YAADON KA RANGMANCH

शहर के बीचों-बीच, प्राचीन इमारतों और आधुनिक ऊँचाइयों के बीच बसा हुआ था एवरग्रीन थिएटर। यह थिएटर अपनी समृद्ध इतिहास और अंतरंग माहौल के लिए प्रसिद्ध था और उन लोगों के लिए एक पनाहगाह था जो कला में सुकून ढूँढ़ते थे। इसके नियमित दर्शकों में एक युवा महिला, निमिषा, भी थी।
निमिषा एक २२ साल की खूबसूरत पतली दुबली मीडियम हाइट की लड़की थी। जिसके कमर तक बाल थे आँखें छोटी पर आकर्षक थी। ज़्यादातर वो सलवार कमीज़ पहना करती थी पर कभी कभी साड़ी भी पहन लिया करती थी जिस दिन वो साड़ी पहनती थी उस दिन वो किसी कॉलेज की प्रोफेसर से कम नहीं लगती थी
निमिषा का थिएटर से खास जुड़ाव था। वो और उनके पिता, राज, ने अनगिनत प्रदर्शनियाँ एक साथ देखी थीं। राज कला के एक प्रबल प्रेमी थे, और उन्होंने यह जुनून निमिषा में भी भरा था। हर शुक्रवार शाम, वे अपनी पसंदीदा सीटों पर बैठते—E7 और E8—मंच पर घटित हो रही कहानियों में डूबे हुए।
लेकिन एक साल पहले सब कुछ बदल गया। निमिषा के पिता राज एक लाइलाज बिमारी से लड़ते लड़ते एक दिन गुजर गए। जिससे निमिषा को गहरा सदमा लगा। शुक्रवार रात की यह परंपरा टूट गई, पिता के जाने के बाद निमिषा जैसे टूट गई थी। माँ तो बचपन में ही छोड़ के चली गई थी पर पिता ने कभी भी माँ की कमी मेहसूस नहीं होने दी। और आज वो भी निमिषा को छोड़ कर उसकी माँ के पास चले गए थे। निमिषा पूरा पूरा दिन उनके कमरे में बैठी कभी उनकी तस्वीर को देखा करती तो कभी उनके कपड़ों को स्पर्श करके उनके होने की अनुभूति को महसूस किया करती थी।
एक दिन ऐसे ही रोज़ की तरह वो अपने पिता के कमरे में उनकी चीजों को छू कर देख रही थी की तभी उनकी एक डायरी में से उसी थिएटर के फ्राइडे के दो टिकट मिले सेम सीट के ये उसी फ्राइडे के थे जिस फ्राइडे को उनका देहांत हुआ था। निमिषा की आँखों से आंसू की धरा बह निकली उसके मुँह से जैसे आवाज़ नहीं निकल पा रही थी। बड़ी मुश्किल से उसने खुद को संभाला और अगले फ्राइडे थिएटर जाने का निश्चय किया।
वो थिएटर गई और उसने सेम सीट की दो टिकट्स ली और जा कर अपनी सीट पे बैठ गई और दूसरी सीट पे उसने अपने पिता जी की टोपी रख दी। अब निमिषा ऐसे ही थिएटर आती दो सीट बुक करती एक पे खुद बैठती और एक पर अपने पता जी की टोपी रख देती शायद वो खुद को ये एहसास दिलाते रहना चाहती थी की वो अकेली नहीं है उसके पिता जी आज भी उसके साथ हैं और हमेशा की तरह उसके साथ प्ले देखते हैं। वहां का जो होस्ट था वो ये बात नोटिस करता था पर कभी कुछ कहता नहीं था बस निमिषा की तरफ देख कर एक स्माइल दे देता।
ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा और शायद ऐसे ही चलता रहता अगर उस दिन उस थिएटर में एक प्रसिद्ध नाटक, "समय का पुल," का आयोजन ना होता हर बार की तरह निमिषा प्ले देखने समय से पहुँच गई। जब निमिषा थिएटर में प्रवेश कर रही थीं, उन्होंने एक बुजुर्ग सज्जन को सीट खोजते हुए देखा। थिएटर असामान्य रूप से भरा हुआ था, और वह परेशान दिख रहे थे। निमिषा ने एक पल के लिए सोचा, अपने पिता की टोपी के साथ सजी खाली सीट की ओर देखा।
हिम्मत जुटाते हुए, निमिषा उस व्यक्ति के पास गईं। "माफ कीजिए, सर। क्या आप यहां बैठना चाहेंगे?" उन्होंने पेशकश की। वह व्यक्ति आभारी होकर मुस्कराया। "धन्यवाद, बेटी। मुझे डर था कि प्रदर्शन छूट जाएगा।"
जैसे ही नाटक शुरू हुआ, निमिषा को दुख की एक लहर ने घेर लिया। उन्हें अपने पिता की बहुत याद आ रही थी। लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ी, उनके भीतर कुछ बदलने लगा। "समय का पुल" एक कहानी थी प्रेम, हानि और आगे बढ़ने के साहस की। यह उनके अपने सफर को एक ऐसे तरीके से प्रतिबिंबित कर रही थी जो दर्दनाक और सुधारने वाला था। जीवन को एक नई दिशा की तरफ कैसे ले जाए ये सब उस प्ले में बखूबी दिखाया जा रहा था
अंतराल के दौरान, बुजुर्ग व्यक्ति ने निमिषा की ओर रुख किया और कहा। "यह थिएटर मेरे लिए बहुत सारी यादें समेटे हुए है,। "मैं अपनी दिवंगत पत्नी के साथ यहां आता था। वह कुछ साल पहले गुजर गईं, लेकिन मैं आता रहा। लंबे समय तक, मैंने उनकी सीट बचाए रखी, ठीक वैसे ही जैसे तुमने अपने पिता के लिए किया।"
निमिषा चौंक गईं। "आपको कैसे पता?" उन्होंने पूछा।
वह व्यक्ति धीरे से मुस्कराए। मैं तुम्हारी आँखों में वो दर्द देख सकता हूँ जो कभी मेरी आँखों में हुआ करता था। यह उन लोगों का दर्द है जो अतीत को पकड़ कर रखते हैं क्योंकि उसे छोड़ना बहुत दर्दनाक होता है।"
उन्होंने अंतराल भर बातें कीं, अपने प्रियजनों की कहानियां साझा कीं। उस व्यक्ति का नाम अरुण था, और उन्होंने अपनी पत्नी की याद को सम्मानित करते हुए पूरी तरह से जीना सीखा था, नए अनुभवों को अपनाया और वर्तमान को संजोया।
जब दूसरा अंक शुरू हुआ, निमिषा ने शांति की अनुभूति की। उन्हें एहसास हुआ कि छोड़ना उनके पिता को भूलना नहीं था। इसका मतलब था उनकी याद को सम्मानित करते हुए जीना, जैसे अरुण ने अपनी पत्नी के लिए किया था।
जब नाटक समाप्त हुआ, निमिषा और अरुण ने अलविदा कहा। उन्हें पता था कि उन्होंने एक मित्र पाया है
जैसे ही निमिषा जाने को हुई तभी पीछे से किसी ने उसे आवाज़ लगाई। सुनिए मोहतरमा। निमिषा ने पीछे पलट कर देखा तो एक खूबसूरत नौजवान जिसकी उम्र करीबन २८ के आस पास की होगी दिखने में शरीफ और अच्छे खानदान का लग रहा था। ये कोई और नहीं वहां का होस्ट था निमिषा उसे पहचान गई क्योंकि वो अक्सर निमिषा को देख कर स्माइल किया करता था आज पहली बार उसने निमिषा से बात की। निमिषा ने उसकी तरफ देखा और कहा जी कहिये
वो नौजवान जिसका नाम वैभव था निमिषा के पास आ कर बोल। मॉफ कीजियेगा क्या मैं आपसे कुछ बात कर सकता हूँ वैसे तो हम अजनबी नहीं है पर हाँ जान पहचान है ऐसा भी नहीं कह सकते। अगर आपको बुरा न लगे तो क्या आपके कीमती वक़्त में से कुछ लम्हें आप इस नाचीज को दे सकती है। निमिषा को न जाने क्यों उसका ये अंदाज़े बयान पसंद आया और उसने कहा जी बेशक कहिये क्या कहना चाहते हैं।
वैभव ने कहा जी यहां नहीं अगर इजाज़त हो तो हम कैंटीन में बैठ कर चाय पीते पीते बात कर सकते है। निमिषा ने हाँ में सर हिलाया और दोनों कैंटीन की तरफ चल दिए। वैभव ने दो चाय और समोसे आर्डर किये और बोला इस नाचीज को वैभव कहते हैं आपका नाम
जी मेरा नाम निमिषा है।
तो निमिषा जी मैंने आपको अक्सर यहां आते देखा है पहले आप शायद अपने पिता जी के साथ आती थी पर फिर एक दिन अचानक से आप लोगो ने आना बंद कर दिया उसका कारण मुझे उस दिन पता चला जब आप कई दिनों बाद वापस से आई और आपने अपनी पास वाली सीट पर एक टोपी रख दी और प्ले देखने लगी मैं समझ गया की आपके पिता जी अब आपके साथ नहीं है और उन्हें याद करके ही आप दो सीट बुक करने लगी पर आज जब आपने वो सीट उन बुजुर्ग को दे दी तो न जाने क्यों मुझसे रहा नहीं गया और आपसे पूछने का मन हुआ की आज अचानक ऐसा क्या हुआ की आपने अपने पिता जी की सीट उन्हें दे दी।
निमिषा ने कहा की उस वक़्त उन्हें उसकी ज़रूरत थी और मुझे यही ठीक लगा। वैभव ने कहा आपने बिलकुल ठीक किया मैं आपका दर्द समझ सकता हूँ जब कोई अपना हमें छोड़ कर चला जाता है तो हम खुद को ये यकीं नहीं दिला पाते की अब वो हमारे पास नहीं है और इसी वजह से हम उन्हें खुद से दूर करते हुए डरते हैं। पर यकीं मानिये निमिषा जी आपके पिता जी जहां कहीं भी होंगे आपको ऐसे देख कर खुश तो नहीं होंगे
पर आज आपने उन बुजुर्ग को सीट देकर अपने पिता जी को बहुत ख़ुशी दी है। ये सब सुनकर निमिषा की आँखें भर आती है ये देख कर वैभव माहौल को थोड़ा हल्का करने के लिए कहता है की अगर ये काम मैं करता तो मेरेपिता जी तो मुझे अपने पास ही बुला लेते और बोलते की तुझे अगर ऐसे ही फ़िज़ूल खर्ची करनी है तो तू यहीं मेरे पास रह। ये कह कर हसने लगता है उसकी इस बात से निमिषा को भी हसी आ जाती है और वैभव उसे हसते देख कर कहता है आप ऐसे ही हसते रहा कीजिये अच्छी लगती है।
और एक बात अगर आप मुझसे वादा करें की आप ऐसे ही प्ले देखने आती रहेगी तो मैं लाइफ टाइम मेम्बरशिप आधे प्राइस में दिला दूंगा। ये सुनकर निमिषा स्माइल कर देती है और हाँ में सर हिला देती है वैभव कहता है ये हुई न बात चलिए इसी ख़ुशी में एक एक कप चाय और हो जाए और वो चाय का आर्डर देता है
उस दिन जब वो थिएटर से बाहर निकलीं, उसे हल्का महसूस हुआ, जैसे उसके दिल से एक बोझ उतर गया हो।
अगले शुक्रवार, निमिषा ने सिर्फ एक टिकट खरीदी। वह E7 पर बैठी, और बगल की सीट खाली थी। यह एक कड़वा-मीठा पल था, लेकिन उन्होंने अपने पिता की उपस्थिति को एक नए तरीके से महसूस किया। वह उनके साथ थे, खाली सीट में नहीं, बल्कि उनके दिल में, उन्हें भविष्य को अपनाने में मार्गदर्शन करते हुए।
उस दिन से, निमिषा ने एवरग्रीन थिएटर आना जारी रखीं। वह अब बगल की सीट नहीं बचातीं, लेकिन हमेशा अपने बैग में अपने पिता की टोपी रखतीं। यह उनके प्यार का प्रतीक था, उन यादों की याद दिलाता था जो उन्होंने साझा की थीं, और उसे छोड़ने की हिम्मत की गवाही थी।
वैभव ने अपना किया हुआ वादा पूरा किया और निमिषा को लाइफ टाइम मेम्बरशिप हाफ प्राइस में दिलवा दी हाँ ये बात और है की अब दोनों अक्सर कैंटीन में चाय पीते और समोसे खाते नज़र आ जाते हैं।
समय के साथ, निमिषा ने नए दोस्त, नई कहानियां और नई यादें पाईं। उन्होंने सीखा कि छोड़ना हानि के बारे में नहीं था; यह बढ़ने और नई शुरुआत के लिए जगह बनाने के बारे में था। और उस खूबसूरत थिएटर में, मंद रोशनी और मंत्रमुग्ध कर देने वाली कहानियों के बीच, उन्होंने उपचार और जीवन के प्रति एक नया प्रेम पाया और एक नया साथी पाया । अब भी निमिषा अपने पिता जी के कमरे में जाया करती है पर अकेले नहीं अब उसके साथ वैभव भी होता है वो उसे अपने पिता जी की रंगमंच के प्रति रूचि और उनकी कई सारे उपन्यास दिखती जो उसके पिता जी के पसंदीदा थे। और इस तरह निमिषा की ज़िन्दगी ने एक नया मोड़ लिया उसके जीवन का एक नया अध्याय शुरू हुआ।
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