DR. ANJALI LAST PART

DR. ANJALI LAST PART
छोटी-सी अटैची, दो किताबों का बैग, और आँखों में भरपूर सपना लिए अंजलि जब पहली बार उस मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में दाखिल हुई, तो बाहर की बारिश उसके चेहरे पर जैसे स्वागत गीत गा रही थी। भीगते हुए उसने रिसेप्शन की तरफ देखा, वहाँ बैठे चौकीदार ने बिना देखे पूछा, “नाम?” अंजलि ने धीमे से जवाब दिया, “अंजलि वर्मा...” कलम चलते ही वो फाइल को खिसका देता है “रूम 209, सेकेंड फ्लोर, लेफ्ट में लास्ट।” हॉस्टल की वो सीढ़ियाँ, चढ़ते हुए अंजलि को एहसास हो रहा था हर सीधी पे पाँव रखते हुए की ये ही वो सीढियाँ हैं जिन पर न जाने कितनी लड़कियों के सपने रोज़ दौड़ते होंगे, अंजलि के मन में एक अनकही सी बेचैनी थी। घर छोड़ने का दुख और अपने सपनों की तलाश का जुनून दोनों भावनाएँ आपस में टकरा रही थीं। सीढियाँ चढ़ते हुए वो देख रही थी हॉस्टल की दीवारों को जो उसके लिए एक नई दुनिया का आरंभ थीं, जहां न तो उसकी दादी की रोक थी, न पापा का कठोर निर्णय, और न ही पड़ोस की वह कटाक्ष करती आवाज़ें जो कहती थीं कि डॉक्टर तो बस अमीरों की बेटियाँ बनती हैं। लेकिन इस आज़ादी के साथ एक अजीब सा अकेलापन भी महसूस हो रहा था इसी अकेलेपन के साथ वो पहुँच गयी रूम 209 जिसका दरवाज़ा थोड़ा जर्जर था, लेकिन अंदर की दो लड़कियाँ बड़ी गर्मजोशी से मिलीं एक थी श्वेता, दिल्ली की, और दूसरी थी सिम्मी, जो भोपाल से आई थी। अंजलि की आँखों में डर था, पर होंठों पर शालीन मुस्कान। हॉस्टल का कमरा छोटा था, दीवारों पर पीलापन और कोनों में सीलन थी। श्वेता के बताये निर्देशों का पालन करते हुए उसने अपना बिस्तर जमाया, किताबें एक कोने में रखीं, और चुपचाप खिड़की से बाहर बारिश को देखने लगी अपने बिस्तर से उठकर उसके पास जाकर श्वेता ने उसे दिखाई वो खिड़की जिससे बाहर देखने पर अस्पताल की इमारत दिखाई देती थी जहाँ वह कभी इंटर्नशिप करेगी। श्वेता का व्यवहार अच्छा लगा था अंजलि को फिर दोनों ने साथ में खाना खाया फिर कमरे में रखी टेबल पर उसने अपने मां-पापा की तस्वीर टेबल पर रखी और डॉक्टर प्रसाद की तस्वीर को किताबों की रैक में सबसे ऊपर जैसे वह उसकी प्रेरणा के संरक्षक हो। अगली सुबह अंजलि के मेडिकल कॉलेज का पहला दिन था। यूनिफॉर्म में खुद को आइने में देखकर अंजलि की आंखें भीग गईं। सफेद एप्रन पहनते ही उसे माँ की धड़कनों का स्पर्श, पापा की नाराज़ चुप्पी, और डॉक्टर प्रसाद की मुस्कराहट तीनों एक साथ याद आ गए। उसने अपने गले में स्टेथोस्कोप डाला और हल्की मुस्कान के साथ आगे बड गयी ...हॉस्टल में दाख़िल होते ही एक अजीब-सा माहौल था। उसका कॉलेज का पहला दिन कठिन था। क्लासरूम में प्रवेश करते हुए उसे सबकी निगाहें अपने ऊपर महसूस हुईं। उसकी सादगी और ग्रामीण पृष्ठभूमि कई छात्रों के लिए उपहास का कारण बन गई। उसने आस पास नज़र घुमा के देखा कुछ चेहरे अपनी तरह के संघर्ष लेकर आए थे, तो कुछ चेहरे बेशर्मी से अपने पापा की पोस्ट बताकर रौब झाड़ रहे थे। अंजलि ने जैसे ही अपना बैग बेड पर रखा, एक लड़की हँसते हुए बोली, “गाँव की लगती है, ये लड़की टिकेगी नहीं यहाँ।” पहली बार अंजलि को अहसास हुआ कि किताबों की दुनिया से बाहर की दुनिया कहीं ज़्यादा निर्मम होती है। रैगिंग, ताने, और क्लास में सीनियर्स की घूरती निगाहें उसका हर दिन एक नई चुनौती था। उसे सबसे बुरा तब लगा जब हॉस्टल की लड़कियों ने उसके खाने का डब्बा खा लिया और कहा, “तू तो स्कॉलरशिप वाली है न? ग़रीबों का खाना बड़ा स्वादिष्ट होता है!” उसने रोना चाहा, लेकिन याद आया "मैं माँ से वादा करके आई हूँ।" अभी हॉस्टल का पहला ही हफ्ता था कि रैगिंग का सिलसिला शुरू हो गया। सीनियर्स ने हर किसी से कुछ न कुछ करवाया कोई गाना, कोई डांस, कोई कविता। अंजलि को कहा गया, “तू जो इतनी सीधी-सादी दिखती है, चल ज़रा 'ओ हसीना ज़ुल्फों वाली' पर नाच के दिखा। वह बेहद घबरा गई थी, और उसी वक्त रोहित वहां पहुंचा। ”उस वक़्त कैंटीन के बाहर एक लड़का खड़ा सब देख रहा था रोहित,जो श्वेता का दोस्त था और कंप्यूटर साइंस पढ़ता था, कुछ समझ नहीं पाया लेकिन अंजलि की आँखों में उसे अजीब-सी गहराई महसूस हुई। जब उसने देखा कि अंजलि ज़बरदस्ती नाच रही है, वो खुद को रोक नहीं पाया। उसने पास आकर सीनियर्स से कहा, “रैगिंग का मतलब किसी को अपमानित करना नहीं होता।” पहली बार, किसी ने अंजलि के लिए आवाज़ उठाई थी। उसने सीनियर्स से बहस की और अंजलि को वहां से ले गया। रोहित का यह कदम अंजलि के दिल को छू गया। उसे पहली बार किसी ने इतने दृढ़ और साफ तरीके से उसका साथ दिया था। वक़्त बीतता गया। हॉस्टल की नींदें अधूरी होने लगीं। लेक्चर्स, प्रैक्टिकल, केस स्टडीज़, इंटर्नल एग्ज़ाम्स,लेब्स हर दिन एक नया केस, नई थकान, और नई मानसिक परीक्षा। कई बार उसकी तबीयत बिगड़ती, लेकिन वह नहीं रुकती। और फिर रातों की थकावट... अंजलि की आँखों के नीचे काले घेरे पड़ने लगे। उसे ना दोस्तों के साथ बैठने की फुर्सत थी, ना फेस्टिवल्स में हिस्सा लेने की चाह। उसकी दोस्ती अब उसकी किताबों से थी। वो दिन भी आया जब अंजलि को पहली बार अस्पताल की इंटर्नशिप में एक केस असाइन किया गया एक हार्ट पेशेंट जिसकी हालत बेहद नाज़ुक थी। केस जटिल था, सीनियर डॉक्टर ने कहा, “इसमें गलती की कोई गुंजाइश नहीं है।” अंजलि का हाथ कांप रहा था, लेकिन दिल में खुद से किया गया वही पुराना वादा ‘माँ को बचाया था डॉ. प्रसाद ने, मैं भी उसी तरह लोगों को बचाऊंगी ! उस दिन बुखार में भी उसने सर्जरी के दौरान असिस्ट किया। प्रोफेसर ने बाद में कहा, “You have the temperament. That’s rare, Verma.” कई बार जब वह थककर हॉस्टल के अपने छोटे से कमरे में गिर पड़ती, तब माँ की यादें उसे सहारा देतीं। लेकिन सबसे बड़ा संबल था वह अपनी किताबों से दोस्ती करने लगी, और देर रात तक उस के कमरे में उसकी स्टडी लैंप की लाइट जलती रहती। उस दिन कैंटीन में खास हलचल मची हुई थी क्योंकि कॉलेज का वार्षिक फेस्टिवल नज़दीक था। हर तरफ छात्र-छात्राएं उत्साह और जोश में डूबे हुए थे। दीवारों पर रंग-बिरंगे पोस्टर और बैनर लगे थे, जिसमें विभिन्न प्रतियोगिताओं और कार्यक्रमों की जानकारी दी गई थी। कैंटीन में जगह-जगह छोटे-छोटे समूह बैठे थे, कुछ खाने-पीने में मस्त थे, तो कुछ अपनी प्रस्तुतियों की तैयारी कर रहे थे। हंसी-मजाक और बातचीत की आवाजें हर कोने से गूंज रही थीं। ठीक उसी वक्त, श्वेता अंजलि को कैंटीन में ले आई। अंजलि और श्वेता ने कैंटीन के एक कोने में बैठने का फैसला किया। श्वेता ने पहले ही रोहित को वहां बुला लिया था ताकि वह अंजलि से मिल सके। श्वेता ने मुस्कुराते हुए कहा, "अंजलि, ये रोहित हैं। कंप्यूटर साइंस में पढ़ते हैं …उसकी आगे की बात को अंजलि ने पूरा किया “और बहुत अच्छे इंसान हैं।" रोहित ने हल्की मुस्कान के साथ हाथ बढ़ाते हुए कहा, I am honoured "हाय अंजलि, सुना है तुम बहुत अच्छी डॉक्टर बनने वाली हो।" अंजलि ने थोड़ा झिझकते हुए जवाब दिया, "हाय रोहित, thank you for everything। इस मुलाकात में दोनों के बीच एक अनकहा जुड़ाव महसूस हुआ। रोहित की सहजता और उसकी सादगी ने अंजलि को प्रभावित किया। उन्होंने साथ में कॉफी पीते हुए फेस्टिवल, पढ़ाई और अपने-अपने सपनों के बारे में बातें कीं। चारों तरफ की हलचल के बीच अंजलि और रोहित की बातचीत जैसे अंजलि के लिए रिलैक्स रहने का एक मज़बूत स्रोत्र बन गयी थी इसी फीलिंग से उनकी दोस्ती की शुरुआत हुई। धीरे-धीरे उनकी मुलाकातें बढ़ने लगीं। लाइब्रेरी में पढ़ते हुए, कैंटीन में चाय की चुस्कियों के साथ बातें करते हुए, और फेस्टिवल्स में भाग लेते हुए उनका रिश्ता और भी मजबूत होता गया। रोहित अंजलि के लिए एक सुकून भरी मौजूदगी बन गए। अंजलि की जिंदगी में यह वो समय था जब उसे किसी ऐसे की जरूरत थी जो उसे बिना शर्त समझे। धीरे धीरे अंजलि रोहित को और गहराई से जानने लगी। उसकी नम्रता, संवेदनशीलता और समझदारी ने उसे हर दिन और करीब ला दिया। वो साथ मे पढाई करते जीवन के इम्पोर्टेन्ट टॉपिक्स पे चर्चा करते अंजलि की रेजीडेंसी के कठिन समय में रोहित का समर्थन उसकी ताकत बन गया। जब वह थक कर घर लौटती, रोहित हमेशा फोन पर उसका इंतजार करता। जब वह रोती, रोहित उसे हंसाने की कोशिश करता। जब वह हार मानने की कगार पर होती, रोहित उसे उसके बचपन के सपने की याद दिलाता। और जब वह चुप होती, रोहित उसकी खामोशी को भी समझ लेता था। कभी-कभी रोहित कॉल करता, पूछता “थक जाती हो?”तो अंजलि कहती, “हाँ, लेकिन ये थकान ज़िंदा होने की गवाही देती है।” रोहित सब समझता था, पर उतनी गहराई नहीं जानता था जहाँ तक अंजलि डूबी हुई थी। वो दिन, जब उसकी माँ ने चिट्ठी भेजी, जिसमें लिखा था “बिटिया, तेरे पापा तुझे देखने को तरसते हैं, पर तू क्या शब्द बोलती है …हाँ …ईगो …वो ईगो आज भी उनके भीतर बैठा है।” उस चिट्ठी को पढ़कर अंजलि कई घंटे चुप बैठी रही। माँ की वो कमजोर आँखें, जिनके लिए उसने ये रास्ता चुना था, आज भी उसकी प्रेरणा थीं। फाइनल ईयर के आखिरी सेमेस्टर में जब रिज़ल्ट आया, तो हॉस्टल में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। लेकिन अंजलि चुप थी। उसने बस भगवान की फोटो के सामने हाथ जोड़े और आँखें बंद कर लीं और फिर... वह दिन आया, जिसका सपना उसने आँखों में बसाया था कॉलेज का कॉन्वोकेशन डे। ऑडिटोरियम सजाया गया था गहरे नीले और सुनहरे पर्दों से, स्टेज पर सजे फूल, साउंड चेक की आवाजें और दीवारों पर लगे पोस्टर जिन पर लिखा था “Congratulations, Graduates!” अंजलि बहुत देर से हॉस्टल में तैयार हो रही थी। सफेद कोट पहनने से पहले उसने थोड़ी देर रुककर माँ की तस्वीर को देखा, फिर अलमारी के कोने से वो तस्वीर निकाली जो उसने हमेशा अपने पास रखी थी डॉ. प्रसाद की। वह अब कुछ घिस चुकी थी, किनारे हल्के मुड़ चुके थे, लेकिन वो चेहरा वैसा ही था सख्त लेकिन मानवीय। उसने उसे चूमकर अपनी जेब में रख लिया और कहा, “आज मैं डॉक्टर बन रही हूँ... आपके जैसे बनने की शुरुआत कर रही हूँ।” उसके चारोओर छात्र-छात्राओं की भीड़ थी, दोस्त हँस रहे थे, फोटो खिंचवा रहे थे, लेकिन अंजलि किसी को खोज रही थी। उसकी आँखें बार-बार दरवाज़े की तरफ जातीं। तभी श्वेता आई और बोली, “तुझे पता है, आज का चीफ़ गेस्ट कौन है?” “नहीं।” “डॉ. प्रसाद।।” अंजलि का चेहरा पलभर को सूख गया। उसे विश्वास नहीं हुआ। वो मंच के पीछे तक पहुँच गई। स्टाफ ने उसे रोका, “आपका नंबर बुलाया जाएगा, यहीं रुकिए।” उसकी धड़कनें तेज़ थीं। तभी स्टेज पर उद्घोषणा हुई “And now, we welcome our Chief Guest for the day... the most respected name in medicine, Dr. Prasad!” अंजलि की धड़कन रुक गई। उसकी आँखें उन्हें ढूंढने लगीं। और जब वो आए, स्टेज के बीचोंबीच, अपनी गम्भीर मुस्कान और शांत चाल के साथ, तब सब कुछ जैसे धुंधला हो गया। बस वही चेहरा, वही हाथ जो कभी माँ की नब्ज पकड़कर बोले थे “मैं कोशिश करूँगा।” उन्होंने भाषण की शुरुआत की। “मैं जानता हूँ कि इस सफेद कोट का वज़न क्या होता है। यह सिर्फ एक वर्दी नहीं है। ये एक ज़िम्मेदारी है, एक प्रण है। इसमें सिर्फ दवाइयाँ निर्धारित करना किसीका ऑपरेशन कर देना भर काफी नहीं, लोगों की उम्मीदें होती हैं। और आज... आज मैं गर्व से कह सकता हूँ कि इस मंच के नीचे वो लड़की बैठी है, जिसकी माँ की साँसें मैंने कभी बिना फीस लिए लौटाई थीं, इसलिए की इंसानियत का एक पथ मैंने कभी उसके पिता राजेश वर्मा से सीखा था और उसी दिन मैंने उन मासूम आँखों को देखा था जिनमें डॉक्टर बनने का जूनून और सपना था। और आज... वही सपना मेरे सामने खड़ा है डॉक्टर अंजलि वर्मा।”सारा ऑडिटोरियम तालियों से गूंज उठा। अंजलि की आँखें भर आईं। वह उठी, मंच की ओर बढ़ी। जब उसका नाम बुलाया गया, तो जैसे सारे संघर्ष स्टेज की तरफ आगे बढ़ते हर कदम के साथ कदम ताल करते दिखे दादी के ताने, पापा की नाराजगी, हॉस्टल की थकी रातें, किताबों में डूबा बचपन... सब। वह धीरे-धीरे मंच की सीढ़ियाँ चढ़ी। ऑडिटोरियम में जैसे समय ठहर सा गया था। हर चेहरा खिला हुआ था, अंजलि का हर कदम आत्मविश्वास से भरा। अंजलि के माता-पिता भी वहीं सामने की कतार में बैठे थे जिनकी आँखें शर्म और गर्व के बीच डोल रही थीं। धीरे से उन्होंने अपनी हथेलियों को आपस में रगड़ा मानो समय को लौटाने की कोशिश कर रहे हों। दादी, जिनके होंठ आज शायद पहली बार चुप नहीं थे... उन्होंने धीमे से अपने पास बैठी महिला से कहा: “बिलकुल अपने माँ-बाप पे गई है… लेकिन सोच में हम सब से कहीं आगे।” सामने डॉक्टर प्रसाद खड़े थे। वही सौम्य मुस्कान, वही आँखें, जो उसे आज भी उस सरकारी अस्पताल के बरामदे की याद दिला देती थीं। अंजलि उनके सामने रुकी। वो बोले नहीं, बस गाउन की जेब में हाथ डाला और अंजलि के हाथ में एक काग़ज़ रखा। "तुम्हारा संघर्ष मेरी प्रेरणा है।" अचानक पता नहीं क्या हुआ अंजलि को कुछ शब्द बरबस ही निकल गए उसके मुँह से "ये हैं डॉक्टर प्रसाद... मेरे पहले हीरो। जिनकी वजह से मैंने पहली बार जाना कि डॉक्टर का काम सिर्फ इलाज करना नहीं... बल्कि उम्मीद देना भी होता है। माँ की जान बचाते वक़्त इन्होंने मुझसे कोई सवाल नहीं किया, कोई फीस नहीं ली... बस निभा दिया एक इंसान होने का धर्म। आज मैं वादा करती हूँ मैं भी अपने पेशे को उतनी ही श्रद्धा और मानवता से निभाऊंगी।” im sorry अगर मैं कुछ ज़्यादा बोल गयी या तो उसकी बात काटते हुए डॉ. प्रसाद ने कहा, “अब सुनने का नहीं बोलने का वक़्त है, ये तुम्हारा वक़्त है ” फिर सामने खड़े विद्यार्थियों की ओर देखकर डॉ. प्रसाद बोले मैंने इस लड़की को पहली बार तब देखा था जब इसकी माँ की साँसें कमजोर पड़ रही थीं। मुझे नहीं पता था कि मैं उस वक़्त सिर्फ एक मरीज को नहीं, एक सपना बचा रहा हूँ। आज वो सपना अपने पैरों पर खड़ा है।” तालियों की गूंज में अंजलि ने धीरे से कहा, “सर, मैं जब भी थकती थी, आपकी तस्वीर निकालकर खुद से कहती थी “रुकना नहीं है अंजलि थकना नहीं है अंजलि ” डॉ. प्रसाद मुस्कराए और बोले, “मैंने सब देखा, अंजलि। सिर्फ इसलिए नहीं टोक पाया, क्योंकि तुम्हारी लड़ाई तुम्हारी अपनी थी। और तुम जीत गई हो। बिना शोर किए।” स्टेज से नीचे उतरते समय अंजलि की आँखें नम थीं। रोहित सामने खड़ा था, तालियाँ बजाते हुए, उसी तरह जैसे उसने अंजलि का हर संघर्ष चुपचाप देखा था। बाहर आते हुए जब मंसी, उसकी चचेरी बहन दौड़ती हुई आई और बोली, “दिदी, मैं भी आपकी तरह डॉक्टर बन सकती हूँ?” अंजलि झुकी, उसका माथा चूमा और कहा, “अगर दिल में हिम्मत हो और आँखों में सपना, तो हर लड़की बन सकती है... डॉक्टर भी, कुछ भी।” फ्लैश की चमकें थीं, लोगों की भीड़ थी, लेकिन अंजलि को सिर्फ वो पल महसूस हुआ जब उसने खुद को, अपने विश्वास को, और उस सफेद कोट को जीत लिया था। पीछे बैठी दादी की गीली आँखें, और पापा का झुका हुआ सिर जो अब गर्व से ऊपर उठ रहा है। “डॉक्टर बनना उसका सपना था अब वह किसी और के सपनों की वजह है।”