ARCHANA
राहुल अब इस यूनीवर्सिटी में पढ़ता नहीं था, लेकिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए अब भी बुलाया जाता था. राहुल भी खुशी खुशी इन कार्यक्रमों में भाग लेता नाटको का निर्देशन करता. इस तरह, उसे अर्चना के नज़दीक रहने का अवसर भी तो मिलता था. इसीलिए वो अपनी सारी व्यस्तता के बावजूद समय निकाल ही लेता.
राहुल और अर्चना बचपन से साथ खेले थे, साथ पढ़े भी थे. राहुल अर्चना से सीनियर था. लेकिन दोनो के परिवारों में घनिष्ठता होने के कारण वो अच्छे दोस्त बन गये थे...
अर्चना के पिता और राहुल के पिता में गहरी दोस्त थी लेकिन जब राहुल के पिता ने उसकी मां को छोड़कर शांति देवी को अपने घर में रख लिया तो अर्चना के पिता याने ईमानदार और ऊँचे सिद्धानतो वाले प्रकाश भारद्वाज ने रनबीर सिंह से दोस्ती तोड़ दी.
लेकिन उनके बेटे राहुल से नाता नहीं तोड़ा. टूटे हुए परिवार के दुख को संभालने में अर्चना की दोस्ती राहुल का बहुत बड़ा सहारा थी. हर साल की तरह राहुल ने नाटक का निर्देशन संभाल लिया. नायिका अर्चना ही थी. लेकिन इधर राहुल अर्चना में कुछ परिवर्तन देख रहा था, वो रिहर्सल मे कम और विशाल मे अधिक रुचि लेने लगी थी.
विशाल इसी यूनीवर्सिटी में पढ़ता था और शहर के एक बहुत बड़े व्यापारी शंकर दयाल का बेटा था. आये दिन बड़ी बड़ी पार्टियां करना डिस्को में जाना, दोस्तो को भी ले जाना लम्बी ड्राइव पर जाना, यह सारे शौक थे उसके साथ इस चमक दमक ने अर्चना को काफ़ी प्रभावित कर लिया था. महत्त्वाकांक्षी तो वो थी ही.
लेकिन एक ईमानदार इंजीनीयर की बेटी होने के कारण उसे अपनी बहुत सी इच्छाओं को दबा देना पड़ता था. यूँ अर्चना को किसी चीज़ का अभाव नहीं था. लेकिन आधुनिक धनी वर्ग की तरह पैसा उड़ाने को नहीं था.
अर्चना की छोटी बहन रचना, भाई विवेक, दादी और मम्मी पापा... छह लोगों का परिवार, एक मोटी तनख्वाह में अच्छी तरह गुज़ारा हो रहा था. लेकिन अर्चना को यह सिद्धान्तो और आर्दशों में बंधी सीधी सादी जिन्दगी से ऊब होने लगी थी. वो तो आकाश में उड़ना चाहती थी.. राहुल अवाक् रह गया जब एक दिन वो रिहर्सल के बीच से विशाल के साथ डिस्को में चली गयी.
किसी तरह 'शो' हो गया, लेकिन उतना सफ़ल नहीं हो सका जितना विशाल के अर्चना के जीवन में आने से पहले हुआ करता था. राहुल ख़ामोश रहा, वैसे उसने खुले शब्दों में अर्चना से अपने मन की बात कभी नहीं की थी, लेकिन वो समझती तो थी ही कि राहुल उससे प्रेम करता है. प्रकाश अंकल भी राहुल को बहुत पसन्द करते थे इसीलिए उसने कभी अर्चना से अलग होकर ज़िन्दगी के बारे में सोचा ही नहीं था.
राहुल की मां भी अर्चना को अपनी भावी बहू के रूप में स्वीकार कर चुकी थी. राहुल ने किसी तरह अपने को संभाला और अपने कामो में व्यस्त हो गया. अर्चना की विशाल से घनिष्ठता बढ़ती ही जा रही थी.
विशाल के पिता शंकर दयाल अपने बेटे के साथ अर्चना की बढ़ती हुई घनिष्ठता देख कर मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे..
क्योंकि प्रकाश भारद्वाज के विभाग में उनके करोड़ो के प्रोजेक्ट अटके हुए थे.... जबसे प्रकाशजी चीफ़ होकर आये थे. शंकर दयाल का कोई प्रोजेक्ट पास नहीं हो सका था. क्योंकि प्रकाशजी को किसी भी तरह से ख़रीदा नहीं जा सकता था. शायद बेटे का यह प्रेम सम्बन्ध उनके बिगड़े हुए काम बना दे...
उन्होंने विशाल को अर्चना से घनिष्ठता बढ़ाने के लिए पूरा प्रोत्साहन और भरपूर पैसा देना शुरू कर दिया. विशाल अक़्सर ही अपने साथ अर्चना को खंडाला और अलीबाग लेकर जाता. अर्चना घर में बहाना बना देती कि सहेलियों के साथ पिकनिक पर जा रही है कभी किसी सहेली के काल्पनिक भाई या बहन की शादी करवा देती.
राहुल को सब कुछ पता चल रहा था, वो सब समझ भी रहा था फिर भी कुछ कहता नही था. अचानक एक दिन अर्चना को पता चला कि वो मां बनने वाली है,
उसके पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गयी. 'अब क्या होगा?' पापा को पता चल गया तो भूकम्प आ जायेगा.
अर्चना ने डरते डरते विशाल को अपनी हालत के बारे में बताया. "अरे तो उसमें इतना घबराने की क्या बात है?" विशाल लापरवाही से बोला.
"घबराने की ही बात है मैं तो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहूँगी." अर्चना आंखो में आंसू भर कर बोली.....
"किसी डॉक्टर के पास चलो... दो घंटे में हर मुश्किल से छुट्टी मिल जायेगी. फिर किसीसे मुँह छिपाने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी तुमको."
अर्चना विशाल की बात सुनकर और घबरा गयी." नहीं विशाल यह नहीं होगा मुझसे, तुम जल्दी से जल्दी मुझसे शादी कर लो.... वैसे भी शादी तो हमें करनी ही है.
"हां शादी तो करनी है, लेकिन तुम्हें नहीं लगता उसके लिए अभी बहुत जल्दी है."
"मुझे तो लगता है कि बहुत देर हो चुकी है.'
विशाल ने अर्चना से कह तो दिया कि वो अपने पिता से बात करेगा... लेकिन उसे डर भी था कहीं वो बिगड़ गये तो
क्योंकि वो तो अपने बेटे के लिए किसी करोड़ पति की बेटी लाना चाहते है; कहीं वो सुनते ही चिल्लाने न लगें नहीं उस सरकारी नौकर की लड़की हमारे घर की बहू नहीं बन सकती."
लेकिन विशाल आश्चर्यचकित रह गया जब शंकर दयाल बेटे की अर्चना से शादी करने की इच्छा सुनते ही खुशी से उछल पड़े. "अरे वाह ऐसा रिश्ता कहाँ मिलेगा हमें."
लेकिन प्रश्न सिर्फ़ शंकर दयाल के मान जाने का नहीं था, प्रकाशजी का मानना भी ज़रुरी था. शंकर दयालजी के प्रस्ताव पर प्रकाशजी ने कोई खुशी नहीं दिखायी बल्कि एक तरह से 'ना' ही कर दी.
शंकर दयाल और विशाल दोनो ही परेशान हो गये... लेकिन शंकर दयाल के बार बार ज़ोर देने पर और यह जानने पर कि शायद अर्चना की भी यही इच्छा है प्रकाशजी को हां करनी पड़ी... सगाई की तारीख़ भी तय हो गयी... अर्चना के सर से एक बोझ उतरा था.
आज विशाल ने उसे अपने घर बुलाया था. आज दोनो मिलकर पहले फ़िल्म देखने और फिर शापिंग करने जाने वाले थे. अर्चना अन्दर जाने को ही थी कि अन्दर से आने वाली आवाज़े सुनकर दरवाज़े पर ही रुक गयी. शंकर दयाल अपने किसी दोस्त से बड़े गर्व भरे स्वर में बोल रहे थे.
‘‘अरे अब कहाँ जायेगा वो प्रकाश भारद्वाज हमारे प्रोजेक्ट पास नहीं किये.... तो इज़्ज़त धूल में मिल जायेगी उसकी बड़ा ईमानदारी का ठेकेदार बनता है, हमारे बेटेने भी वो कमाल दिखाया है कि उस इंजीनीयर को चारों खाने चित्त कर दिया. शाबाश विशाल बेटे..
कई लोगों की मिली जुली हंसी ने अर्चना के कानो में सीसा सा पिघला दिया वो उल्टे पैरों लौट आयी. परसों ही तो सगाई होनी है उसकी. घर में सगाई की तैयारियां चल रहीं थीं...
अर्चना पापा का उतरा हुआ चेहरा देख रही थी.... ठीक समय पर विशाल अपने पिता और नज़दीकी रिश्तेदारों के साथ आ पहुँचा.
शंकर दयाल प्रकाशजी से गले मिले और कुछ व्यंगात्मक स्वर में बोले “आखिर हमारी बात मान ही ली आपने, हम समधी बन ही गये..."
विशाल का टीका करने के लिए जब प्रकाशजी आगे बढ़े तो अचानक अर्चना बीच में आ गयी.
"नहीं पापा" सब अवाक् रह गये, यह क्या हुआ..
"पापा आपको ऐसा कोई काम करने की ज़रुरत नहीं है जिसके लिए आपकी आत्मा नहीं मान रही है.
"लेकिन अर्चना तुम तो यह शादी चाहती थीं न"
''मैं आपके सिद्धान्तो की क़ीमत पर कुछ भी नहीं करना चाहती पापा."
तम तमाये हुए शंकर दयाल उठकर खड़े हो गये... "यह क्या हमारी बेइज़्ज़ती करने के लिए हमें बुलाया गया था.'
"आप तो यहाँ हमारे साथ नया साल मनाने आये थे न..." अर्चना धीरे से बोली.
"आपने ही कहा था. हम नया साल साथ मनायेंगे और सगाई भी हो जायेगी... हम नया साल साथ ही मनायेंगे, आप हमारे साथ खाना भी खायेंगे लेकिन सगाई नहीं होगी."
"लेकिन क्यों अर्चना..." शंकर दयाल कुछ... गुस्से से बोले......
"मैं इस क्यों का जवाब नहीं दूँगी अंकल.... क्योंकि आप हमारे मेहमान हैं..... मैं चाहती हूँ हम हंसी खुशी नया साल शुरू करें...." प्रकाशजी के चेहरे की रौनक वापस आ गयी थी. उन्होंने आग्रह करके सबको खाने के लिए रोक लिया....
विशाल हैरान था. मौका मिलते ही वो अर्चना के नज़दीक पहुँच कर बोला, "यह तुमने क्या किया अर्चना, अब तुम कैसे दुनियां को मुँह दिखाओगी, मैंने तो अपने पापा को शादी के लिए राज़ी कर लिया था... तुम्हारे लिए तुम्हारी इज़्ज़त के लिए...
"अब उसकी चिन्ता मत करो विशाल, मैंने एबार्शन करवा लिया है, तुमने ही तो कहा था कि इस मुश्किल से सिर्फ़ दो घंटो में छुटकारा मिल सकता हैं, तो मैंने वही कर लिया...."
विशाल आश्चर्यचकित था. "लेकिन तुम तो ऐसा नहीं करना चाहती थी न...?
"हां विशाल, लेकिन मैंने ऐसा कर लिया.."
"मगर क्यों...?"
"इसलिए कि मेरे पापा को ऐसा कोई काम न करना पड़े जिसे वो करना नहीं चाहते.."
अगले हफ्ते ही विशाल को ख़बर मिली कि अर्चना की शादी राहुल से हो गयी. बड़े सीधे सादे ढंग से राहुल और अर्चना की शादी हो गयी...
राहुल को सब कुछ मालूम हो गया था. उसने स्वयं ही आगे बढ़कर अर्चना का हाथ मांग लिया.
‘‘मैं अपने को कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगी” अर्चना बार बार राहुल से कहती ‘‘मैं इस घर की बहू बनकर आयी हूँ; आप मुझे इतने मानसम्मान से यहाँ लाये है, यह जानकर भी कि मैं किसी और के बच्चे की मां बनने वाली हूँ... मै अपराधिनी हूँ...
"तुम हर मान सम्मान की अधिकारिणी हो अर्चना." अपनी सास की आवाज़ सुनकर अर्चना चौंक गयी." "मां आप’
‘‘हां बेटी मुझे सब कुछ मालूम हैं, तुमसे अच्छी बहू इस घर में नहीं आ सकती थी, जो लड़की अपने पिता के सिद्धान्त और मान बचाने को, वो कर सकी जो तुमने किया उससे अधिक ऊँचा कौन है, मुझे गर्व है अपने बेटे पर भी जिसने इन आदर्शों को निभाने में तुम्हारा साथ दिया."
ठीक समय पर अर्चना ने बेटे को जन्म दिया.. प्रकाशजी ने बड़े प्यार से अपने नाती का नाम रखा... 'सूरज' जो एक नयी सुबह, एक नया संदेश लेकर इस दुनियां में आया.
अर्चना के चेहरे पर एक अलौकिक शांति थी. प्रकाशजी ने आगे बढ़कर उसके सर पर हाथ रखा "बेटी में कितना भाग्यवान हूँ यह मैंने अब जाना तुम्हारा यह सूरज इस घर में हमेशा उजाला बिखेरे यही मेरा आशीर्वाद.
"जिस घर में आपकी बेटी जैसी बहू आयी है, वहाँ कभी भी अन्धकार कैसे हो सकता है." यह आवाज़ अर्चना की सास की थी.
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