RAKSHABANDHAN

RAKSHABANDHAN
रक्षाबंधन अगस्त का महीना था। ज़ोरों की बारिश हो रही थी। अनुराग ने अपनी साइकिल पार्किंग में खड़ी की और मिठाई का डिब्बा संभालते हुए लिफ्ट की ओर बढ़ा। लेकिन बिजली गुल थी।वह सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ चौथी मंज़िल तक पहुँचा और 403 नंबर फ्लैट की घंटी बजाई। दरवाज़ा अमित ने खोला। सामने एक बीस वर्ष का युवक मुस्कुराता हुआ खड़ा था।अमित ने अनुराग को ऊपर से नीचे तक देखा। अनुराग ने विनम्र स्वर में कहा सर, थोड़ी देर हो गई... बाहर बहुत ज़ोर की बारिश हो रही थी। मैं साइकिल से डिलीवरी करता हूँ सर... आज भाग्य भी साथ नहीं दे रहा था। चार बार साइकिल की चेन उतर गई। कृपया कंपनी से शिकायत मत कीजिएगा। अमित ने मुस्कुराते हुए कहा चिंता मत करो। तुम तो पूरी तरह भीग चुके हो। सावधान रहो, कहीं तबीयत न बिगड़ जाए।उसने मिठाई का डिब्बा हाथ में लिया और कहा रुको, मैं अभी आता हूँ। कुछ देर बाद वह एक तौलिया लेकर लौटा और अनुराग को देते हुए बोला,पहले अपना चेहरा और हाथ पोछ लो... और अंदर आ जाओ। जब तक बारिश थमेगी, यहीं ठहर जाओ। अनुराग थका हुआ था। उसने सोचाकुछ देर आराम भी मिल जाएगा और उसकी भीगी हुई टी-शर्ट भी कुछ सूख जाएगी। उसने अमित का धन्यवाद किया और बैठक में लगी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ गया। अमित अपनी शर्ट लेकर आया और अनुराग को थमाते हुए बोला भाई, इसे पहन लो... नहीं तो सर्दी लग जाएगी। अच्छा बताओ, चाय लोगे या काफी? अनुराग ने धीमे स्वर में कहा जी, चाय। अमित अपने शयनकक्ष में गया और पत्नी ममता से कहा सुनो, ज़रा चाय बना दो... अदरक थोड़ा अधिक डालना। ममता ने कपड़े प्रेस करते हुए जवाब दिया ठीक है, दो मिनट रुक जाओ। तुम्हारे कपड़े तैयार कर रही हूँ... बस हो ही गया है। तुम भी जल्दी तैयार हो जाओ। राखी बंधवाने का शुभ मुहूर्त निकल न जाए... नहीं तो तुम्हारी बहन मुझे ही दोष देगी। वैसे कौन आया है? किसके लिए इतनी विशेष चाय बनवा रहे हो? अमित ने दयाभाव से कहा एक डिलीवरी करने वाला लड़का है... पूरा भीग गया है... काँप रहा था... सोचा थोड़ी मदद कर दूँ। ममता ने मुस्कुराकर कहा ओ मेरे प्यारे... बहुत अच्छे हो तुम। मैं अभी चाय बनाती हूँ। तुम जाओ, उसके पास बैठो। अमित मुस्कुराते हुए बैठक में पहुँचा और अनुराग के पास जाकर बैठ गया। बोला तुम्हारा नाम अनुराग है ना? अनुराग ने सिर हिलाकर उत्तर दिया जी। अमित ने पूछा आज तो रक्षाबंधन है। तुम राखी बंधवाने नहीं गए? आज तो तुम्हें आधे दिन की छुट्टी ले लेनी चाहिए थी। वैसे रहते कहाँ हो? अनुराग का चेहरा अचानक उतर गया। उसकी आँखों में उदासी छा गई। उसने कुछ नहीं कहा, बस एक आँसू उसकी पलकों से टपक पड़ा। अमित घबरा गया क्या हुआ? क्षमा करना, मैंने कोई अनुचित बात तो नहीं कह दी? अनुराग ने अपनी आँखें पोंछते हुए कहा नहीं साहब… मेरे लिए रक्षाबंधन तेरह वर्ष पहले था। अब बस बहन की यादें रह गई हैं। मैं उस समय सात वर्ष का था… वह अंतिम बार था जब दीदी ने मुझे राखी बाँधी थी। उसके बाद से आज तक मैंने दीदी की सूरत नहीं देखी। (यह कहते-कहते अनुराग रो पड़ा) अमित ने पानी का गिलास आगे बढ़ाते हुए कहा लो, पानी पी लो। मैं समझ सकता हूँ। जिसका जितना भाग्य होता है, वह उतने ही दिन पृथ्वी पर साँस लेता है। तुम्हारी दीदी की यादें तुम्हारे साथ हैं... उन्हें मुस्कुराहट से संजोकर रखो और जीवन में आगे बढ़ो। दुनिया में ऐसे बहुत लोग हैं जिनकी कोई बहन नहीं है। चिंता मत करो। अब मुस्कुराओ। चाय पीते हैं। और यदि कभी कोई समस्या हो, तो मुझे याद करना... मेरा मोबाइल नंबर ले लो।अनुराग सोचने लगा पहली बार किसी ने मेरे दर्द को महसूस किया है। लगता है इस दुनिया में अच्छे लोग भी हैं।उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा,साहब... पता नहीं क्यों, आप मुझे अपने जैसे लगते हो। आज मैं आपसे कुछ भी नहीं छिपाऊँगा,थोड़ी देर रुककर वह फिर कहने लगा,मेरी दीदी... स्वर्ग में नहीं हैं, बल्कि इस धरती पर ही हैं... कहीं न कहीं। बस उन्होंने हमसे रिश्ता तोड़ लिया है। दीदी किसी और को चाहती थीं वह हमारे समाज की जाति से अलग था। पिताजी ने बहुत समझाया... पर दीदी नहीं मानीं।पिताजी ने साफ कह दिया थायदि हमारी बात नहीं मानी, तो मर जाना, पर इस घर वापस मत आना। मैं मान लूँगा कि मेरी बेटी अब इस दुनिया में नहीं है। मैं गला काट लूंगा, पर यह रिश्ता कभी स्वीकार नहीं करूँगा।दीदी ने बहुत सोचा... और फिर एक निर्णय लिया। ऐसा निर्णय जो आज तक मुझे और मेरे माता-पिता को आँसुओं में डुबो देता है।मुझे आज भी याद है... शाम का समय था। पिताजी कार्यालय में थे, माँ बाज़ार गई थीं, और मैं टीवी पर कार्टून देख रहा था। दीदी आईं, और मुझे एक पत्र देकर बोलींअनुराग, यह खत पापा को दे देना।फिर उन्होंने मेरे सिर को चूमा, मुझे गले लगाया और रोती हुई अपना बैग लेकर चली गईं। मैं समझ नहीं सका कि दीदी रो क्यों रही थीं और कहाँ जा रही थीं। पिताजी जब लौटे, तो मैंने वह पत्र उन्हें दे दिया। पिताजी ने उसे पढ़ा... माँ और मैं एक तरफ खड़े होकर सब देख-सुन रहे थे। जो कुछ भी लिखा था, वह मैं पूरी तरह नहीं समझ पाया... पर माँ और पिताजी रो रहे थे।रात को मैं बेचैन हो गया... चुपचाप पिताजी के कमरे से वह पत्र ले आया और पढ़ा। उसमें लिखा था पापा, आप जीत गए... मैं हार गई। आपकी प्रतिष्ठा बच गई... अब मैं कभी नहीं लौटूँगी क्योंकि मैं आपकी नज़रों में मर चुकी हूँ। लेकिन आप हमेशा मुझे याद करेंगे। मैं रोऊँगी, चीखूँगी फिर भी लौटकर नहीं आऊँगी जब तक आप हमें स्वीकार नहीं करेंगे...बहुत कुछ लिखा था… पर सब याद नहीं। समय बीतता गया... अब मैं बीस वर्ष का हो गया हूँ। पिताजी बीमार रहने लगे हैं। उनकी नौकरी भी चली गई। घर चलाने के लिए मैं अंशकालिक नौकरी करता हूँ।अमित यह सब चुपचाप सुन रहा था। वह कुछ कहने ही वाला था कि...तभी ममता चाय लेकर भीतर आई। जैसे ही ममता ने अनुराग को देखा, उसके हाथ काँप गए। यह देखकर अमित ने चाय की ट्रे हाथ में ले ली। ममता एकटक अनुराग को देखती रही... और अचानक उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसके होंठ थरथरा रहे थे... अनुराग भी बस उसे देखता रहा। फिर वह कुर्सी से खड़ा हुआ। उसकी आँखों में भावनाओं का सैलाब उमड़ रहा था, और उसके भीतर गहरा आक्रोश था। यह देखकर अमित सब समझ गया। उसने ट्रे नीचे रखी और ममता के कंधे पर हाथ रखकर कुछ कहने ही वाला था कि... अनुराग रोते हुए जाने लगा।ममता ने पुकारा,अनुराग! उसका नाम सुनते ही उसके कदम रुक गए।अनुराग ने मुड़कर अमित से कहा साहब, मुझे देर हो रही है। बारिश भी रुक गई है। मेरे माता-पिता मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे... मैं उनका एकमात्र सहारा हूँ।वह जाने ही वाला था कि ममता दौड़कर उसके पास पहुँची, और उसे जोर से गले लगाकर रोने लगी। अनुराग कुछ देर खड़ा रहा... फिर खुद को रोक न सका। उसने अपनी दीदी ममता को पकड़कर अपने मन की सारी पीड़ा कह दी — मेरी क्या गलती थी? मैंने क्या बिगाड़ा था? मुझे छोड़कर क्यों चली गईं? मुझसे तो मिल सकती थीं... मुझे तो आप बहुत प्यार करती थीं... मेरी हर ज़िद पूरी करती थीं... फिर भी कभी पलट कर नहीं देखा कि हम कैसे हैं? मम्मी-पापा कैसे हैं? ममता ने उसका हाथ पकड़कर उसे सोफे पर बैठाया और कहा क्षमा करना... मुझे लगा तुम्हारे पिताजी को तकलीफ़ होगी मुझे देखकर... और तू भी रोएगा। तेरा रोना मैं कभी नहीं देख पाती। अनुराग ने धीरे से कहा,पर आपने मेरा रोना देखा ही कहाँ है दीदी? मैं तो हर दिन रोता हूँ... उस बहन की याद में, जो मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी... जो मेरा होमवर्क करती थी... मुझे चॉकलेट लाकर देती थी... और हर रक्षाबंधन पर मुझे राखी बाँधती थी।ममता की आँखों में आँसू छलक आए। वह तुरंत उठी, रक्षाबंधन की थाली सजा कर लाई और अनुराग को राखी बाँधी।अनुराग फूट-फूटकर रो पड़ा। दोनों भाई-बहन गले मिलकर खूब रोए। ममता ने अनुराग से कहा आज के बाद तू केवल कॉलेज जाएगा... और मैं मम्मी-पापा से माफ़ी माँगूँगी। यदि उन्होंने मुझे माफ़ कर दिया तो... यह बहन वादा करती है कि तेरी आँखों में कभी आँसू नहीं आने दूँगी। यह सुनकर अनुराग मुस्कुरा उठा... और अमित भी।