SAYA PART 5

“हमें कुछ करना होगा… अब।” ईशान की बात हवा में गूंजती है, पर उसकी बात का कोई जवाब नही आता, शायद इसलिए क्यूंकि सबका ध्यान नेहा पर ही अटक गया था जो अपने नाखूनों से ज़मीन को तेज़ तेज़ खरोच रही थी नीचे बैठ कर जैसे उससे कोई बहुत नीचे से आवाज़ दे कर बुला रहा हो। उसका पूरा शरीर ऐसे काँप रहा था जैसे किसी ने उसे दिसंबर के महीने में बहार ठण्ड में बिठा दिया हो। “नेहा?” तृषा घबराकर उसकी ओर बढ़ी, “क्या कर रही हो तुम?”
“वो… बुला रही है…” नेहा की आवाज़ किसी और की लग रही थी। उसकी आँखें अब खुल चुकी थीं, पर पुतलियाँ ऊपर को पलट चुकी थीं। “वो नीचे है… वो जाग गई है… और उसे भूख लगी है…”
तभी एक एक चीख सुनाई देती है, बहुत लंबी, बहुत तेज़, और बहुत भीतर से…आआआआआआआआआ... जैसे किसी बंद कमरे में दम घुटता हुआ इंसान बाहर निकलने की कोशिश कर रहा हो… “बचाओ…” कियान ने तुरंत फर्श के उस उभरे टुकड़े को ज़ोर से ठोकर मारी। पत्थर हिला। ईशान ने मदद की। दोनों ने मिलकर उस टुकड़े को हटाया और नीचे एक लोहे का जंग लगा ढक्कन दिखाई दिया।
ढक्कन पर उंगलियों की खरोंच के निशान थे… अंदर से खुरचने के… जैसे किसी ने सालों तक बाहर निकलने की कोशिश की हो।
“ओह माई गॉड…” तृषा की आँखें भर आईं, “उसे… ज़िंदा… दफनाया गया था…”
“किसने?” ईशान ने पूछा,अचानक ढक्कन पर तीन तेज़ थपथपाहटें हुईंठक… ठक… ठक।
उसने जब खड़े हो कर चलना शुरूकिया तो ऐसे लग रहा था की ये वो नेहा नहीं है जो यहां आई थी वो पूरी तरह किसी और में बदल चुकी थी जैसे उसका शरीर अब उसका नहीं था वो जैसे किसी और के वश हो, गर्दन एक तरफ झुकी हुई आँखें ऊपर चढ़ी हुई होठ मानो हिल भी रहे हैं और बंद भी है पर कुछ तो वो बोल रही थी, “खोल दो… अब देर हो चुकी है…” कियान ने डरते हुए ईशान की ओर देखा, “हमें ये खोलना नहीं चाहिए।”
“अब हमारे पास कोई और रास्ता नहीं बचा,” ईशान ने फौरन जवाब दिया।
उन्होंने मिलकर ढक्कन उठाया…और जैसे ही वो खुला…एक बेहद सड़ी हुई, मगर अब भी गर्म सांस ऊपर उठी… जैसे कोई चीज़ अंदर से सांस ले रही थी।
अंधेरे से सफ़ेद, पतली सी उंगलियाँ बाहर निकलीं… सूखी… हड्डियों जैसी… और फिर एक सड़ी हुई खोपड़ी, जिस पर बालों की कुछ लटें अब भी चिपकी हुई थीं… मगर उसकी आँखें, उसकी आँखों में अभी भी जैसे जान हो और वो एक ज़हरीली नज़र से सबको देख रही थी ।
नेहा अब ज़मीन पर बैठ गई और धीमे से बड़बड़ाई“वो आ गई है… सरोज हिरणमयी अब ज़िंदा है… और वो सब जानती है… सब देख चुकी है… सब याद रखती है, तभी फर्श के नीचे से एक आवाज़ आई, साथ मे एक हँसी भी सुनाई दी, “अब मेरी बारी है…” और उसी क्षण कमरे की सारी दीवारें काँपने लगीं। छत से धूल गिरने लगी, रोशनी के सारे स्रोत्र खुद बा खुद एक एक करके टूटने लगे एक दीवार पर खून की बूंदें उभरने लगीं नामों की शक्ल में।
पहला नाम: नेहा।
दूसरा नाम: तृषा।
तीसरा नाम: कियान।
चौथा: ईशान।
“ये क्या है? हमारे नाम… खून से?” तृषा ने चीखते हुए दीवार की ओर इशारा किया।नेहा की आँखें अब पूरी तरह सफेद हो चुकी थीं। उसने गर्दन झुका ली… और धीरे से बुदबुदाई “अब कोई वापस नहीं जाएगा…
नेहा की इस बात से काँपते हुए ईशान को ऐसा महसूस हुआ जैसे कमरे की हर दीवार अब जीती-जागती चीज़ बन चुकी है। हर ईंट अब किसी जिंदा रूह जैसी दिख रही थी, जो अपने अंदर अपूर्ण इच्छाएं, अनदेखे सपने, सांसें और चीखें थी जिन्हें वो अपने अंदर दबाये न जाने कब से पड़ी थी । नेहा अभी भी उसी जगह बिना हिले मूर्ति की तरह खड़ी थी गर्दन वैसे ही एक तरफ को मुड़ी हुई बस उसकी आँखें कुछ बदल गई थी पहले वो सफ़ेद थी पर अब, अब बिलकुल स्याही जैसी काली हो चुकी था। और वो बिलकुल झील जैसी शांत दिख रही थी, पर उसकी आँखों में से जैसे कोई और झाँक रहा था। वो अब नेहा नहीं रही थी।
“नेहा!” कियान घबरा कर उसके पास गया, लेकिन जैसे ही उसने उसका कंधा छूने की कोशिश की एक तेज़ झटका लगा जिससे कियान छिटक कर पीछे गिरा और उसका सिर दीवार से जा टकराया और उसके सिर से एक मोटी धार के रूप में खून बहने लगा।“उसके पास मत जाना!” तृषा ने कंपकंपाती आवाज़ में चीख कर उसे रोकने की कोशिश की। उधर बॉक्स अब पूरी तरह खुल चुका था। अब वहाँ खोपड़ी नहीं… एक अधूरी लाश धीरे-धीरे बाहर निकल रही थी सरोज हिरणमयी की लाश।
उसकी हड्डियों पर सूखी त्वचा की परतें थीं और उन पर काले धागों जैसी कुछ चीज़ें लिपटी हुई थी, मानो किसी तांत्रिक क्रिया से सिले गए हों। उसका चेहरा आधा था, मगर वो आँखें… उनमें एक थकान दिखाई रही थी, सदियों की,गुड़िया अब भी ज़मीन पर पड़ी थी जो अब हिल रही थी। उसकी काँच की आँखें लाल हो चुकी थीं और उसके होंठों से निकल रही थी सफेद धुंध।
नेहा, या कहें सरोज की परछाईं अब धीमे-धीमे चलते हुए कियान की ओर बढ़ रही थी उसके हर कदम के साथ लकड़ी की ज़मीन थोड़ी और गहराई में धँस रही थी।कमरे का तापमान तेजी से गिर रहा था। काँच की खिड़कियाँ ज़ोर की आवाज़ के साथ बंद हो रही थी एक के बाद एक, और दरवाज़ा खुद-ब-खुद बंद होकर जाम हो गया था, नेहा ने धीरे-धीरे कियान के माथे पर हाथ रखा। और उसी क्षण एक गूंजती हुई, असहनीय चीख पूरे कमरे में गूँज गई। बिजली की ट्यूबें फट गईं, छत से पंखे की बोल्टें खुलकर ज़मीन पर आ गिरीं।कियान की आँखें खुली, फिर पलट गईं। उसके होंठ हिले… लेकिन जो आवाज़ निकली, वो उसकी नहीं थी: "मैंने ही उसे बंद किया था… मैंने ही दीवार में उसे कैद किया… मैं जानता था कि वो ज़िंदा थी…"
ईशान चौंक पड़ा "कियान, ये क्या बोल रहा है तू?
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