LINDER

मेरी उम्र कोई बहुत ज़्यादा नहीं थी। यही कोई सत्ताईस या अठ्ठाईस के बीच की। लेकिन अजीब बात ये थी कि मुझे कभी ये उम्र महसूस ही नहीं हुई थी।
वक़्त आगे बढ़ गया था पर मैं जैसे वहीँ रुक गया था पांच साल पहले जब रिया से पहली बार मिल था। वैसे हमारा प्यार फिल्म्स जैसा नहीं था। पहली बार ऑफिस के एक सेमीनार में हम दोनों एक दुसरे से मिले थे। बहुत ही सिंपल सी दिखने वाली रिया एक क्यूट सी स्माइल के साथ मेरे सामने आई थी। बस उसकी उसी स्माइल की तरफ मैं धीरे धीरे आकर्षित होने लगा।
पाँच साल साथ गुज़रे थे ऐसा भी नहीं था कि हमने साथ में दुनिया जीत ली हो। लेकिन साथ में शामें बुनना, मूवी के बाद केफै में घंटों बैठे रहना, उसकी पसंद का कॉर्नर सीट चुनना, उसका अचानक नाराज़ हो जाना और फिर बिना सॉरी कहे सिर्फ नज़रों से मना लेना... ये सब मेरा हर रोज़ को स्युडुल बन चुका था।
और फिर एक दिन उसने कैसुअली कहा " मॉम को एक लड़का पसंद आया है... देखती हूँ कैसा है। शायद बात बन जाए।"
मैंने उस वक़्त सिर्फ मुस्कुराकर इतना कहा था, "अच्छा है... देख लो।"
वो कोई टेस्ट नहीं ले रही थी। लेकिन मैंने शायद दे दिया।
और बस... तीन महीने बाद उसकी शादी हो गई। किसी CA से, जयपुर में। इनविटेशन कार्ड भी खुद व्हाट्सप्प किया था उसने, वौइस् नोट में बोली थी " प्लीज नाराज़ मत होना... तू तो जानता है ना कि मैं अपनी शादी को लेकर हमेशा एक्ससिटेड थी। तू होता या कोई और... मुझे शादी करनी ही थी। प्रॉमिस कर, आएगा मेरी शादी में?" ये सुनके माथा भन्ना गया, समझ नहीं आया की क्या ये सब वाक़ई में हो रहा था ?
उस रात मुझे बहुत दारू पीनी चाहिए थी। लेकिन मेरा मन नहीं हुआ। मैं बस अपने लैपटॉप पर उसकी एक पुरानी तस्वीर को खोलकर बैठा रहा जिसमें उसने मेरा कैप पहन रखा था, और मैंने उसकी गिफ्ट की हुई पर्पल बेयर हूडि जिसे देखके वो उस वक़्त बोली थी "तू इसमें बहुत चाल्डिश लग रहा है!"। उस तस्वीर में अब भी वो मुस्कुरा रही थी, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
ज़िन्दगी भर का साथ वो कमिटमेंट ये सब मेरी प्रायोरिटी नहीं थे उस वक़्त। पर रिया के लिए ये सब बहुत ज़रूरी थे शायद हमारे अलग होने की वजह यही थी सब कुछ आपस की समझदारी थी
इसके बाद की ज़िन्दगी एक स्युडुल ट्रैन बन गई सुबह उठना, ऑफिस जाना, क्लाइंट्स को कन्विंस करना, वीकेंड पर यारों से मिलना, और फिर वापस उसी रूटीन में लौट जाना। इसी बीच मम्मी-पापा के कॉल आने लगे "अरे शर्मा जी की बेटी देखी है? IT में ही है, सुंदर भी है। तुमसे बात करवा दें?"
"नहीं मम्मी, अभी मूड नहीं है," मैं हर बार यही कह देता।तो कुछ ही दिन में मम्मी एक नया ऑप्शन लाकर खड़ा कर देती मेरे सामने जब वो माँ हर दूसरे कॉल पर कहती “वाजपेयी जी की बेटी भी तो TCS में है… क्या बुरा है अगर मिल लो एक बार?" मैं पॉलाइटली टालता गया।एक बार तो मम्मी ने चाय के बहाने मुझे रिश्तेदार के घर बुला लिया। वहाँ एक लड़की थी MBA किया था, डिसेंट फैमिली से, बातों में भी दम था... लेकिन बात करते वक़्त हर तीसरे शब्द में 'you know', 'basically', और 'my vibe is different' घुसेड़ती रही।मुझे उसका टोन इर्रिटेट करने लगा।शायद क्योंकि मैं अभी कंपेरिज़न से बाहर निकला ही नहीं था…घरवालों से शादी की बातें थमीं तो ज़िन्दगी थोड़ी शांत ज़रूर हुई, लेकिन अंदर कहीं एक फीलिंग भी रह रह के बहार आ जाती थी की रिया जा चुकी है और मैं किसी को ब्लेम भी नहीं कर पा रहा था क्योंकि किसी ने कुछ गलत किया ही नहीं था। बस वक्त और ज़रूरतें अलग थीं।
ऐसे ही एक शाम,मैं घर में चाय के साथ अपनी पुरानी फ़ोटो घूर रहा था, कि अचानक भाड़ की आवाज़ से दरवाज़ा खुला। और एक आदमी दनदनाते हुए सीधे मेरे बैड के पास, “अबे तेरे घर में नॉक करने से कोई मर जाता है क्या?” पर उसको इन सबसे कुछ फर्क नहीं पड़ता था ये सब बातें उसके सयल्लेबस से बहार की थी क्योंकि उसका नाम था विवेक। और विवेक का मेरे घर पर इस तरह आना मतलब मैं समझ गया था की इस खींचतान में, मेरे ऊपर मेरी किस्मत नहीं, मेरा कजिन भाई टूट पड़ा था ।
पूरे खानदान में " प्रॉब्लम चाइल्ड " के नाम से मशहूर।स्कूल में बैकबेंचर, कॉलेज में चार बार ड्राप, और लाइफ में कभी भी कुछ भी कर सकने वाला इंसान।पूरा नाम विवेक प्रकाश सिंह,रिश्ते में मेरा कज़िन,और व्यवहार में जैसे जीवन की सारी सीरियसनेस को उल्टा पहनकर घूमता हो।
शादी-ब्याह के फंक्शन्स में चप्पल पहनकर आ जाता, सीरियस बातों को में मीम कन्वर्ट कर देता, और जब भी फॅमिली में कोई इमोशनल मोमेंट आता वहाँ मज़ाक करने वाला इकलौता इंसान होता था।उसकी आँखों में हमेशा कोई “नया प्लान ” पलता रहता था कभी ट्रेवल व्लॉगिंग की बात करता, कभी स्टॉक ट्रेडिंग सिखाने लगता, और एक बार तो मुझे MLM में घसीटने की कसम खाकर रह गया था। याद है मुझे कैसे वो ३१०० Rs का प्लान बेचने को उतारू था की इससे एक दिन सपने पूरे होंगे, बस सिंपल है एप निचे २ उसके निचे 2 फिर डाउनलाईन फिर अपलाईन बनाते रहना, कुछ ही दिन की मेहनत है पर उसके बाद ऐसे ही घूमना जैसे मैं घूमता हूँ बिलकुल बेफिक्र !! इसके पहले की मैं कुछ सोचता और उसकी बातों में आकर अपनी नौकरी छोड़ने का सोचता की वो आ गया ड्राप शिपिंग का नया ही कुछ लेकर … कंसिस्टेंसी नाम की कोई तो चीज़ हो इंसान में …लेकिन एक चीज़ में वो कंसिस्टेंट था डेटिंग । उसके लिए डेटिंग अप्प्स वैसे थे जैसे किसी दुकानदार के लिए टूलकिट Tinder, Bumble, Hinge, और अब Linder एक नया, slightly shady but oddly functioning local app, जो उसी की ज़बान में बोले तो “
लौ प्रेशर, हाई रिटन वाला प्लेटफार्म ” था। साथ के साथ इस स्वाइप मास्टर विवेक ने मुझे उसके फ़ोन में गैलरी ओपन करने को बोला, मैंने ओपन किया तो देखा इतने सारे स्क्रीनशॉट्स उसके फ़ोन में थे कि उसकी गैलरी देखो तो लगे कोई प्रीमियम फोटोग्राफर है लेकिन सब्जेक्ट्स सब अननोन गर्ल्स !
और उसकी खरखराती आवाज़ मेरे कान में भी जोरसे पड़ी “बैठ भाई। आज तेरे जीवन में नई डायमेंशन खोलता हूँ।”
उसने मेरा लेपटॉप एक तरफ फेंका और खुद ही मोबाईल का हॉटस्पॉट ऑन करके अपना फ़ोन कनेक्ट कर डाला।
“तू तोह अभी भी वही मेलोड्रामा जी रहा है ना? रिया जा चुकी है ब्रो पर तेरी सुई अभी भी वहीँ वही अटकी हुई है देख यार ये लाइफ है, इसे कोई वेबसेरिएस मत समझ जिसे किसी क्लोज़र की ज़रूरत है! इससे पहले की मैं कुछ हाँ या न बोलता की उसका अगला जवाब भी खुद ही आ गया “अब क्लोज़र नहीं एक्सपोज़र लेंगे! ” मैंने हल्के से मुस्कुरा कर पूछा “अब क्या? तू किसी नयी स्टार्टअप में इन्वेस्ट कराने आया है?”
“नहीं भाई,” उसने स्क्रीन पलटी, “तेरा इमोशनल IPO आज पब्लिक्ली लिस्टेड कर रहा हूँ ऑन लिंडेर.”
जी हाँ नाम से ही अजीब साउंड करने वाला Linder अब उसका नया ओबसेशन था।उसने स्वाइप करते हुए एक-एक प्रोफाइल ऐसे दिखानी शुरू की जैसे कोई आर्ट गैलरी में करटेड पेंटिंग्स दिखा रहा हो। “देख ये… ये प्रोफाइल वाली लड़की सिर्फ डार्क कॉफ़ी पीती है और ‘लड़कों से सिर्फ इंटेलेक्चुअल बातें’ करती है... यानि तेरे से पक्का मैच । ”
“और ये देख इसकी प्रोफाइल पिक्चर में सिर्फ टैटू दिखता है... चेहरा भी नहीं... समझा? मिस्ट्री, माय बॉय ! प्योर मिस्ट्री.”
कुछ प्रोफाइल वाकई स्टन्निंग थीं।ऐसी तस्वीरें, जिनमें लड़कियाँ समुद्र किनारे बैठी थीं, किसी हिल स्टेशन के जंगल में योगा कर रही थीं, या कभी-कभी सिर्फ मिरर सेल्फी में इतना कुछ कह जाती थीं कि शब्दों की ज़रूरत ही नहीं थी।
मैंने धीरे से पूछा ये सब लोग क्या सच में एग्जिट करती हैं ? ”
वो हँस पड़ा “तेरा प्रॉब्लम यही है। तू अब तक सोचता है कि सच्चाई सिर्फ वही है जो दर्द देती है। कभी-कभी सच्चाई स्वाइप से भी मिल जाती है... बस उसके लिए गिल्ट का लॉगिन बंद करना पड़ता है।”
“अप्प डाउनलोड कर... प्रोफाइल बना... और बायो में कुछ ऐसा लिख जो तेरी सच्चाई से थोड़ा बेटर वर्शन हो।”
मैंने पूछा “मतलब झूठ?
“नहीं। बस थोड़ा… hopeful version। जैसे तू है, वैसे ही दिख बस थोड़ा version 2.0 वाला।”
मैंने थोड़ा झिझक कर फ़ोन में ऍप इनस्टॉल किया
प्रोफाइल बनाते वक्त विवेक मेरे पीछे खड़ा था जैसे कोई कोच, जो अपने ट्रेनी को रिंग में पहली बार उतार रहा हो।
““डिस्प्ले पिक?”
“गोवा वाली डाल, जिसमे तु हस रहा है वही वाली। तेरी रिया वाली गैलरी डिलीट करनी पड़ेगी नहीं तो अल्गोरिथम भी कंफ्यूज हो जाता है!
“बायो?”
तो मैंने लिखा "चाय की गर्मी, किताबों की खुशबू, और कंवर्सशन्स जो रातों को नींद से ज़्यादा प्यारी लगती हैं।”
उसने सर हिलाया नॉट बैड… लेकिन थोड़ा cheesy है… चलो रहने दे, लड़कियाँ समझ जाएँगी कि तू वो good boy with sad past टाइप है।”
फिर मैंने थोड़ा डरते डरते स्वाइप करना शुरू किया और हर एक प्रोफाइल के साथ विवेक ने कमेंटरी देना। क्या मस्त पिक है लैब्राडोर के साथ सौ टका डॉग लवर है। वेट तुझे ऐलर्जी तो नहीं है ना? ना ना बंदी से नहीं बे…कुत्ते से”
“ये वाली देख पहले ही लाइन में लिखा है …‘Don’t text hi/hello’ तो क्या भेजें ? सीधे… चलती क्या मैडम इंगेजमेंट करनी है”
“ओहो ये हुई ना बात क्या लड़की है प्रोफाइल में ही योग करते हुए अपसाइड-डाउन खड़ी है…इससे मिलके तेरे सारे कम्प्लेक्सेस उल्टे हो जाएँगे!”
मैं हँस रहा था… सचमुच हँस रहा था… बहुत दिनों बाद।ये सब अटपटा था मगर ये सब कुछ कभी किया नहीं था …विवेक की माने तो मैंने लाइफ को जिया नहीं था…ये तो शायरी हो गयी ? वैसे सच कहु तो कुछ प्रोफाइल्स सच में काफी स्टन्निंग थी इतनी की बार बार मेरा संस्कारी वर्शन मुझे बोल रहा था की ये सब ठीक नहीं है.."
लेकिन फिर मेरे अंदर का सप्प्रेस्सड आदमी वही जो रिया के बाद इमोशनल फासटिंग में जी रहा था अचानक रिबेल करने लगा।
रिया की तस्वीरें उस रात भी वहीं थीं, मेरी गैलरी में… लेकिन पहली बार लगा कि अब शायद उन्हें वहीं रहने देना है untouched, Archived not erased, Just irrelevant… विवेक ने उस रात जाते-जाते कहा
“Emotions important हैं, लेकिन भाई… बहुत लंबे time tak अकेले mat reh…Have someone in your life… हैं ये तो सही इंग्लिश बोल दी मैंने.. हाहाहाहा …देख इंसान को दो चीजें ही बचाती हैं नयी बातचीतें और पुरानी गल्तियों से निकला हल्का सा wisdom। बाकी सब jazz है।”
बोलकर वो चला गया।लेकिन लेपटॉप और वो लॉगिन मेरे हाथ में रह गया।और उस रात, पहली बार, मैं गैलरी नहीं खोल रहा था… मैं वो ऐप खोल रहा था।
और बस उन्हीं लड़कियों के प्रोफाइल्स के बारे में सोच रहा था जिन्हें विवेक ने स्वाइप करके दिखाया था
कुछ ऐसे चेहरे… जो मैंने ज़िंदगी में कभी न देखे थे वो खुले बालों वाली लड़की जो ट्रैकिंग पर अकेले जाती थी,वो जिसने अपने बायो में लिखा था ‘Not your girl-next-door, unless you’re interesting’, और फिर एक… जो शांत मुस्कुराहट में कुछ बोलती नहीं थी, बस देखती थी।सान्या।
उसकी प्रोफाइल किसी भी दूसरी प्रोफाइल से अलग थी।ना कोई over-the-top caption, ना ही edited pictures का झूठा शोऑफ़।बस एक मीठी सी हँसी और उसकी आँखें ऐसी की उसका फोटो देखके लग ही नहीं रहा था की मैं फोटो देख रहा हूँ ऐसा लग रहा था कि जैस वो मेरे सामने बैठी हो।पर उस रात… जब पुरानी यादें मेरे कमरे की दीवारों से टकरा कर लौट रही थीं, तब मैंने पहली बार गैलरी की जगह चैट खोली।
मैंने टाईपिंग शुरू की, फिर रुक गया…फिर दुबारा लिखा
तुम्हारी तस्वीर देखके मन को अच्छा लग रहा है एकदम पीसफुल आपकी आँखों में जो इन्नोसेंसे है उसे देखके मन को शांति जैसी मिलती है। एकदम वैसी जैसी भीड़ में किसी मंदिर की घंटी को सुनकर मिलती हो।”
कुछ ही देर में सीन आ गया।
“That’s the sweetest thing someone’s said to me in years.” सामने से रिप्लाई आगया सान्या का ..उस रात मैंने खुद को पहली बार थोड़ा हल्का महसूस किया।जैसे गैलरी के बोझ से निकल कर, चैट की हल्की हवा में साँस ली हो।
जैसे किसी ठहरे हुए पानी में कोई छोटी सी कंकर गिरा हो और लहरें बनने लगी हों।और उस वक्त, मेरे कमरे में सिर्फ मोबाइल की लाईट जल रही थी,
पर अंदर कोई चुपचाप जाग रहा था।शायद मैं।
या फिर एक नई शुरुआत।
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