BAND KHIDKIYAAN LAST PART

उस रात…जब समंदर की हवा कुछ ज़्यादा ही तेज़ थी, बालकनी में बैठी सना कुछ अलग ही फील मे थी. बाल खुले हुए, चेहरा बिना मेकअप का, और नज़रों में कुछ ऐसा जो उसने कभी किसी को नहीं दिखाया। फ्रेंच प्रेस से निकली ब्लैक कॉफी का कप उसके एक हाथ में था। दसरे हाथ मे मोबाइल जिसपे उसने अदिति की व्हाट्सऐप चैट खोल रखी थी, फिर कुछ सोचते हुए वो अनिकेत का नाम देखती है। फिर खुद का प्रोफाइल फोटो…और एक एक करके उसकी आँखों से मोटे मोटे आस गिरने लगते है मोबाइल स्क्रीन पे लगी उसकी डीपी के ठीक उपर । धीरे-धीरे उसके दिल के कोने से कुछ परत एक एक करके उतर रही थी, वो सना जो दुनिया को दिखती थी ‘Perfect Wife’, ‘Elegant Hostess’, ‘Stylish Mom’ उस सना के अंदर एक और सना थी, जिसे कभी ना किसी ने देखा था ना किसी ने जाना था और ना ही किसी ने जानने की कोशिश की थी। जो बस यही पूछती थी "मैं… क्यों यहाँ हूँ?"
"मैंने कब आखिरी बार अपने लिए कुछ किया?"
आज पहली बार, उसने खुद को गले लगाते हुए अंदर से एक थकी हुई आवाज़ सुनी थी, जो कह रही थी "बस अब और नहीं।" उसने अपनी डायरी खोली, और पैन से लिखा "मैंने आज एक वादा किया है। कि अब मेरी हँसी, मेरी होगी। मैं खुद से फिर मिलूंगी... रोज़।"
कागज़ पर आँसुओं के दो हल्के दाग बन गए थे।
अगली सुबह...
सना ने अलार्म के बजने से पहले आँखें खोल दीं। ये पहली बार हुआ था ना किसी किटी पार्टी का प्लान था, ना पार्लर अपॉइंटमेंट। उसने अलमारी खोली, और प्रेस किए हुए कपड़ों के बीच से एक पुरानी लूज ग्रे कुर्ती निकाली जो शायद कॉलेज टाइम की थी। रसोई की खिड़की से धूप आ रही थी। उसने एक कप अदरक वाली चाय बनाई, और पहली बार उस चाय की हर चुस्की को महसूस किया। बिना मेकअप, बिना मैचिंग इयररिंग्स, बिना परफ्यूम लगाए वो नीचे उतरी।
फिर बिना किसी को बताए, अपनी कार की चाबी उठाई। मोबाइल साइलेंट पर डाला, पर्स में बस वॉलेट रखा और बाहर निकल गई। न कोई डेस्टिनेशन, न कोई प्लान । सना जिस रास्ते पर निकली थी वो उसके लिए बिलकुल नया था कार चलाते वक़्त वो ऐसा महसूस कर रही थी जैसे की वो वापस अपने यौवन के दिनों में पहुँच गई हो जहां न कोई बंदिश थी न कोई समझोता। हर मोड़ पर उसे अपना ही एक खोया हिस्सा मिलता रहा कहीं कॉलेज वाली सना, कहीं अदिति को गोदी में लिए मां वाली सना, कहीं बिना मेकप वाली, डरी-सहमी, पर ज़िंदा सना। उस दिन कोई इंस्टाग्राम स्टोरी नहीं डाली गई। कोई फ़िल्टर नहीं लगाया गया। उस दिन सना की मुस्कान असली थी दिखावे की नहीं
अगले दिन सना की सुबह कुछ अलग थी सूरज की पहली किरण जब सना के चेहरे पर पड़ी तो सना उठी पर वो बडे आराम से उठी, कोई जल्दबाज़ी नही कोई अर्जेन्सी नही बल्कि ऐसा लगा जैसे किसी ने धीमे से उसके बालो को हाथो से सेहला के उसे बडे प्यार से नीद से जगाया हो। अगडाई लेकर वो उठती है और फ्रिज से बची हुई ब्लैक कॉफ़ी निकाल कर ,उसे बिना गर्म किए ही पी लेती है, उस दिन सना ने तय किया की आज मैं सिर्फ सुनूंगी और वो हमेशा से बिलकुल अलग तैयार हुई न कोई लिपस्टिक, ना बालों को कर्ल किया ना ही कोई परफ्यूम। ये अब सना को रोटिन बन गया था अपने कॉलज़ के दिनो के सहेज़े हुये कपड़े निकालना और बस निकल पड़ना एक अनजान सफर की ओर।” पूरे रास्ते उसने ना ही कार में कोई रेडिओ ऑन किया ना ही ब्लूटूथ। वो बस अपने अंदर की आवाज़ को सुन रही थी जो ना जाने कितने सालों से अनसुनी थी। कल जब वो वापस लौट रही थी तो उसने एक क्रिएटिव वर्कशॉप ज्वाइन कर ली थी जिसका नाम था “Letsxpres ” कमरे में पहुंचते ही उसे लगा, जैसे कोई पुरानी लाइब्रेरी की महक सांसों में उतर रही हो।
लकड़ी की पुरानी मेज़ें, पुराना पंखा जो आवाज़ करता था, और सामने व्हाइटबोर्ड पर हाथ से लिखा था ये जो सन्नाटा है… इसमें सारे जवाब हैं ढूंढना चाहो तो ।” वो जहां गयी थी वहां उसके जैसी बहुत सी औरतें थी जो बस किसी और के लिए जिए जा रही थी । कुछ स्कूल टीचर थी जिन्होंने अपनी सारी ज़िन्दगी दूसरों को पढ़ाने में लगा दी पर उनके खुद के एहसास ना वो खुद पढ़ सकी ना किसी और ने पढ़ने की कोशिश की, और भी अलग अलग फील्ड से बहुत सी औरतें थी कोई कहानीकार थी जिसकी खुद की कहानी किसी ने नहीं सुनी, कुछ अपने शादीशुदा जीवन से तो आज़ाद हो चुकी थी फिर भी किसी कैद में थी। कुछ ऐसी थी जिनके जीवनसाथी इस दुनिया से जा चुके थे पर उन्हें पीछे छोड़ गए थे अनकहा अनसुना,
और कुछ ऐसी औरतें जिन्हें दुनिया ने कभी डिफाइन ही नहीं किया। जिनका कोई नाम नहीं था, वो बस होने के लिए ही थी . इस दुनिया में और उन्ही सब में अब बैठी थी सना। ना डिज़ाइनर बैग, ना आँखों में काजल की परत, ना फेक मुस्कान जो दूसरों के लिए प्रैक्टिस की गई हो। बस वो थी और उसकी डायरी।
शुरुआत में, वो सिर्फ़ औरों को सुनती रही। एक बुज़ुर्ग औरत ने अपने बेटे को लिखा गया ख़त पढ़ा जिसमें उसने लिखा था: “तू अब भी मेरा बच्चा है, भले ही तूने मुझे माँ मानना छोड़ दिया हो।”
एक तलाक़शुदा लड़की ने अपने यंगर-सेल्फ को लिखा:
“तू जब रोई थी बाथरूम में, वो कमज़ोरी नहीं थी ।” सना की आँखें नम थीं, पर उसने हाथ नहीं बढ़ाया रुमाल की तरफ़। आज वो इन आँसुओं से डर नहीं रही थी। और फिर… उसकी बारी आई। वो खड़ी हुई, डायरी खोली वही पन्ना, जो गोवा ट्रिप की तारीख़ के पीछे छुपा था।उसने कांपती आवाज़ में पढ़ा “मैंने एक वादा किया है खुद से कि अब मेरी मुस्कान, मेरी होगी। मैं खुद से मिलूंगी… रोज़ हर रोज़” हॉल में एकदम सन्नाटा छा गया। जैसे किसी ने सबके अंदर बंद उस दरवाज़े पर दस्तक दे दी हो। फिर धीरे से
एक ताली बजी…फिर दूसरी…फिर तीसरी…और फिर पूरे कमरे में मौजूद सब लोगों ने उसके लिए तालियां बजायीं बिना उसका नाम लिए
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