KHIDKI KE US PAAR

KHIDKI KE US PAAR
सरकारी नौकरी की यहीं विडंबना है कि आए दिन यहां से झोला उठाओ वहां पाहुंचो वहां से झोला उठाओ और फिर चल दो एक नई मंजिल की तरफ...और सोने पर सुहागा होगा कि अगर आप मेरी तरह इमानदार हैं...काम के प्रति सजग और घूसखोरी से दूर ....और इसी के लिए ....बस इसी के लिए चुभती हूं कुछ ....लोगों को में....या कुछ क्या...सब लोगों को मैं.... हर कोई मिलता है मन में कोई न कोई कामना लिए...कोई कैसे तो कोई कैसे प्लीज़ करने की कोशिश में लगा रहता है. पर मेरा अंदर से मन ही नहीं होता कि यूं ही किसी का काम कर दू...मातृ चंद सिक्कन या किसी फैवर के कारण....मास्टर साब को बेटी हूं....कुछ ना कुछ गुण तो होंगे ही मेरे अंदर उनके ....पहले तो वो थे अक्सर पीठ थपथपा दिया करते थे मेरी .... मेरा लड़का बेटा तो बहुत मजबूत है .... झुकेगा नहीं साला.... पर फिर उस दिन... नहीं उस दिन का जिक्र भी नहीं करना चाहूंगी मैं....हिम्मत नहीं होती...क्योंकि उस दिन मेरी ताकत मेरी हिम्मत मेरी शिद्दत मेरी किस्मत मेरे पापा इस दुनिया से... हम सब से कहीं दूर चले गए....और मैं अजीब सी दुनिया में अकेली रह गई जहां कोई तारीफ ही नहीं मिली...मिलता है तो बस कुछ नाम....स्नोबिश...नकचढ़ी....गुस्साल ...घमंडी ....सनकी ...पागल लड़की...कड़क ऑफिसर ..और ना जाने क्या क्या .... .चिड़चिड़ी से हो गई हूं मैं....मन ही नहीं करता बिना किसी काम के किसी से बात करने का...दो टूंक बात होती है जिसमें से मेरी तरफ से बस हूं....हां हम्म.... हां फिर ठीक है .तो इसलिए शोरगुल से दूर शांत जगह रहकर अपनी ही दुनिया में खोए रहकर जीना अब भाने लगा है...और ये लो मेरा फिर से ट्रांसफर हो गया...इस बार मथुरा... गुस्सा तो है पर खुशी भी है कुछ दिन कान्हा की नगरी में बिताके गलती और पापों की माफ़ी मांग लूंगी...हाहाहा...सरकारी दफ्तर में हूं...कुछ ना कुछ कहीं ना कहीं तो उसका ही होगा....कुछ नहीं तो सिस्टम के लचीलेपन से पैदा हुआ अफसोस या गलती से कि गई हरामखोरी...जो भी हो...मैं मथुरा शिफ्ट हो गई... शान्त वातावरण है यहाँ.... कुछ दिनों पहले ही मैंने एक नया घर लिया है, मुझे यहाँ पर सब कुछ बहुत पसंद है बस नहीं पसंद है, तो एक कौवे की आवाज! जो अक्सर मेरी बालकनी में आता है और कांव-कांव करता रहता है। मुझे उसकी वह कर्कश आवाज बिल्कुल पसंद नहीं इसलिए मैंने अपने खिड़कियों के बाहर कांच लगा दिया है और खिड़कियों को हर वक़्त बंद रखती हूं। इतना होने के बावजूद भी वो कौआ कांच पर अपनी चोंच से मारता रहता है। और हर बार कुछ ऐसा करता है कि मेरा गुस्सा और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है... उस दिन, मैं अपने नए घर की सजावट कर रही थी। मैंने बाहर की दीवार पर एक खूबसूरत पेंटिंग लगाई थी, जो मेरे लिए बहुत प्रिय थी। लेकिन कुछ ही घंटों में मैंने देखा कि एक कौआ उस पेंटिंग पे अपनी चोंच रगड़ रहा था... मेरा ध्यान उस दृश्य पर गया और मुझे इससे बहुत नाराज़गी हुई। मैंने भाग के उसे उडाया वहां से और चिड़चिड़ाहट में इस जगह से अपनी पेंटिंग हटाई जहां वो सबसे अच्छी लग रही थी बात यहीं ख़तम होती तो भी ठीक थी.... पर वो कौआ बाज ही नहीं आ रहा था... ये सिलसिला कुछ तीन महीनों तक चलता रहा इन दिनों में अजीब बात यह हुई कि, आज कल मुझे वो कौआ दिखाई नहीं देता तो बातों ही बातों में मैंने सिक्योरिटी गार्ड से कहा कि एक कौआ था, जो मुझे बहुत परेशान करता था और आज कल दिखाई नहीं देता। उसने कहा कि कुछ दिन पहले ही वो कौआ मर चुका है, मेरे मुंह से न जाने क्यों निकला कि चलो अच्छा ही हुआ। (हाय! मैं कितनी कठोर थी) तब उस सिक्योरिटी गार्ड ने मुझसे कहा "मैमसाहब, इसमें उस कौवे की बिल्कुल गलती नहीं है। बात ऐसी है कि आप से पहले जो मैडम यहां रहती थी उन्होंने उस कौवे को अपने बालकनी में रखा था क्योंकि हमारे यहां पर पुराना पीपल का पेड़ था और जब उस पीपल के पेड़ को काटा गया तो वहाँ घोसले में चार कौवे के छोटे बच्चे थे जिनको पाल पोस कर उन्होंने ही बड़ा किया था। वैसे तीन तो कब के मर चुकें हैं यह आखरी था , कुछ दिनों पहले ही यहाँ मरा हुआ जमीन पर पड़ा था।" वो उन दिनों सुबह होते ही उनकी बालकनी में आता और मैडम उसे रोटियां तोड़ कर खिलाती थी और एक कटोरी में पानी भर कर रखा करतीं थी। एक साल पहले ही एक दुर्घटना में उनकी मौत हो गयी, उसके बाद से यह घर बंद था। जब आप आयीं तो उसे लगता था कि शायद उसकी मैडम वापस आ गई हैं और उसी की वजह से वो बाहर खिड़कियों के चक्कर लगाया करता था।" मैं सिक्योरिटी गार्ड की बातें सुनकर बहुत ही आश्चर्य में थीं और आंखों से आंसू भी बह रहें थे। उस दिन मुझे बेहद अफसोस हुआ कि मैं इंसान होकर भी दया ना दिखा पाई और वह एक पंछी होकर भी अपने दिल में इंसानियत की झलक दिखा गया। मैंने जो भी किया वह सबसे बड़ी गलती थी, भले ही वो अनजाने में क्यों ना हुई हो, और उसी का पश्चाताप करने के लिए मैंने अब अपनी खिड़की के बाहर के कांच निकलवा दिए। अब मैं खिड़कियों में चिड़ियों के लिए पानी और दाने रखा करती हूं। सभी पंछी वहाँ आते हैं दाने खाया करते हैं, पानी पीते हैं और फिर चले जाते हैं। उन्हें देखकर मुझे अब एक अलग सा सुकून मिलता है और कहीं ना कहीं दिल में एक अफसोस होता है कि काश वो कौआ फिर से वापस आ जाए क्योंकि उस कौवे के बिना ये बालकनी सूनी-सी लगती है।