SAYA PART 7

नेहा ने चाबी घुमाई। पत्थर खिसकने लगा। नीचे अंधेरा था और उस अंधेरे मे कोई और भी था, जो अब तक छुपा हुआ था। तृषा काँपती हुई पीछे हटी। “हम यहाँ क्यों आए हैं?”
“क्योंकि तुम्हारे द्वारा उसको छुंए जाने से उसकी स्मृति तुम्हारे अंदर आ गई है जिसकी वजह से अनजाने ही तुम उसके साथ जुड़ चुकी हो जब ये नेहा ने कहा तो ईशान ने नाराज़ होते हुए धीरे से कहा, “नेहा कुछ भी बोले जा रही हो कबसे तृषा हमें कैसे भी यहाँ से बहार निकलना चाहिए” बदले में नेहा ने धीमे से मुड़के तिरछी मुस्कान के साथ उनके पीछे के रस्ते की तरफ देखना प्रारम्भ करती है और देखते ही देखते वो रास्ता स्वतः बंद होने लगता है ईशान भागता है उस ओर लेकिन ईंटों ने एक दुसरे के साथ जुड़ कर उस रास्ते को वापस दीवार बना दिया था।
“उसे क्रोधित मत करो, तुम सबने उसे… उसे जगाया है तो अब तुम्हीं उसकी देह बनोगे। ये सिर्फ़ एक इमारत नहीं है ये एक जीव है और ये कक्ष… ये कक्ष है उस जीव का हृदय और जो इसमें प्रवेश करता है, उसका अस्तित्व बाहर नहीं जाता… सिर्फ़ छाया जाती है।” थूक गटकता हुआ खड़ा रह जाता है ईशान और उसके साथ तृषा भी देखती है एक मूक दर्शक की तरह नेहा की जिसने अपनी हथेली में पकड़ी चाबी को उस भूरे, पत्थर के टुकड़े में फिट किया और धीरे-धीरे घुमाया तो कोई भयानक आवाज़ों से पूरी ईमारत गूँज उठती है जैसे हज़ारों आत्माएँ एकसाथ कराह उठीं हो। पत्थर की तह खुलने लग जाती है जिसे देखते ही तृषा चीखती है ”रुको! मत खोलो! हमें नहीं पता उसके नीचे क्या है…"
नेहा बिना देखे बोली "पता है बहुत अच्छे से पता है क्योंकि वो अब मुझमें है और मैं अब उसमें, नीचे देखो तुम्हे अच्छा लगेगा” नीचे अंधकार था, लेकिन अब उसमें हरकत होती दिख रही थी जैसे कोई चीज़ ज़मीन के नीचे रेंग रही हो बहुत धीरे… मगर निश्चित रूप तृषा और ईशान की आँखें fat जाती हैं जब वो देखते हैं की सारी ईंटें एक ओर खिसक जाती है, और एक सुरंग नीचे की दिशा मे खुल जाती है और नेहा उसी दिशा में आगे बढ़ती है तो ईशान डरते हुए बोलता है “ क्या हमें नीचे जाना होगा…" जिसके जवाब में नेहा बोलती है “जितना नीचे पाप गया था,” नेहा बोली, “उतना ही नीचे प्रायश्चित उतरेगा…”देखते ही देखते चारों एक बार फिर सुरंग में उतरने लगे।
सामने एक चौकोर पत्थर की वेदी थी। चारों कोनों पर लोहे की कीलें ठुकी थीं, और बीचोंबीच एक काँच की पेटी में वही गुड़िया अब एक मासूम बच्ची के रूप में तब्दील हो चुकी थी। वो इन लोगों को अपने पास आते देख रही थी, उसकी हर नज़र में आरोप था वो केवल देख रही थी “ये… यही है साया,” नेहा बोली इस बच्ची को देखते ही तृषा काँप उठी। "गुड़िया ज़िंदा कैसे हो सकती है?"
“क्योंकि वो कभी गुड़िया थी ही नहीं,” नेहा बोली, उसे बंद किया गया था। जिंदा काँच के ताबूत में और हर 100 साल में एक शरीर उसकी भूख मिटाने को अर्पण किया जाता है जिससे वो नींद में रहती है। ये सुनकर ईशान ने डरते हुए कहा इनसबसे हमें क्या हम तो यहा। नेहा ने उसे बीच में ही रोकते हुए कहा अब कुछ नहीं हो सकता तुम सबको चुना जा चूका है। तुम लोगो का डर ही तुम सबको यहां ले कर आया है।” और तभी पीछे का रास्ता बंद हो गया। एक ज़ोरदार धमाके के साथ सुरंग खुद ही मलबे से भर गयी । अब कोई बाहर नहीं जा सकता था।
सिर्फ वो बच्ची नहीं बल्कि वो कमरा भी इन लोगो से जीने मरने का सवाल पूछ रहा था और वो पुराणी हवेली अपना फैसला चाहती थी। साया की आँखों में अजनबी ठहराव था।वो अब बच्ची की तरह दिख ज़रूर रही थी, पर उसकी मौजूदगी में मासूमियत का कोई चिह्न कोई अंश नहीं था। वो चारों को ऐसे देख रही थी,जैसे किसी कठघरे में खड़े गुनहगारों को देखता है कोई ,इन चारों के आसपास हवा का बहाव तेज़ हो रहा था जबकि उस हवा के यूँ तेज़ बहने का कोई स्तोत्र न तो दिखाई दे रहा था न महसूस हो रहा था, धीरे धीरे साया की सांसें भी तेज़ हो रही थी और चेहरे के भाव बदल रहे थे जैसे वो न जाने कितनी यादें समेटे हुए थी अपनी हर एक सांस में। कियान की अब आँखें खुल चुकी थी और उसने आगे आ कर साया को देखा, कियान को देखते ही साया मुस्कुरा दी । लेकिन वो मुस्कान डरावनी नहीं थी…बल्कि अत्यंत शांत “मैं वापस आ गया…” कियान ने धीमे से कहा। साफ पता चल रहा था कि उस शरीर में अब कियान की आत्मा नहीं थी बल्कि कोई और था ...कोई पुराना वजूद जो पहले मर चुका था मगर अब दोबारा सांस लेना चाहता था। किय़ान को देखते हुए नेहा ने सिर झुकाया और कांपते होंठो से उसने बोला “हाँ… सरोज… अब पुनर्जन्म पूर्ण होगा…” पर उसके स्वर में किसी शिकवे की परछाईं नहीं थी।
उसके कहे ये शब्द हवेली की दीवारों में गूंज जिन्हे सुनके तृषा फूट कर रोते हुए चिल्लाते चिल्लाते बोलती है “नहीं! नहीं, नेहा… ये सब पागलपन है…तू होश में आ… ये सब… क्या कर रही है तू ...नेहा तू मेरी दोस्त है होश में आ ज़रा ये सब क्या पागलपन है ? क्या अनाप शनाप हरकतें कर रही है कब से ..उसके स्वर में स्वर जोड़ते हुए ईशान कहता है "तू इनमे से एक नहीं है तुझपे तेरे दिमाग पे इन लोगों ने अपना प्रभाव बनाने की कोशिश की है पर ....पर मुझे पता है तू ..इस सबसे बहार आ जाएगी नेहा ...प्लीज चल यहाँ से कोई तो रास्ता होगा बाहर निकलने का!” लेकिन तभी उस कमरे की दीवारों में कंपन होने लगी।काँच की पेटी के चारों ओर एक जलती हुई रेखा उभरने लगी और नेहा ने धीरे से कहा, “रास्ता है…लेकिन उस रास्ते का द्वार किसी एक की देह से खुलेगा।” ईशान ने आगे बढ़कर पूछा, “मतलब?”
“मतलब,” नेहा ने उसकी आँखों में देख कर कहा,“किसी एक को जाना होगा…उसके लिए,जो कब से भूखी है।”
“तो कौन देगा अपनी बली ?”
Back to Home
Like
Share