SAYA PART 1

साया – भाग 1
मनाली की उस रात में कुछ अलग ही बात थी बारिश कुछ देर पहले ही रुकी थी पर पेड़ों की पत्तियों से टपकती पानी की बूँदें अभी भी अपनी मौजूदगी का एहसास करा रही थीं। तेज़ हवाओं के झोके पेड़ो की शाखओं को ऐसे छू रहे थे मानो उनके कानों में कोई संगीत सुना रहे हो।
राजकोट विला, एक पुराना, लकड़ी से बना बंगला जो अब दीमकों और यादों से भरा पड़ा था। ज़मीन से थोड़ी ऊँचाई पर बना ये विला चारों तरफ से घने पेड़ों से घिरा था, और आज वो बरसों बाद फिर से खुला था, सिर्फ़ कुछ दिनों की मस्ती के नाम पर।
लेकिन शायद उस विला को ये मंज़ूर न था।
“चाभी मिल गई?”
ईशान ने हल्की आवाज़ में पूछा, जब नेहा दरवाज़े के पुराने लॉक से झूझ रही थी।
“हां, बस थोड़ा अटक रहा है,” नेहा ने जवाब दिया, आवाज़ में नमी और संकोच दोनों थे।
वो चारों, नेहा, ईशान, तृषा, और कियान, मनाली के इस ट्रिप पर निकले थे बिना किसी खास योजना के। बस एक पुराना नक्शा, कुछ कॉलेज की थकावटें और एक-दूसरे का साथ ही काफी था।
नेहा की दादी की ये विरासत था ये राजकोट विला। उनकी बचपन की गर्मियों का हिस्सा था। लेकिन अब, दस सालों से बंद पड़े उस मकान में लौटना कुछ वैसा ही था जैसे किसी भूले हुए सपने को फिर से छू लेना।
आखिरकार वो पुराना दरवाज़ा खुल ही गया। अंदर एक अजीब सा सन्नाटा था और जिसमे हाथ को हाथ न दिखाई दे ऐसा अँधेरा, पर वो पुरानी लड़की की महक और दीवारों पे पड़े सीलन के वो धब्बे जाने पहचाने लग रहे थे “इस जगह को देखो”
तृषा ने कहा, जो दीवारों की ओर देखते हुए धीमे कदमों से अंदर चली आई थी।
उसकी आँखें चमक तो रही थी पर साथ ही साथ उसमे एक अनजाना डर भी साफ़ साफ़ देखा जा सकता था “बिल्कुल वैसी ही जगह है जैसी मेरी कहानियों में होती है,” उसने फुसफुसाया।
कियान हँसा, “तेरी कहानियां भी हमेशा अजीब ही होती हैं, तृषा। पर हाँ, यहां कोई भी चीज़ आज़ाद सी नहीं लग रही।”
ईशान अपने बैग को खींचता हुआ अंदर दाखिल हुआ उसकी नज़र वहां लगी हुई पुरानी और धुल खाई हुई तस्वीरों पे पड़ी जिसमे से एक में एक बुजुर्ग आदमी किसी बच्ची के साथ बगीचे में बैठा था। दोनों मुस्कुरा रहे थे। लेकिन तस्वीर की मुस्कान जैसे अब धुंधला चुकी थी।
कमरे में थोड़ा सा सामान जमाने के बाद, सब एक जगह बैठ गए, पुराने ड्राइंग रूम के बीचों-बीच रखा हुआ भारी लकड़ी का टेबल अब उनके नए गपशप का अड्डा बनने वाला था। नेहा चाय बनाने चली गई थी।
तृषा ने मोमबत्ती जलाते हुए कहा, ना जाने बिजली कब तक आएगी। तब तक हम लोग एक गेम खेलते है
“लेट मी गेस,” ईशान बोला, “Truth or Dare?”
तृषा ने हल्की मुस्कान के साथ उसकी तरफ देखा। “क्योंकि सच की कीमत सिर्फ़ तब समझ आती है जब कोई उसे दांव पर लगाए…”
नेहा चाय लेकर लौट आई।
“Game?” उसने पूछा।
“Truth or Dare,” तृषा ने कहा, फिर बोतल निकाल ली।
बोतल ने घूमना शुरू किया और उसके घूमने के साथ साथ कांच की अजीब सी परछाई सब पर पड़ रही थी
बोतल ने रुकते हुए इशारा किया नेहा की ओर।
तृषा की आँखों में शरारत थी।
“तो नेहा… सच या चुनौती?”
नेहा थोड़ी हिचकी, फिर बोली “चुनौती”
एक पल को कमरे की हवा और ठंडी हो गई।
“ठीक है,” तृषा धीरे से बोली। “एक नंबर डायल करना होगा, बस पूछना, ‘क्या मैं आपको जानती हूँ?’”
“क्या?”
नेहा का चेहरा कुछ पल को उतर गया। “ये किसका नंबर है?”
“Random,” तृषा बोली। “Believe me, ये नंबर खास है, मैंने इसे बस ऐसे ही नहीं चुना।”
“तू डरपोक नहीं थी ना?” ईशान ने उसे चिढ़ाया।
नेहा ने हल्का सा सिर झुकाया, फिर नंबर डायल कर दिया।
फोन की घंटी बजी।
एक…
दो…
तीन…
फिर… क्लिक।
दूसरी तरफ़ से एक आवाज़ आई,
धीमी, गहरी, जैसे किसी बंद कमरे की दीवारों में दबी हुई
तुम… बहुत देर कर चुकी हो..."
(“उस आवाज़ के बाद…” अगले पार्ट में क्या होगा जानने के लिए बने रहिये Letsxpres के साथ)
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