान बिल्कुल नहीं था, जिसके लिए जो सम्बोधन उसे अच्छा लगता वो उसे उसी से पुकारने लगती, इसी बिल्डिंग में रहने वाले कमिश्नर महेश वर्मा को ख़ुशबू भैया कहती और उनके बेटे राहुल को अंकल.
ख़ुशबू को सबसे प्यार था, और ख़ुशबू सबकी प्यारी थी. एक दिन जब ख़ुशबू स्कूल से लौटकर आयी तो उसने देखा बुआ जी उसकी मम्मी के पास बैठी.... मम्मी उन्हें टॉनिक और दवायें दे रहीं है...
‘‘लोग आपके लिए ठीक ही कहते हैं कि डॉक्टर तारा तिवारी से अच्छी डॉक्टर इस शहर में और कोई नहीं है." आरती कृतज्ञता से कह रही थी....
अपनी मम्मी की तारीफ़ ख़ुशबू को बहुत अच्छी लगी "मेरी मम्मी दुनियां की सबसे अच्छी मम्मी है बूआजी..."वो गर्व से बोली... आरती के जाते ही ख़ुशबू ने मम्मी से पूछा "मम्मी बूआ जी को क्या हो गया है?"
वो कुछ देर को सोच में पड़ गयीं, इस बच्ची को कैसे क्या बतायें? ख़ुशबू ने फिर पूछा तो वो मुस्करा कर बोली "तुम्हारी बुआजी के यहाँ एक छोटा सा बेबी आने वाला है.'
"सचमुच...?" खुशबू खुश हो गयी, तभी उसके पापा भी आ गये" मैं बहुत ख़ुश हूँ पापा, बुआ-बुआजी के यहाँ छोटा बेबी आने वाला "
अरे वाह, तब तो तुम्हारी बुआ-बुआजी भी खूब खुश होंगी...?" पापा ख़ुशबू को गोद में उठाकर बोले...
"खुश तो है पर कुछ घबरा रही है.." मम्मी बोलीं
"क्यों...?"
"अकेली है न यहाँ.....'
"वो तो है.... वसु तो दिन भर बाहर रहता है..." पापा ने कहा... ‘‘इस वक़्त उसे देखभाल की ज़रुरत है...... लेकिन बेचारी का कोई रिश्तेदार वगैरह है ही नहीं...."
मम्मी के वाक्य ने ख़ुशबू को धक्का जैसा पहुँचाया...’ कोई कैसे नहीं है, मैं हू ना उसने मन ही मन सोचा. स्कूल से आने के बाद अब पूरे समय ख़ुशबू आरती के ही साथ रहती थी...
"बुआ-बुआजी यह जूस पी लीजिये; यह सेब खा लीजिये, आप आराम कीजिये, तेज़ मत चलिये ज़्यादा पढ़िये मत, ज्यादा टी.वी मत देखिये." ख़ुशबू अपने थोड़े से ज्ञान के अनुसार आरती को निर्देश देती रहती. बुआ-बुआजी के लिए क्या अच्छा है और क्या अच्छा नहीं, यह जानकारी ख़ुशबू ने अपनी मम्मी और बिल्डिंग की दुसरी औरतो से ही प्राप्त की थी.
ख़ुशबू ने दूसरे बच्चों के साथ खेलना भी छोड़ दिया था... कभी वो लोग उसे बुलाते भी तो ख़ुशबू गभ्भीरता से जवाब देती,"नहीं मुझे बुआ- बुआजी की देखभाल करनी है." वसु बहुत ख़ुश थे और हर समय ख़ुशबू की तारीफ़ करते रहते थे,
शुरू शुरू में आरती भी बहुत खुश थी. लेकिन, धीरे धीरे वो अपनी ज़रूरत से ज़्यादा देखभाल से परेशान होने लगी, कभी कभी ख़ुशबू पर खीजने भी लगी एक दिन उने वसु से कह भी दिया. "कभी कभी मुझे ऐसा लगता है, जैसे मैं इस लड़की की गुलाम हो गयी हूँ, मुझे वही करना पड़ता है जो यह चाहती है."
"आरती तुम कैसी बात करती हो....? वो नन्हीं सी बच्ची तुम्हारा कितना ध्यान रखती है.... कितना प्यार करती है वो तुम्हें" वसु ने कहा...
आरती ख़ामोश ही रही, लेकिन अब उसे ख़ुशबू का आना अच्छा नहीं लगता था....
"खुशबू तुम खेलने क्यों नहीं जाती हो...? दुसरे बच्चे खेलते हैं और तुम यहाँ पर..." आरती कहती"
‘‘बुआ-बुआजी आप मेरी चिन्ता मत कीजिये, चिन्ता करना आपके लिए अच्छा नहीं है..."
कभी कभी आरती रुखाई से कहती "ख़ुशबू मुझे अकेला छोड़ दो..."
ख़ुशबू आरती के सामने से हट जाती लेकिन आस पास ही रहती, पता नहीं कब बुआ-बुआजी को ज़रुरत पड़ जाय..... कई बार आरती ख़ुशबू के लिए दरवाज़ा नहीं खोलती "शायद बुआ-बुआजी का मूड अच्छा नहीं है..." सोच कर ख़ुशबू अपने को समझा लेती थी. एक शाम जब स्कूल से लौटने के बाद ख़ुशबू आरती के यहाँ जाने के लिए तैयार हो रही थी तो उसकी काम वाली गंगाबाई ने बताया कि आरती अस्पताल में भरती हो गयी है.... और डॉक्टर साब याने ख़ुशबू की मम्मी भी आरती के साथ ही है
ख़ुशबू का मन कहीं भी नहीं लग रहा था. वो मम्मी के घर वापस आने का इन्तज़ार कर रही थी. जैसे ही मम्मी वापस आयीं ख़ुशबू ने पूछा "बुआ-बुआजी कैसी है...?"
"ठीक हैं... उन्हें बेटा हुआ है...."
"अरे वाह... कैसा है?"
"अच्छा है" धीरे से कह कर डॉक्टर तारा वहाँ से हट गयीं ख़ुशबू को आश्चर्य हो रहा था मम्मी कुछ परेशान है... लेकिन क्यों...? ख़ुशबू बूआजी और बच्चे को देखने अस्पताल जाना चाहती थी. उसके ज़िद करने पर मम्मी उसे ले भी गयीं.
बच्चा बहुत प्यारा था. लेकिन ख़ुशबू ने देखा सबके चेहरे पर एक अजीब सी उदासी है. ख़ुशबू को शीघ्र ही कारण मालूम पड़ गया, वो बच्चा देख नहीं सकता था. ख़ुशबू को गहरा धक्का पहुँचा... आरती घर वापस आ गयी... बच्चे का नामकरण हुआ; बच्चे का नाम रखा गया आकाश....
वसु ने बहुत बड़े बड़े आंखो के डॉक्टरो से आकाश की जाँच करायी... लेकिन सबने एक ही बात कही "कुछ नहीं हो सकता" धीरे धीरे आकाश हंसने लगा, घुटनो के बल चलने लगा....
ख़ुशबू उसका बहुत ध्यान रखती थी. एक दिन ख़ुशबू टीवी देख रही थी उसका ध्यान एक ख़ास ख़बर पर गया... अमरीका से आंखों के एक बड़े डॉक्टर आये हुए हैं जिन्होंने आंखे ट्रान्सप्लॉट की हैं... (एक की आंख दूसरे को लगायी हैं...) खुशबू ने जल्दी से उनक फ़ोन नम्बर नोट किया.... ख़ुशबू राहुल को साथ लेकर उन अमरीकी डॉक्टर के पास पहुँच गयी थी...
डॉक्टर स्ट्रेटन आश्चर्य चकित थे... ‘एक दस साल की लड़की... नौ महीने के बच्चे को अपनी आंखे देना चाहती है.... "डॉक्टर अंकल में पढ़ सकती हूँ, लिख सकती हूँ... मैने बहुत कुछ देखा है, लेकिन आकाश को अभी चलना भी सीखना है... वो देख नहीं पायेगा तो कैसे पढेगा कैसे लिखेगा....'
राहुल भी अवाक् सा खड़ा था.... तो इसलिए ख़ुशबू उसे खींच कर यहाँ लायी थी. डॉक्टर स्ट्रेटन प्यार से ख़ुशबू के कन्धे पर हाथ रख कर बोले.
"प्यारी बच्ची, हम तुम्हारी आंखे आकाश को नहीं दे सकते... लेकिन उसकी आंखे ठीक करने की कोशिश कर सकते हैं...." डाक्टर स्ट्रेटन ने आकाश की जांच की बहुत मुश्किल ऑपरेशन है फिर भी वो कोशिश करेंगे...आकाश का ऑपरेशन सफ़ल हुआ. डॉक्टर स्ट्रेटन के अनुसार यह एक चमत्कार ही था.... जो सिर्फ़ ख़ुशबू के विश्वास के कारण संभव हो सका था....
वसु की आंखो में ख़ुशी के आंसू थे.... सचमुच फ़रिश्ता है यह ख़ुशबू....
आरती और वसु ने बहुत शानदार पार्टी दी.... और चीफ़ गेस्ट (खास मेहमान) थी ख़ुशबू... सभी बच्चे आकाश और ख़ुशबू को घेर कर खड़े थे..." जुग जुग जीये आकाश, जुग जुग जीये ख़ुशबू..."
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