BIN CHHUYE PART 1

BIN CHHUYE PART 1
हर तरफ रौशनी फैली थी… बिजली के बल्बों की लड़ी, फूलों के हारों की खूशबू, शहनाइयों की धीमी-धीमी धुन… बारात दरवाज़े तक आ चुकी थी, नीचे हर कोना लोगों की चहल-पहल से गूंज रहा था। घर के आंगन में सब कुछ एक उत्सव की तरह लग रहा था जैसे किसी ने त्योहार को जिंदा कर दिया हो। पर ठीक इसी वक्त, उस घर के ऊपरी कमरे की खिड़की के पीछे, एक चेहरा था सजाया गया, संवारा गया, लेकिन उदास… सुन्न… और बिल्कुल बेजान। शालू उस कमरे में लाल जोड़े में बैठी थी। उसकी आंखों में काजल था, होंठों पर हल्की सी लिपस्टिक, और माथे पर बड़ी सी बिंदी... लेकिन चेहरे पर मुस्कान नहीं थी। उसका घूंघट चेहरे के आधे हिस्से को ढँके हुए था और अंदर से उसकी पलकों के नीचे आंसुओं का समुंदर रुका बैठा था। उसकी नजरें बार-बार फर्श पर टिकी जा रही थीं… आवाजें नीचे से आ रही थीं “दुल्हन को नीचे ले आओ… पंडित जी इंतज़ार कर रहे हैं…” उसी वक्त, उसकी मां कमरे में आई। आंखों में मजबूरी थी, चेहरे पर एक सख्त झूठी मुस्कान। "चलो बेटा… सब नीचे इंतज़ार कर रहे हैं… पापा ने कहा है, देर नहीं करनी," मां ने उसकी चूड़ियां ठीक करते हुए कहा। शालू ने कुछ नहीं कहा। बस चुपचाप खड़ी हुई, घूंघट ठीक किया और बिना एक शब्द बोले सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई। उसके चलने का तरीका भी बदला हुआ था जैसे किसी को हर कदम पर अपने सपनों की लाशें उठानी पड़ रही हों। मंडप में बैठते हुए शालू का दिल धड़क नहीं रहा था वो दर्द कर रहा था। रोहित का चेहरा उसकी आंखों के सामने बार-बार आ रहा था। वो लड़का जिससे उसने वादे किए थे, सपने देखे थे, भागने की बातें की थीं… और जिसे छोड़कर आज वो किसी और की होने जा रही थी। क्यों? सिर्फ इसलिए क्योंकि उसके पापा को ये रिश्ता "उचित" लगा था? फेरे हो गए। सिंदूर भर दिया गया। मंगलसूत्र पहनाया गया। अब शालू की पहचान बदल चुकी थी अब वो किसी की पत्नी थी। सुहागरात के कमरे को फूलों से सजाया गया था। बिस्तर पर गुलाब की पंखुड़ियां बिछाई गई थीं, दूध का गिलास मेज पर रखा था और कमरे में हल्की सी गुलाब की खुशबू फैली हुई थी। लेकिन शालू का मन हर उस चीज़ से दूर था उसे किसी गंध से फर्क नहीं पड़ रहा था, न साज सज्जा से, न शादी की थकावट से। उसका ध्यान बस मोबाइल की स्क्रीन पर था। अचानक फोन बजा। रिंगटोन सुनकर उसकी सांस तेज़ हो गई। उसने मोबाइल उठाया कॉल रोहित का था। हाथ कांप रहे थे… लेकिन उसने कॉल रिसीव कर लिया। "कब से इंतज़ार कर रही हूं… अब फुर्सत मिली है कॉल करने की?" शालू का गला रोते हुए भरा हुआ था। रोहित का जवाब ठंडा, लेकिन तंज भरा था, "क्या करूं… तुम चली गई किसी और की बाहों में… मैंने कहा था, भाग चलते हैं… लेकिन तुम्हें तो मां-बाप की इज़्ज़त प्यारी थी। अब जी लो मेरे बिना… याद रखना, तुम्हारी ये बेवफाई मैं कभी नहीं भूलूंगा… मर गया तुम्हारे लिए तुम्हारा रोहित।" शालू का मन जैसे किसी ने मोड़ के रख दिया हो। वो गुस्से में भी थी, दुख में भी। "ऐसा मत बोलो… मैं तुम्हारी हूं… और हमेशा रहूंगी। ये जो लाल जोड़ा मैंने पहना है, मुझे कफन जैसा लग रहा है। ये फूलों से सजी सेज मुझे जेल लग रही है। मुझे ले चलो रोहित… अभी… इसी वक्त…" फोन के उस तरफ एक पल की चुप्पी रही। फिर रोहित बोला, "आज की रात खुद को बचा के रखना… कल कोई जुगाड़ करता हूं। मेरी कसम है, उसे छूने मत देना… वरना जान से मार दूंगा उसे।" तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। शालू ने फौरन कॉल काट दिया, आंसू पोंछे, घूंघट ठीक किया और दरवाज़ा देखा। छोटी ननद नित्या अंदर आई हंसती हुई, उत्साही और शरारती। "भाभी सोच रही होंगी कि भैया की जगह मैं कैसे आ गई? टेंशन मत लीजिए… सुहागरात तो भईया ही मनाएंगे… मैं तो बस ये कहने आई हूं कि कोई जरूरत हो तो मुझे कॉल करिएगा।" कहते हुए वो एक चिट पर अपना नंबर रख गई। "बेस्ट ऑफ लक, भाभी…!" और खिलखिलाती हुई चली गई। शालू ने लंबी सांस ली। पर क्या आज की रात को टाल सकती है? घड़ी की सूइयां धीरे-धीरे चल रही थीं… और फिर…कमरे में सागर आया। उसके चेहरे पर मुस्कान थी, आंखों में चमक। उसने दरवाज़ा बंद किया। उसकी चाल में किसी नर्वस लड़के की संजीदगी थी कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं… कोई हवस नहीं… उसने जेब से गुलाब निकाला। धीरे-धीरे शालू की ओर बढ़ा। "ये तुम्हारे लिए… आज हमारी नई ज़िंदगी की शुरुआत है। ये नाज़ुक गुलाब, मेरी दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की के लिए…जो अब मेरी पत्नी है" शालू ने गुलाब लिया… लेकिन उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। "एक बात कहूं?" शालू की आवाज़ बहुत हल्की थी। सागर ने थोड़ी संजीदगी से सिर हिलाया, "कहो… पूरा हक है तुम्हें।" "मैं थकी हुई हूं… बुखार जैसा लग रहा है… क्या हम इस परंपरा को कल निभा सकते हैं?" वो अपने हाथों से घूंघट उठाती है। आंखें लाल, चेहरा फीका लेकिन उसके बोलने में सच्चाई नज़र आई थी सागर को.. सागर कुछ देर उसे देखता रहा… फिर मुस्कुरा कर बोला, "तुमसे बढ़कर कोई परंपरा नहीं है। अब तो हर रात हमारी है… मैं रात बनूं… तुम उसकी रौशनी।" शालू को पहली बार किसी की बात अच्छी लगी… दिल को शांति मिली। लेकिन अगले ही पल रोहित का चेहरा फिर उभर आया… उसका गुस्सा… उसकी मोहब्बत… उसकी धमकी… शालू का मन बंट चुका था। वो उठी, कमरे की लाइट बंद की… और खुद को उस अनिश्चित बिस्तर पर लेटा लिया। ये रात निकल गई थी (अगली सुबह) कमरे में खिड़की से आती धूप की हल्की रोशनी फैली हुई थी। हल्की हवा परदे को हौले से हिला रही थी। कमरे का माहौल अब सजावट से नहीं, खामोशी से भरा हुआ था। बिस्तर पर लेटी शालू की आंखें अधखुली थीं, मगर नींद बहुत देर पहले ही टूट चुकी थी। उसके चेहरे पर सोचने की थकान थी, सोने की राहत नहीं.. उसने बगल में पड़े मोबाइल की स्क्रीन पर नज़र डाली सुबह के 8 बज चुके थे। सागर वहां नहीं था। शालू ने मोबाइल उठाया, धीमे से स्क्रीन पर उंगली घुमाई और Ro... पर रुक गई। कॉल मिलाया। फोन उठते ही उसने धीरे से पूछा, “कब ले चलोगे मुझे… और कैसे?” उसके स्वर में उम्मीद भी थी और झुंझलाहट भी। रोहित की आवाज़ आई सीधी, सपाट, बेमरहम, “सागर का पूरा परिवार साथ रहता है, तो किसी को शक न हो, एक काम करो… उसे हनीमून पे कहीं दूर ले चलो… वहां हिसाब कर देंगे उसका। फिर हम दोनों, तीसरा कोई नहीं… बस हमारी दुनिया।” शालू एक पल के लिए ठिठक गई। हनीमून का बहाना? किसी की हत्या? ये सब कितना आसान लग रहा था उसके मुंह से… "अगर ये प्लान सफल हुआ… तो क्या करोगे तुम?" शालू ने अनजाने डर से कांपते हुए पूछा। “मार देंगे उसे,” रोहित ने ठंडेपन से कहा। उसके ये चार शब्द शालू के कानों में ऐसे पड़े जैसे किसी ने सिर के भीतर बम फोड़ दिया हो। उसके हाथ कांपने लगे, गला सूख गया। "और… कोई रास्ता नहीं है?" वो थरथराती आवाज़ में पूछ बैठी। "अगर तुम्हें रोहित चाहिए, तो उसे हटाना ही होगा… दो घंटे बाद जवाब देना। और तब तक मत कॉल करना।" रोहित ने कहकर फोन काट दिया। शालू ने फोन नीचे रखा… और शालू जैसे कमरे की दीवारों से टकरा गई। उसका मन अब उलझ चुका था… डर, पछतावा, मोहब्बत, जिम्मेदारी सब एक साथ उसके सिर पर हथौड़े की तरह पड़ रहे थे। तभी सागर कमरे में आया। हाथ में एक ट्रे थी, जिसमें कॉफी का कप रखा था। मुस्कुराता चेहरा, नींद में बिखरे बाल… और वो वही भोलापन जो पहली रात भी था। "सुप्रभात मेरी पहली सुबह की पहली अप्सरा… ये कॉफी तुम्हारे लिए… तैयार हो जाओ… फिर साथ नाश्ता करते हैं," उसने वही हल्का-फुल्का, साफ दिल वाला अंदाज़ रखा। शालू ने ट्रे से कप तो उठाया… मगर कॉफी होठों तक नहीं पहुंची। जैसे ज़हर का डर हो मन में। फिर जैसे ही सागर मुड़ा, उसने कप उठाया और सीधे वॉशरूम के हैंडवॉशर में उड़ेल दिया। फिर वॉशरूम में जाकर नहाई। बालों में कंघी करते हुए दर्पण के सामने खड़ी थी ,शादी के बाद आज पहली बार उसने खुद को गौर से देखा। कितनी सुंदर थी वो… एकदम दुल्हन जैसी। पर मन इतना भारी क्यों लग रहा था? तभी पीछे से सागर चुपके से आया… और शालू को धीरे से पीछे से थाम लिया। शालू ने झटके से खुद को छुड़ाया… और उसके चेहरे से साफ झलक गया कि वो इस छुअन से सहज नहीं थी। सागर समझ गया। उसने एक कदम पीछे लिया और हल्की मुस्कान के साथ माफी मांगी, “सॉरी… क्या करूं, रहा नहीं गया। तुम इतनी खूबसूरत लग रही हो… लेकिन मैं वादा करता हूं… जब तक तुम खुद ना कहो, मैं तुम्हें छूने की कोशिश नहीं करूंगा। तुम्हारा हक है जब चाहो, मुझे दे देना… मैं इंतज़ार करूंगा।” उसकी ये बात… शालू के दिल में कहीं उतर गई। एक पल को वो बस उसे देखती रह गई… बिना कुछ कहे। [दोपहर के कुछ घंटे बाद] शालू बैठी थी, सोच रही थी… तभी फिर से फोन बजा। रोहित का कॉल। "क्या सोचा तुमने… कब चल रही हो हनीमून पर?" शालू चुप थी। कुछ पल बाद बोली, “इतना आसान है क्या…? इनके यहां रिवाज है… शादी के एक हफ्ते तक दुल्हन घर से बाहर नहीं जाती… मैं क्या करूं, समझ नहीं आ रहा…” रोहित गुस्से से चिल्लाया, “मर जाओ फिर! तुम्हारे पास दो रास्ते हैं शालू… या घुट-घुट के मरो… या उसे मार दो… दो घंटे हो गए… अब फैसला लो…” कॉल कट हो गया। शालू ने सर पकड़ लिया… उसकी सांसें तेज हो गईं… दिल उफनने लगा। तभी सागर फिर कमरे में आया… धीरे-धीरे… कोई आहट नहीं… हाथ में एक चॉकलेट और उसकी पसंद का बिस्किट। “तुमने सुबह से कुछ नहीं खाया… अगर कोई समस्या है, बताओ… यकीन मानो, मैं हर कदम पर तुम्हारे साथ हूं… और अगर तुम्हें लगता है… कि मुझे तुम्हें नहीं छूना चाहिए… तो मेरी कसम, जब तक तुम खुद ना चाहो… मैं तुम्हारे करीब नहीं आऊंगा…” शालू की आंखों में एक चमक-सी आई… अब वो डरती नहीं थी। अब वो खुलकर बोल सकती थी। उसने धीमे स्वर में कहा, "एक सवाल पूछूं?" सागर मुस्कुराया, "हम एक रिश्ते में हैं… रिश्ते की गहराई सवालों से ही बनती है… पूछो…" "अगर मैं यहां नहीं होती… तो किसी और के लिए सपने देखे थे आपने?" सागर की आंखें गहरी हो गईं। वो कुर्सी पर बैठ गया। लंबी सांस ली… फिर अपनी कहानी सुनानी शुरू की रानी की कहानी वो जो कभी रानी थी 1. क्या सच्चा प्रेम वही होता है जो आज़ादी देता है, या वो जो अधिकार मांगता है? 2. अगर आप शालू की जगह होते, तो क्या आप अतीत के प्रेम को चुनते या वर्तमान की शांति को? 3. क्या किसी रिश्ते की शुरुआत ‘बिना छुए’ भरोसे से हो सकती है और क्या वही उसे सबसे मजबूत बनाता है?