SAYA PART 3

कमरे में अंधेरा उतर चुका था। मोमबत्ती की लौ जैसे अचानक किसी अदृश्य साँस से बुझ गई थी, लेकिन उस बुझी हुई लौ के साथ जो बात सबसे ज़्यादा डरावनी थी वो थी उसके बुझने का तरीका,हाँ, वो लौ "बुझी" नहीं थी, उसे "सपाट तरीके से दबाया गया" था, किसी ने… या किसी ‘चीज़’ ने, बहुत पास आकर, धीरे से, जानबूझकर।
वो चारों, कुछ पल तो बस सांस रोके खड़े रहे। हर कोई उस घुप्प अंधेरे में खुद को अपने से सटे लोगों की उपस्थिति से तसल्ली देने की कोशिश कर रहा था कोई किसी का हाथ टटोल रहा था, कोई धीमी सांसों की गिनती कर रहा था।नेहा ने काँपती उँगलियों से अपना मोबाइल ऑन किया। उसकी स्क्रीन की नीली रौशनी उस अंधेरे में किसी कमजोर आत्मा की तरह टिमटिमा रही थी।उसने टॉर्च ऑन की।धीरे-धीरे उस रौशनी ने कमरे को छुआ और उनकी आँखें सबसे पहले जिस जगह पर जाकर ठिठकीं, वो थी अलमारी जो अब आधी खुली थी।पहले वो पूरी तरह से बंद थी लेकिन अब उसमे एक पतली-सी दरार दिखायी दे रही थी उसके दोनो दरवाजो के बीच, वो दरार बस इतनी खुली थी कि कोई एक आँख अंदर से झांक सके छुपके और वो झलक किसी को न दिखे। “किसने खोला इसे” कियान की आवाज़ काँपी।“हम में से कोई नहीं,” ईशान ने पहले ही जवाब दे दिया और तृषा ने फौरन अपने बैग से छोटी सी टॉर्च निकाली ये उसकी आदत थी, हमेशा तैयार रहने की। उसने फ्लैश जलाया और अलमारी की ओर बढ़ी।“रुको,” नेहा ने धीमे से कहा,उसकी आवाज़ मे डर था जो धीरे धीरे अपनी मजबूत जगह बना रहा था उसके दिल मे उसकी रुह मे,“वहाँ कुछ है,” उसने फुसफुसाया, जैसे कोई बच्चा रात को अपने बिस्तर के नीचे किसी परछाईं को देख लेता है लेकिन तृषा रुकी नहीं।टॉर्च की किरण जैसे ही उस दरार में गई, वहाँ कुछ चमका कुछ गीला… जैसे काँच पर जमी कोई बूंद, लेकिन वो लाल थी।“ये... खून है?” ईशान ने लगभग चिलाते हुए कहा,कियान टके से थोडा पीछे की तरफ खिसक जाता है “नकली होगा… शायद कोई पुराना पेंट या दीमक की वजह से रिसता रंग।”
तृषा ने अलमारी का दरवाज़ा पकड़ लिया दोनों हाथों से। और उसी दृढ़ता को अपनी आवाज़ में लाते हुए वो बोलती है “मैं देखती हूँ।”
उसने दरवाज़ा धीरे-धीरे खोला। लकड़ी की पुरानी पट्टी से बहुत ही धीमी, रगड़ जैसी कराह निकली। जैसे किसी ने बहुत वक्त बाद उसको हिलाया हो। धीरे धीरे करके दरवाज़ा अब पूरी तरह खुल चुका था और अंदर था घुप्प अंधेरा।लेकिन उस अंधेरे में सिर्फ़ अंधकार नहीं था।
वहाँ एक बू थी सीलन, सड़ी लकड़ी, और पुराने धागों में बसी गंध, जो आमतौर पर भूले बिसरे पुराने पुश्तैनी संदूक से निकलती है,लेकिन ना जाने क्यों तृषा को ऐसा लगा जैसे इस गंध में कुछ और था वो ग़ौर से इस अलमारी के हर कोने किनारे को बड़े ध्यान से देखते हुए बोलती है “ ना जाने क्यों ऐसा लग रहा है जैसे कोई बरसों पहले उस अलमारी के भीतर बैठकर रोया हो, और वो आँसू आज तक सूखे नहीं।“टॉर्च दिखाओ अंदर ,” ईशान बोला तो तृषा ने हाथ बढ़ा कर टोर्च की रौशनी अलमारी की तरफ कर दी और टोर्च से निकली रौशनी की किरण ने भीतर के अंधेरे को चीर दिया।वहाँ कपड़े नहीं थे। कोई फाइल या किताब भी नहीं वहाँ अगर कुछ था तो बस एक पुराना लकड़ी का बॉक्स, जिसके ऊपर कुछ उभरे हुए अक्षर थे अंग्रेज़ी में लिखे हुए लेकिन आधे मिटे हुए। सिर्फ़ इतना साफ़ था एस, एच
बॉक्स गहरे भूरा रंग का था, किनारों पर धातु की जाली जमी थी जंग लगी, टूटी हुई।तृषा ने धीरे से बॉक्स निकाला वो बहुत भारी नहीं था, लेकिन जब उसने उसे उठाया, तो उसके नीचे से कुछ गिरा।एक कागज़ का टुकड़ा।वो चारों अब टॉर्च की रोशनी उसी दिशा मे करते हुए ज़मीन पे पडे उस कागज पर लिखे उस वाक्य को पढने की कोशिश करने लगे तो उहे नजर आता है कि कागज़ पर पुराने फाउंटेन पेन से सिर्फ़ एक वाक्य लिखा था "उसे मत जगाओ... वो जानती है, कब तुम उसे देखते हो।"
उस वाक्य के नीचे एक नाखून से खरोंचा गया लंबा लकीर और वो लकीर बिल्कुल ताज़ा दिख रही थी। न कागज़ फटा था, न धूल जमी थी जैसे अभी-अभी किसी ने लिखा हो।तृषा ने धीरे से फुसफुसाया, “ये सब यहीं होना था, है ना?”
“क्या मतलब?” कियान बोला।
“मतलब ये कि ये कोई इत्तेफाक नहीं है। नेहा का कॉल, वो आवाज़, ये अलमारी, ये बॉक्स, और ये नोट ये सब जुड़ा हुआ है।”
“लेकिन किससे?” नेहा की आवाज़ अब काँप नहीं रही थी, पर उसमें थकावट थी जैसे उसे अब सवालों के जवाब नहीं, सिर्फ़ सच्चाई चाहिए थी।
ईशान ने कहा, “बॉक्स खोलते हैं।”
“नहीं!” नेहा ने तुरंत कहा।उसने अपनी आँखें बंद कीं। तो कियान बोला क्यों”
“मुझे मत पूछो क्यों… पर मत खोलो अभी। कुछ है… कुछ जाग रहा है।” बरबस ही ये शब्द नेहा के मुँह से निकल जाते हैं
सब लोग उसे हैरान होके देखते हैं अब उनके सामने था एक खुला हुआ बॉक्स एक चेतावनी और दीवार के कोने से आती धीमी खरोंच की वो अवाज जो फिर से शुरू हो चुकी थी।
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