BAND KHIDKIYAAN PART 1

पृष्ठभूमि में हल्की हवा की सरसराहट… कहीं दूर घंटी की आवाज़…सना मेहरा उम्र अड़तीस दिल्ली के पॉश इलाके ग्रेटर कैलाश पार्ट 2 में एक आलीशान फ़्लैट की चौथी मंज़िल पर उसका ठिकाना था।
बाहर से सबकुछ परफेक्ट फ़र्श पर इटालियन मार्बल, दीवारों पर वॉलपेपर जो खुद उसकी पसंद से फ्रांस से मंगवाया गया था, और खिड़कियों पर वो भारी रेशमी परदे, जिनकी सिलवटें खुद उसके मूड से मेल खाती थीं।
लेकिन…
वो परदे, जो दिनभर हवाओं और रोशनी से लड़ते दिखते थे, असल में हर खिड़की को खामोश रखते थे।
सना… वो औरत थी जो हर पार्टी में "Hostess with the Mostest" कहलाती थी। जब भी किसी सोशलाइट की पार्टी होती, सबको पहले ये जानना होता "सना आ रही है ना?" क्योंकि अगर वो आ गई, तो पार्टी की शक्ल ही बदल जाती।
वो हर बार नई साड़ी पहनती थी अक्सर सिल्क या कॉटन, पर फॉल और पल्लू ऐसे गिरते कि हर औरत की निगाहें वहीं अटक जातीं।
उसके ब्लाउज़… किसी शहर की दुकान से नहीं, बल्कि बैंगलोर की एक स्पेशल डिज़ाइनर से आते थे, जो सिर्फ़ अपॉइंटमेंट पर काम करती थी।
उन ब्लाउज़ों के कट्स पर भी उतनी ही चर्चा होती जितनी किसी एक्ट्रेस के इंस्टा लुक पर। सना की मौजूदगी का मतलब था हर चीज़ परफेक्ट। उसका मेकअप, उसका पर्फ्यूम, उसकी मुस्कान जैसे कोई केयरफ़ुल्ली कसे हुए सीन का हिस्सा हों। और फिर सोशल मीडिया…उसकी व्हाट्सऐप स्टोरीज़ पर गोवा ट्रिप्स की तस्वीरें होतीं समंदर के किनारे वो नारियल पानी वाला नारियल पकड़े खड़ी होती, धूप की दिशा के उलट सनग्लासेस लगाए, पर कैमरे से नज़रें चुराती हुई…जैसे कह रही हो, "मुझे फोटो खिंचवाना पसंद नहीं… जबकि हर फ्रेम जैसे उसी के लिए बना हो।" लेकिन वो मुस्कान? वो मुस्कान … बहुत कुछ छुपाये हुए थी अपने अंदर …असल में हर रात, जब सारी रौशनी बुझ जाती, और समंदर की लहरें उसके विला की बालकनी से टकराने लगतीं, तो वो अकेले उस झूले पर बैठती कॉफी का मग हाथ में लिए, ठंडी हवा से उलझते बालों को पीछे करते हुए। और फिर, बस एक ही सवाल अपने आप से पूछती थी
"मैं... कौन हूँ?"
पंद्रह साल पहले…जब सना की शादी अनिकेत से हुई थी, तब सबने कहा था "तू लकी है सना… बहुत लकी।" क्योंकि अनिकेत एक नामी बिल्डर था।उसके प्रोजेक्ट्स के बिलबोर्ड पूरे शहर में लगे होते "अनिकेत हाइट्स", "अनिकेत ग्रीन्स", "द ओसिस", "लक्ज़ूरिया विलाज़"…हर मीटिंग में लोग उसकी सलाह लेते, प्रेस इंटरव्यूज़ में उसके स्टेटमेंट्स आते, और कॉलर आईडी पर उसका नाम देख क्लाइंट सीधा खड़ा हो जाता। और इस सबके बीच वो उस धुन में खोता गया अपनी ही दुनिया में वो हमेशा फोन पर होता। कभी "जरूरी मीटिंग", कभी "साइट पर वर्कर का मामला", कभी "डील के बीच में"…यहाँ तक कि टॉयलेट में भी वो कॉल पर ही होता। सना को कभी लगता, शायद काम कम हो जाएगा तो बात बढ़ेगी।पर धीरे-धीरे समझ आया घर में अनिकेत की मौजूदगी बस घड़ी की टिक-टिक जैसी थी। सुनाई ज़रूर देती थी,पर छूने जाओ… तो बस हवा मिलती थी।
बेटी अदिति…
शादी के सातवें साल में जब अदिति हुई, तो सना को लगा —
“शायद अब ये घर कुछ बदलेगा । कुछ अपने मन जैसा बदलाव आएगा शायद ।” पर जैसे-जैसे अदिति बड़ी हुई, वैसे-वैसे " पेरेंटिंग " भी प्रोजेक्ट की तरह आउटसोर्स होने लगी।
अदिति को बोर्डिंग भेजा गया “डिसिप्लिन सीखने”, “बेहतर एक्सपोज़र के लिए”, “उसकी बेहतर पर्सनालिटी के लिए”… इसका असर हुआ अदिति पर मगर कुछ अलग तरीके से, अब अदिति के पास फोन पर सिर्फ़ दो-तीन डायलॉग रह गए थे "हाँ मम्मा… ओके मम्मा… हाँ वो भेज देना मम्मा।" कोई लड़ाई नहीं। कोई बहस नहीं। ना नखरे, ना इमोशनल ब्लैकमेल बस एक ऑटोमैटिक कॉल जैसे अलार्म की एक धुन…हर रोज़ बजती थी,और फिर ख़ामोशी हो जाती थी।
सना उस घर में महज़ अकेली नहीं थी वो उस घर में अदृश्य भी थी। जिस घर को उसने बड़े मन से सजाया था जहाँ हर पर्दे का रंग उसने चुना, हर फूलदान के पास अपनी याद रखी, हर दीवार पर खुद की पसंद से तस्वीरें टांगीं…उसी घर में अब वो खुद का वजूद तलाशती थी । वो बस एक किरदार बन के रह गई थी, जो हर पार्टी में मुस्कुराता था,हर तस्वीर में दिखता था,पर जब शीशे में खुद को देखता तो उसकी आँखें पूछतीं…“क्या तू वाकई… सना है?”
ये सना तो उस सना की परछाई तक नहीं थी… जो खुशमिजाज़ हुआ करती थी हर दिल अजीज़ खुद की ही फवौरिट आजकल के अपने रूटीन में वो कोई खास बदलाव महसूस नहीं कर पा रही थी उसका हर दिन एक जैसा ही था सुबह उठकर घर के सारे शीशे पोंछे जाते,किचन में ऑर्गैनिक अनाज की टोकरी करीने से लगती,और पर्सनल शेफ को व्हाट्सप्प पर अगले हफ्ते के “डेटॉक्स मील” की लिस्ट भेजी जाती।पर अब वो सब बस… आदत भर रह गया था।जैसे कोई प्रोग्राम्ड रोबोट हो, जो इंसान होने का नाटक कर रहा हो।
कभी-कभी दोपहर की उस ख़ामोशी में, जब धूप डाइनिंग टेबल पर पड़ती थी, तो उसका पारावर्तन प्रतिबिम्ब जब सामने लगी सना के फोटोज पे पड़ता तो सना एकटक अपनी ही फोटोज़ देखती रह जाती । वो वाली फोटो, जिसमें उसने turquoise ब्लाउज़ पहना था और मोती के झुमके…जिसे देखकर अदिति ने बस एक emoji भेजा था “❤️” ना कोई तारीफ़, ना कोई मम्मा तुम ब्यूटीफुल लग रही हो…
वो फोटो जिसमें उसके पीछे अनिकेत खड़ा था पर असल में वो तस्वीर cropped थी। पूरा चेहरा नहीं था उसका। जैसे वो किसी और की ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका हो… या फिर कभी था ही नहीं।
कभी-कभी, शाम को अकेले वॉक पर निकलती।वो कॉलोनी जो किसी लक्ज़री ब्रोचर से निकली लगती थी कहीं कोई आवाज़ नहीं। कोई पहचान नहीं।बस गार्डन में बैठे लोग, जो बस अपने फ़ोन की स्क्रीन में गुम थे। सना उन रास्तों पर चलती, जिन पर वो कभी अनिकेत के साथ कार में बैठकर आई थी जहाँ पहली बार उसका हाथ थाम कर अनिकेत ने कहा था “इस माकन को घर बना दो सना, I love you more when your smile ” पर अब? अब वो हँसी हर दिन किसी उपेक्षित और हर दिन फटते पुराने कपडे की तरह टांकी जाती थी सलीके से, सिलसिले से, पर हर बार उन टांकों के बीच वो कपडा थोड़ा कमज़ोर होता जा रहा था।
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