NETRA

NETRA
रात के दो बजने वाले थे पर नींद नेत्रा की आँखों से कोसो दूर थी। मन मे एक अजीब सी बैचेनी थी। उसने पति वीवेक की तरफ देखा तो वो बड़ी ही सुकून भरी नींद में सो रहे थे। एक बार तो देख कर मन दुःख और गुस्से से भर गया शादी के बाद जो कुछ भी घटा है उसने नेत्रा को सोचने पर मजबूर कर दिया है। नेत्रा का तो कोई अस्तित्व ही नहीं है। जिसने जैसा चाहा वैसा चलाया। और अब भी जैसा चाह रहे हैं वैसे ही सांचे में नेत्रा की बेटी को भी ढालने की कोशिश कर रहे हैं। रह रह के विवेक के वो शब्द अभी भी याद आ रहे हैं "तुम्हें पता है ना, नहीं पसंद है मुझे… समझाओ उसको… मार्शल आर्ट में नाम लिखवा दो!.. अनन्या भी ना, वही तुम्हारी वाली सनक!" विवेक की हंसी मुझे घायल कर रही थी। विवेक के ऑफिस जाते ही नेत्रा उस कमरे में आ गई। टूटी कुर्सियों, फ़ालतू गद्दों और कुछ पुराने फनीचर में पड़े होंगे घूँघरु जो एक वक़्त मेरी पहचान हुआ करते थे यादों के समुन्दर में नेत्रा का अतीत सजीव हो उठता है अभी कुछ ही साल पहले सब कुछ कितना अच्छा था, नेत्रा धन्य जीवन जी रही थी, सब तरफ उसके चर्चे उसके गुणों की तारीफ जैसे कि नेत्रा के रिश्तेदारों का अपने बच्चों से कहना "सीखो कुछ नेत्रा से"... उसका सहज नरम स्वभाव ,उसका रंग उसका स्वरूप, उसके डांस और उसकी आंखों के चर्चे थे, गहरी आंखों में आया कोई भी एक्सप्रेशन बड़े दूर तक दिखाता था, और काजल लगा ले तो बात अलग ही होती थी। नेत्रा की आंखें देखके ही उसकी दादी ने उसका नाम नेत्रा रखा था, और दादी की संगत में रहकर उसने कथक में रुचि लेना शुरू किया था, देखते ही देखते वह कत्थक की एक उत्कृष्ट नर्तकी बन गई थी उसने कई पुरस्कार जीते थे और स्कूल के वार्षिक समारोह में उसका प्रदर्शन सबको मंत्रमुग्ध कर देता था। उसके घुंघरुओं की आवाज़ में जादू था, उसकी हर एक भाव-भंगिमा में कला की आत्मा बसती थी। दादी के गुजर जाने के बाद नेत्रा को थोड़ा समय लगा अपना साथी ढूंढने में...अब कोई उसके डांस स्टेप्स पर उछल के ताली नहीं बजाता था...उसकी बेसिक नॉर्मल बातों को जो कभी उसके पिता बड़े चाव से सुनते थे अब अक्सर उनके पास टाइम नही होता था, दादी तो उसे छोड के जा ही चुकी थी पापा पास होते हुए भी उसके साथ नही थे उसके परिवार में नृत्य को केवल मनोरंजन का साधन समझा जाता था। हालाँकि उसके पिताजी रविकांत प्रगतिशील विचारों के थे और नेत्रा की प्रतिभा को निखारने के लिए उसे हमेशा मनोबल देते रहते थे। पर उसकी माँ और बाकी परिवार इसके खिलाफ थे। ट्रिप से लौटे थके हारे रविकांत सोफ़ा पे निधाल होके लेते ही थे के नेत्रा एक्साइटमेंट मे अपने पिताजी के पास दौड़ती हुई आई, अपने नन्हें घुंघरू बांधकर। और चहेकती हुई बोली पापा, देखिए मैंने नया स्टेप सीखा है," नेत्रा ने उत्साह से कहा। अपनी थकन की परवाह किए बिना रविकांत बोलते हैं "वाह! नेत्रा, तुम तो बहुत जल्दी सीख रही हो," उसके पिताजी ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा। "तुम्हारे अंदर नृत्य की अद्भुत कला है। इसे कभी मत छोड़ना बेटा।" नेत्रा ने अपने पिताजी के प्रोत्साहन से और भी मेहनत की। स्कूल के हर कार्यक्रम में उसकी परफॉर्मेंस देखकर पिताजी की आंखों में गर्व की चमक होती थी। नेत्रा के ग्रेजुएशन का आखिरी साल था और आज उसने राज्यस्तरीय नृत्य प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार जीता था, और वो उसी बचपन वाले अंदाज़ में वह ट्रॉफी हाथो मे लिए घर आई और पापा के सामने आके बोली। "पापा, मैंने जीत लिया!" नेत्रा की आंखों में आंसू थे, खुशी के आंसू। उसके पिताजी ने उसे गले से लगा लिया और कहा, "तुम पर मुझे गर्व है, नेत्रा। तुमने हमारा नाम रोशन किया है।" ये सब आपकी वजह से हो पाया पापा, अब आपकी बेटी की डायरेक्ट एंट्री होगी नेशनल लेवल के कम्पटीशन में.... अभी , नेत्रा अपनी बात पूरी भी नही कर पायी थी कि तभी सामने से उसकी मां आती हुई दिखाई दी उसके हाथ में चाय का प्याला और एक गिलास पानी था। मां नेत्रा की इस खुशी से खुश नही थी उसने चिढते हुए कहा आखिर कब तक आप इसकी इन बेकार की बातो मे इसका साथ देते रहेगे, बेटी अब बडी हो गइ है मगर आपको कोई ख्याल नहीं है... बहुत ये सब कल लड़के वाले आ रहे हैं आपकी लाडली को देखेंने... अवाक रह गई नेत्रा और वो कुछ समझ पाती उसके पहले ही आनन-फानन में उसका ब्याह करवाया जा चुका था सॉफ्टवेयर इंजीनियर विवेक से! इन्हीं यादों में से छनके ये याद भी ताजा हो गई थी उसकी कि कैसे उसने शादी के लिए खुद को समझाया था, अपने पापा को भी ढांढस बंधाया था जब उसने ये कहके उनको रिलैक्स फील कराया था कि पापा मैंने शादी के पहले एक दिन विवेक से बात की थी, नृत्य के प्रति उनके विचारों के बारे में। "विवेक, तुम्हें नृत्य कैसा लगता है?" उसने हिचकिचाते हुए पूछा था। "मुझे लगता है कि नृत्य एक कला है, और अगर किसी में प्रतिभा है तो उसे जरूर प्रोत्साहन मिलना चाहिए। चाहे वह किसी भी मंच पर क्यों न हो," विवेक ने बड़े ही प्रगतिशील तरीके से कहा था। नेत्रा की आंखों में चमक आ गई थी। उसे लगा था कि विवेक उसका साथ देगा। लेकिन शादी के बाद की वास्तविकता बिल्कुल अलग थी। शादी के कुछ महीनों बाद, नेत्रा टीवी देख रही थी और कत्थक के कुछ नए स्टेप्स सीख रही थी। वह पूरी तल्लीनता से नृत्य के हर एक मूवमेंट को देख रही थी और उसे दोहरा रही थी। तभी विवेक कमरे में आया। "नेत्रा, बंद करो ये सिरदर्द। क्या है ये ता ता थाई थाई?" विवेक ने चिढ़कर कहा। नेत्रा ने चौंककर उसकी ओर देखा। "विवेक, तुम तो कहते थे कि नृत्य एक कला है, और किसी में अगर प्रतिभा हो तो उसे प्रोत्साहित करना चाहिए। तो अब ये बदलाव क्यों?" विवेक ने बडे ही कठोर स्वर मे कहा, "विचार अभी भी वही हैं, पर मेरे घर की महिलाएं ये सब करे मुझे बिल्कुल पसंद नहीं। तुम मेरी वाइफ हो कोई नाचने-गाने वाली नहीं हैं। नेत्रा का दिल टूट गया। उसके अंदर की नर्तकी, जिसे उसने फिर से जीवित करने की कोशिश की थी, विवेक के शब्दों से एक बार फिर कुचल दी गई थी। "विवेक! मैं कत्थक का कोर्स पूरा कर लूं?.. यहीं मेरे पास आंटी हैं…. अरे वो ही साउथ इंडियन माला आंटी... कुछ साल पहले पति का हाथ अपने हाथों से सहलाते हुए पूछ लिया नेत्रा ने। "दिमाग़ ख़राब है क्या नेत्रा?" विवेक ने हाथ ऐसे झटका जैसे नेत्रा ने 440 वॉट का करंट लगा दिया हो विवेक को! तुम जानती भी हो घुंघरू बांधकर छुन-छुन की आवाज़ें करती लड़कियों के बारे मे मोहल्ले वाले किस तरीके से बातें करते हैं मैने सुना है, धंधे वालियों जैसी। और वो माला जी का भी पता है ना... पति रहा नहीं तो कोई ढंग का काम करती ये क्या तुक है आस पड़ोस में फालतूगिरी मचा रखी है और पता नहीं कैसे तुम्हारे पिताजी सीखने देते तुम्हें ये डांस वान्स... खैर अब दोबारा जिक्र भी ना हो इस डांस का इस घर में उस एक पल मे नेत्रा पर ना जाने कितनी बार बिजली गिरी जब विवेक ने उसके पिताजी को लापरवाह और उसे एक 'धंधे वाली' सिद्ध कर दिया गया था, नेत्रा को लगा जैसे उसके सारे इनाम, घुंघरू, पदक सब बेमानी थे उसके अंदर की नृत्यांगना जैसे टूटके बिखर गई थी लेकिन उसी रात जो हुआ, वो फिर से बेचैन कर गया। "मम्मा प्लीज़! मेरा भी नाम लिखवा दीजिए कत्थक में, आप कितने दिनों से टाल रही हैं… मेरी सहेलियां रिद्धिमा और मायरा भी तो जाती हैं ना।" स्कूल जाते समय अनन्या डबडबाई आंखें लिए गिड़गिड़ा रही थी। कैसे बात करूं विवेक से? "हेलो विवेक! अनन्या बहुत दिनों से कह रही है कत्थक क्लास के लिए… मतलब उसकी सहेलियां भी जाती हैं…" फिर वही बकवास! चिढ़े हुए विवेक ने हाथ को ऊंचा उठाया... ऐसा लगा कि गुस्से की आदत से शायद वो पहली मरतबा अपना आपा ही खो बैठा था, फिर कुछ सोचके वो हाथ नीचे करता है और वहां से बाहर चला जाता है... विवेक और नेत्रा के बीच दरारें बढ़ने लगीं। कई बार नेत्रा ने महसूस किया कि विवेक वह इंसान नहीं था जिससे उसने शादी की थी। शादी से पहले की उसकी प्रगतिशील बातें केवल दिखावा थीं। वो कुछ खिंचा-खिंचा सा रहना लगा था एक बार अनन्या ने अपने स्कूल के प्रोजेक्ट के लिए विवेक से मदद मांगी। "पापा, मुझे इस प्रोजेक्ट में आपकी मदद चाहिए," अनन्या ने मासूमियत से कहा। विवेक ने उसे डांटते हुए कहा, "मुझे फालतू कामों के लिए समय नहीं है। जाओ अपनी माँ से मदद मांगो।" अनन्या की आँखों में आंसू आ गए। वह अपनी माँ के पास दौड़ी आई और कहा, "मम्मा, पापा को मुझसे बात करने का भी समय नहीं है।" नेत्रा का दिल टूट गया। उसने अनन्या को गले लगाते हुए कहा, "मैं हूँ ना, हम मिलकर करेंगे ये प्रोजेक्ट।" एक और दिन, अनन्या ने स्कूल में एक ड्रामा प्रतियोगिता के लिए विवेक से अनुमति मांगी। "पापा, मुझे ड्रामा प्रतियोगिता में भाग लेना है। साइन कर दीजिए, उसके जवाब में विवेक ने बोला कि ड्रामा करते नहीं देखते हैं...ये देखो आपके लिए टिकट ले के आया हूं... ये एक भक्ति नाटक था जिसमें थिएटर के माध्यम से देवी स्वरूप का बखान किया जा रहा था और उनकी लीलाओं का वर्णन किया जा रहा था, नृत्य कलाओं के विविध पारंपरिक उत्कृष्ट प्रस्तुति से जिसे देखे अनायास ही विवेक के मुंह से इस कलाकार के देवी रूप की प्रशंसा में कुछ शब्द निकले, जिन्हे सुनके अनन्या विवेक से अपने सवालों के माध्यम से पूछती है कि नृत्य गलत कैसे हो सकता है पापा, अगर आपकी नजरो मे नृत्य अच्छा नहीं है तो फिर आपने अभी बाहार नटराज की मूर्ति को नमस्कार क्यों किया?" विवेक के चेहरे पर एक असमंजस हुआ। वह बेटी के सवाल का सही जवाब नहीं दे पाया। "बेटा, श्श्श्श….नाटक पे ध्यान दो…. उसने अनन्या को तो चुप करा दिया पर विवेक को उसके सवाल से अपनी सोच पर फिर से विचार करने की आवश्यकता महसूस हुई। उस दिन के कुछ दिन बाद एक दिन खाने की टेबल पर बैठे तो अनन्या ने पापा से पूछा, "पापा, मधु मैम तो सिर्फ़ नृत्य शिक्षिका हैं, फिर भी आप उनसे इतनी सम्मान से क्यों बात करते हैं? और मम्मी को तो कभी ऐसे नहीं कहते। वह भी तो नृत्य करती हैं।" विवेक के मुंह से जवाब निकलने में कुछ वक्त लगा। "बेटा वो …. अनन्या ने विवेक से आगे सवाल किया, "लेकिन पापा, क्या नृत्य गलत है? फिर भगवान शिव भी तो नृत्य करते हैं, उन्हें भी गलत कहेंगे?" ये मासूम सवाल विवेक और विवेक जैसे अंगिनत पतियों, पिताओं और माता के लिए जिनके जवाब सिर्फ वही दे सकते हैं