SAYA PART 2

SAYA PART 2
मोबाइल उसके हाथ में था, लेकिन अब उस पर पकड़ ढीली पड़ चुकी थी। नेहा की उंगलियाँ काँप रही थीं। उसका चेहरा सफ़ेद पड गया था, मानो किसी ने उसमें से पूरा रक्त निकाल लिया हो। जिस शांत चेहरे पर अब से कुछ ही देर पहले एक गर्मजोशी थी, वो अब सुन्न नज़र आने लगा था जैसे भीतर कुछ टूट गया हो और उस टूटने की आवाज़ अब तक उसके भीतर गूंज रही हो। कोई कुछ नहीं बोला। उस एक पल में पूरा कमरा साँस रोककर नेहा को देख रहा था, मोमबत्ती की लौ भी, दीवार पर पड़ी उनकी परछाइयाँ भी और पुराने विला की लकड़ी की दरारों से बहती हवा भी। ईशान धीरे से उठकर नेहा के पास आया, लेकिन उसके कदम सतर्क थे, ज़्यादा आवाज़ की गुंजाइश नहीं थी। "नेहा?" उसने बेचैनी के साथ लगभग फुसफुसाते हुए कहा। "किसका कॉल था वो?" नेहा ने उसकी ओर देखा, लेकिन फिर से उसकी नज़रें वापस फर्श पर चिपक गयी, उसने बस हल्के से सिर हिलाया। "मुझे नहीं पता..." "क्या कहा उसने?" तृषा ने अपनी जगह पे बैठे बैठे पूछा। उसकी आवाज़ संयत थी, लेकिन उसकी आँखों में उत्सुकता नहीं, आशंका थी एक ऐसी आशंका जिसे उसने पहले से महसूस किया था शायद, और अब उसकी पुष्टि मिल रही थी उसे।"उसने... उसने कहा, 'तुम बहुत देर से आई हो'," नेहा का स्वर ऐसा था जैसे कोई सपना बताते हुए डरता है कि कहीं वही सपना अब हकीकत न बन जाए। कमरे की हवा अब भारी लग रही थी। अंधेरे और सीलन वाले माहोल मे, जैसे किसी और की सांसें शामिल हो गई हो जो नियमित नहीं पर गेहरी थी, ये सांसें मेहस महसूस होती थी जैसे ही कमरे में सब खामोश हो जाते और लगने लगता जैसे कोई छुपकर देख रहा हो, पर कोई दिख नहीं रहा था। ईशान ने इधर उधर देखा और जब उसे कोई नही मिला तो उसने गहरी साँस भरते हुए अपने माथे पर आया पसीना पोंछा और कहा, कोई नही है यहाँ ऐसे ही महसूस हुआ था मुझे जैसे कोई सुन रहा हो हमारी बातें छुपके …” “नंबर कौन सा था?” कियान ने पूछा।नेहा ने मोबाइल की स्क्रीन की तरफ देखा वहाँ नंबर की जगह सिर्फ़ शून्य था, सारे अंकों की जगह बस एक रेखा थी, जैसे किसी ने अपनी पहचान मिटा दी हो। “कोई नंबर था ही नहीं,” नेहा ने कहा। “बस वो आवाज़ आई और फिर... फोन कट गया।” अब सबके चेहरों पर कुछ बदलने लगा था ,वो डर जो पहले हल्का-हल्का दबाया जा रहा था, अब आकार लेने लगा था। हवा का बहाव भी अब सीधा नहीं था। एक कोने से आती और दूसरे कोने में रुकती हुई, जैसे कमरे के भीतर कुछ घूम रहा हो, लेकिन दिखाई नहीं दे रहा। तृषा को भी डर के एहसास ने छू लिया था पर वो न तो अपनी जगह से हिली और न ही उसने मोमबत्ती को छोड़ा। वो नेहा को देखने की जगह उस ओर देख रही थी जहां पुरानी लकड़ी की अलमारी दीवार से सटी खड़ी थी। तभी एक बेहद धीमी, पर साफ़ आवाज़ आई खींचने जैसी, जैसे किसी नाखून ने लकड़ी की सतह पर लंबी लकीर बनाई हो। आवाज़ अचानक आई, लेकिन इतनी धीमी थी कि अगर कोई ध्यान न दे तो शायद सुनाई भी न दे।ईशान पलटा उसकी नज़र सीधी अलमारी पर गई। बाकी सब की साँसें थम गईं। नेहा का शरीर अब भी सिहर रहा था, लेकिन वो एकटक उस अलमारी की ओर देख रह थी। उसकी आँखों से साफ़ पता लग रहा था की जैसे वो कुछ याद करने की कोशिश कर रही हो जैसे वो इस आवाज़ से वाकिफ हो,कियान उठा और धीरे-धीरे अलमारी की ओर बढ़ा, लेकिन नेहा ने तुरंत, बिना सोचे, अपनी जगह से तेज़ आवाज़ में कहा, “रुको!” सब चौंके। उसकी आवाज़ इतनी तेज़ थी कि कमरे में व्याप्त वो अजीब सी खामोशी टूट जाती है और खिड़की से आती हवा एक बार फिर मोमबत्ती की लौ को डगमगाने लग जाती है “मत जाओ,” नेहा अब काँप रही थी, “मुझे लग रहा है... वहाँ कुछ है... कोई है...” “कोई मतलब?” कियान रुक गया। “क्या देख रही हो तुम?” “नहीं देख रही... पर महसूस कर रही हूँ,” नेहा बोली, और उसके शब्दों में ऐसा यकीन था कि बाकी तीनों को अपने भीतर एक सिहरन महसूस हुई।तृषा अब अपनी जगह से उठकर मोमबत्ती को ऊँचा उठाकर कुछ देखने की कोशिश करती है पर जैसे मोमबत्ती ही लौ कमरे की दीवारों पर पड़ती है दिवार के उस कोने में एक परछाईं बन जाती है जहाँ अलमारी थी, ये परछाईं इंसानी आकृति जैसी दिख रही थी हालांकि ये बहुत हल्की, बहुत धुंधली सी दिख रही थी ध्यान से देखने पे समझ आ रहा था की उसका सिर सीधा नहीं था। थोड़ा झुका हुआ था एक ओर जैसे कोई ध्यान से उन्हें देख रहा हो, पर खुद को छुपाए हुए। तृषा ने अपनी साँसों को लगभग रोकते हुए धीरे से पूछा क्या जो मुझे दिख रहा है तुम भी वहीँ देख रहे हो?” ईशान ने सिर हिलाया उसकी आँखें अब भी उस परछाईं पर थीं। "हाँ... और मुझे नहीं लगता कि ये हमारी अपनी परछाईं है।" नेहा ने फोन उठाया उसने कॉल हिस्ट्री देखी। उस नंबर की कोई एंट्री नहीं थी, जैसे वो कॉल कभी आया ही न हो। फिर उसने फोन की स्क्रीन लॉक की… लेकिन तभी उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे की कोई उसके बहुत करीब खड़ा हो। उसे किसी के साँसों की गर्मी अपनी गर्दन पर महसूस हुई वो तेज़ी से पलट के देखती है, लेकिन वहाँ कोई नहीं था।तभी अलमारी से फिर वही खरोंचने की आवाज़ आई इस बार थोड़ी तेज़, और थोड़ी लंबी।कियान ने फुसफुसाकर कहा, “अब ये महज़ कोई मज़ाक नहीं लग रहा…” और उस वक्त, मोमबत्ती की लौ एकदम से बुझ जाती है।पूरा कमरा अंधेरे में डूब जाता है और उस अंधेरे में सबको महसूस होती है एक नज़दीकी। जैसे कोई साँस ले रहा हो, उनके बीच में, बेहद पास… लेकिन कोई दिख नहीं रहा था।